Pyar ki Nishani - 7 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार की निशानी - भाग-7 - अंतिम भाग

प्यार की निशानी अंतिम भाग
मंजू ने यह बात अपनी सास को बताई तो वह भी सुन कर बहुत खुश हुई “अरे वाह बहू, तेरी सहेली तुझे फिर से मिल गई। यह तो कमाल की बात है । चलो तुम्हें फिर से अपनी सखी का साथ मिल गया। अच्छा लगा सुनकर। “
अब तो दोनों परिवारों में खूब मेलजोल बढ़ गया था। मंगला का साथ पाकर मंजू फिर से खिल उठी थी।
अपनी बहू को इतना खुश देख कर मंजू की सास भी कम खुश ना थी।
आज मंगला का जन्मदिन था। स्कूल आते ही मंजू ने उसे गले लग ढेर सारी शुभकामनाएं दी और बोली “और बताओ आज का क्या प्रोग्राम है। कहां लेकर जा रहे हैं हमारे जीजा जी और गिफ्ट क्या दिया तुझे !”
“हां भई, हां सब बताऊंगी। जरा सांस तो ले। शाम को एक छोटी सी गेट टूगेदर है, तुझे भी आना है उसमें।“

“बिल्कुल आऊंगी। फिर दोनों सहेलियां मिलकर मस्ती करेंगे। अच्छा जरा गिफ्ट तो दिखा। क्या मिला है तुझे आज!”

“वह मैं तुझे लंच टाइम में दिखाऊंगी। अभी प्रिंसिपल आ गई तो सारा मजा किरकिरा हो जाएगा।“
कह दोनों सहेलियां अपनी-अपनी कक्षाओं में चली गई।
लंच में मंगला ने अपने गले की चेन व लॉकेट मंजू को दिखाते हुए कहा “देख तो कैसा लग रहा है, मेरा बर्थडे गिफ्ट।“
उस चेन लॉकेट को देखते ही एकदम से मंजू के चेहरे पर उदासी छा गई। फिर खुश होने की कोशिश करते हुए वह बोली “बहुत ही सुंदर है यह और तूने इसे पहना है तो इसकी शोभा और बढ़ गई।“
मंगला उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए बोली “क्या बात है मंजू तू एकदम से इस चेन को देखकर उदास क्यों हो गई। वैसे मैं भी पागल हूं। अपनी खुशी में , मैं भूल ही गई थी कि तुझे यह सब बातें समीर की याद दिलाती होगी। मुझे माफ कर दे मंजू। आगे से मैं ध्यान रखूंगी।“
“अरे नहीं नहीं पगली। ऐसी कोई बात नहीं। भला तेरी खुशियां मेरी उदासी का कारण बन सकती है कभी। ऐसा सपने में भी मत सोचना।“
“फिर तू एकदम से इतनी भावुक क्यों हो गई थी। बताएगी नहीं क्या मुझे!”
“मंगला, ऐसी ही चेन और लॉकेट मुझे समीर ने हमारी एनिवर्सरी पर गिफ्ट की थी। सबसे बड़ी बात उस लॉकेट की डिजाइन में मेरा समीर और विहान तीनों के नाम इस तरह लिखे थे कि देखकर वह डिजाइन ही लगता था। जो बहुत ही गहराई से देखने पर किसी को समझ आ सकता। जब समीर ने मुझे उस लॉकेट की खासियत बताई तो मैं भी हैरान रह गई थी। मैं खुद भी उसमें तीनों नाम नहीं ढूंढ पा रही थी। समीर ने जब उसे मेरे गले में पहनाया, सच मैं खुशी से झूम उठी थी। तब समीर ने मुझे कितने प्यार से कहा था कि यह मेरे प्यार की निशानी है। इसे तुम हमेशा अपने गले में पहन कर रखना।
मैं उसे हमेशा पहन कर रखती थी। उसे पहन ऐसा लगता जैसे समीर मेरे दिल के पास ही है।"
“लेकिन मंजू, मैंने तो तुझे इतने दिनों से कोई चेन लॉकेट पहने नहीं देखा। जब समीर ने तुझे इतने प्यार से गिफ्ट किया था तो तू उसे पहनती क्यों नहीं।“
“पहनती तो तब ना ,जब वह मेरे पास होता। अपनी नादानी की वजह से ,मैं समीर के साथ-साथ उस लॉकेट को भी खो बैठी!”
“क्या मतलब! मैं समझी नहीं!”
“तुझे तो पता है हमारी शुरुआती जिंदगी कैसी रही ।उसके बाद विहान आ गया तो हम कहीं बाहर ही नहीं जा पाए थे। विहान के 2 साल का होने पर हमने ऊटी का प्रोग्राम बनाया।
मैं पहली बार उनके साथ बाहर घूमने जा रही थी। सच तुझे बता नहीं सकती ,कितनी खुश थी मैं। खूब खरीदारी की मैंने वहां जाने के लिए । मैं इन पलों को यादगार बनाना चाहती थी। जाने से 1 दिन पहले मैं पार्लर गई थी। वहां फेशियल कराते हुए मैंने वह चेन और लॉकेट उतार कर अपने पर्स में रख दिया और जल्दबाजी में वहां से निकलने से पहले चैक भी नहीं किया। उसके बाद मार्केट से शॉपिंग कर जब मैं घर
आई तो मुझे ध्यान आया। मैंने पर्स चेक किया तो उसमें कुछ नहीं था। अपने उस चैन लॉकेट को ना पाकर मैं बहुत परेशान हो गई और वापस पार्लर गई और उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे टका सा जवाब दे दिया कि हमें नहीं पता । आपको यहां से निकलने से पहले चेक करना चाहिए था। हो सकता है, आपने उसे कहीं और गिरा दिया हो।
मेरा दिमाग घूम रहा था। मुझे सच में कुछ याद नहीं आ रहा था कि वह वही गिरा या मार्केट में । मुझे इतना परेशान देखकर समीर समझाते हुए बोले “ तुम, उसके लिए इतना परेशान हो रही हो, मैं और बनवा दूंगा । “
“समीर , तुमने इतने प्यार से मुझे उसे गिफ्ट किया था। सच उसका यूं खो जाना, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा। पता नहीं मन में बुरे से ख्याल आ रहे हैं।“
“यार तुम भी ना! एक चेन के खो जाने पर कहां से कहां पहुंच गई। इसमें बुरे ख्याल की क्या बात है। मैं तो यही हूं ना। भूल जाओ उसे और कल की तैयारियां करो। मैं नहीं चाहता उसे सोच कर तुम उदास रहो। ऐसे तो हमारे टूर का मजा किरकिरा हो जाएगा। चलो मुस्कुराओ अब।“ उनकी बात सुन मैं मुस्कुरा तो दी लेकिन सच कहूं मंगला मुझे अच्छा नहीं लग रहा था।“
1 सप्ताह के लिए हम ऊटी गये। मेरे जीवन के सबसे हसीन
व यादगार पल। जिन्हें मैं कभी नहीं भूल सकती। लगता था मैं जन्नत में आ गई हूं। मैं सारी बातें भूल गई। बस मैं ,समीर और विहान।
खुशी और प्यार मेरे चारों ओर बिखरी हुई थी। दुख का कोई नामोनिशान ना था। सच मैं अपने को कितना भाग्यशाली समझ रही थी लेकिन मुझे नहीं पता था कि बदकिस्मती धीरे धीरे मेरी ओर कदम बढ़ा रही है।
ऊटी से आने के कुछ दिन बाद ही समीर का एक्सीडेंट हो गया और वह मुझे अकेला......!” कहते हुए मंजू की आंखों में आंसू आ गए।
मंगला ने उसे ढांढस बंधाया। फिर मंजू अपने आंसुओं को पोंछ मुस्कुराते हुए बोली “देख मैंने तुझे भी दुखी कर दिया। तू तो आज के दिन के मजे ले।“
“मजे मैं अकेली नहीं तेरे साथ लूंगी और सुन क्या तू बिल्कुल जोगन बनी हुई है।
आज मेरे साथ तू भी पार्लर चलेगी। मैं अपनी मंजू को उसी रूप में देखना चाहती हूं। जिस रूप में हमारे जीजा जी तुम्हारे दीवाने थे।“
“अरे नहीं पगली! मैं जैसी हूं ,वैसी ही ठीक हूं। अब मेरा कुछ भी करने का बिल्कुल मन नहीं करता।“
“ठीक है तो मैं भी कोई अपना बर्थडे नहीं मनाऊंगी ।‌ तू मेरे सामने यूं उदास और दुखी रहे और मैं खुशियां मनाऊं। इतनी स्वार्थी में नहीं।“
मंगला उदास होते हुए बोली।
“आज अपनी बर्थडे गर्ल को मैं दुखी नहीं करना चाहती। ठीक है, चल जहां तू लेकर जाए। जैसा तू बनाना चाहेगी बना दे ।आज तेरा दिन है। तेरी हर बात मंजूर।“
सुनकर मंगला खुश होते हुए उसके गले लग गई

मंगला, मंजू को अपने साथ छुट्टी के बाद पार्लर लेकर गई। रास्ते में उसने मंजू को बताया कि “मैंने एक नया पार्लर ढूंढा है। अभी शुरू किया है उसनेे और बहुत अच्छा डिस्काउंट दे रही है। काम भी सही करती है। आज देखना, कैसा मेक ओवर करवाती हूं तेरा।“
“अरे ,अब किसके लिए!” कहते हुए मंजू चुप हो गई और फिर हंसते हुए बोली “हां हां आज छूट है तुझे! वैसे मंगला मुरझाया हुआ फूल कभी खिलता है क्या!”

मंगला, मंजू को जिस पार्लर लेकर आई, वह ज्यादा बड़ा तो नहीं था । हां ठीक-ठाक सा ही था। मंगला को देखते ही उसकी मालकिन ने गर्मजोशी से मंगला का स्वागत किया। “अरे दीदी आप, आइए ना!”
“हां भई , मुझे तुम्हारा काम पसंद आया। देखो, आज मैं अपनी फ्रेंड को लेकर आई हूं साथ।“
मंजू की ओर देखती ही पार्लर की मालकिन एकदम से सकपका गई। मंजू को भी उसका चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा।
इतनी देर में मंगला बोली “चल मंजू आज तेरे बालों की अच्छी सी कटिंग करवाती हूं।“
“ ठीक है लेकिन हां बालों की लंबाई कम नहीं होनी चाहिए क्योंकि समीर को मेरे लंबे बाल बहुत पसंद थे।“
जब वह महिला मंजू के बालों की कटिंग कर रही थी तो अचानक से मंजू को याद आया कि यह तो वही लड़की है जो उस पार्लर में काम करती थी। जिसमें उसकी चेन और लॉकेट गुम हुए थे। तभी मंजू की नजर उसके गले में झूलते चेन और लॉकेट पर पड़ी। उसकी नजर उस लॉकेट पर ही ठहर गई। वह ध्यान से उसे देखने लगी।
हां, यह तो मेरा ही लॉकेट है। इस पर तो हम तीनों का ही नाम है यानी इसने ही मेरे पर्स से!!!!!
मंजू को गौर से वह चेन और लॉकेट देखते हुए, उस महिला ने उसे छुपाने की कोशिश की तो मंजू एकदम से उठ खड़ी हुई और बोली “सुनो तुम सात आठ पहले भारत नगर कॉलोनी में डिवाइन पार्लर में काम करती थी ना!”

“नहीं मैडम, आपको गलतफहमी हुई है।“ वह महिला नजर चुराते हुए बोली।
“नहीं मुझे कोई गलतफहमी नहीं हुई। मैंने तुम्हें पहचान लिया है। उस दिन भी तुमने ही मेरा फेशियल किया था।“

“नहीं मैडम, मैं तो कभी भारत नगर कॉलोनी में गई नहीं और ना ही मैंने कभी उस पार्लर का नाम सुना!”
“क्या बात है मंजू! तू इससे ऐसे पूछताछ क्यों कर रही है!”

“मंगला, आज मैंने तुझे अपने चेन और लॉकेट के बारे में बताया था ना। इसके गले में देख, यह मेरा ही चेन और लॉकेट है और यह वही लड़की है, जो उस दिन उस पार्लर में मेरा काम कर रही थी।“
सुनकर मंगला की आंखें फटी रह गई।
अपने आप को फंसा देखकर वह महिला गुस्सा होते हुए बोली “आपको कोई हक नहीं बनता। किसी पर इस तरह का बेबुनियाद आरोप लगाने का। ऐसे डिजाइन वाले चेन और लॉकेट तो कितने ही मिल जाएंगे। क्या वह सब आपके ही होंगे।
आपको काम नहीं करवाना तो मत करवाइए लेकिन मेरा नाम बदनाम ना करें।“
“हां मंजू कह तो यह सही रही है। हो सकता है, तुझे कोई गलतफहमी हुई हो!”
“नहीं मंगला! मैंने तुझे लॉकेट की खासियत बताई थी कि उसका डिजाइन कुछ इस तरह बना है कि उसमें हम तीनों के नाम थे तो देख मैं दिखाती हूं तुझे ऐसे डिजाइन वाले लॉकेट तो बहुत हो सकते हैं लेकिन नाम तो नहीं!”

उसने उस महिला को वह लॉकेट दिखाने के लिए बोला तो वह आनाकानी करने लगी। अब मंगला को भी यकीन हो गया था। उसने उसे कहा “जब लॉकेट तुम्हारा है तो लॉकेट दिखाने में इतनी परेशानी क्यों! हम छीन थोड़ी ना रहे हैं! सिर्फ देख ही तो रहे हैं। तुम्हारे चेहरे के भाव देख कर तो लगता है, मंजू सही कह रही है। दिखाती हो या पुलिस को बुलाएं। फिर वही तुम्हारा इंसाफ करेगी।“
मंजू ने मंगला को उस लॉकेट के डिजाइन में तीनों नाम दिखाएं तो मंगला भी हैरान रह गई।
अब तो उसे भी बहुत गुस्सा आया और वह उस पर नाराज होते हुए बोली “मैं तो तुम्हें बहुत ही शरीफ समझती थी। मुझे नहीं पता था तुम्हारे शरीफ चेहरे के पीछे एक दूसरा ही रूप छुपा है। कस्टमर कितना विश्वास करके तुम्हारे पास आता है और तुमने अमानत में खयानत कर दी। शर्म आनी चाहिए तुम्हें! अब जब तुम्हारी चोरी पकड़ी ही गई तो चुपचाप यह मेरी सहेली की अमानत उसे वापस कर दो।“

“मैडम, आप भी अपनी सहेली का साथ दे रही हो। मैं सही कह रही हूं। यह मेरा ही चेन और लॉकेट है। आपके कहने भर से मैं अपनी चीज इनको कैसे दे दूं । “ कहते हुए इस बार उसकी आवाज थोड़ी नरम थी।
“ठीक है! फिर तो हमें पुलिस बुलानी पड़ेगी। वही सच झूठ से पर्दा उठाएगी। हम तो सोच रहे थे कि तुम्हारा नया नया काम धंधा है। तुम्हारा नाम खराब ना हो। उस दिन तुमने यह भी तो बताया था ना कि तुम पिछली गली में ही रहती हो और अभी शादी हुई है तुम्हारी। देख लो, पुलिस आएगी तो कितनी बदनामी होगी। क्या इज्जत रह जाएगी तुम्हारी ससुराल वालों के सामने और यह तो तुम्हें भी पता है कि यह चेन लॉकेट मेरी सहेली का ही है। जो तुमने उस दिन इसके पर्स से निकाल लिया था। हम यह बात साबित भी कर देंगे।
हमें हमारा सामान चाहिए। हमें शौक नहीं है, पुलिस बुलाने का। अब तुम देख लो। तुम्हें थाना पुलिस करना है या चुपचाप यहीं पर मामला रफा-दफा करना है। “ मंगला सख्ती से बोली।

मंगला की बात सुन उस महिला के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगी। उसकी आंखों में आंसू आ गए। वह हाथ जोड़कर माफी मांगते हुए बोली “मुझे माफ कर दो दीदी! मुझे माफ कर दो! उस दिन यह चेन और लॉकेट देखकर मेरा ईमान डगमगा गया था। यह आपका ही है। यह लो आपकी अमानत लेकिन पुलिस को मत बुलाना। मैं तो जीते जी मर जाऊंगी मुझे बचा लो दीदी। वादा करती हूं ,आज के बाद कभी ऐसा नहीं करूंगी।“
मंगला ने वह चेन और लॉकेट मंजू को देते हुए उसकी ओर देखा और पूछा “बता मंजू क्या करना है इसका!”
“मंगला मुझे मेरी खोई हुई, अमानत मिल गई। इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए। पर एक बात मैं तुमसे कहना चाहती हूं। कभी आगे से इस तरह की बदनीयती मत दिखाना। तुम्हारे लिए तो यह मात्र महंगी सोने की वस्तु थी पर इसकी कीमत उस इंसान से पूछो जिसकी वह चीज है। कितनी मेहनत से ऐसी चीजें बनती है। कितनी ही भावनाएं व यादें उससे जुड़ी होती है। तुम्हारे थोड़े से लालच के कारण मैं कितना परेशान व दुखी रही। तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकती । फिर भी मैं तुम्हें माफ करती हूं क्योंकि तुमने मुझे आज मेरी वह अनमोल चीज लौटाई है, जो मेरे जीवन भर की पूंजी है। “
मंगला ने अपने हाथ से वह चेन और लॉकेट मंजू के गले में पहना दिया।
उसे पहनकर मंजू को ऐसे लगा जैसे समीर ने अपनी बाहें उसके गले में डाल दी हो। उस लॉकेट के अपने सीने पर स्पर्श से उसे समीर के अपने दिल के पास होने की सुखद अनुभूति हो रही थी। ऐसा लग रहा था मानो समीर फिर लौट आया हो। अपने जीवनसाथी की खूबसूरत निशानी फिर से पाकर, आज मंजू का चेहरा अपने आप ही गुलाब की तरह खिल उठा था।
मंगला भी अपनी सखी के चेहरे की रौनक व खुशी देखकर मुस्कुरा उठी।
समाप्त
सरोज ✍️


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