हर कोई रमेश की तारीफ़ करता फिरता था। कुछ लोगो ने तो उसे कलयुग का श्रवण कुमार का दर्जा भी दे दिया। ऐसा संस्कारी पुत्र बड़े नसीब वालो को ही मिलता है। माता पिता और छोटे भाई का पेट वही अकेला पालता और छोटे भाई को हमेशा पलको पर रखता, कभी उसे काम कराने की सोची भी नहीं। अगर छोटा काम करता तो तुरंत उसे रोक देता और कहता तेरे हाथ पेन और कॉपी पकड़ने के लिए बने है ,न कि मजदूरी करने के ।
छोटा भाई अपने बड़े भाई को भगवान मानता और उसकी हर आज्ञा का पालन अपना धर्म समझता ।माता और पिता को इससे ज्यादा भला क्या चाहिए। बस वो हर समय खुश रहते और भगवान से अपने पुत्र के लिए प्रार्थना करते रहते।
आज घर के आगे ढोल और बाजे बज रहे थे। छोटे ने अपनी पूरी शक्ति ढोल पर नृत्य में लगा दी आज उसके घर नया सदस्य जो आया सबका ध्यान रखने वाले भैया का ध्यान रखने वाली जो आ गयी । माता पिता अपनी बहू को पाकर और खुश हो गए आज उसका बेटा दूल्हा बना और अब उनकी रोज की प्रार्थना में एक और सदस्य जुड़ गया।
माँ घर का काम करती रहती थी। उसको सहारा मिल गया और पिता जो ज्यादातर अकेला रहते थे। अब बहु के आने से उसकी पत्नी का साथ भी मिलने लगा ।
जीवन अगर इस तरह चलता रहे तो ये परिवार भगवान से भी ज्यादा खुश रहता पर भगवान को अपने से ज्यादा खुश देख शायद जलन होने लगी और शुरू हो गया उनके जीवन का वास्तविक अध्याय।
रमेश एक सीधा साधा और मेहनती व्यक्ति था।जो सिर्फ अपने काम से काम रखता था। अपने भाई को पढ़ाना , माता पिता को हर खुशी देना और अपनी प्राणप्रिय पत्नी को हर गम से बचाना बस यही उसका लक्ष्य था यही तक उसका संसार सीमित था।
सास बहु दोनों खुश रहा करते और आपस में एक दूसरे का पूरा ध्यान रखते । बहु अपनी पूरी निष्ठा से सास ससुर की सेवा करती और उनकी सेवा को अपना धर्म मानने लगी।
इसी बीच घर मे एक नया सदस्य आया जो निर्जीव होते हुए भी सजीव था। उसका काम मनुष्य के मस्तिष्क और दिल को परिवर्तित करना होता है। रमेश अपने घर मे नई टीवी लाया और सब खुश थे कि अब उनका दिन कुछ मनोरंजन के साथ गुजरेगा।
समय के साथ सब पर टीवी का बुखार चढ़ने लगा छोटे का मन अपनी पढ़ाई से अलग हुआ और बहू का काम से, माता पिता को टीवी के रूप में नया साथी नजर आया और वो रामायण और महाभारत और बाबाओ के प्रवचनों में उनका मन रमने लगा।
माँ बेचारी राम सीता को देख के उनके दुःख से दुखी रहने लगी और देखते देखते उनके अश्क गंगा सी पवित्र धारा निकाल लेते । पिता भी अपनी पत्नी का पूरा साथ देने लगे और दशरथ को तो कभी कैकेयी पर अपना गुस्सा व्यक्त करने लगे।
छोटे को यह रामायण आदि भक्ति में मन न लगता वो मौका देखता की कब कोई फ़िल्म देखें और कई बार अपनी माता को जूठ बोलता की आज रामायण नहीं आएगी और बेचारे अनपढ़ विश्वास के अलावा करते भी क्या।
बहु का काम अब ज्यादा होने लगा माताजी रामायण में रहती और बहू का मन तो सीरियल में चला गया जब मौका मिलता तो वही सास बहु वाले चैनल लगा कर अपने को उसमे खोने लगी और सीरियल में बुरी सास को देखकर वो अपने को वही नाटक का पात्र मानकर अपनी सास को वो स्थान देने लगी ।
अब काम करते सोचती रहती की मेरी सास भी वैसी ही है में सारा दिन घर का काम करूँ और वह दिन भर टीवी देखे । बहु के तेवर अब बदलने लगे और धीरे धीरे सास को भी वही सीरियल वाला लाइलाज रोग लग गया और और अपनी बहू अब सीरियल की बहू लगने लगी वो सोचती की बहू अब मेरा ध्यान नहीं रखती और न ही आजकल उतना मन रखती है अब दोनों के बीच मे एक शीतयुद्ध सा आरंभ हो गया बस एक दूसरे को नीचा दिखाने में लग गए और बस इस शीतयुद्ध में एक चिंगारी की ही आवश्यकता थी ।
सास और बहू के इस युद्ध में रमेश को पत्नी ने आखिर जीत ही लिया और जब बेटे की सहानुभूति अपनी बहू के साथ देखी तो माँ पर जैसे परमाणु गिर गया हो
अब तो ये बहस रोज का काम हो गया और आखिर माँ को टीवी को सन्यास देना पड़ा और बहू टीवी जीतने में विजयी हुई।
रमेश ने आखिर अपनी चुप्पी तोड़ ही दी और माँ से कहा कि में दिन भर मजदूरी कर के शाम को घर आता हूं और आते ही आपकी रामायण शुरू हो जाती है मेरे आने पर तो चुप रह जाया करो मुझे तो शांति से रहने दिया करो। बेटा पहली बार आज अपनी माँ को इतना बोला और माँ की रूह अब कांपने लगी अब माँ दिन भर काम करती रहती और बहू का ध्यान सीरियल में ही चला गया वो जब भी सीरियल देखती अपने को एक दुखिया बहु समझती और अपनी सास को डायन । माँ दिन भर काम करती और जब शाम को रमेश घर आता तो चुप चाप अपने पति के पास जाकर वही सो जाती । बहु को सास पर अपनी विजयी का गर्व होने लगा । लेकिन जब भी वो सास का मुंह देखती तो अपने को उसका शिकार समझती और उनका साथ रहना अब आंखों को खटकने लगा ।
छोटा अब अपनी पढ़ाई छोड़ काम करता है और पूर्व के भैया की तरह माता पिता का संस्कारी बन गया और उसका ध्यान रखने लगा उसको अपनी भाभी से नफरत होने लगी और सोचने यह कैसी आयी जिसने सारे परिवार को ही तोड़ दिया।
जब शरीर का कोई अंग टूट जाये तो उसके भी जुड़ने की उम्मीद रहती है पर जब ह्रदय टूटता है तो उसको जोड़ने का मरहम मिलना मुश्किल है। ये परिवार टूटने का दोष सास बहू का है या आधुनिक विज्ञान का, जो टीवी आयी उस निर्जीव ने सभी सजीवों पर अपना राज कर लिया और सबको अपना गुलाम बना दिया ।
छोटा अब अपनी माँ के साथ अलग से रहता है और रमेश अपनी पत्नी के साथ । लेकिन रमेश का हृदय अपनी पत्नी के पास रह गया और माँ का अभी भी रमेश के पास जब रमेश को कोई तकलीफ होती तो बेचारी देखने जाती लेकिन सामने से जब उत्तर मिलता कि "मैं हूँ न इनका ध्यान रखने वाली आप हम दोनों के बीच में क्यों आती हो इसलिए ताकी हमारे बीच में दरार कर सको।" बेचारी ने वहां जाना ही छोड़ दिया और बहू कहने लगी अपने प्रियतम से की देखो कैसी माँ है अपने पुत्र को परेशान देखकर कभी उसका दुःख बांटने तक नही आती।