विश्व का प्रथम विज्ञापन--- मध्यप्रदेश में Dr Mrs Lalit Kishori Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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विश्व का प्रथम विज्ञापन--- मध्यप्रदेश में

मध्य प्रदेश भारतवर्ष का ह्रदय है। इसके आंचल में अनेक साम्राज्य उठे और गिरे है इसके पर्वतों के साए में विभिन्न जातियों ने अंगड़ाई ली है इस के अंतराल में साहित्य का मधुर रस पका है संगीत के तराने गूंजे हैं। वास्तव में मध्यप्रदेश ने भारती कला संस्कृति और साहित्य के अनेक अमूल्य रत्न भेंट किए हैं परंतु आज के व्यवसायिक युग में यह और भी अधिक गौरव की बात है कि आज के संसार के सर्वस्व व्यापार का प्रधान कीर्तिमान विश्व का पहला विज्ञापन मध्यप्रदेश ने ही जगत में स्थापित किया।

व्यवसाय के प्रसार का आधार विज्ञापन ही है । विज्ञापन शब्द का यदि हम शाब्दिक अर्थ समझना चाहें तो वि अर्थात विशिष्ट तथा ज्ञापन अर्थात ज्ञापित किया हुआ। इसका तात्पर्य है कि जिसके माध्यम से किसी भी वस्तु के बारे में विशेष रुप से ज्ञान या जानकारी दी जाए उसे हम विज्ञापन कह सकते हैं। आज का युग विज्ञापन का युग कहा जा सकता है। जहां देखो वहां विज्ञापन के माध्यम से अपनी वस्तु के या व्यवसाय के प्रचार प्रसार करने की होड़ मची हुई है। वर्तमान समय में विज्ञापन का आयाम इतना अधिक बढ़ गया है कि व्यवसाय के साधन रूप इस विज्ञापन के कार्य में ही लाखों लोग लगे हुए हैं देश की लाखों करोड़ों नहीं अपितु अरबों खरबों की धनराशि इस कार्य हेतु व्यय की जा रही हैं । विज्ञापन क्षेत्र में काम करने वाली अनंत कंपनियां आज पंजीकृत है जिनमें हजारों मॉडल व लेखक काम कर रहे हैं। रूप सौंदर्य की धनी हजारों नौजवान नारियां एवं पुरुष व्यवसाय के विज्ञापन के मॉडल बन कर उस व्यापार को अपने तन व रूप के सौंदर्य से साध रहे हैं। यहां तक कि कंपनियां विज्ञापन को अधिक आकर्षक बनाने हेतु झूठ का आश्रय लेने से भी नहीं हिचकती।


मध्य प्रदेश के मंदसौर के कुमारगुप्त द्वितीय (436 ईस्वी से 472 ईसवी तक) के समय के प्राप्त पत्थर की शिला पर अंकित अभिलेख में विश्व का प्रथम विज्ञापन (बुनकर संघ) द्वारा जिस जादूगरी, प्रभाव कारी, मुग्धकारी और मौलिक व सहज ढंग से प्रकाशित किया गया उसकी गहराई के समक्ष टाटा बिरला मफतलाल तथा अमेरिकी व्यापार संघों के प्रधान विज्ञापन कर्ताओं के विज्ञापनों की चमक भी धूमिल प्रतीत होती है।

लाट दक्षिण गुजरात के रेशम बुनकरों का एक संघ पांचवी सदी ईसवी के प्रारंभ में व्यापार विस्तार हेतु मालवा के प्रसिद्ध नगर दशपुर (मंदसौर) मैं जा बसा था। वहां उनका व्यवसाय पर्याप्त मात्रा में चल निकला। जब बुनकर संघ के लाभ की कोई सीमा न रही तब उन्होंने अपने व्यवसाय का सम्मोहन जादू जनता पर डालने के लिए जसपुर में एक विशाल सूर्य मंदिर बनवाया आज से लगभग डेढ़ दो हजार वर्ष पूर्व जन आकर्षण के स्थान मंदिर प्रांगण से अधिक अन्यत्र नहीं हो सकते थे। सम्राट अशोक ने अपने विचार प्रसार हेतु शिलाओ की प्रतिष्ठा व स्तंभो का निर्माण कर असाधारण कार्य किया था परंतु बुनकरों की चतुराई अशोक से भी कहीं अधिक सार्थक रही । उस संघ ने अन्य अनेक यशोगाथाओं के बीच ही अपना विज्ञापन भी चुपचाप अपने बनवाए हुए सूर्य मंदिर की शिला पर खुदवा कर सदा के लिए अमर बना दिया । विश्व का प्रथम विज्ञापन शिलाखंड पर बड़ी ही चतुराई के साथ उत्कीर्ण किया गया जो इस प्रकार है

तारूण्य कान्यपचितोपि सुवर्णहार
तांबूल पुष्प विधिना समलंकतो अपि
नारी जन : प्रियमुपैति न दावदस्या
यावननव पट्टयम वस्त्रयुगानिधत्ते


अर्थात "चाहे जितना भी योवन तन पर फूट रहा हो, कांति अंग अंग पर बिखर रही हो, देह चाहे कितनी भी चिति हो , प्रसाधन पत्रलेख भक्ति, विरोचन से चर्चित हो, आलेपन अंगराग से लिप्त सुगंधित हो ,अधर चाहे तांबूल आदि से कितने ही लाल रचे हो, फूलों से बेणिया गुथी हो, कलियों से मांग सजी हो, चाहे अलंकारों से शरीर भरा हो, परंतु समझदार नारी तब तक अपने प्रिय पति के पास नहीं जाती जब तक कि वह धारा रेशमी साड़ी सवार नहीं लेती , निश्चय ही वरना उसका प्रियतम उसे अन्यथा स्वीकार ही नहीं करेगा।"
इस श्लोक में रेशम बुनकरों द्वारा अपने द्वारा बनाई गई रेशमी साड़ी का बड़े ही अनूठे व सौंदर्य पूर्ण ढंग से विज्ञापन किया गया है उनकी साड़ी धारण किए बिना नारी के सभी सौंदर्य आभूषण निरर्थक प्रतीत होते हैं उनकी रेशम साड़ी की नारी के सौंदर्य मैं चार चांद लगाने के लिए पर्याप्त है।
विश्व का यह प्रथम विज्ञापन जिस समझदारी के साथ विज्ञापित किया गया है उसका सौंदर्य अन्यत्र दुर्लभ है।

इति