"अरे भाई आज कोई उठेगा भी या नहीं ? अरे ! सूरज देखो कहाँ चढ़ गया है और आज तो मेरा बेटा बेचारा बिना कुछ खाए पिए ही ऑफिस चला गया और तो और मेरा पोता भी बेचारा खुद ही ब्रेड और जैम लेकर स्कूल चला गया" , केतकी जी ने अपनी कड़कती हुई आवाज में कहा और उन्होंने एक साथ कई बर्तन भी पटके जिसकी आवाज से रचना हड़बड़ा कर नींद से जाग गई और फुर्ती से दौड़ कर अपने कमरे से बाहर निकल कर , सॉरी सासू माँ बोलते हुए वॉशरूम के अंदर चली गई !
दरअसल रचना को माइग्रेन की दिक्कत है जो कि उसके जरा से भी रूटीन चेंज होने से हिट करता है और सबसे ज्यादा इसमें उसके सोने और उठने के समय में परिवर्तन उसके लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हो जाता है तो हुआ ये कि केतकी जी को लगातार पाँच दिन सुबह के चार से पाँच बजे तक पूरे एक घंटे भजन गाने थे और जिसके लिए उन्होंने रचना को भी अपने साथ सुबह-सुबह उठ कर नहा धोकर बैठने की हिदायत दी !
हालांकि रचना ने उन्हें माइग्रेन वाली बात भी बताई थी जिस पर केतकी जी की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार थी कि अरे ! ये माइग्रोन आइग्रोन क्या होता है और फिर जवानी में कैसा दर्द अर्द ! ! इसके आगे उनके सामने ना तो रचना ही पलट कर कुछ बोल पाई और ना ही स्वयं उनका बेटा दीपक ही उनसे कुछ कह सका ! जिसका भुगतान आज लगातार तीन दिन के माइग्रेन पेन को झेलने के बाद रचना ने अपनी सासू माँ की खरी खोटी सुनकर किया !
आज सुबह जानबूझकर दीपक और चीकू दोनों ने ही रचना को जल्दी नहीं जगाया था बस ये ही सोचकर कि शायद उसे इस तरह दर्द में थोड़ा आराम मिले ! जबकि दीपक सुबह अपनी माँ को ये बात खुद बता कर गया था मगर उन्होंने इस बात को बिल्कुल ही नजरअंदाज कर दिया !
केतकी जी आज पूरा दिन मुंह फुलाए ही रहीं और फिर शाम को दीपक के ऑफिस से आते ही केतकी जी ने अपना वही पुराना राग अलापना शुरू कर दिया कि वह तो जवानी में कितना घर का काम किया करती थीं और उन्होंने तो अपनी सास के साथ साथ अपनी दादी सास की भी भरपूर सेवा की थी और एक उनका हमेशा का डायलॉग कि कितने लीटर तेल तो दीपक की दादी की मालिश में लग गया ! वैसे ये तेल वाली बात सुनकर थोड़ी सी हंसी भी आती है कि कितने लीटर ! !
लेकिन इस समय हंसने वाली सिचुएशन ना तो उनकी बहू रचना की थी और ना ही उनके बेटे दीपक की हाँ उनका पोता चीकू जरूर अपनी माँ से कितने लीटर पूछ कर हंस पड़ा जिस पर रचना ने उससे आँखें दिखा दीं !
केतकी जी बस धाराप्रवाह बोलती ही जा रही थीं और फिर ना जाने कैसे आज दीपक के मुँह से भी शायद गलती से निकल गया कि माँ रचना कितना कुछ तो करती है आपके लिए तन से , मन से और धन से भी मगर आप ...
बस दीपक का इतना ही कहना हुआ कि केतकी जी की आँखों से अभी तक निकलती हुई ज्वाला लावा बनकर फूट पड़ी और उनकी आँखों से बह निकली ! केतकी जी खूब चिल्ला - चिल्लाकर रोने लगी जिस पर दीपक के साथ-साथ रचना और चीकू भी दौड़कर उनके पास आ गए और उन्हें चुप कराने लगे ! इस पर भी केतकी जी ने अपनी बहू रचना को बड़ी जोर से डाँटकर झिड़क दिया ! जिसके बाद दीपक भी खुद ब खुद ही वहाँ से पीछे हट गया ! तभी चीकू रचना के कहने पर दौड़ कर किचन से पानी का एक गिलास ले आया और उसने बड़े ही प्यार से अपनी दादी को वो पानी का गिलास पीने के लिए पकड़ाया जिस पर केतकी जीने की चीकू को जोर से अपने सीने से लगा लिया और फिर से रोने लग गयीं !
कुछ देर बाद ही केतकी जी ने ये फ़रमान जारी कर दिया कि वो कल सुबह ही कानपुर जा रही है और फिर वो अपने कमरे में सोने चली गईं ! वैसे तो आज की रात केतकी जी की आँखों से नींद बिल्कुल ही गायब थी और तभी उन्हें अपनी बात कहने तथा अपने दुख को बाँटने के लिए एक शख्स का ख्याल आया जो थी उनकी एटा वाली बड़ी बहन !
उन्होंने फटाफट अपने सिरहाने रखा हुआ चश्मा उठाया और उसे लगाकर अपनी बड़ी बहन का नंबर अपने मोबाइल से डायल किया। एक बार तो उनकी बहन ने फोन उठाया ही नहीं चाहे रात ज्यादा हो जाने के कारण वो सो चुकी थीं मगर जब केतकी जी ने उनका नंबर दोबारा डायल किया तो दो या तीन घंटियों के बाद ही उधर से फोन उठ गया ।
बहन नमस्ते !
"नमस्ते ! इतनी रात को ! क्या हुआ केतकी ? सब ठीक है ना ?" , दूसरी तरफ से केतकी जी की बड़ी बहन का इतना पूछना हुआ कि केतकी जी की आँखें एक बार फिर भर आईं और उन्होंने नम आँखों से ही , सिसकते हुए उन्हें अपनी आज की पूरी आपबीती सुना दी !
"अरे आज तक तो बहू ही पराई थी दीदी मगर आज तो मुझे ऐसा लगा कि मेरा अपना बेटा भी पराया हो गया है !" , इतना कहते-कहते सुबकने लगीं केतकी जी ।
देखो केतकी मैं ज्यादा कुछ तो नहीं कहूँगी क्योंकि ये तुम्हारा घरेलू मामला है मगर बहन जहाँ तक मैं रचना को जानती हूँ , वो दिल की तो बुरी बिल्कुल भी नहीं है और फिर जब तुम खुद ही अपनी बहू को पराया-पराया कह रही हो तो फिर तुम उससे अपनेपन की उम्मीद कैसे कर सकती हो ? बाकी रही माइग्रेन की बात तो हाँ इसका दर्द तो सचमुच बड़ा ही भयंकर होता है अरे अपनी वो सरला है ना ! रमेश भैया की लड़की , उसे भी यही बीमारी है ! बेचारी बहुत दुखी रहती है और ये मेरे पड़ोस के किशोर की बीवी ! भैया ये तो हफ्ते में चार दिन सिर पकड़कर पड़ी रहती है और घर का सारा काम उसकी बूढ़ी सास ही करती है और फिर केतकी तुम पर तो अभी कोई ऐसा बुढ़ापा भी नहीं है ! हाथ पैर भी चल रहे हैं । अरे बच्चों के पास गई हो तो उन्हें भी थोड़ा सुख दो और खुद भी हंसी-खुशी से और सुकून से अपना समय बिताओ मेरी बहन ! अच्छा चलो अब तुम सो जाओ ,रात बहुत हो गई है । मैं तुमसे कल सुबह इस बारे में बात करती हूँ , इतना कहकर उधर से फोन कट गया !
अब केतकी जी का मन कुछ हल्का तो जरूर हो गया था मगर उनकी रात अभी भी भारी थी !!
आगे की कहानी अगले भाग में .........
लेखिका...
💐निशा शर्मा💐