भाग तीन
गाड़ी तेजी से गोरखपुर की ओर भागी जा रही थी।उसमें बैठे सभी लोग तनाव में थे।अर्चना और उसकी माई को अपने प्राणों का भय था तो अंजना के घरवालों को कुल- खानदान की नाक कट जाने की चिंता।जब सड़क के दोनों तरफ इमली के विशालकाय वृक्ष दिखाई देने लगे तो पता चला कि गोरखपुर आ गया।गोरखपुर इतना छोटा शहर भी नहीं है कि आसानी से उस जगह का पता चल जाए,जहां रात -भर दोनों लड़कियां ठहरी थीं।दिमाग पर बहुत जोर देने पर अर्चना को याद आया कि पहाड़ी ने कूड़ाघाट नाम लिया था।वे लोग कूड़ाघाट पहुंचे।वहाँ की कई गलियों में भटकने के बाद अर्चना ने एक गली की ओर इशारा किया कि शायद इसी के भीतर वह घर है।उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते अंजना के चाचा ने गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी कर दी और अर्चना को लेकर गली में घुसे ।बाकी लोगों को उन्होंने गाड़ी में ही रहने का आदेश दिया ।
पहाड़ी दरवाजे पर ताला लगाकर भागने ही वाला था कि चाचा ने उसे धर दबोचा।अर्चना को देखते ही वह सारा माज़रा समझ गया।वह गिड़गिड़ाने लगा---"साब हमारा कोई दोष नहीं!लड़की हमारे पास नहीं ।उसे दूसरा आदमी ले गया।वह स्टेशन गया है मुंबई जाएगा...लड़की भी मर्जी से उसके साथ है।"
'साले,तेरी माँ की......तेरी खबर बाद में लूँगा ।पहले साथ चल के लड़की को बरामद करा.....!'
उसे लगभग घसीटते हुए चाचा गाड़ी तक आए और उसे सीट के नीचे डाल दिया और तेजी से रेलवे स्टेशन की तरफ गाड़ी दौड़ा दी।स्टेशन पर उतरते ही उन्होंने अर्चना और उसकी माई के सामने पचास रुपए फेंके और कहा ,कि ल घर चली जाओ।हम वापस आकर वहीं मिलते हैं।
समय नहीं था ।उन्होंने जल्दी से मुंबई जाने वाली ट्रेन का पता किया ।ट्रेन बस छूटने ही वाली थी।उन्होंने भाई -भतीजे को पहाड़ी को पकड़कर रखने को कहा और ट्रेन की तरफ दौड़ पड़े।ट्रेन ने अभी रफ़्तार पकड़ी ही थी कि वे ट्रेन में चढ़ गए।चलती ट्रेन में ही वे एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में भटकते रहे। अंजना अगर इसी ट्रेन से दूसरे दर्जे की आरक्षित टिकट से जा रही है तो मिल ही जाएगी।पर वह कहीं दिख नहीं रही थी।ढूंढ-ढूंढकर वे हलकान हो चुके थे।इसके पहले कि वे निराश होकर वहीं बैठ जाते।उनकी नज़र एक सरदार लड़के पर पड़ी जो एक पहाड़ी के बगल में बैठा हुआ था।वह लड़का उन्हें देखकर काँप रहा था।उन्होंने गौर से लड़के को घूरा तो पहचान लिया,वह अंजना ही थी।उन्होंने पहाड़ी को दो झापड़ रसीद किए और ट्रेन की जंजीर खींच दी ।ट्रेन रूक गई ।उन्होंने अंजना से उतरने को कहा तो वह तैयार ही नहीं हुई।वह उन्हें पहचानने से भी इंकार कर रही थी।चाचा ने उसे भी झापड़ रसीद किए तो उसके होश ठिकाने आ गए।तब तक रेलवे पुलिस आ गई थी।चाचा से सारी बात जानकर उन्होंने पहाड़ी को अपने कब्जे में किया और पुलिस जीप में अर्चना और उसके चाचा को बिठाकर गोरखपुर स्टेशन की तरफ चल दिए।ट्रेन मुंबई की तरफ रवाना हो चुकी थी।पुलिस ने दूसरे पहाड़ी को भी गिरफ्तार कर लिया।उन्हें बहुत दिनों से एक ऐसे गैंग की तलाश थी जो भोली -भाली लड़कियों को गाँव -कस्बों और छोटे शहरों से हीरोइन बनाने का सब्जबाग दिखाकर मुंबई ले जाता था और उन्हें देह- व्यापार के दलदल में धकेल देता था।इन दो पहाड़ियों के माध्यम से पूरे गैंग को पकड़ा जा सकेगा-इसलिए पुलिस ने चाचा को धन्यवाद दिया कि उन्होंने अपने साहस और तत्परता से न केवल अपनी भतीजी की इज्जत बचाई बल्कि इतने बड़े गैंग को पकड़वाने में मदद की।रचना के पिता ने पुलिस से प्रार्थना की कि इन सबमें उनकी बेटी का नाम न उछले,वरना बहुत बदनामी होगी।लड़की का ब्याह हो जाना मुश्किल हो जाएगा।
अर्चना और उसकी माई अपने घर पहुंच चुकी थी।पूरे मोहल्ले के लोग उनसे सवाल पूछ रहे थे,पर अंजना के घर वालों के डर से वे चुप थीं।अंजना के पिता,चाचा और भाई दूसरे दिन वापस आए पर उनके साथ अंजना नहीं थी।वे उसे अपने पुस्तैनी गांव छोड़ आए थे।गांव में किसी को अंजना के भागने की खबर नहीं थी।
अंजना को कस्बे में फिर किसी ने नहीं देखा।गांव में रहकर ही उसने प्राइवेट छात्रा के रूप में हाईस्कूल की परीक्षा दी और फिर उसकी किसी इज्जतदार घर में शादी कर दी गई और वह इज्जतदार बहू,पत्नी,माँ बनकर 'बड़ आदमी' बनी रही।
पर अर्चना के साथ ऐसा नहीं हुआ!वह निरन्तर बदनामी के दलदल में धंसती चली गई।उसकी ज़िंदगी बर्बाद हो गई।
अर्चना पर पहली गाज यह गिरी कि स्कूल से उसका नाम काट दिया गया।अब शिक्षा का मार्ग उसके लिए बंद हो गया।दूसरी गाज यह कि मुहल्ले के हर घर ने उसके प्रवेश पर पाबंदी लगा दीं। तीसरी यह कि अब हर ऐरा- गैरा उसकी ओर हाथ बढ़ाने लगा।उसका कहीं आना -जाना ,बाहर निकलना मुहाल हो गया।अब वह अकेली पड़ गई थी।मैं उसे अपनी छत से आते -जाते देखती और दुःख से भर जाती।उसकी एक छोटी -सी भूल ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा था।अम्मा को भी उससे सहानुभूति थी पर बाबूजी और मेरे तीनों भाई उसे देखते ही चिढ़ जाते।
उसके घर में हैंडपाइप नहीं था। वह थोड़ी दूर के सरकारी हैंडपाइप के नीचे सिर धुलती थी ।बाल्टी में पानी भरकर घर लाती और फिर नहाती।एक दिन दुपहरी में जब सब लोग अपने घरों में सो रहे थे।अर्चना के चीखने -चिल्लाने से सब जाग पड़े।वह मुहल्ले के एक अधेड़ पर इल्जाम लगा रही थी कि जब वह अपना सिर धुल रही थी।उसने उसकी इज्जत पर हाथ डाला था।सबको ये फिल्मी डायलाग लग रहा था।
अम्मा बोली --ऐसा हुआ होगा। वह अधेड़ देहखोर है।
पर मुहल्ले में अर्चना की बात को कोई गम्भीरता से नहीं ले रहा था।सब उसी को दोष दे रहे थे कि खुले में सिर धोने की जरूरत क्या थी? अधेड़ की बीबी भी उसकी तरफ से लड़ने आ गई कि-- 'सात घाट के पानी पीके सतवंती बनल बाड़ी।अरे पहड़िया छोड़ले होई।गोरखपुर रात बीता के आइल रहली ।हमरे मरदे के दोष लगावत बाड़ी,उ त थूकबो ना करिह एपर....।आखिरकार अर्चना की माई उसे पकड़कर घर के भीतर ले गई।अर्चना अभी तक नहीं समझ पा रही थी कि फ़िल्म और जिंदगी बिल्कुल अलग होती है।
एक बार रात को उसकी माई की अनुपस्थिति में एक दूसरा आदमी उसके झोपड़े में घुस गया था।तब भी इसी तरह हंगामा हुआ था।अर्चना की जवान होती देह पर औरतखोरों की नजर पड़ने लगी थी।वह गरीब थी और अब तो बदनाम भी हो गई थी।उसकी माँ उसे पान की दुकान पर बैठने को कहती ,तो वह मना कर देती।दूकान पर जाने किस -किस तरह के लोग आते हैं ...घूरते हैं ...मजाक करते हैं ।वह उनका टुच्चापन नहीं सह सकती।वह वास्तव में शरीफ लड़की थी पर देहखोरों की मंशा थी कि वह शराफत छोड़ दे।अर्चना आगे पढ़ना चाहती थी पर उसकी माई ने साफ कह दिया था कि पढ़ने के कारण वह बिगड़ी थी इसलिए आगे पढ़ाई नहीं।अर्चना मुझे कॉलेज जाते देख उदासी से मुस्कुराती।अपनी सखियों के हस्र को देखकर मैंने अपने -आप को पूरी तरह पढ़ाई पर केंद्रित कर दिया था।
अर्चना की माई ने सोचा कि उसका गौना कर देते हैं ।ससुराल जाकर वह भी अपनी गृहस्थी बसाए ।अब यहां क्या रखा है?बड़े गुप- चुप और सादे तरीके से गौना हुआ!दूल्हा बस अपने पाँच भाई- भतीजों के साथ आया था।अर्चना की तरफ से उसके ननिहाल के ही कुछ रिश्तेदार मात्र थे।मोहल्ले में से किसी को आमन्त्रण नहीं था।
अर्चना ने धोती -कुर्ता पहने ,काले और नाटे कद के अनपढ़ , देहाती दूल्हा को देखा तो गहरे दुःख में डूब गई।वह पान से होंठ लाल किए,आंखों में मोटा काजल लगाए उसे देखकर मुस्कुरा रहा था।जब उससे गाना गाने को कहा गया तो वह हरे रामा हरे कृष्णा-नामक भजन गाने लगा।इस पर सभी लोग ठहाका लगाने लगे।अर्चना का गुस्सा फट पड़ा ।कहाँ तो उसने हीरो जैसे दूल्हे की कल्पना की थी और कहां ये भुच्चड देहाती!उसने एलान कर दिया कि वह ससुराल नहीं जाएगी।खेतों में रोपनी- सोहनी ,उपले पाथना,गाय- भैंस की देखभाल उससे न हो सकेगी।माई ने उसे बहुत समझाया ..मारा-पीटा..घर से निकाल देने की धमकी दी पर वह टस से मस न हुई।उसने खाना -पीना छोड़ दिया।कई दिन तक बेचारा दूल्हा उम्मीद में ससुराल बैठा रहा।उसे आश्वस्त करता रहा कि वहाँ कोई ऐसा काम मत करना, रानी बनाकर रखूँगा पर वह नहीं मानी।अगर मान गई होती तो शायद वह भी अंजना की तरह एक सामान्य अंत को प्राप्त करती पर वह सामान्य लड़की नहीं थी।वह सचमुच की हीरोइन थी और बिना हीरो के उसकी जिंदगी अधूरी थी।उसने इस सपने को जीया था।उसके खून के हर कतरे में यह सपना था ।धरती पर उसको पैर जमाने की जगह नहीं मिल रही थी पर उसके हाथ आकाश की ओर उठे हुए थे।
एक दिन उसके सपने ने ही उसकी जान ले ली।