स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem (the socialization) - 34 Nirav Vanshavalya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem (the socialization) - 34

प्रभु आचार्य ने कहा लोहे की इन दीवारों की कसम खाके आप एक दूसरे से वादा करते हैं कि यहां जो भी बात हुई है वो बात आने वाले 122 वर्षों तक हमारे होठो से नहीं निकलेगी.

सबने अपने-अपने हाथ आगे बढ़ाएं और एक साथ बांधकर कसम खाई कि यह बात हम 15 लोगों से बाहर कोई सवा पंदर वा इंसान भी हमें जान नहीं पाएगा.

यदु शेखर ने पानी की बोतल हाथ में ली और एक बूंद भरकर बोतल टेबल पर रखी और महावाक्य के समान उच्चारण किया.

यदु बोले तो यह तय रहा की भारतवर्ष में प्रफुग की पहल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया करेगी और, आने वाले समय में एशिया में एक सोशलाइजेशन की शुरुआत होगी.


हिंसा और आतंकवाद से भरा यह खोखला मानवतावाद अब खत्म होगा और समाजवाद की सीमाएं और भी व्याप्त होगी.


सभी ने एक साथ नाद पुकारा "हरि इच्छा बलियसी"

थोड़ी देर के बाद 15 के 15 को मानो सांप सूंघ गया हो वैसे लिफ्ट ने खड़े दिखाई दे रहे और लिफ्ट सुनसान ऊपर चढ रही है.

प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को आज के कुछ लोग दूसरे मानते हैं और उनके प्रति की एक नुक्ताचीनी के केनद्र पर अटके हैं. यह बात सच है कि यदि प्रफुग नहीं आता तो उनका आनंद अनंत है, किंतु यदि प्रफुग आता है तो उनके पास इस केंद्र से उतरने के लिए कोई सीढ़ी ही नहीं है. उन्हें भी यदि कोई परिबल संभाल कर समतल पर ला सकता है तो वह भी केवल प्रफुग ही है.


आखिरकार वो दिन आ ही जाता है जब,अदैन्य को एडिशनल प्रूवन कांग्रेस मेंबर के तौर पर शपथ दिलाया जा रहा है.

दोस्तों यहां कांग्रेस का अर्थ इसी नामक पार्टी से नहीं है, दरअसल, पार्लियामेंट का दूसरा नाम कांग्रेस है. आज भी अमेरिका में परलामेंट को कांग्रेस के नाम से ही बुलाया जाता है.

अदैन्य ने शपथ ग्रहण के उपरांत कहां हो एक आदि प्रफुग कर्मी को करनी चाहिए, और संसार ने भी वह सारी बातें सर्वभौमा स्वरूप में स्वीकार ली.

कुछ ही महीनों में रिजर्व बैंक ने ब्रिटेन के जेवियर्स प्रेस को प्रफुग की सेल्फ करेंसी छापने का काम सौंपा और वह भरत पहुंच भी गई.

कहते हैं मुश्किल और चुनौती दोनों में कुछ खास अंतर नहीं होता. यह केवल एक मनोविज्ञान है कि यदि आप उससे भागते हो तो वह मुश्किल( मुसीबत) है, और यदि सामना करते हो तो चुनौती.

अदैन्य के प्रचंड भाग्य में से चुनौतियों ने बेरोकटोक आवागमन शुरू कर दिया है. अब यह मसला क्या है वह कुछ पन्नों के बाद ही पता चलेगा.

अहम बात यह साबित नहीं होती कि एक लाख करोड़ की सेल्फ करंसी कॉरपोरेट सेंटर में शुरू हो गई है. जानी थी अब चेक से पेमेंट करने वालों के पास दूसरा ऑप्शन भी आ गया है, वह चाहे तो कैश पेमेंट कर सकते हैं और वह भी नोन विदाउट पेमेंट यानी कि सेल्फ करेंसी से.

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की अपनी करेंसी नोट्स भारतवर्ष के व्यापारी ग्रुहो में चलनी शुरू हो गई है मगर फिर भी अहम बात यही साबित होती है की भारतवर्ष में अनोउल्लेख का आरंभ हुआ है. वही अनोंललेख यानी कि अन मेंशन जिसने भारतवर्ष की सालों से सोई हुई करंसी नोट्स वापस दिलाने का काम किया.

प्रफुग की शुरुआत होने के महेस 3 महीनों में ही अनमेंशन के द्वारा भारत सरकार को 37000 करोड़ की डेट करेंसी या डेड इकोनामी वापिस मिलती है जिसके 20% भारत को टैक्स रेवन्यू के तौर पर मिलते हैं और बाकी की सारी करेंसी वाइट गिनी जाती है. जिससे उत्पादन गृह के काम 3 गुने रफ्तार बन जाते हैं. क्योंकि अब वे लोग चाहे तो हंड्रेड परसेंट डाउन पेमेंट से चीज वस्तुएं खरीद सकते हैं.