मोबाइल गीता नन्दलाल सुथार राही द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मोबाइल गीता




"सरपट दौड़ते इस जमाने की गति अर्जुन के तीर से भी तेज हो गयी है, ऐसा आभास होता है लेकिन जो तकनीक आज चल रही है वह तो भारत में हजारों सालों पहले ही विकसित थी। "अपने अध्यापक की इस बात का विश्वास आज के अर्जुन को नहीं हो रहा था।

अर्जुन कक्षा 12 का विद्यार्थी था और स्वभाव में एकदम शांत ,गंभीर और जिज्ञासु । वह कुछ नया सीखने को हमेशा तत्पर रहता था । किताबों के साथ साथ वह आधुनिक तकनीक में भी कुशल था। दिन के कम से कम चार से पांच घंटे मोबाइल , टीवी के लिए फिक्स थे। हालांकि वो मोबाइल में यु ट्यूब पर कुछ मोटिवेशनल वीडियोज भी देखता था लेकिन कब वो विषय से भटक जाता वह उसको भी सुध न रहती।
फेसबुक पर बहुत दोस्त बन गए थे और व्हाट्सएप पर रोज नए नए स्टेटस तो डालना जैसे अनिवार्य हो गया।

जब मोबाइल नहीं था, तब आदमी अकेले होने पर खुद से बात कर दिया करते थे और उनमें चिंतन करने के गुण के बीज पनप जाते थे, लेकिन आज तो आदमी अकेला रह ही नही गया । महापुरुष कहा करते थे कि आदमी कभी अकेला नहीं होता है ।वो परमतत्व परमात्मा हमेशा हमारे अंदर विद्यमान रहता है जब आदमी अकेला होता है तो उस परमात्मा से वार्तालाप करने का अवसर मिल जाता है , लेकिन लगता है ,आज उस परमात्मा की जगह इस मोबाइल ने ले ली है जब भी अकेले होते है मोबाइल हमारा साथी बन ही जाता है।

अर्जुन की परीक्षाएं नजदीक आ गयी थी पर अब भी मोबाइल का मोह नहीं छूट रहा था। कभी संदीप माहेश्वरी के वीडियो देखता और फिर पढ़ने बैठ जाता लेकिन दूसरे दिन वही हाल। भगवान कृष्ण हो या महावीर सभी महापुरुषों ने बताया कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए मन सहित इन्द्रियों का नियंत्रण करना पड़ता है लेकिन आज उन इंद्रियों का भी बाप मोबाइल आ गया है इन्द्रियों और मन के नियंत्रण से पूर्व मोबाइल पर नियंत्रण करना आवश्यक हो गया है।

शाम के समय अर्जुन घर के बाहर के कमरे में बैठा हुआ खाने का इंतजार कर रहा था । पास में उसके पापा, भैया और बहन भी बैठी थी । कमरे की एक दीवार पर एक लकड़ी की पट्टी लगाई हुई थी जिस पर अर्जुन के पारितोषिक रखे हुए थे और उसके नीचे एक अलमारी में उसके पापा का धार्मिक पुस्तकालय था जिसमे गीता और अन्य धार्मिक पुस्तकें रखी हुई थी। अर्जुन के पापा अपना पसंदीदा नाटक महाभारत देख रहे थे और उसके भैया और बहन मोबाइल में अपने फोटो को गोरा और एडिट करने में लगे थे।

अर्जुन इंतजार कर रहा था कब इस महाभारत के एपिसोड में ब्रेक आये और वो कोई मूवी लगाए। तभी उसकी मम्मी सबके लिए खाना लायी और सभी खाना खाने बैठ गए ।
पापा ने खाना खाने से पहले गाय के लिए रोटी अलग से निकाल ली और खाने लगे अर्जुन की बहन सरिता और भाई अनिल एक हाथ से खाना खा रहे थे और दूसरे हाथ से फेसबुक पर दोस्तों की फ़ोटो को लाइक कर रहे थे।

तभी टीवी में महाभारत के एपिसोड में युद्व शुरू होने से पहले संजय के ध्रतराष्ट्र को युद्ध का वर्णन करने का दृश्य आया संजय जैसे लाइव टीवी देख के युद्ध का हाल बताता है। अर्जुन को कुछ आश्चर्य होता है कि ऐसा भी क्या हो सकता है वो सोचता है कि ये सब जूठ है और ये कहानियां कोरी कल्पनायें है। अर्जुन की प्रतीक्षा समाप्त हुई और एपिसोड खत्म हुआ तुरंत ही उसने सेट मैक्स निकाला और मूवी देखने लगा।

जैसे भविष्य के आविष्कार पर हमें यकीन नहीं होता है , आज से 50 साल पहले भी लोग सोच भी नही सकते थे कि ऐसे मिलो दूर बैठे हुए आदमी एक दूसरे को देख और बात कर सकते है । अगर 50 साल पहले लोगो को बोलते की भविष्य में ऐसा होगा तो वो यकीन नहीं करते लेकिन आज सब मोबाइल का ही उपयोग कर रहे है। अभी भी जैसे हमें भविष्य के अविष्कारों पर विश्वास नहीं है वैसे ही पुरानी बातों और कहानियों पर भी नहीं है। हमें लगता है ये तो हो ही नहीं सकती।

अर्जुन अपनी कक्षा में बैठा एक दिन पहले का गृहकार्य कर रहा था क्योंकि घर पर समय ही नहीं मिलता तभी हिंदी के अध्यापक राजेश कुमार जी आए। राजेश जी हिंदी के प्रकांड विद्वान और धर्म में निर्गुण उपासक थे वो मानते थे कि भगवान हमारे अंदर ही है और भगवान को बाहर खोजने की जरूरत भी नहीं है वह भारत की संस्कृति और इतिहास को भी पसंद करते थे।
वह कबीर पर अपने दोहे सुना रहे थे और चर्चा में भगवद्गीता और महाभारत भी आ गयी। तभी अर्जुन को वह टीवी वाली बात याद आ गयी और उसने राजेश जी को पूछा 'गुरुजी महाभारत में संजय भला कैसे युद्ध का लाइव टेलीकास्ट देखता है रामायण में रावण कैसे विमान में उड़ता है यह थोड़ी हो सकता है , क्या रामायण और महाभारत यह बातें कल्पनायें है ।'
गुरुजी किताब को टेबल पर रखकर अर्जुन को कहने लगे"सरपट दौड़ते इस जमाने की गति अर्जुन के तीर से भी तेज हो गयी है। ऐसा आभास होता है लेकिन जो तकनीक आज चल रही है वह तो भारत में हजारों सालों पहले ही विकसित थी। हमारे भारत में हजारों वर्ष पहले ही ऐसे विमान और लाइव टेलीकास्ट का अविष्कार हो चुका था।"
अर्जुन को अपने अध्यापक की इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था।अर्जुन ने फिर पूछा कि "आप ही बताओ उस संजय को भला कैसे पता चल रहा था उस युद्ध का वो तो दूर महल में बैठे है।" गुरु कहते है "ध्यान"। जो ध्यान करते है और योग द्वारा परम सिद्धि को प्राप्त हो जाते है वो दूर की आवाज भी सुन सकता है दूर का देख भी सकता है कुछ साल पहले अमेरिका में भी एक ऐसा ही इंसान हुआ था जो मिलो दूर की आवाज भी सुन सकता था।

अर्जुन की जिज्ञासा और बढ़ गई और वह पूछने लगा 'तो क्या सच में महाभारत का युद्ध हुआ था '
गुरुजी ने शांत होकर कहा जैसे योगीश्वर श्री कृष्ण अर्जुन को बोल रहे हो ' नहीं ; गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि यह युद्ध बाह्य न होकर आंतरिक था स्वयं भगवान ने कहा कि
'इदम शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते' यह शरीर ही इस युद्ध का क्षेत्र है । हालांकि इस पर अनेक मत है और कई लोग इसको वास्तविक मानते है और उस पर अपने तर्क और सबूत भी देते है। ये तुम पर है तुम अपने अनुभव और ज्ञान से खोज करके ही मानो। पर इसका महत्व आज भी उतना ही है जितना पहले था।"
कक्षा के अन्य सभी बालक दोनों को देख रहे थे और सोच रहे थे जैसे युद्ध के मध्य में अर्जुन और गुरु ये कैसा संवाद कर रहे है। अर्जुन ने जिज्ञासावश पुनः पूछा "तो यह गीता क्या है और किसके लिए थी क्या यह अर्जुन के लिए नही थी।" गुरु अर्जुन की जिज्ञासा शांत करते हुए कहते है "अर्जुन तो केवल प्रतीक थे वास्तव में यह युद्ध मानव के अंतर्मन की दो प्रवत्तियों का युद्ध था जिसमें एक अच्छाई वाली प्रवर्ति जो पांडव थे और बुराई की प्रवर्ति वाले कौरव ; आज भी प्रत्येक मानव के अंतर्मन में वही दो प्रवर्तिया विद्दमान है और उन दोनों का युद्ध हमारे मन में होता रहता है ।"
अर्जुन पुनः गुरु से प्रश्न करता है "तो फिर महाभारत के पात्र दुर्योधन , अर्जुन , भीष्म , कर्ण आदि कोन थे?"
गुरु कहते है' यह पात्र वास्तव में केवल मनुष्य के अच्छे व बुरे भावो के प्रतीक मात्र है जैसे दुर्योधन मोह व अंहकार का प्रतीक है, और अर्जुन प्रेम व अनुराग का ।
अर्जुन कहता है " मेरे मन में भी कभी अच्छे और कभी बुरे विचार आते है और इनका युद्ध होता रहता है लेकिन मुझे ये नहीं पता कि बुरे विचारों पर विजय प्राप्त भला कैसे करे।"
गुरु कहते है' "श्रीमद्भागवत गीता " यही वो एकमात्र उपाय है जिससे तुम्हारे मन में बुराई की पराजय और अच्छाई की विजय हो सकती है।'

कालांश पूरा हो गया छुट्टी भी हों गयी लेकिन ये संवाद पूर्ण न हुआ। गुरु ने कहा "तुम अभिमन्यु की तरह अधूरा ही समझे होंगे और बीच मे ही मारे जाओगे तुम्हारे और प्रत्येक मनुष्य की परम जिज्ञासा को शांत करने का एकमात्र उपाय गीता है इसको पढ़ा करो तभी जिज्ञासा शांत हो सकती है।"
अर्जुन कहता है "लेकिन में पढ़ नही पाता असल में मैं टाइम ही नहीं निकाल पाता कैसे और कब पढ़ूँ ?"
गुरु अपना आखिरी मंत्र बताते हुए कहता है कि "सुनो महाभारत में भीष्म पितामह जो सबसे बड़े थे, वास्तव में वह भ्रम का प्रतीक है । भ्रम जो मनुष्य के अंत तक जीवित रहता है जैसे महाभारत में भीष्म थे।मोबाइल जो मान लो भीष्म का ही प्रतीक है हम सोचते है ये तो हमारा अपना है हमें नया ज्ञान भी देता है लेकिन अगर देखा जाए तो वो लाभ से ज्यादा हमको हानि ही दे रहा है ।अगर तुम्हें इस आंतरिक युद्व में जीतना है तो इस भ्रम को समाप्त करना होगा। और नित श्रीमद्भागवत गीता को भी गहराई से पढ़ना होगा।"

नंदलाल सुथार"राही"