अति की भली न चूप Dr Mrs Lalit Kishori Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अति की भली न चूप

"अति का भला न बोलना अति की भली न चूप"---- इसकी अर्धाली अति का भला न बोलना पर तो ऋषि, मुनि ,संत, महात्मा, दार्शनिक ,राजनेता ,समाज सुधारक सभी ने जोर दिया है। घर परिवार मित्र मंडली सभी स्थानों पर अधिक बोलने पर रोक लगाई जाती है परंतु इसकी दूसरी अर्धाली "अति की भली न चूप "पर किसी का ध्यान ही नहीं गया या फिर इसको समझना किसी ने आवश्यक नहीं समझा किं अतिका बोलना जितना हानि प्रद या कष्टदायक हो सकता है शायद उससे अधिक कष्टदायक अति की चूप भी हो सकती है । साहित्य में अनेक प्रकार के व्यंग वचनों एवं उनसे हृदय पर होने वाले घावो का उल्लेख किया गया है परंतु सच मानिए आपका अति का चुप रहना भी किसी के हृदय को घायल कर मरणासन्न अवस्था तक पहुंचा सकता है ।

वैसे तो घर परिवार मित्र मंडली समाज सभी जगह आप से बोलने की अपेक्षा की जाती है और ना बोलने पर रुष्टता प्रगट की जाती है । आपकी पत्नी या प्रेमिका जब आप के प्रति प्रेम प्रकट करती है तब प्रत्युत्तर में वह आपसे भी प्रेम के दो शब्द सुनना चाहती है परंतु उस समय आपका चुप रहना पत्नी को रुष्ट और प्रेमिका को बेचैन कर देता है। प्रतिदिन के व्यवहार में भी अपने आभूषण अपने कपड़े एवं अपने कार्यों की प्रशंसा में पत्नी आपके मुंह से दो प्रशंसा के शब्द सुनना चाहती है परंतु यदि ऐसे समय पर आप चुप्पी साधे रहते हैं तो सच मानिए आपकी गृहस्थी रूपी गाड़ी सुख पूर्वक नहीं चल सकती या उस में दरार पड़ने लगेगी ।ऐसी स्थिति में आपकी पत्नी या घर के किसी भी सदस्य का आपसे कुछ पूछनाबोलना या बात करना पत्थर पर सिर मारने के बराबर ही होगा आप विचार कीजिए कि उस समय आपका चुप रहना परिवार के वातावरण को कितना बोझिल व दूषित बना रहा होगा ।


इसी प्रकार मित्र मंडली में भी यदि आपने चुप रहने की ठान ली है तो आपकी दोस्ती अधिक दिनों तक नहीं चल पाएगी । मित्र आपको मूर्ख घोंचू और बेवकूफ जैसे विशेषण से संबोधित करने लगेंगे यहां तक कि लोग आपको अपना दोस्त बनाने से भी कतराने लगेंगे इतना ही नहीं आप की चुप्पी से आप स्वयं भी अपने आप में परेशान और बेचैन होते हुए दिखाई देंगे।


समाज में अति का बोलने वाला भी पागल समझा जाता है और अति का चुप रहने वाला भी समाज में उपेक्षित हुए बिना नहीं रहता। इतना ही नहीं समाज आपको सूम सा, पत्थर सा, और मौन देवता भी बना सकता है। आप सोच रहे होंगे कि अच्छा ही हुआ जो चुप ने आपको देवता तो बना दिया। ठीक भी है जो आपको देखता तो बना सकती है परंतु धड़कते हुए दिल वाला मानव नहीं। क्योंकि आपके हृदय में यदि प्रेम भावना हिलोरा ले रही हैं तो आप चुप नहीं रह सकते। आप अपने प्रेम को वाणी के द्वारा अभिव्यक्त करने को लालायित हो उठेंगे यदि आपके दिल में किसी के प्रति क्रोधाग्नि भड़क रही हो तब भी आप अपने आप को चुप नहीं रख पाएंगे। और यदि आप किसी कारणवश ऐसा न कर सके तो निश्चित ही आप मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाएंगे।

मेरे एक भाई अक्सर कहां करते हैं कि किसी प्रकार की भी प्रेम भावनाओं को समाज में अभिव्यक्त नहीं करना चाहिए क्योंकि किसी के समक्ष अपने भावनाओं को अभिव्यक्त करना अपनी कमजोरी प्रकट करना है परंतु वे शायद यह भूल जाते हैं कि समाज के सभी व्यक्ति यदि अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त ना करें तो यह समाज गूंगो की बस्ती बन जाएगा । वाणी का कार्य विचारों या भावनाओं को अभिव्यक्त करना है और फिर जरा अपने दिल की गहराई में उतर कर देखें क्या आप स्वयं अपने प्रति अपने माता पिता भाई बहन पत्नी या प्रेमिका से प्रेम की अभव्यक्ति नहीं चाहते? और यदि हां तो निश्चित ही आपका भी यह कर्तव्य हो जाता है कि आप भी अपने हृदय की प्रेम भावना से दूसरों को अवगत कराएं और ऐसा करने के लिए आपको अपनी चुप्पी तोड़नी ही होगी। प्रेम की अभिव्यक्ति कमजोरी नहीं है बल्कि मानव के जीने का संबल है सहारा है। परस्पर प्रेम के बल पर ही मनुष्य जीवन की नौका को कठिनाइयों के थपेड़ों से बचाता हुआ किनारे तक ले जाता है। जीवन संघर्ष में परस्पर दी गई सांत्वना तथा प्रेम भावना ही मनुष्य के लिए औषधि का काम करती है इसी से वह अपने आप को सशक्त बना पाता है। यदि आप हमेशा ही चुप्पी साधे रहे तो आपके दिल में दूसरों के प्रति कितना ही प्रेम का सागर हो या कितनी ही सदभावनाओं का खजाना हो उससे दूसरे दो सदैव अनभिज्ञ ही रहेंगे और ऐसा करके निश्चित जानिए कि आप अपने सामाजिक कर्तव्य से विमुख हो रहे हैं।

जरा कल्पना कीजिए क्या आपके बार-बार पुकारने पर भी आपका सुपुत्र भी चुप्पी साधे हुए हैं कोई बात पूछने पर भी कोई प्रतिउत्तर नहीं देता तो आप कैसा अनुभव करेंगे? घर में आपकी पत्नी यदि सदैव मौन व्रत धारण किए रहे तब आप निश्चय ही ऊब जाएंगे या खीझ उठेंगे। इसी प्रकार मान लीजिए यदि आप अधिक बोलने वाली है और काश आपकी पड़ोसन चुप रहने वाली है आप उसके बारे में सब कुछ जान लेना चाहती हैं उसके पास बैठकर अपने सुख-दुख की कहानी सुनाना और उसकी सुनना चाहती हैं परंतु पड़ोसिन अपना मौन तोड़ना ही नहीं चाहती तब उसकी चुप्पी के कारण निश्चित ही आपकी दिल की व्यथा चिंतनीय हो जाएगी। हो सकता है आप उन्हें खरी-खोटी सुना बैठे या फिर ऐसे पड़ोसियों या किराएदार को रखना ही पसंद ना करें। मान लीजिए आपके घर में कोई मेहमान कोई रिश्तेदार बड़ी दूर से और बड़े प्यार के साथ आपसे मिलने आया हो परंतु आप महाशय अपनी चुप्पी साधे हुए बैठे हैं और उनसे बात ही नहीं करना चाहते
तब वह बेचारा आपके घर में कितनी देर रुक पाएगा और क्यों ? जरा कल्पना कीजिए उस नाजुक क्षण की कल्पना कीजिए जब आपकी बहन या बेटी ससुराल से अपने अनेक ढेर सारी सुख-दुख की भावनाओं को संजोए हुए आपसे मिलने आए और निश्चय ही मायके में आकर अपने दिल की उन सभी भावनाओं को किसी अपने के साथ बांट लेना चाहती है और ऐसे नाजुक क्षण में यदि आप अपनी चुप्पी साधे हुए बैठे हैं अपना मुंह खोलना ही नहीं चाहते उस समय पत्थर पर सिर मारने के समान वह कितनी देर अपनी व्यथा को अभिव्यक्त कर पाएगी । उस समय उसके दिल पर क्या बीतेगी? आपकी चुप आपके अपने उस आत्मीय जन के दिल को कितना अधिक व्यथित कर देगी क्या इसकी आप कल्पना भी कर सकते हैं?

यद्यपि कुछ विद्वानों द्वारा यथोचित समय पर चुप रहने की भी सलाह दी गई है जैसे----" रहिमन चुप हो बैठिए देख दिनन के फेंर" ---परंतु यहां विषम परिस्थितियों में ही चुप रहने की बात कही गई है । वैसे तो "अति सर्वत्र वर्जयेत" वाली उक्ति प्रसिद्ध ही है अर्थात अति सभी जगह वर्जित है। अतः ना तो अति का बोलना ही श्रेष्ठ है और ना ही अति का चुप रहना श्रेयस्कर है। अतः उचित स्थान पर उचित बात पर उचित मात्रा में आवश्यकतानुसार बोलना ही उचित है ठीक उसी प्रकार उचित स्थान पर उचित मात्रा में चुप रहना ही उचित है। परंतु किसी के श्रेष्ठ गुणों को देख कर तथा मन की श्रेष्ठ भावनाओं की अभिव्यक्ति के समय भी यदि आप चुप रहे तो आपकी वाणी का प्राप्त करना ही निरर्थक है कहा भी गया है

वचने का दरिद्ता

अर्थात बोलने में भी क्यों कंजूसी की जाए ? अतः उचित यही है कि आवश्यकता अनुसार ही बोला जाए और आवश्यकतानुसार ही चुप रहा जाए।

"अति सर्वत्र वर्जयेत"


इति