प्यार की निशानी - भाग-5 Saroj Prajapati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार की निशानी - भाग-5

प्यार की निशानी भाग-5
आज मंजू का पहला करवाचौथ था। उसने व्रत रखा हुआ था। समीर के ऑफिस निकलने के समय उसकी मां ने उसे हिदायत देते हुए कहा “समीर, बहू ने तेरे लिए व्रत रखा है इसलिए समय से घर आ जाना। मैं नहीं चाहती उसे तेरे इंतजार में ज्यादा देर भूखा रहना पड़े। मैं तो उस पगली को मना कर रही थी कि क्या जरूरत है उस आदमी के लिए व्रत रखने की जिसके दिल में तेरे लिए कोई जगह ही नहीं। अपने पत्नी धर्म का वास्ता दें, उसने मुझे चुप करा दिया। तू भी थोड़ी मेरी इज्जत रख लेना।“
समीर कुछ नहीं बोला। बस हां में सिर हिलाकर चला गया।

लंच टाइम में शालू ने समीर से कहा “समीर, आज छुट्टी के बाद बाहर डिनर करने चलते हैं ।बहुत दिन हो गए कहीं गए।“

“नहीं यार, आज मुझे जल्दी घर जाना है । “

“क्यों, ऐसा क्या काम है आज घर पर । जो मेरे डिनर से भी ज्यादा जरूरी है!”
समीर थोड़ा हिचकते हुए बोला "तुम्हें तो पता ही होगा। आज करवा चौथ है तो मंजू ने व्रत रखा है। इसलिए मुझे जाना पड़ेगा!”
“कितनी स्टुपिड है वह! उसे पता है कि तुम उसके कभी हो नहीं सकते। फिर भी तुम्हारे लिए भूखी मर रही है।
पता नहीं संस्कारी बहु बनने में क्या हासिल होता है इन बहनजी टाइप औरतों को। व्रत रखने से अगर पति का प्यार मिल जाता तो उनके पति यूं बाहर मुंह ना मार रहे होते। वह अपनी पत्नी के पल्लू से बंधे होते। तुम अपने आप को ही देख लो ना!” शालू बेशर्मी से उसकी ओर देखते हुए, हंसते हुए बोली।
समीर को अपना मजाक बनता देख, बुरा तो बहुत लगा लेकिन वह शांत रहा। फिर कुछ सोचते हुए बोला “ शालू, तुम शादी के बाद तो मेरे लिए व्रत रखोगी ना!”

“व्हाट नॉनसेंस ! कैसी बात कर रहे हो तुम। मुझसे तो इस तरह की कोई उम्मीद मत रखना। ये व्रत, सास ससुर की सेवा, बच्चे ,खाना। यही काम रह गए हैं क्या मेरे
लिए। मैं तो वैसे भी उन टिपिकल लेडीस में शामिल नहीं। एक बात कान खोलकर सुन लो समीर । शादी के बाद मुझसे इस तरह की उम्मीद भी मत रखना। मुझे शुरू से ही आजादी प्यारी रही है और वह मैं किसी भी कीमत पर छोड़ नहीं सकती।“
शालू की बात सुन समीर को बहुत बड़ा झटका लगा। वह एकदम से वहां से उठा और चल दिया।
“ अरे, तुम कहां चल दिए ।लंच भी फिनिश नहीं किया तुमने तो!”
“कुछ नहीं शालू ,मुझे कुछ काम याद आ गया है इसलिए मैं हाफ डे लेकर जा रहा हूं।“
“एस यू विश।“ शालू ने कंधे उचकाते हुए कहा। जैसे उसे कोई फर्क ही ना पड़ा हो।
समीर अभी ऑफिस से बाहर निकल ही रहा था कि उसे ध्यान आया कि वह अपना फोन शालू की टेबल पर भूल आया है।
वह उल्टे पांव शालू के केबिन की ओर गया । शालू किसी से फोन पर बात कर रही थी। उसकी बातें सुन समीर के कदम वही ठिठक गए “शादी और समीर से! पागल हो गए हो क्या। अरे ,उस बेवकूफ से कौन शादी करेगा। मैं तो बस उससे उसका वह नया वाला फ्लैट हथिया लूं, किसी तरह। बस फिर उसे मुड़ कर भी नहीं देखूंगी और यह काम मैं कर ही लूंगी। वह मना कर ही नहीं पाएगा मुझे। पागल जो है मेरे प्यार में।“ कह वह जोर से हंसते हुए जैसे ही पलटी, सामने समीर को खड़ा देखकर एकदम से सकपका गई। जल्दी से फोन बंद कर। अपने चेहरे के भावों को छुपाते हुए बोली
“अरे समीर, तुम! तुम तो जा रहे थे ना फिर!””
“हां जा रहा हूं शालू, कभी ना लौटने के लिए लेकिन जाने से पहले एक बात तुमसे पूछना चाहता हूं। तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया। क्यों मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जब तुम्हें मुझसे प्यार ही नहीं था तो!!!!!!
सिर्फ पैसा ही है तुम्हारी नजरों में सब कुछ है क्या! बोलो शालू! बोलो!”
“ हां, हां हां!!! यही सुनना चाहते हो ना। आज के समय में पैसे से बढ़कर कुछ नहीं । तुम्हारे पास पैसा है तो सौ चाहने वाले मिल जाएंगे। प्यार से पेट नहीं भरता और वैसे भी शादी जैसे झंझटों में तो मुझे वैसे भी नहीं पडना। “

“ वाह शालू वाह! आखिर आज तुमने अपना असली रूप दिखा ही दिया। मैं पागल हमेशा यही सोचता रहा कि तुम मुझसे प्यार करती हो मेरी दौलत से नहीं लेकिन आज!!!! मुझे नफरत हो रही है। तुमसे नहीं, अपने आपसे। मैं जा रहा हूं शालू। आज के बाद मैं तुमसे कभी नहीं मिलूंगा। आज के बाद मेरा तुम्हारा कोई संबंध नहीं है!”
“ जाओ, मैं भी तुम्हें नहीं रोकूंगी। तुम्हारे जैसे इमोशनल फूल की मुझे जरूरत नहीं है। अरे, तुम क्या सोचते हो। तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगी। नो वे! शालू के लिए तो एक से बढ़कर एक लड़के लाइन में खड़े हैं। जाओ मैं भी तुम्हारा चेहरा फिर नहीं देखना चाहती।“
समीर को जल्दी घर आया देखकर मंजू और उसकी सास का चेहरा खुशी से खिल उठा।
“अरे ,मैंने तो तुम्हें शाम को जल्दी आने के लिए कहा था। तुम तो दिन में ही आ गए ।“ समीर की मम्मी ने चुटकी लेते हुए कहा।
“वह ,वह मम्मी कुछ तबीयत सही नहीं थी। थोड़ा सिर में दर्द है इसलिए जल्दी आ गया। अच्छा, मैं थोड़ा आराम करना चाहता हूं।“ कहकर समीर उन दोनों से आंखें चुराकर कमरे में चला गया।
मंजू की सास उसके सर पर प्यार से हाथ रखते हुए बोली “बहू लगता है, तेरे दुख के दिन जल्दी खत्म होने वाले हैं। मेरा दिल कहता है ,कुछ ही दिनों में यह तेरे पास वापस आ जाएगा। बस तेरा वनवास खत्म होने वाला है। करवा माता तुम दोनों का मिलन जल्दी करवाएं।“ कहकर उन्होंने मंजू को अपने गले लगा लिया। मंजू की आंखों से आंसू निकल आए।
मंजू थोड़ी देर में चाय बना कर समीर के लिए ले गयी और बोली “ चाय पी लीजिए। इससे सर दर्द में आराम पड़ेगा। कहो तो बाम लगा दूं।“
“अरे नहीं , तुम परेशान मत हो ।वैसे भी आज तुम्हारा व्रत है तुम आराम करो।“
“अपनों की सेवा से परेशानी नहीं होती। वैसे यह अलग बात है कि तुम मुझे अपना मानो या ना मानो लेकिन मेरे लिए तो तुम सबसे बढ़कर हो।“
समीर ने पहली बार उसकी ओर नजर उठा कर देखा। आज लाल साड़ी और पूरे सिंगार में कितनी सुंदर लग रही थी। बिल्कुल देवी सरीखी और वो इतने दिनों से कैसे हर पल इसके अरमानों का खून करता आया है। सोचते हुए समीर के चेहरे पर दुख की रेखाएं उभर आई।
मंजू उसका चेहरा पढ़ते हुए बोली "सिर ज्यादा दुख रहा है क्या ! आप इतने दुखी क्यों हो गए अचानक !”

“कुछ नहीं मंजू । अपने बुरे कर्म याद आ गए।“

“बुरे कर्म! आपने कौन से बुरे कर्म कर दिए!”

“मंजू मुझे कुछ देर अकेला छोड़ दो।।“
“क्या बात है। मैं देख रही हूं जब से आप आए हो, बहुत परेशान दिख रहे हो। क्या ऑफिस में कुछ हुआ है क्या!”

“मंजू, मैं अभी कुछ भी कहने की हालत में नहीं हूं। मैं मैं।।। “ कहते हुए समीर का गला भर आया।

मंजू ने समीर को इतना दुखी व परेशान आज तक नहीं देखा था। बार-बार कहने के बाद भी समीर उसे कुछ नहीं बता रहा था।।
मंजू ने नीचे जाकर अपनी सास को सारी बात बताई तो वह भी सुनकर चिंतित हो गई और मंजू के साथ ऊपर आई।

“क्या बात है समीर ! अब तूने हमें इतना पराया समझ लिया कि तेरे बारे में जानने का हक भी हमें नहीं । बेटा, मैं तेरी मां हूं। तुझे इतना दुखी देखकर, क्या मैं चैन से बैठ पाऊंगी। कुछ तो कह ,क्या बात है। कहने से मन हल्का हो जाता है । क्या पता हम तेरी परेशानी का कोई समाधान निकाल सके।“
समीर की मां ने उसके सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा।
अपनी मां के प्यार भरे बोल सुनकर समीर उनकी गोद में सिर रखकर फूट-फूट कर रोने लगा। “मुझे माफ कर दो मां! मुझे माफ कर दो! आप सही थी! आप सही थी मां।“

“अरे बेटा, बात क्या हुई है! पहले वह तो बता। किस बात की माफी। किसने तुझे क्या कह दिया! बता तो मेरा दिल बैठा जा रहा है।“ अपने बेटे की हालत देखकर, वह दुखी होते हुई बोली।
“मां, आज मैंने शालू का असली चेहरा देख लिया। उसे मुझसे नहीं, मेरे पैसों से प्यार था।“ कहते हुए समीर ने उन्हें सारी बातें बता दी।
“मां, कोई ऐसे कैसे कर सकता है। मैंने तो उसे दिल से चाहा था। उसकी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश की थी ।फिर उसने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा!!!!!
मैं उसे कभी माफ नहीं करूंगा। वह कभी खुश नहीं रह सकती। उसके प्यार में अंधा हो, मैंने आपका बहुत दिल दुखाया । आपने मुझे कितना समझाने की कोशिश की लेकिन मैं, मैं मूर्ख सब कुछ अनदेखा कर शालू रूपी मृग तृष्णा को सच समझ बैठा।“
“बेटा, एक ना एक दिन तो यह होना ही था। पर मुझे इस बात की तसल्ली है कि समय रहते तुझे समझ आ गई। यह भी बहुत बड़ी बात है। मैं, मां हूं तेरी । मैं तो तुझे माफ कर ही दूंगी लेकिन इस देवी का जो तूने दिल दुखाया है, उसका क्या ! जब से आई है, बिना स्वार्थ बिना किसी भी लालसा के सब की सेवा में लगी हुई है। माफी तुझे मुझसे नहीं, मंजू से मांगनी चाहिए!”
“आप सही कहती हो मां लेकिन मैं मंजू से किस मुंह से माफी मांगू। मैंने तो उससे कुछ भी कहने के अपने सारे अधिकार खो दिए हैं।“
मंजू की तरफ देखता हुआ समीर बोला “मंजू, मैंने पति होने का आज तक कोई फ़र्ज़ नहीं निभाया लेकिन तुमने बिना इस बात की परवाह किए, एक बहू व पत्नी का हर धर्म निभाया है। मंजू, मैं तुमसे माफी मांगने का हकदार भी नहीं रहा। जब से तुम इस घर में आई हो। मैंने हर पल तुम्हारा दिल दुखाया है। तुम्हारी भावनाओं की मैंने कभी कदर नहीं की। आज मुझे मेरे अपने बुरे कर्मों की सजा मिल गई। अब मेरे जीवन में अंधकार ही अंधकार है। मैं एक हारा हुआ इंसान हूं। पति की हैसियत से नहीं, एक भिखारी की हैसियत से, मैं तुमसे माफी की भीख मांगता हूं। मुझे माफ कर दो मंजू।
मुझे माफ कर दो और मुझे एक मौका दो। “ समीर उसके आगे हाथ जोड़ते हुए बोला।
“आप यह क्या कर रहे हैं। आप मुझे पाप का भागी मत बनाइए। मेरे दिल में आपके लिए कोई गिला शिकवा नही।
मेरी किस्मत में यह दुख लिखा था लेकिन भगवान ने आज आपको मुझे लौटाकर मुझे दुनिया की सबसे बड़ी खुशी दी है । इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए। भूल जाइए पिछली सारी बातें । “ मंजू अपने आंसू पोंछते हुए बोली।
“मंजू, मां सही कहती है । तुम सचमुच देवी हो। इतना कुछ हो जाने के बाद भी तुमने मुझे माफ कर दिया। समझ नहीं आ रहा, मैं कैसे तुम्हारा व भगवान का शुक्रिया अदा करूं। “

“मेरा नहीं, बस भगवान का शुक्रिया अदा कीजिए और बार-बार पिछली बातों को याद कर, अपना और मेरा दिल मत दुखाएं। आज मेरे जीवन का सबसे बड़ा दिन है। मुझे मेरा पति मिला है। मैं चाहती हूं, आज से हम अपने जीवन की नई शुरुआत करें। “
“हां मंजू, हां! मैं वादा करता हूं। आज के बाद तुम्हारे जीवन के सारे दुख मेरे हुए और मेरे जीवन की सारी खुशियां तुम्हारी। आज के बाद तुम्हारे चेहरे पर कभी उदासी नहीं आने दूंगा। जीवन के हर सुख दुख में तुम्हारा साथ दूंगा। वादा है मेरा।“
आज अपने बेटे की फिर से घर वापसी देख समीर की मां की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। वह खुश होते हुए बोली
“भगवान तुम्हारी जोड़ी सदा यूं ही बनाए रखे। तुम्हें दुनिया की हर खुशी मिले। “ फिर उन दोनों के सिर पर हाथ रखा तो दोनों ने आगे बढ़ मां के पैर छू लिए। उन्होंने भी अपना आशीर्वाद रूपी हाथ उनके सिर पर रख दिया।

इस बार मंजू जब मायके आई तो उसने मंगला को सारी बातें बताई। सुनकर मंगला बहुत खुश हुई। उसने अपनी सखी को गले लगाते हुए कहा “मंजू सुनकर इतना अच्छा लग रहा है ना कि क्या कहूं । भगवान ने तेरे अच्छे कर्मों का फल तुझे दिया है। मेरी यही प्रार्थना है तू सदा यूं ही खुश रहे। “
सुनकर मंजू का चेहरा खिल उठा।
कुछ दिनों से मंजू को कुछ सही नहीं लग रही था। खाना खाने का उसका मन ना करता और कुछ खाती तो उल्टियां शुरू हो जाती । मुंह का स्वाद भी बिगड़ गया था। जब उसने अपनी सास से इस बारे में बात की तो सुनकर वह मुस्कुराते हुए बोली “पगली इस समय यही सब कुछ तो होता है।“
“मतलब, मैं समझी नहीं मांजी!” मंजू हैरानी से उनकी और देखते हुए बोली।
“मतलब यह कि मैं दादी और तुम मां बनने वाली हो।“
सुनकर उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।
“ कल तू समीर के साथ जाकर एक बार डॉक्टर से चेकअप करा ले। देखना मेरा अंदाजा सही निकलेगा।“

अगले दिन मंजू समीर के साथ डॉक्टर के पास गयी । टेस्ट करने के बाद डॉक्टर ने प्रेगनेंसी के बारे में बताया। सुनकर दोनों ही पति-पत्नी खुशी से खिल उठे।
उनसे खुशखबरी सुन मंजू की सास ने मंजू की नजर उतारी और मुंह मीठा कराया।
समीर व उसकी मां, मंजू के खाने-पीने पूरा ध्यान रखते। उसे ज्यादा भारी काम ना करने देते।
नौ महीने बाद मंजू ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया। मंजू की सास तो दादी बन खुशी से झूम उठी। समीर, मंजू भी माता-पिता बनने की खुशी से अभिभूत थे।
हॉस्पिटल से घर आने पर मंजू की दादी, पिता और उनके साथ मंगला भी उससे मिलने उसके घर आए। सभी नन्हे से मेहमान को देखकर बहुत खुश थी।
मंजू के पिता व दादी अपने नाती को देखकर फूला नहीं समा रहे थे। मंगला भी नन्हे मेहमान को खूब लाड दुलार कर रही थी।
मंजू की सास उनके लिए चाय नाश्ता लेकर आई। मंजू को प्यार करते हुए, वह उसके पिता से बोली “ भाई साहब, आपकी बेटी ने मेरे घर को खुशियों से भर दिया। मैं तो धन्य हो गई, इसे बहू रूप में पाकर। आपने सही कहा था कि आपने इसे बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं। सच आपकी परवरिश इसके कामों में झलकती है। मैं तो अब निश्चित हो गई हूं कि मेरे जाने के बाद यह मेरे घर व मेरे बेटे को अच्छे से संभाल लेगी।“
“बहन जी, यह तो आपका बड़प्पन है। आप जैसी सास हो तो हर मां-बाप की चिंता अपने आप ही दूर हो जाती है।“

मंगला से बात करते हुई समीर ने पूछा “और साली साहिबा आप बताइए आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है।“
“बस चल ही रही है जीजा जी। मेरी सहेली को तो आप ले आए। इसके बगैर पढ़ने का मेरा मन भी तो नहीं करता।“

“अब तो आप आदत डाल लो। पढ़ना तो इसके बगैर ही पड़ेगा। अगर अकेले मन ना लगता हो तो बोलो आपको भी!!!!”

“क्या क्या मतलब!” दोनों सहेलियां हैरानी से समीर की ओर देखती हुई बोली।
“अरे भई मेरा मतलब यह है कि कोई लड़का ढूंढ दे इनके लिए भी!” उसकी बात सुन सभी ठहाके मारकर हंस पड़े।

“नहीं जीजाजी, हम तो अकेले ही सही। वैसे भी 1 साल ही रह गया है। उसके बाद तो क्या पता नौकरी लग जाए। फिर तो सांस लेने की फुर्सत भी ना होगी बच्चों की चिल पौं में! मेरी सहेली को तो अभी से ही इस नन्हे शैतान कि पूरे दिन चिल पों झेलनी पड़ेगी।“
“तू भी रुक जा कुछ दिन तेरा भी टाइम आएगा !” मंजू हंसते हुए बोली।
क्रमशः
सरोज ✍️