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चौकीदार


बात बहुत पुरानी तो नहीं है। मकरसंक्रांति का दिन था, मैं पतंगे उड़ाने के लिए डोर और पतंगें ले कर छत पर आ गया । चूंकि फ्लैट्स में छत कॉमन ही होती है, तो वहां एक लड़का और भी था जो पहले से पतंग उड़ा रहा था।

मैंने अपनी पतंगों को एक तरफ कोने में रखा और लगा पतंग उड़ाने। मेरी पतंग जब हवा से बातें करने लगी तो मैंने देखा वही मेरी छत वाला लड़का अपनी पतंग को मेरी पतंग के पास लाकर पेंच लड़ाने की कोशिश कर रहा था। ये देख कर मुझे भी खुन्नस आयी और डोर को खींच कर उसकी पतंग को काट दी । उसकी पतंग काटने के बाद मेरे चेहरे पर अजीब सी ख़ुशी थी, मैंने तिरछी नज़र करके उसकी तरफ़ देखा तो वो बेचारा मुंह बनाता हुआ अपनी डोर को लपेट रहा था।

हमारे बीच ये काटा पीटी का सिलसिला कुछ देर यूं ही चलता रहा । तभी एक लड़की भी छत पर आ गई, दिखने में सुंदर लग थी, बाल खुले होने की वजह से ज़ुल्फ़ें हवा से उड़ कर बराबर उसके चेहरे पर आ जातीं, जो उसकी खूबसूरती को और निखार देती । मैंने उसे पहले यहां कभी देखा नहीं था। लड़की पहले तो छत पर इधर उधर घुमती रही फ़िर वो उस लड़के से थोड़ी दूरी पर जाकर खड़ी हो गई और ऊपर आसमान में उड़ती पतंगों को देखने लगी। मैं पतंग उड़ाता हुआ कभी कभी नज़र घुमा कर उस तऱफ देख लेता था।

कुछ देर तो वो लड़का थोड़ी थोड़ी देर में मुड़ कर उसकी तरफ़ देखता रहा, मग़र फ़िर अचानक उसके नज़दीक जाकर बोला "क्या आपको भी पतंग उड़ाने का शौक़ है ?"
"हां बहुत ज़्यादा, मग़र मुझे पतंग उड़ानी नहीं आती" लड़की ने उत्तर दिया।
"इसमें कौनसी बड़ी बात है, आइये मैं आपको पतंग उड़ानी सिखाता हूं" उस लड़के ने कहा और उसके पास बची हुई उस आखरी पतंग को ले कर उड़ाने लगा।
मेरी तिरछी नज़रें अब बार बार उन्हीं को देख रहीं थीं।

पतंग को ऊपर उड़ा कर उसने लड़की से कहा "आईये इस डोर को यहां से पकड़िये" कहता हुआ उसके हाथ में डोर पकड़ाता हुआ खुद उसके पीछे खड़ा गया और उसका हाथ पकड़ के उसे पतंग उड़ानी सिखाने लगा। उस समय मुझे "शोले" फ़िल्म का वो सीन याद आ गया जब धर्मेंद्र हेमामालिनी को बन्दूक चलानी सिखाता है।
"साला नौटंकी, हो गई पतंगबाज़ी" अनायास ही मेरे मुंह से भी अमिताभ बच्चन की तरह डायलॉग निकल गया।

मैं दिल ही दिल में सोचने लगा "ये तो शोले फ़िल्म का रीमेक चल रहा है। अभी दोनों धड़ाम से नीचे गिरेंगे और लड़की बोलेगी "यूं के आप हमें सिखा तो रहे थे पतंग उड़ाना...।"
मग़र ऐसा तो नहीं हुआ पर हां लड़के के पांव में डोरी फंसने के कारण वो धड़ाम से नीचे गिर गया । उसके चेहरे को देखकर मुझे लगा कि उसे दर्द हुआ है मग़र चूंकि वो एक लड़की के सामने गिरा था इसलिए सम्भल कर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा।
"ओफ्फो ये क्या किया आपने ? आपके पांव में फंसने के कारण डोरी भी टूट गई और पतंग भी गई।" लड़की थोड़ा झल्लाती हुई बोली।
लड़का होले से उठा और बोला "कोई बात नहीं, मैं दूसरी पतंग उड़ा देता हूं ।" उसने मुड़ कर देखा, मगर उसकी सारी पतंगें खतम हो चुकीं थीं। उसने लड़की की तरफ़ देखा और फ़िर दोनों की नज़रें कोने में रखीं मेरी पतंगों पर पड़ी। मैं समझ गया कि अब ये मुझसे पतंग मांगेगा। इससे पहले कि वो मुझसे पतंग मांगता , मैं तुरंत उस कोने में गया जहां मेरी पतंगें पड़ी थीं, पतंगों को उठाया और सारी पतंगें फाड़ कर नीचे फेंक दीं। मेरी इस हरक़त को देख कर दोनों मुझे बड़ी अजीब नज़रों से देख रहे थे, मगर मेरे चेहरे पर एक कटु मुस्कान थी ।

मैंने छत से झुक कर नीचे फ़टी पड़ी पतंगों की तरफ़ देखा, उस समय मोदीजी के वो शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे :
"मित्रों मैं एक चौकीदार बन के रहूंगा, ना खाऊंगा और ना ही किसीको खाने दूंगा।"
©RKapOOr

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