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मैं तो ओढ चुनरिया - 28

मैं तो ओढ चुनरिया

अध्याय 28

“ फिर उसने जंगल में जाकर पुकारा माँ “ ?
हाँ , पुकारा न । अगले दिन मोहन ने जंगल में पहुँचते ही पुकारा – गोपाल भैया । कोई उत्तर नहीं मिला । उसने फिर पुकारा । मोहन लगातार गोपाल को पुकारता रहा । पेङ पौधे भी उसके साथ पुकारते – गोपाल भइया । पुकारते पुकारते उसका गला सूख गया तो भगवान प्रकट हुए । भाई मैं गाय चराने दूर निकल गया था । अभी किसी ने बताया कि तुम पुकार रहे हो तो दौङा चला आया । चलो तुम्हें पाठशाला पहुँचा दूँ । मोहन खुश हो गया । उसके बाद तो यह नियम ही बन गया । अब वह जंगल में आकर गोपाल भैया को पुकारता और भगवान दौङे चले आते । एक दिन गुरु जी के घर यज्ञ था । गुरुजी ने अपने सभी शिष्यों को बुलाकर अलग अलग सामान लाने के लिए कहा । मोहन ने पूछा – गुरुजी मुझे क्या लाना है
गुरुजी ने मोहन को ऊपर से नीचे तक देखकर कहा – तुम दूध ले आना । और फिर दूध खत्म होने में ही न आये । घर के सारे पतीले , बगोने , बाल्टी , कढाई सब भर गये । खीर बनी अद्वितीय । न जाने कितनी बार मैंने यह कहानी बचपन में माँ से सुनी होगी । हर बार गोपाल ज्यादा अपने लगते । कितनी राखियां मैंने गोपाल के लिए बनायी होंगी और रक्षाबंधन पर बाँधी होंगी । भाईदूज पर टीका निकाला होगा । कितनी बार अपनी भोली सी माँग उनके सामने रखी होगी । और अब यह छुटका सा भाई नाम का जीव । कितना भी रो रहा होता , मेरी गोद में आते ही चुप हो जाता । पूरा दिन मेरे आसपास मंडराता रहता । एक मिनट भी इधर उधर न होने देता । भाई कम था बेटा ज्यादा हो गया । हमारा फर्क भी तो ग्यारह , बारह साल का था ।
अब तेरहवां लगते ही शरीर के साथ साथ मन में भी परिवर्तन आने लगा था ।
मेरी एक सहेली थी राज । हमारे घर से आठ दस घर छोङकर उसका घर था । मुझसे ढाई तीन साल बङी रही होगी । एक दिन उसके घर गयी तो उसकी हालत खराब थी । बेचारी से चला तक नहीं जा रहा था । मैंने पूछा – क्या हुआ इसे तो उसकी माँ ने मुझे इतनी जोर से डाँटा कि मैं रोती हुई वहाँ से भाग आई । समझ में ही नहीं आ रहा था कि राज को हुआ क्या है । और मैंने तो उसका हाल ही पूछा था तो मुझे क्यों डाँटा गया । माँ से कुछ कहने पूछने का मतलब दुगुनी डाँट होता , इसलिए घर में घुसने से पहले आँसू साफ कर लिये ।
इसके पाँच दिन बाद पता चला – राज की शादी उसके सगे मामा के बेटे अशोक से तय हो गयी है । तीन दिन बाद फेरे हैं । वोह मामा का बेटा जो पंद्रह दिन पहले से उनके घर में था । एकदम गंदा सा , नहीं देखने में तो ठीकठाक था पर मुझे तो आवारा सा , बेवकूफ सा लगा था । छटी कलास में तीन बार फेल होकर उसकी पढाई छूट गयी थी और आजकल खाली इधरउधर रिश्तेदारियों में घूम रहा था । पिछले दो महीनों में चार बार बुआ के घर आ चुका था । राज को फूटी आँख न भाता था और अब उसी से शादी हो रही थी । फेरों के बाद राज अपने मामा के घर दुल्हन बनकर चली गयी थी । और फिर आठ महीने बाद उसके मरी हुई बेटी पैदा हुई थी । तब लज्जा मौसी उसे अपने साथ लिवा लाई थी । एकदम हल्दी जैसा जर्द रंग हो गया था । ऐसे लग रही थी जैसे सदियों से बीमार हो । दो महीने मौसी ने तरह तरह की दवाइयाँ कूट पीस कर खिलाकर उसे खङी होने लायक किया था कि अशोक आकर लिवा ले गया । राज अभी उसके साथ जाना नहीं चाहती थी पर चली गयी । जाते समय कितनी बुरी तरह रोई थी कि आस पङोस की सभी औरतों की आँख में आँसू आ गये थे । करीब दस महीने बाद वह फिर से माँ बन गयी । इस बार उसने बेटे को जन्म दिया था । मौसी बहुत खुश थी कि चलो अब लङकी अपने घर रच बस जाएगी । अभी बेटा साल का हुआ था कि एक दिन राज अपने घर मरी पायी गयी । उसका बेरहमी से कत्ल किया गया था । किसी तेज चाकू से उसका गला रेत दिया गया था । वह भी गरमी की दोपहर में तीन बजे । बच्चा साथ लगा बुरी तरह से रो रहा था । बच्चे के रोने की आवाज पङोस के घर तक पहुँची तो पङोसन देखने आई कि चलो डाँट दूँ कि इतनी देर से बच्चा रो रहा है , उठा क्यों नहीं रही पर यहाँ का मंजर देख चिल्ला उठी । चीख सुनकर अङोस पङोस इकट्ठा हो गया । पुलिस आई । अशोक आया । फिर सब खत्म हो गया । राज की माँ अक्सर रोते हुए उस घङी को पछताती हुई विलाप करती जब भतीजे का आने को लेकर वह कितनी खुश थी । कैसे भूल गयी कि घर में जवान होती मासूम बेटियाँ हैं । अशोक के बार बार आने को उने अपने प्रति मोह समझा था । क्या पता था कि वह उसकी राज को ... । मैं मुँह खोले यह सब सुनती पर न कुछ उस दिन समझ आया था जब राज को अटपटी चाल से चलते देखा था , न उस दिन जब आनन फानन में राज की अशोक से शादी कर दी गयी थी । और न आज समझ में आया जब राज की निर्मम हत्या हो गयी । राज जो मुझसे मात्र तीन साल बङी थी । राज जिसने जिंदगी के मात्र सत्रह बसंत देखे थे । वह राज जो हर समय हँसती रहती और शादी के बाद एकदम सुन्न हो गयी थी । हँसना बिल्कुल भूल गयी थी । याद आया कि राज की शादी की खबर लगते ही मोहल्ले की औरतें अतिरिक्त सतर्क हो उठी थी गली से गुजरने वाले , घर में आने वाले हर मर्द को लङके को शक की नजर से देखती । बेटियों को नहाने पर , मुँह धोने पर , बाल सँवारने पर , गली में कूङा फेंकने जाने पर बुरी तरह से गलियाती । दिन में एक आध बार पीट भी देती । बात बेबात में खीझी रहती । फिर धीरे धीरे सब सामान्य हो गया ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...


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