फादर्स डे पर पिता जी की याद में डॉ स्वतन्त्र कुमार सक्सैना द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे पर पिता जी की याद में

फादर्स डे पर पिता जी की याद में

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

डुकरा

करोना पीड़ित वृद्ध के अस्‍पताल में भर्ती के उपरांत स्‍वस्‍थ होने पर घर लौटने पर परिजनों के स्‍वागत में मनोभाव

हमने तो सोची ती डुकरा मर जै है

खूब देख लई दुनिया अब सरगै जै है ।

परौ गओ गाड़ी में उखरी सांस हती

सोची न ती लौट के दौरत घर आ है ।

हम ने तो सोची ती डुकरा मर जै है

गाडी भर मरघटा लकरियां पौंचा दईं

अर्थी तक मिल जुल कै पैलउं बनवा लई

जोर तोर कर पाए व्‍यवस्‍था सब कर लई

सोची न ती लौट कै सांकर खटका है

हम ने तो सोची ती डुकरा मर जै है

ज्‍वानन की तो खबरें आ रईं चौतरफा

नेता सब खिसयाने फिर रये चौतरफा

अफसर सब रिसयाने फिर रये चौतरफा

डाक्‍टर सब भन्‍नाने फिर रये चौतरफा

लात मैात खों दैके अब कब तक रै है

हम ने तो सोची ती डुकरा मर जै है ।

ठेल दओ है सरग से जाने काए ई ए

हमें लगत कै जम उ न चाहत उतै ई ए

अब तो जाने कब तक जौ पसरो रै है

परो पौर में भोर ईं से हल्‍ला दै है

रात न सो है खुद न हमें सो उ न दै है

हम तो सोचत ते कै डुकरा मर जै है ।

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

सावित्री सेवा आरम डबरा

जिला –ग्‍वालियर (मध्‍य प्रदेश)

जब वे आ जाते थे जोश में

या भर जाते बहुत रोष में

दारू जब ज्‍यादा चढ़ जाती

या जाने किससे लड़ आते

मुझे देखते ही आंगन में

वे डंडा लेकर भिड़ जाते

हाथ साफ करके जब थकते

नशे से भी कुछ राहत पाते

हम बच्‍चे कहते क्‍या उनसे

ऐसे मनते तब फादर डे

जितनी गाली उनको आती

सारी ही मुझ पर दोहराते

साथी याद करें डेडी की

बापू याद बहुत तुम आते ।

सपने सी हो गईं दुआएं

रोज बद्दुआ से नवाजते

मां सिहारती कभी जो मुझको

हूं हां कह कर सिर झटकाते

भूले से कोई करे बढ़ाई

मुझे नकारा ही बतलाते

साथी याद करें डेडी की

बापू बहुत याद तुम आते ।

बापू जैसे ही घर आते

बच्‍चे कोनों में छिप जाते

मां को भी हरदम धमकाते

चाचा को भी आंख दिखाते

कभी प्रशंसा न की जाती

गलती नहीं माफ की जाती

घर सा ही स्‍कूल को पाते

मूर्तिमंत यम की प्रतिमा सा

हम अपने गुरू जी को पाते

क्‍लास में जब तब मुर्गा बनते

मास्‍टर जी से संटी खाते

पाठ से ज्‍यादा डांट को खाते

घर में थप्‍पड़ जूते खाते

बापू बहुत याद तुम आते ।

कॉपी हो किताब न होती

बस्‍ता हो तो ड्रेस न होती

कहूं अगर बापू बहलाते

ज्‍यादा कहूं तो थप्‍पड़ खाते

छोटे भाई बहन खिलाते

अम्‍मा का भी हाथ बंटाते

बापू संग खेतों में जाते

ऊंचे ऊंचे स्‍वप्‍न न देखो

हुनर हाथ का कोई सीखो

होम वर्क पर न हो पाता

टीचर जी से थप्‍पड़ खाता

पाठ याद रहता पर हमको

कठिन सवाल गणित के हल कर

बोर्ड पर हम दिखलाते सबको

टीचर जी तब खुश हो जाते

धौल पीठ पर मेरी जमाते

हो तो तुम होशियार बहुत ही

कामचोर हो ढीठ मगर भी

पर हम उनको क्‍या बतलाते

होम वर्क क्‍यों कर न पाते

बापू बहुत याद तुम आते ।

पर बापू ने एक कृपा की

मेरा न स्‍कूल छुड़ाया

कई साथियों को तो मैने

बैठे अपने घर पर पाया

वे भी सब होशियार बहुत थे

सपने थे अरमान बहुत थे

मिले मगर मैं पूंछ न पाया

कहां रहा स्‍कूल न आया

वे भी आखिर क्‍या बतलाते

आंख चुराते जान छुड़ाते

बापू बहुत याद तुम आते ।

वे जो कहें उसे बस सुनना

जो चाहें बस वो ही करना

नहीं तुम्‍हारी इच्‍छा कोई

दाढ़ी मूंछें भले आ गईं

लेकिन अकल जरा न आई

मात पिता का कहना मानो

सत्‍य वचन बस उनके जानो

वेद पुराण यही सब कहते

यही जताते बापू रहते

बापू याद बहुत तुम आते ।

साथी फादर्स डे को मनाते

धूम मचाते जोश जगाते

वाणी से श्रद्धा अर्पित कर

तरह तरह के गाने गाते

कांप जाए आवाज किसी की

कहीं नैन गीले हो जाते

क्षण में पार करें वर्षों को

उनकी यादों में खो जाते

बापू बहुत याद तुम आते ।