Nainam Chhindati Shasrani - 30 books and stories free download online pdf in Hindi

नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 30

30

पाँच-सात मिनट में ही जेलर साहब ने अपने सभी अतिथियों के लेकर अपने ऑफ़िस में इस अंदाज़ में प्रवेश किया मानो कुछ भी नहीं हुआ था | दोनों महिलाओं को हाथों में पानी के ग्लास थामे देखकर वे बोल उठे ;

“अरे ! मैडम, आप लोग इतने शांत क्यों हैं ?पीजिए पानी-वानी !अरे भाई शंकर जी, बाहर से कुछ ठंडा-वंडा मँगवाओ ---“

“आइए, सर बैठिए –“जेलर ने दामले से कहा व स्भीकों बैठने का इशारा किया | 

कितने सहज थे सब लोग ! समिधा का सिर चकराने लगा | 

“कोई –एक औरत को इतनी बुरी तरह मार सकता है क्या ?”समिधा के मुँह से निकल ही तो गया | वह बहुत देर से ऊपर से शांत थी किन्तु मन हलचल से भरा हुआ था | 

जेलर ने अपने माथे से पसीना पोंछा, अपनी कुर्सी से खड़े होकर कोने में रखी मेज़ से पानी का जग उठाया और बिना कोई उत्तर दिए बाहर की ओर चले गए | दो मिनट बाद ही वापिस आकार उन्होंने पानी का जग उसके स्थान पर रखा और अपनी कुर्सी पर आकार बैठ गए | उनके चेहरे पर पानी दिखाई दे रहा था, पता चल रहा था कि वे पानी से मुँह धोकर आए हैं पर उन्होंने अपने चेहरे के पानी को पोंछने का उपक्रम नहीं किया था | 

“जी, मैडम –पहले मैं भी यही सोचता था कि औरतों को कोई कैसे इस प्रकार बेदर्दी से मार सकता है ?पर अब सब समझ में आया, मेरी विवशता है ---इसके बिना गुज़ारा नहीं है | ”कहकर उन्होंने एक लंबी साँस ली | 

सब गुमसुम से बैठे थे | जेलर वर्मा ने बताया कि वह औरत अपने प्रेमी के लिए ताड़ी की बोतल लेकर आई थी और उसे जेल के भीतर से निकलने वाले गंदे गटर से लगे मोटे पाइप के द्वारा अपने प्रेमी को पहुँचने की चेष्टा कर रही थी | यह इन कैदियों की बीबियों या प्रेमिकाओं का रोज़ाना का काम है| जेल के अंदर ताड़ी पीकर ये आदिवासी उत्तेजित हो जाते हैं और अंदर मारपीट यहाँ तक कि खून-खराबा भी कर डालते हैं | 

उस सबके लिए जेलर ही ज़िम्मेदार है | यदि वे उन्हें कंट्रोल नहीं कर पाते हैं तो उनसे पूछताछ की जाती है | यहाँ तक कि उनकी नौकरी पर भी बन आती है | न चाहते हुए भी उनके लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि वे उनके लिए यमदूत का चोला पहन लें | 

जेलर वर्मा ने दुखी मन से बताया कि वहाँ पर इस प्रकार के कांड लगभग प्रतिदिन होते हैं | पहले दो-एक बार उनको चेतावनी दी जाती है, बाद में उनके साथ कठोर व्यवहार करना पड़ता है | यही उनकी नियति लगती है | वह खूँखार रूप से पिटने वाली औरत पाँचवीं बार पकड़ी गई थी | 

जेलर के मुख पर थकान पसरी हुई थी | अब वे एक ठोकर मारने वाले यमदूत से एक बेचारे से व्यक्ति जे रूप में परिवर्तित हो गए थे | 

अब तक शंकर जी एक क़ैदी के साथ कोल्ड-ड्रिंक्स लेकर पहुँच गए थे और अपने हाथों से सबको प्रेम व मनुहार से शीतल पेय पकड़ाते हुए जेलर अब एक स्नेहमय, संवेदनशील यजमान में परिवर्तित हो गए थे | 

“मैडम ! मैं अंदर से हिल जाता हूँ जब मुझे इस प्रकार व्यवहार करना पड़ता है, पर विवश हूँ | यह मेरा कर्तव्य है कि जेल के अंदर कोई दुर्घटना न होने दूँ | ”जेलर वर्मा ने संनिधा को ग्लास पकड़ाते हुए कहा था और समिधा उनके अंतर की सच्चाई उनके मुख पर देखकर अपने विचार पर झिझक रही थी जो उसने बिना सोचे-समझे, बिना उनकी परिस्थिति जाने उनके प्रति बना लिया था –सोचने लगी थी, जीवन की वास्तविकता के बारे में –एक आदमी को समयानुसार न जाने कितने मुखौटे बदलने पड़ते हैं !!

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