प्यार की निशानी - भाग-4 Saroj Prajapati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार की निशानी - भाग-4

प्यार की निशानी भाग-4
2 दिन बाद मंजू पग फेरे के लिए अपने मायके आई। घर में उसे देख सबके चेहरे खुशी से खिल उठे। दादी तो अपनी पोती की नजर उतारते नहीं थक रही थी और मंजू के पिता अपनी बेटी को बहुत ही प्यार से निहारते।
आस पड़ोस के सभी लोग उससे मिलने व ससुराल के हाल चाल पूछने आए । सभी उत्सुक थे, उसके ससुराल के बारे में जानने के लिए!
मंजू ने सभी के सामने अपनी सास व ससुराल की बहुत प्रशंसा की । सभी उसे आशीर्वाद दें विदा हुए।

सबके जाने के बाद मंजू के पिता ने उससे कहा “बेटा, तू सचमुच खुश है ना! ससुराल में कोई परेशानी तो नहीं! समीर जी व तेरी सास तेरा ध्यान तो रखते हैं ना! तेरी मां होती तो वह तुझसे सब कुछ पूछती लेकिन आज उसकी जगह मुझे ही समझ और मुझसे अपने दिल की बात साझा कर!”
“पापा, सब बहुत अच्छे हैं और मेरा बहुत ध्यान रखते हैं। मेरी सास तो मुझे बहु कम बेटी ज्यादा समझती है और आपके दामाद तो सचमुच हीरा है। कहते हुए मंजू ने नजरें झुका ली कि कहीं उसके पिता उसका झूठ पकड़ ना ले!”

“सचमुच, तू बहुत किस्मत वाली है बेटी। आज के समय में ऐसा ससुराल मिलना बहुत ही भाग्य की बात है। जितना तुझे वह मान सम्मान देते हैं, बेटा तू भी अपनी सास की पूरी दिल लगाकर सेवा करना। अगर वह तुझे गुस्से में दो बात बोल भी दे तो उसे हंस कर टाल देना क्योंकि सास भी मां
समान होती है। कहते हैं बड़ों के दो गुस्से में भी आशीर्वाद छुपा होता है।
हां, सही कहा तूने दामाद जी तो वाकई में ही हीरा है। इतना सीधा सरल स्वभाव कम ही देखने को मिलता है ।
भगवान तुम्हारी झोली सदा खुशियों से भरी रखे।“ कहते हुए मंजू के पिता ने उसके सिर पर अपना आशीर्वाद रूपी हाथ रख दिया।

दोपहर को मंजू सो रही थी कि मंगला के चिल्लाने की आवाज से उसकी आंख खुली।
“वाह वाह महारानी जी तो आराम फरमा रही है।“
सुनकर मंजू हंसते हुए उठ बैठी और दोनों सहेलियां एक दूसरे की गले मिल भावुक हो गई।
मंगला अपने आंसू पोंछते हुए बोली “ मैं यहां इमोशनल ड्रामा करने और देखने नहीं आई। यहां तो मैं तुझसे तेरी मैरिज लाइफ के रोमांस वाले किस्से सुनने आई हूं । अब जल्दी से शुरू हो जा। दादी ने बताया तू कल दोपहर तक चली जाएगी। तू, मुझे पहले बता देती तो आज मैं कॉलेज की छुट्टी ना कर लेती ।  इतना कम समय और इतनी सारी बातें! अब जल्दी से शुरू हो जा!” मंगला उसे छेड़ते हुए बोली।
“अरे, सांस तो ले ले।  सहेली कि नहीं, अपने जीजा जी की ज्यादा फिक्र है तुझे । तुझसे मिलकर लगता है तू हमें भूल ही गई। "
"अरे, तुझे तो मैं कभी नहीं भूल सकती और बता इन 4 दिनों में हमारे जीजाजी कमरे से बाहर भी निकले या नहीं। या फिर हमारी हुस्न की मल्लिका के सामने चारों खाने चित हुए उनके आगोश में ही लेटे रहते थे।" मंगला ने बड़े अंदाज से उससे पूछा।
उसका अंदाज देख मंजू की हंसी छूट गई। फिर एकदम से उसके चेहरे पर दर्द के भाव आ गए। जिसे वो छुपाते हुए बोली “ अच्छा जी ,कॉलेज जा कर हमारी मंगला लगता है शायरी सीख रही है। बहुत अच्छे हैं तेरे जीजा जी और बहुत ध्यान रखते हैं मेरा। उन जैसा जीवनसाथी पाकर
कौन लड़की खुश ना होगी। सचमुच मेरे मम्मी पापा ने कहीं मोती दान किए होंगे। जो इतना अच्छा घर परिवार व पति मिला है मुझे!” मंजू खुशी से मंगला के गले लगते हुए बोली।
अपनी आंखों के आंसू छुपाते हुए मंजू ने आगे कहा “और तू सुना, तू कैसी है। मुझे मिस किया तूने या नहीं!”
मंगला की नजरों से मंजू की आंखों के गीले कोर व उसका अनकहा दर्द छुपा ना रह सका । वह उठकर दरवाजा बंद करके आई।

“अरे, तूने दरवाजा क्यों बंद कर दिया मंगला! ऐसी क्या खास बात करने वाली है तू मुझसे!  तूने भी किसी को पसंद कर लिया है क्या!” मंजू शरारत से मुस्कुराते हुए बोली।

“मंजू, मुझे सच सच बता! क्या बात है! देख झूठ मत बोलना। बचपन से जानती हूं तुझे। मैंने तेरी आंखों में सब पढ़ लिया है। बस तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं!”

“क्या पढ़ लिया  और क्या सुनना चाहती है! लगता है कॉलेज में किताबों के साथ साथ नैनों की भाषा भी पढ़ना सीख रही है हमारी सखी!” मंजू फीकी सी हंसी हंसते हुए बोली। हंसते हुए फिर से उसकी आंखें गीली हो गई और फिर एकदम से अचानक वह मंगला के गले लग रो पड़ी।
मंगला ने उसके आंसू पोंछे। मंगला के सामने वह अपने आपको रोक ना सकी और उसने अपने मन का सारा दर्द अपनी सखी के सामने बयां कर दिया।
सुनकर मंगला भी कहां अपने आंसू रोक पाई लेकिन कर तो वह भी कुछ नहीं सकती थी। क्योंकि मंजू के घर के हालात उसे भी पता थे।
“मंजू , मैं तेरी कुछ मदद कर सकती हूं बता! तेरा दर्द सुनकर मेरा कलेजा फटा जा रहा है!”
“मदद करना चाहती है तो बस इतना करना कि कभी भी किसी के सामने , जो मैंने तुझसे कहा उसे मत कहना। उन बातों को अपने सीने में दफन कर ले। वह कभी बाहर नहीं आए।“

मंगला ने रोते हुए सिर हिला दिया। दोनों सखियां फिर से एक बार गले मिलकर खूब रोई।
तभी दरवाजे पर किसी के आने की आहट से दोनों ने जल्दी से अपने आंसू पोंछे। दादी दरवाजा खटखटाते हुए बोली “अरे दोनों सहेलियां ऐसा गुपचुप क्या बतला रही हो!”

मंगला दरवाजा खोलते हुए बोली “वही दादी जो आपने कभी शादी के बाद अपनी सहेलियों से बतलाया होगा!”

“चल हट ! शर्म ना आती तुझे दादी के साथ ऐसी बातें करते हुए!” दादी शरमाते हुए बोली।
“हाय दादी इसमें शर्माने वाली कौन सी बात है। वैसे आपके पास तो काफी तजुर्बा है, कुछ ज्ञान हमें भी दे दो ना!” मंगला उन्हें छेड़ते हुए बोली।
“तुम आजकल की लड़कियां ना, सिनेमा देख देख कर ज्यादा ही बिगड़ती जा रही हो ।“
दादी अपनी हंसी दबाते हुए वापस चली गई।

'मैडम जी काम चेक कर दो।' क्लास के एक बच्चे की आवाज से मंगला की तंद्रा टूटी और वह वर्तमान में वापस लौट आई। अपनी गीली आंखों को उसने पोंछ लिया।
क्लास के बच्चों को काम देकर वह फिर से यादों के गलियारों में चक्कर लगाने पहुंच गई।
आज मंजू को अपनी ससुराल वापस जाना था। घर में समीर के स्वागत की तैयारियां चल रही थी ।उधर मंजू का दिल जोरों से धड़क रहा था। अगर आज समीर नहीं आया तो वह सबको क्या जवाब देगी। अब तक तो उसने बात संभाली हुई थी लेकिन हे भगवान! लाज रख लेना । वह उठते बैठते भगवान से यही प्रार्थना कर रही थी।
इतनी देर में ही दरवाजे पर गाड़ी के रुकने की आवाज आई। उसके पापा उठकर दरवाजे पर गए तो देखा समीर व उसकी सास सामने खड़े थे।
मंजू ने आगे बढ़ अपनी सास के पैर छुए और उनके लिए चाय पानी का इंतजाम करने चली गई।
चाय पीते हुए उसके पापा ने उसकी सास से पूछा “बहन जी, आपको मेरी बेटी से कोई शिकायत तो नहीं! बिन मां की बच्ची है। कोई भूल चूक हो जाए तो माफ कर देना।“

“कैसी बात कर रहे हो भाईसाहब आप। जितना हमने सोचा था। आपकी बेटी उससे कहीं ज्यादा सुघड व संस्कारी है। हम तो धन्य हो गए ,उसे बहू के रूप में पाकर।“
सुनकर मंजू का पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।

मंजू की शादी को कई महीने होने को आए लेकिन इन बीते महीनों में कभी उसके पति ने उससे बात करने की कोशिश नहीं की। एक ही कमरे में, एक ही छत के नीचे दोनों अजनबियों की तरह रहते। समीर ने तो कितना मना किया था कि वह मंजू के साथ एक ही कमरे में नहीं रहेगा लेकिन उसकी मां ने उसकी एक ना सुनी। उन्होंने कड़े शब्दों में उसे चेतावनी दे दी थी
“बेटा , किसी की बेटी को बिहा कर लेकर आई हूं। उसकी जिंदगी तो बर्बाद होने नहीं दूंगी। अभी तो इस घर पर मेरा हक है। हां तुझमें दम है तो अकेले जिंदगी बसर कर सकता है तो कर ले।
वैसे तो तू कर ही लेगा बड़ा जो हो गया है। तुझे अपने मां की क्या फिकर । तेरे लिए तो वह लड़की ही मां-बाप सब कुछ है। तू जा उसके पास लेकिन याद रख 1 दिन ठोकर खाकर आएगा, तू इस घर में ही। किसी की आत्मा दुखा कर तू कभी चैन से नहीं रह कर पाएगा।“
जब तब मां की ऐसी बातें सुनकर समीर का दिल बैठ जाता था लेकिन दूसरी तरफ उसे अपने प्यार का ख्याल आता। उसे लगता मां उन दोनों के बीच में दरार पैदा करने के लिए ऐसी बातें कर रही है इसलिए सुनकर भी अनसुना कर देता। हां, मां को छोड़कर जाने की हिम्मत वह नहीं जुटा पा रहा था ।
इसलिए ना चाहते हुए भी उसे मंजू के साथ उस कमरे में रहना पड़ रहा था।
वहीं दूसरी ओर मंजू बिना किसी शिकायत के उसका हर काम आगे से आगे करके रखती। चाहे खाना हो, कपड़े हो या अन्य काम।
मंजू की सास ने शादी के बाद मंजू को समीर की सारी जिम्मेदारी दे दी थी।
इसका सिर्फ एक कारण था वह मंजू को ज्यादा से ज्यादा समीर के करीब रखना चाहती थी।
कई बार समीर को हैरानी भी होती कि कैसी लड़की है। मैं इतना कुछ उसे कह देता हूं। फिर भी अनसुना कर हमेशा अपने धर्म का पालन ही करती रहती है।
कभी शिकायत नहीं करती। कभी चिल्लाती नहीं, कभी गुस्सा नहीं होती।
धीरे धीरे समीर के दिल में मंजू के लिए जो अभेद्य दीवार खड़ी थी ,उसकी नींव अब धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही थी। अब तो कई बार अकेले में समीर, मंजू से अपनी प्रेमिका की तुलना भी करता। कैसे वह उसे खुश रखने की कोशिश में लगा रहता है। कितने तोहफे, कितने पैसे उस पर खर्च करता है। फिर भी उसकी प्रेमिका शालू की मांगे, उसकी शिकायतें व उसका रूठना खत्म ही नहीं होता ।

दूसरी तरफ मंजू जो उसकी पत्नी हैं। जिसका पूरा हक बनता है उस पर । मैंने कभी प्यार के दो बोल नहीं बोले उसे। फिर भी मां, मेरे और इस घर के प्रति अपनी हर जिम्मेदारी को कितनी तल्लीनता से निभा रही है।

हरदम होठों पर मुस्कान लिए, बिना किसी शिकायत के अपना हर फर्ज निभा रही थी मंजू।
क्रमशः
सरोज ✍️