मनोविज्ञान के अनुसार मानव का जीवन मन द्वारा ही संचालित होता है । मन की शक्ति द्वारा ही हमारी समस्त इंद्रियां सक्रिय होती हैं इसीलिए मन को इंद्रियों का राजा कहा जाता है कहा जाता है----" मन के हारे हार है मन के जीते जीत"--- मन को वश में करके ही मानव ध्यान की अवस्था तक पहुंच पाता है मन की ध्यान अवस्था के कारण ही हम इंद्रियों से देख पाते हैं सुन पाते हैं तथा क्रियाशील हो पाते हैं । ध्यान पूर्वक कार्य करने पर ही हम जीवन में सफल हो पाते हैं तथा बड़ी से बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर सकते है । अतः मानव को प्रत्येक कार्य सोच समझकर एवं ध्यान पूर्वक करना चाहिए। गोपाल को विद्यालय छोड़े हुए 40 वर्ष बीत गए हैं परंतु उसे वह दिन भली बात आज भी याद है जब उसकी मां उसे स्टेशन तक पहुंचाने आई थी। कार में बैठने से लेकर और रेलगाड़ी चलने तक गोपाल की मां एक ही बात को बार-बार समझा रही थी कि बेटा ध्यान से पढ़ना, ध्यान से रहना, ध्यान से चलना ,ध्यान से बोलना आदि। न जाने क्यों? अपने बालक को बार-बार यही बात समझाती है। कहीं ना कहीं तो इस बात में गंभीरता है।
वस्तुतः कितना बड़ा दर्शन छुपा हुआ है इस ध्यान की क्रिया में।न केवल विद्यार्थी के लिए अपितु मानव जीवन में भी प्रत्येक पद पर ध्यान की आवश्यकता है। यह सत्य है कि विद्यार्थी जीवन नहीं यदि बालक को ध्यान की सही शिक्षा और उसकी उपयोगिता का ज्ञान करा दिया जाए तो उसका आने वाला जीवन आराम से व्यतीत हो सकता है । वह अपने जीवन में बहुत बड़ी से बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। कहां जाता है कि ध्यान चूकने से ही दुर्घटना होती है। वह अर्जुन का ध्यान ही था कि उसने तेल में मछली का प्रतिबिंब देखकर ऊपर घूमती हुई मछली को निशाना बना लिया था यह अर्जुन को वाली अवस्था में दी गई ध्यान की शिक्षा का ही परिणाम था। हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली ध्यान पर ही आधारित थी जीवन में प्रत्येक कार्य को ध्यान पूर्वक करने की शिक्षा दी जाती थी और इसीलिए बालक जीवन में महान उपलब्धि प्राप्त कर पाता था।
समय के साथ मूल्य बदल सकते हैं परंतु शाश्वत सत्य नहीं। विद्यार्थी के लिए ध्यान भी एक शाश्वत सत्य ही है। ध्यान ही ज्ञान का केंद्र बिंदु है। ध्यान ही ज्ञान में परिणत हो जाता है। ध्यान अवस्था में बैठकर ही ऋषि यों ने वेदों जैसे गहन ज्ञान को उपलब्ध कर लिया था। ध्यान शब्द को द्रुतगति से सोमवार उच्च उच्चारण किए जाएं तो अनाया सी ज्ञान शब्द का उच्चारण होने लगता है इस प्रकार ध्यान और ज्ञान का परस्पर गहरा संबंध है। गोपाल ने अपने विद्यार्थी जीवन में मां के द्वारा बताए गए ध्यान शब्द का यद्यपि सामान्यतः या मोटा अर्थ ही समझ पाया था परंतु फिर भी मां के शब्दों का उसके हृदय पटल पर गहरा प्रभाव पड़ा था जिसके कारण आज भी उसका जीवन अति व्यस्त होने पर भी सुचारू रूप से चल रहा है। संवेदनशीलता तथा स्वभाव से कोमल बच्चे मां के वचनों का यथावत पालन करते हैं। करना भी चाहिए क्योंकि माता-पिता के वचनों में गहरा रहस्य छिपा रहता है। एक सफल जीवन जीने के लिए ध्यान अत्यावश्यक है। यद्यपि एक विद्यार्थी ज्ञान शब्द से इतना ही आज ग्रहण करता है कि उसके सभी क्रियाकलाप पूर्ण ध्यान के साथ उचित समय पर हो। ध्यान पूर्वक पढ़ाई करने पर ही वह अच्छी उपलब्धि प्राप्त कर सकता है तथा सफलता की मंजिल तक पहुंच सकता है। पढ़ाई में दक्षता, व्यवहार में कुशलता ,वाणी में मधुरता तथा बुद्धि में प्रखरता यह सब ध्यान से ही आते हैं।
ध्यान न देने से जीवनी शक्ति का ह्रास होने लगता है और बहुमूल्य ऊर्जा का विनाश हो जाता है। मानव जीवन में बाल्यावस्था तथा युवावस्था में सर्वाधिक ऊर्जा का निर्माण होता है । इन अवस्थाओं के पश्चात मानसिक तथा शारीरिक ऊर्जा कम होने लगती है। ऊर्जा का सही प्रयोग हो, इसके लिए आवश्यक है कि विद्यार्थी को जीवन में ध्यान पूर्वक कार्य करने की महिमा तथा गरिमा के महत्व को समझाया जाए। यदि बालक ने अपने विद्यार्थी जीवन में इस शक्ति का उपयोग संगठित रूप से न किया, तो उसका संपूर्ण जीवन व्यर्थ ही व्यतीत होगा।
ध्यान के लिए आवश्यक है मन की शांति। जो अपने विद्यार्थी काल में ही ध्यान द्वारा मन की शांति उपलब्ध कर लेता है वह विद्यार्थी जीवन की विभिन्न समस्याओं की चिंता से मुक्त हो जाता है। आजकल प्राय : देखा जाता है कि विद्यार्थी अपने गलत जीवनशैली के कारण स्वत: ही बहुत सी चिंताओं को मोल ले लेते हैं जैसे प्रतिदिन ध्यान से न पढ़ने के कारण परीक्षा के समय चिंता उत्पन्न हो जाती है । गृह कार्य व पढ़ाई के समय पर टीवी देखना अधिक समय तक घूमते रहना, मित्र मंडली में बातें करते रहना आदि अनावश्यक कार्यों के परिणाम चिंताजनक हो जाते हैं। समय पर भोजन व वस्त्र, रहने को अच्छा निवास, पढ़ने की सुविधा ,उत्तम विद्यालय आदि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होने पर विद्यार्थी को अन्य कोई चिंता नहीं होना चाहिए और यदि है तो वह विलासिता ही मानी जाएगी , क्योंकि ऐसी आदतें विद्यार्थियों का ध्यान भटका सकती है जो उनकी उपलब्धि में बाधक सिद्ध होती है ।
विद्यार्थी जीवन में ध्यान लगाने के लिए यथा समय आसन या प्राणायाम आदि करने की आवश्यकता तो है ही परंतु जीवन के छोटे किंतु महान आदर्शों को व्यावहारिक रूप से जीवन में ढलने की भी आवश्यकता होती है। आज के इस उपभोक्तावादी समय में बलपूर्वक ध्यान लगाना अहितकर हो सकता है। अतः ऐसा वातावरण निर्मित किया जाए तथा बाल्यावस्था से ही ऐसी आदतों का निर्माण किया जाए कि उन्हें बलपूर्वक ध्यान लगाने की आवश्यकता ही ना पड़े अपितु स्वत : ही उनका ध्यान लग जाए। आदर्श, दिखावटी ना हो अपितु यथार्थत : उनका पालन हो। ध्यान पूर्वक कार्य करना ही विद्यार्थी जीवन का सबसे बड़ा आदर्श होना चाहिए। जीवन के उच्च मूल्य तथा आदर्श आडंबर पूर्ण जीवन में प्राप्त नहीं किए जा सकते। आडंबर जीवन को अहंकारी और अंधकारमय बना देता है तथा व्यक्ति को सच्चाई से दूर ले जाता है। विद्यार्थी के लिए सादा जीवन उच्च विचार का मूल मंत्र ही सर्वोपरि होना चाहिए तभी वह ज्ञान की सही अवस्था तक पहुंच कर जीवन में उचित उपलब्धि प्राप्त कर सकता है।
खेद की बात यह है की वर्तमान शिक्षा प्रणाली भी आडंबर पूर्ण होती जा रही है यह प्रणाली बालक को यथार्थ से तथा अपने से दूर ले जा रही है। प्रायः देखा गया है कि जो समाज अपनी मूल वैदिक संस्कृति को भूल कर दिखावटी जीवन जीने की राह पर चलता है वह शीघ्र ही अवनति को प्राप्त हो जाता है। जीवन मूल्यों पर आधारित होना चाहिए । मूल्य रहित जीवन स्वत: ही नष्ट हो जाता है। अत: यदि हम जीवन में सही लक्ष्य तथा उचित उपलब्धि पाना चाहते हैं तो हमें पाश्चात्य मूल्यों पर आधारित ना होकर अपने ही संस्कार व संस्कृति को अपनाना होगा। क्योंकि पश्चात समाज मूल्यों पर आधारित न होकर नियमों पर आधारित है । नियम एक व्यवस्था का नाम है जो स्थिर रहती है जबकि मूल्य जीवन को प्रगति पथ पर उच्च शिखर की ओर ले जाते हैं । मूल्यों में आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन भी वांछनीय है एवं स्वभाविक है। मानवता के विकास की दौड़ में यह आवश्यक है कि हम अपनी युवा पीढ़ी को मूल्यपरक बनाएं उन्हें जीवन को जीने की कला सिखाएं जिससे वह ध्यान मय होकर जीवन की वास्तविकता को समझ सके। ध्यान है वहां ज्ञान है । ज्ञानी बनो क्योंकि जीवन की वास्तविक उपलब्धि ध्यान मै ही निहित है।
इति