समय परिवर्तनशील है। बदलते समय के साथ ही समाज की आवश्यकताएं मान्यताएं और विचारधाराएं भी परिवर्तित हो जाती है। जीवन की प्रत्येक वस्तु एवं परिस्थिति को मानव नए परिवेश के संदर्भ में देखना और समझना चाहता है और ऐसा करना उचित भी है तभी वह विकास के पथ पर अग्रेषित हो सकता है। इस प्रकार की नई सोच एवं नवीन चिंतन के कारण हमारी विचारधारा के अनुसार ही हमारी भाषा के विभिन्न शब्दों के अर्थों में भी परिवर्तन होना स्वाभाविक है। एक शब्द के उदाहरण द्वारा उसको समझा जा सकता है जैसे कुशल शब्द का शाब्दिक अर्थ है संस्कृत में कुशान लाति इति कुशल: अर्थात कुशा घास को चतुरता पूर्वक लाने वाला व्यक्ति कुशल कहलाता था। प्राचीन काल में आश्रमों में पढ़ने वाले शिष्य गुरु के हवन आदि उपयोग हेतु कुशा (अत्यंत तीक्ष्ण घास) को जो कुशलतापूर्वक ले आता था वही शिष्य कुशल कहा जाता था परंतु समय के साथ इस के अर्थ में परिवर्तन हुआ और वर्तमान में पढ़ने में कुशल लिखने में कुशल कढ़ाई बुनाई में कुशल रसोई बनाने में कुशल यहां तक कि चोरी करने और झूठ बोलने में भी कुशलता हासिल होने लगी और इन सभी कार्यों में दक्ष व्यक्ति को कुशल कहा जाने लगा। इस प्रकार भाषा के विभिन्न शब्द एवं मुहावरों के अर्थ समय और परिस्थिति के अनुसार बदलते चले गए जो स्वाभाविक ही था।
इसी सत्य की कसौटी पर हम इस मुहावरे को भी समझने का प्रयास करते हैं । नदी नाव संयोग इस मुहावरे को हम सभी लंबे समय से सुनते और प्रयोग करते चले आ रहे हैं जिसका अर्थ है थोड़े समय का साथ। यह तो इसका पुराना और परंपरा से चला आता हुआ अर्थ है। जैसा हम जानते हैं कि समय की परिवर्तन शीलता के साथ ही विश्व की प्रत्येक वस्तु बदल जाती है । वस्तु भला क्यों ना बदले जब समय के साथ मानव और मानव के दिल की भावनाएं तथा विचारधाराएं भी बदल जाया करती हैं आज हम जिसे मित्र मानते हैं कल वह हमारा शत्रु बन जाता है। इस विचारधारा के साथ ही हमारी भाषा के शब्द और उसके अर्थ और मुहावरों के प्रयोग भी बदल जाया करते हैं । समय और परिस्थितियां की मांग के अनुसार हमें प्रत्येक शब्द और मुहावरों की भी नए अर्थों में व्याख्या करनी होगी।
आज के बदलते परिवेश में इस मुहावरे का भावार्थ भी बदल गया है और प्रत्येक बुद्धिजीवी को आवश्यकता है कि इस नए संदर्भ में इसे समझने का प्रयास करें। मुहावरे में संयोग शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ होता है सम योग अर्थात भली-भांति मिलना। प्रकृति का नियम है मिलकर जीना एकता के साथ रहना। मिलकर रहने और जीने वाला इंसान ही दीर्घ काल तक जीवन व्यतीत कर सकता है । नदी और नाव के संयोग का तात्पर्य मिलकर जीने से है। नदी निर्बाध रूप से हिलोरें लेती हुई अपने साथ मिलकर चलने वाली अनेकानेक नावो को अपने सीने पर बालकों के समान खिलाती हुई अपनी धार रूपी हाथों में झूलाती है और अपनी कल कल ध्वनि के संगीत की लोरी सुनाती हुई निरंतर प्रवाहित होती रहती है। और दूसरी और नाव भी नदी की धार के साथ तालमेल बनाए हुए उसकी लहरों व भंवरो रूपी शिशुओं के साथ अपनी कठोरता को त्याग कर उन्हीं के साथ शिशुवत विभिन्न अठखेलियां करती हुई नदी की गोद में पलकर मातृत्व का आनंद लाभ प्राप्त करती रहती है।
अतः हमें इस मुहावरे को नवीन संदर्भ में समझना होगा। नदी नाव संयोग इसमें संयोग शब्द भली-भांति मिलन तथा एकता का सूचक है ना कि बिछड़ने का। तो फिर इस उक्ति का अर्थ वियोग से क्यों लगाया जाता है? यह मुहावरा तो नदी नाव के संयोग की बात कहता है ना कि बिरह की ।
अतः अपनी सकारात्मक सोच का विकास करते हुए इस मुहावरे को नदी और नाव के निरंतर बने रहने वाले संयोग या मिलन के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए ना कि बिछोह के रूप में । सकारात्मकता ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए ।
। इति