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देहखोरों के बीच - भाग - पाँच

भाग पांच

अर्चना को अपने ननिहाल के गांव में आकर बहुत सुकून मिला था।खेतों में लहलहाती फसलें,बाग- बगीचों की फलदार हरियाली ,शुद्ध हवा ने उसका मन मोह लिया। यहां के ग्रामीण लोगों से उसे भरपूर प्यार मिल रहा था।वह पिछले दिनों के तनाव को भूल चुकी थी।उसका चेहरा निखर आया था।तेजी से शहर में तब्दील होते अपने कस्बे की संक्रमण कालीन मानसिकता से वह ऊब गयी थी।दोहरे लोग,दोहरा चरित्र, छी:!
वह गाँव की लड़कियों के साथ खेतों की पगडंडियों पर फिसलती,मटर की फलियां तोड़कर घर लाती और उनकी घुघनी बनवाकर खाती।बाग में पेड़ों पर चढ़कर आम- अमरूद तोड़ती और बड़े चाव से खाती।गाय और बकरी दूहती।उसे इन सब कामों में बहुत मजा आता।उसका बचपन फिर से लौट आया था।गांव भर में वह अकेले घूम आती। यहां कोई ख़तरा नहीं था और न ही रोक -टोक थी।उससे मामी -नानी कोई काम भी नहीं कराती थीं।आखिर वह चार दिन की पाहुन थी।
एक दिन वह एक पेड़ पर अटक गई ।चढ़ने को तो चढ़ गई थी,पर उतर नहीं पा रही थी।ऊपर से कूदने पर चोट लगने का खतरा था।तभी उसने देखा कि दो जोड़ी खूबसूरत आंखें उसे निहार रही हैं।'हीरो ' --उसके दिल से आवाज़ उठी।ऊंची कद -काठी ,इकहरे बदन,सुंदर चेहरे वाला मनमोहक हीरो....इस पिछड़े गांव में!पहरावे से शहरी लग रहा है।बाल करीने से सेट, होंठों पर मुस्कुराहट!
उसका दिल जैसे उसमें ही अटक गया।
दोनों एक -दूसरे को निहारे जा रहे थे।
---मैं मदद करूं उतरने में..!.हीरो ने अपना हाथ बढ़ाया।अर्चना का सिर अपने आप 'हाँ 'में हिल गया।नीचे उतरने के बाद वे दोनों देर तक पेड़ की छाया में बैठकर बातें करते रहे।परिचय का आदान- प्रदान हुआ ।हीरो ने बताया कि वह बगल के मुस्लिम गांव के दर्जी मुमताज खान का बेटा है और बारहवीं पास कर पास के ही शहर में एक कारखाने में काम करता है।ईद मनाने आज ही घर आया है।अभी कुछ दिन यहीं रहेगा।इस गाँव में किसी से काम था।लौटते वक्त उसे पेड़ में अटके देखा तो रूक गया था।
दोनों खुलकर हँस पड़े।अर्चना को याद नहीं कि कितने अरसे बाद वह हँसी है।अर्चना ने भी उसे अपने बारे में सब कुछ बता दिया सिर्फ अपने भागने और हीरोइन बनने के सपने के बारे नें नहीं बताया।
--फिर मिलोगी न ।दोनों गांवों के बीच एक नदी है उसी के किनारे मिलें।
अर्चना हीरो की कोई बात नहीं टाल सकती थी।रात-भर वह करवट बदलती रही और सुबह होते ही नदी की तरफ चल दी।वहाँ हीरो पहले से ही मौजूद था।वे रोज मिलने लगे।एक दिन अर्चना की नानी के पड़ोसी ने दोनों को एक साथ देख लिया।नानी को ये बात पता चली तो उन्होंने अर्चना को बहुत डांटा--'मुसलमान के साथ घूमती हो।धर्म -कर्म का भी विचार नहीं ।हम हिन्दू लोग उनका छुआ खाते -पीते नहीं।वैसे भी गद्दार जाति होती है और तुम उन्हीं से दोस्ती करी हो।आज के बाद उससे नहीं मिलना।'
अर्चना ने सिर झुका लिया।
अर्चना जन्मजात हीरोइन थी ।वह जाति- धर्म,ऊँच -नीच का विचार नहीं करती थी।उसके लिए प्रेम ही एकमात्र सच था,जो पहली ही नजर में हीरो से हो चुका था।वह उसके साथ जीवन बीताने के सपने देखने लगी थी, पर उसे यह भी पता था कि परिवार,समाज और धर्म से इसकी इज़ाजत नहीं मिलेगी।
इसलिए हीरो ने जब उसे अपने साथ शहर चलने को कहा तो वह तुरत मान गई।
हीरो ने अपने किराए के घर में उसे बड़े प्रेम से रखा।उसकी जरूरत की हर वस्तु लाकर दी।वह उससे निकाह करना चाहता था पर अर्चना ने कहा कि वह अपना धर्म नहीं बदलेगी,पर धर्म उनके प्रेम के बीच में भी नहीं आएगा।वे बिना विवाह के ही साथ रहेंगे।कुछ महीने बड़े ही प्रेम से गुजरे ।अर्चना गर्भवती हो गई।अब उसे चिंता होने लगी कि उसकी सन्तान का धर्म क्या होगा?उसे निकाह करके मुसलमान हो जाना चाहिए पर अब हीरो निकाह से कतरा रहा था।इधर उसमें एक तब्दीली और नजर आ रही थी कि वह बार -बार अपने गांव जा रहा था।
एक दिन अर्चना को पता चला कि गांव में उसकी बीबी- बच्चे हैं।उस दिन दोनों ने पहली बार लड़ाई हुई।
--तुमने मुझे धोखा दिया।पहले क्यों नहीं बताया कि तुम शादीशुदा हो?
'मौका ही कहाँ मिला?'
--तुम एक साथ दो औरत कैसे रख सकते हो?
'रखने को तो चार भी रख सकता हूँ।हमारा धर्म इसकी इजाज़त देता है।'
--तुमने प्रेम के नाम पर छल किया।
'नहीं ,यह सरासर इल्ज़ाम है।तुम मुझे अच्छी लगी थी,इसलिए तुम्हें अपनाया।छल करना होता तो एक बार हासिल करने के बाद ही छोड़ देता। तुम गुस्सा न करो।बच्चे पर बुरा असर होगा।'
फिर तो अक्सर दोनों के बीच लड़ाई होने लगी।अर्चना अपने को बुरी तरह फंसा पा रही थी।अब वह कहीं भी लौटकर नहीं जा सकती थी।हीरो भी उसे छोड़कर जा सकता था ,फिर वह बच्चे को लेकर कहाँ भटकेगी?उफ,उसने अपनी जिंदगी के साथ क्या -क्या कर लिया! वह जाने किस मृगतृष्णा में भटकती रही है।वह कहाँ जाए ?क्या करे?किसी को मुंह दिखाने के काबिल भी तो नहीं बची है।
इधर अर्चना की माई परेशान थी।बेटी के मुसलमान के साथ भागने की खबर पर उसने माथा पीट लिया था पर कस्बे में किसी को यह बात नहीं पता थी।एक दिन उसने यह हवा फैला दी कि उसने अर्चना की शादी शहर में कर दी है और वह अपने ससुराल में बहुत खुश है।वह यहां आना ही नहीं चाहती।
माँ अपनी संतान के कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए क्या कुछ नहीं करती,पर सच सारे परदे को भेदकर प्रकट हो ही जाता है।
अर्चना को बेटी हुई है--यह खबर पाकर माई उसको देखने के लिए छटपटाने लगी।किसी तरह वह उस शहर पहुंची और फिर उस घर में,जहाँ अर्चना रहती थी।
पर ये क्या ,अर्चना की जगह उसे एक जली हुई अधमरी औरत मिली,जिसकी बगल में एक बच्ची बिलख रही थी।बगल की एक कुर्सी पर सिर पर हाथ रखे हीरो बैठा था।जाने किस तरह और किस तरह की आग से वह इतनी बुरी तरह जल गई थी।चेहरे के अलावा पूरा शरीर झुलसा हुआ था।लगता था कि दो -तीन पहले ही वह जली है पर अस्पताल की जगह घर पर ही उसकी मरहम- पट्टी की गई है।वह मरणासन्न थी और किसी उम्मीद में दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए हुए थी।माई को देखते ही उसकी आँखों में एक चमक उभरी।उसने माई की तरफ दुःख से देखा फिर बच्ची की तरफ और फिर उसकी आंखें पथरा गईं।माई चीख पड़ी।हीरो भी बिलख रहा था और बच्ची रोये जा रही थी।माई ने बच्ची को सीने से लगा लिया।बच्ची चुप हो गई।माई ने हिकारत से हीरो को देखा।उसने माई के पैर पकड़ लिए।वह डर गया था कि माई उसे पुलिस के हवाले न कर दे।पर माई ने ऐसा कुछ नहीं किया।वह
बच्ची को लेकर कस्बे लौट आई ।सबको यही बताया कि चेचक के कारण अर्चना मर गई।अब वही इस नन्हीं अर्चना को पालेगी।
आखिर अर्चना की दुःखद कथा का अंत भी दुःखद ही हुआ।उसका हीरो भी तो देहखोर ही निकला था।
अर्चना के अंत ने मेरे विचार को पुष्ट किया कि मुझे पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनना है !एक व्यक्ति बनना है।शारीरिक ,मानसिक,आर्थिक,सामाजिक हर दृष्टि से एक स्वावलम्बी व्यक्ति स्त्री।उसके पहले न प्रेम ,न विवाह ,न सहजीवन, न अंतरंग मित्रता।वही पुरुष मेरे जीवन में आएगा जो मुझे औरत नहीं अपनी तरह व्यक्ति मानेगा।अपने समान स्तर का व्यक्ति।तभी वह देेेहखोर नहीं बनेगा और न मैं सिर्फ औरत!

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