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पप्पी


हास्य लघुकथा
(ये केवल एक काल्पनिक कहानी है जो केवल पाठकों के मनोरंजन के लिये ही लिखी गई है )

बहुत से किस्से हमारी ज़िंदगी में ऐसे होते हैं जो बाद में याद करने पर मन गदगद हो जाता है ।

हमारे पड़ोसी को कुत्ते पालने का बड़ा शौक था। और मुझे कुत्तों से उतना ही डर लगता था। मैं उन्हें कयीं बार कह भी चुका था कि आप कुत्ते पालने का शौक याँ तो छोड़ दीजिये याँ सोसायटी बदल लीजिये। हमारी दोनों में इस बात को लेकर कयीं बार बहस हो चुकी थी, लेकिन हम दोनों एक से ही लीचड़ और ढीठ थे। ना वो सोसायटी छोड़ते थे ना कुत्तों को पालने का शौक और ना ही मैं उनसे लड़ना।

हद तो तब हो जाती थी जब मैं उससे लड़ता था तब उसका कुत्ता मुझे देख कर गुर्राता था। ये बड़ी बड़ी आंखें और उसका गुर्राना....उफ़्फ़ । ये तो गनीमत थी कि मैं अपने घर से ही खड़ा खड़ा लड़ता था , बीच में मकान की बाउंड्री वॉल थी, जिस वजह से वो इस तरफ़ आ नहीं पाता था, वरना पता नहीं जालिम क्या ही करता ! जी में तो आता पड़ोसी को सोसायटी से बाहर धकेल दूँ। लेकिन भाभीजी की वजह से मैं कुछ बोल नहीं पाता था। जब भी मैं उससे लड़ने की कोशिश करता भाभीजी आ जातीं और भाभीजी के सामने तो कैसे लड़ता पड़ोसी से ! भाभीजी फ़िर मेरे बारे में क्या सोचतीं ।

बड़ी विकट समस्या थी एक तरफ़ वो पड़ोसी और उसका कुत्ता और दूसरी तरफ़ भाभीजी। मैं तो बस भाभीजी की वजह से चुप था।

कुछ दिन बाद मैंने देखा पड़ोसी शायद मुझे चिढ़ाने के लिये एक काला भयंकर सा दिखने वाला पप्पी और ले आया है। मैं उससे कुछ कहने ही जा रहा था कि तभी भाभीजी अंदर से निकल आयीं और मैं फ़िर चुप रह गया।

उस दिन तो हद ही हो गई सुबहा का समय था, मैं ऑफ़िस के लिये घर से निकला था, सोसायटी के गेट की तरफ़ बढ़ते हुए मैंने देखा गेट के पास ही वो काले रंग का भयानक सा दिखने वाला पप्पी खड़ा मुझे दूर से आते हुए घूर रहा था । मैंने पहले तो दूर से ही उसे छी....छी कह कर हाथ के इशारों से भगाने की कोशिश की, मगर वो टस से मस नहीं हुआ । उल्टा भागने की जगह वो मेरी तरफ़ दौड़ा ।

मैंने आव देखा ना ताव पलटा और वापस घर की तरफ़ भागा । डोरबेल बजाई पत्नी ने दरवाज़ा खोला तो मैं लपक कर अंदर हो गया और दरवाजे को बंद करते हुए बस इतना ही बोल पाया "पप्पी....पप्पी"
"क्या ?" चौंकते हुए पत्नी बोली "आपको आज ये क्या सूझी, निकलते हुए नहीं याद आया ? मैं भी सोचूं आज ये ऐसे कैसे चले गये ?"
मेरी सांस इतनी फूली हुई थी कि मैं बस "पप्पी" के इलावा कुछ बोल ही नहीं पा रहा था ।
तभी पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा "लो जल्दी करो वरना ऑफ़िस को देर हो जायेगी"

मैं भौचक्का सा खड़ा सोचता रहा
"उस पप्पी के डर से भाग कर इधर आया और इधर भी पप्पी मिल गयी"

इसे कहते हैं किस्मत 😝😝

©RKapOOr

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