बंझटू डॉ स्वतन्त्र कुमार सक्सैना द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बंझटू

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स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

आज नौनी बऊ की बहू आई राम रती। सभी कह रहे थे- ‘बऊ। तुमाई बहू तो बड़ी नौनी है।‘ सभी बऊ का भाग सिहा रहे थे। नौनी बऊ के एक पुत्र है श्रीलाल। वे बड़ी चिंतित रहती थीं पर बहू को देख कर बड़ी संतुष्‍ट थीं। फिर बहू ने आकर सब काम सम्‍हाल लिए, भैंस के लिये खेत से चारा काट कर लाना, कुएं से पानी भरना, रोटी बनाना, सबके कपड़े ले जाकर तालाब पर धोना, घर आंगन बुहारना, ये सब काम वह बड़ी फुरती से करती फिर संझा को बऊ के पैर दबाना यह भी उसकी ड्यूटी थी फिर रात पति को प्रसन्‍न करना और सुबह सबसे पहले उठना यही उसकी दिन चर्या बन गई। उस पर बऊ दिन भर कुछ न कुछ बड़ बड़ाती रहतीं पर वह मुंह न खोलती। जबकि उस की तरफ से पड़ोसिने बऊ को उलाहना दे जातीं- ‘सूधी बहू पा लई सो चढ़ी रहती, और सरीसी होती तो पतो पर जातो, नाकन चना चबवाती, दिन भर लगी रहत और बोल‍बे में बौरू है।‘ पर धीरे-धीरे बऊ का बड़बड़ाना बढ़ता गया। उनके विवाह को तीन साल हो गये और राम रती में गर्भावस्‍था के कोई लक्षण न दिखे। श्रीलाल भी खिंचे खिंचे से रहने लगे। एक दिन नौनी बऊ कठुआ वारी से बोलीं- ‘अरे बहू एक नौनी होवे पै ऐसी कौ का करिये, एकाध डरैया तो होती, इतै तो नेठम नाठ है।‘ कठुआ वारी-‘ तो कहीं दिखाओ नईयां?’ नौनी बऊ-‘एन दिखाओ, दतिया बड़ी डाक्‍टरनी पै ले गए हते, कछू नई भओ।‘ कठुआ वारी- ‘व ने का कई ?’ नौनी बऊ- ‘का कती कहत हती, इन्‍तजार करो, पै कब लौ करें?’ कठुआ वारी-‘फिर?’ बऊ- ‘फिर व को भैया झांसी लै गओ तो, श्रीलाल संगे हते, ऊडाक्‍टरनी ने भी जई कह दई हो जै है, कछू खराबी नईया, फिर हो कये नईं रयों?’ कब लौ रस्‍ता देखें?’ कठुआ वारी-‘ नावतें, गुनियन सें पूछतीं?’ बऊ- ‘सबरें फिर लओ, पूजा दे लई, बाला जू बब्‍बा सें विनती कर लई, वे ऊ नई सुन रये, जाने काये राम रूठ गओ। जो का पतो हतो हमाऐं एक ई तो कुंअर हैं तीन बिटियन पै भए हते दूसरे होते तो संतोष कर लेते।‘ एक दिन श्रीलाल बोले- ‘हम दूसरो ब्‍याव करहैं।‘ अत: राम रती के भैया सुरेश सिंह बुजाए गए। श्रीलाल- ‘इन्‍हें ले जाओ हम छोर छुट्टी चाहत।‘

राम रती ने बहुत हाथ पैर जोडे, सास के पैरों पर सिर रख दिया। आंसू थम नहीं रहे थे, परिस्थिति उसके बस में नहीं थी सारे विकल्‍प रखे-‘ तुम दूसरी ले आओ, मैं ऊ। बनी रै हौं, माटी कूरा करह रैहों, मोये बिड़ारौ नईं।‘ सुरेश भैया ने भी बहुत हाथ पैर जोड़े पर रामरती भाई के साथ बिदा कर दी गई। बात यह थी कि किसन की बेवा सगुनिया के घर वाले विदा करने को तो तैयार थे पर उनकी शर्त थी कि पहले अपनी पहली पत्‍नी से छोर छुट्टी लो और श्रीलाल के घर उनकी नई बहू आ गई आखिर वंश रक्षा का प्रश्‍न था कैसे रूकते।

रामरती अपने भाई के साथ मायके रहने लगी। एक दिन भाई सुरेश सिंह के साले हरी सुरेश के पास एक प्रसताव लेकर आए- ‘जीजा। हमाए बगल के गांव सिमरा में किसन सिंह रहत उनकी बहू अबै महीना भर भओ जचगी में नहीं रही, पैलऊ-पैल हती तीन दिना तक पेट पिरानों, सोची ती हो जै है, नदी ऐसी चढ़ी कै तीन दिना तक नईं उतरी, जब अस्‍पताल लै गए तो पहले तौ मौड़ा भओ मरो मराओ फिर तीसरे दिना बहू नहीं रई। तुम कहो तो जिज्‍जी की बात करें?और रामरती एक नए घरमें बहू बन कर आ गई, समय बीतता गया।

आज रामरती बाई बाला जी के मेला में आई थीं, उनकी बेटी सगुना के बेटा हुआ था। वह पहली बार बेटे की मां बनी थी। अत: रामरती बाई बेटी के के साथ देवता को धन्‍यवाद देने झूला डलवाने आई थीं और भी सारा परिवार बेटी का पति उनका दामाद और सारे रिष्‍तेदार कुटुम्‍ब को लोग साथ थे। सब लोग भजन गा रहे थे।

बाला जी जैसो उन्‍हे कोनऊ नईया देवता नईया

तभी सामने से उन्‍हे श्रीलाल दम्‍पति आते दिखे उन्‍होंने सर पर आंचल चींख कर आधा घूंघट कर लिया और ऊंची आवाज में अपने बेटे को बुलाया –नरेष! इधर उधर देखती हुई बोली- रमेष कितै है? तभी रमेष आता दिखा। रामरती रमेष से –दादा के पावू छू लो । फिर इधर उधर देखती बोलीं – दिनेष खों बुलाओं । दिनेष के आने पर उससे भी श्रीलाल के पैर छूने का इषारा किया। फिर बेटी से श्रीलाल का परिचय कराते उसे भी दादा को प्रमाण करने को कहा। नरेष की बहू को पकड लाई और उससे भी श्रीलाल दम्‍पति के चरण स्‍पर्ष कराए। और नरेष के बेठे सुन्‍नू जो मात्र तीन वर्ष का था उसे मनाया – दादा! के पांव छू लो वे तुम्‍हें पेड़ा दैंहें। फिर श्रीलालके अउास पास देख्‍ने का अभिनय करती बोलीं- और कोऊ संगे नई आओ? प्रष्न बाचक नजरें उन पर टिका दीं औश्र मुस्‍करा दीं। श्रीलाल दम्‍पति अब भी निस्‍संतान थे।

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