Nainam Chhindati Shasrani - 29 books and stories free download online pdf in Hindi

नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 29

29

उन्होंने ऑफ़िस से बाहर निकलकर देखा, कुछ पुलिस वाले इधर-उधर टहल रहे थे | यह शायद उनका प्रतिदिन का कार्यक्रम होगा | वे दोनों आगे की ओर बढ़ चलीं, काफ़ी बड़ा स्थान था | जगह-जगह ऊँचे और सफ़ेद पायजामे, आधी बाहों के कुर्ते तथा सफ़ेद टोपी पहने क़ैदी इधर से उधर घूम रहे थे| 

यह बड़ा सा स्थान जेल का भीतरी भाग था | इसी लाइन में आगे जाकर एक और ‘गेट’था, बिलकुल वैसा ही सींखचों वाला दरवाज़ा था जैसे बहुधा जेलों का होता है| इसके अतिरिक्त एक और भी लोहे का पूरा बंद दरवाज़ा था जो भीतर की ओर खुलता था और इस समय वह खुला हुआ था | 

सींखचों के बंद दरवाज़े के दूसरी ओर संतरी खड़े थे, उन दोनों के कंधों पर बंदूकें लटकी हुईं थीं | उनके पास ही एक-एक कुर्सी भी रखी हुई थी | इस समय दोनों संतरी जेल के लोहे वाले मज़बूत दरवाज़ों में से बाहर खड़ी औरतों को कठोर भाषा में वहाँ से जाने के लिए कह रहे थे पर वे अपने प्रियजनों से मिलवाने के लिए उनसे चिरौरी सी कर रही थीं | 

उन दोनों संतरियों के बीच में एक दुबला-पतला सा क़ैदी भी दबा-बुचा सा खड़ा था जिसने अपना हाथ बाहर खड़ी हुई औरतों में से एक स्त्री के हाथ को लोहे की सलाखों के बीच में निकालकर कसकर पकड़ा हुआ था | वह औरत उस क़ैदी से मिलने आई थी, दोनों की आँखों में एक बेचैन बेचारगी का भाव पसरा हुआ था | 

उस बेचारे से क़ैदी को देखकर पुण्या फुसफुसाई ;

“दो पाटों के बीच में साबुत बचा न कोय---हैं न दीदी ?”समिधा ने उसके चुलबुलेपन पर आँखें तरेरीं | 

कुछ अन्य औरतें भी दीङ्क्चोन वाले दरवाज़े के बाहर खड़ी अपने प्रियजनों केपी बुलवाने की चिरौरी कर रहीं थीं | उन्होंने अपने हाथों में कपड़े की फटी-पुरानी थैलियाँ पकड़ी हुईं थीं जिनमें अनुमानत: वे अपने परिजनों के लिए कुछ खाद्य-पदार्थ लेकर आईं थीं | वे औरतें बंदूकधारी सिपाहियों से जूझ रही थीं और अपने सामने हाथ पकड़े हुए युगल को दिखाकर अपने प्रेमी या पति से न मिलवाने के लिए उन्हें कोस रही थीं | दोनों सिपाही बारी-बारी से उनको घुड़क रहे थे और ‘जेलर साहब ‘ का खौफ़ दिखाने की चेष्टा कर रहे थे परंतु वे टस से मस होने का नाम नहीं ले रही थीं | 

सिपाहियों ने अब अंदर-बाहर हाथ पकड़ने वाले प्रेमी-युगल को लताड़ना शुरू कर दिया था और कुछ क्षणों में उनके हाथ ज़बरदस्ती छुड़वाकर भीतर वाले क़ैदी को अंदर की ओर धकेल दिया था | वे दोनों स्वयं लोहे के दरवाज़े के अंदर टंकार खड़े हो गए थे | अब बाहर खड़ी औरतें सिपाहियों को गाली देने पर उतारू हो गईं थीं और वहीं ज़मीन पर मिट्टी में पसर गईं थीं लेकिन स्ंतृयोन पर उनके इस व्यवहार का कोई असर दिखाई नहीं दे रहा था | इस प्रकार के नाटक देखना और करना उनका रोज़ाना का काम था | 

समिधा और पुण्या के लिए इस प्रकार का दृश्य नया था | दोनों को बेचैनी सी होने लगी थी | उन्हें कहीं भी अपने सहयोगी दिखाई नहीं दे रहे थे | अचानक उन्हें चिल्लाने और मार-पीट की आवाज़ें सुनाई दीं | दोनों के कान खड़े हुए, उन्होंने आवाज़ की ओर क़दम बढ़ाए | ये आवाज़ें पीछे की ओर से आ रही थीं जिसके लिए उन्हें काफ़ी बड़ा चक्कर काटकर पीछे पहुँचना था | दोनों के क़दम तेज़ी से उस ओर बढ़ चले | 

जल्दी-जल्दी क़दम बढ़ाकर दोनों महिलाएँ उस पीछे के स्थान पर पहुँचीं जहाँ से आवाज़ें आ रहीं थीं | यह स्थान जेल के पीछे का स्थान था जहाँ ‘किचन-गार्डन’जैसा कुछ बनाया गया था | काफ़ी छोटे-बड़े पेड़-पौधे थे, काफ़ी बेलें लगी हुईं थीं जिन पर लौकी, तोरी आदि झूम रही थीं | लेकिन यहाँ का दृश्य दिल दहला देने वाला था | 

इस समय जेलर वर्मा अपनी पूरी पोशाक में सज्जित थे | उनके पैरों में भारी बूट थे जिनसे वे ज़मीन पर पड़ी हुई एक औरत को दनादन मार रहे थे | उस औरत ने चीख़ –चीख़कर वातावरण दहला रखा था | अहमदाबाद से आने वाली टीम के सदस्य गुमसुम से एक ओर चुपचाप खड़े थे| यह दृश्य देखकर दोनों महिलाएँ सहम गईं | 

पिटने वाली औरत के माथे से खून निकाल रहा था पर जेलर साहब का क्रोध शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था | समिधा ने दामले की ओर देखा जो ‘किचन-गार्डन’के एक कोने में जाकर सिगरेट के कश लेने लगे थे | 

“ये सब क्या है ?और आप सब लोग ये क्या तमाशा देख रहे हैं ?”समिधा अपन्र स्वभाव के अनुसार असहज हो गई थी | पीछे-पीछे पुण्या भी आकर चुपचाप, सहमी सी खड़ी हो गईउसका चुलबुला चेहरा भी अब सपाट दिखाई दे रहा था | 

“मैडम ! ये उनका काम है, हम कैसे बीच में बोल सकते हैं ?”

समिधा चुप हो गई, दामले ठीक ही तो कह रहे थे | वह चुपचाप उधर से निकाल आई, पीछे-पीछे पुण्या भी आ गई थी | ज़मीन पर पड़ी औरत छटपटा रही थी, कराह रही थी | जेलर वर्मा उस समय साक्षात कल दिखाई दे रहे थे | उन्होंने उस पिटने वाली औरत को घुड़कते हुए कहा था कि यदि उन्होंने उसे फिर इधर देख लिया तो न जाने क्या कर डालेंगे ? फिर अपने सिपाहियों को बुलाकर उस बिलखती हुई औरत को घसीटकर गेट के बाहर फेंक देने का आदेश देकर वे दामले की ओर सहज रूप से मुखातिब हो गए थे | 

दोनों भद्र महिलाएँ धीरे-धीरे चलकर वर्मा जी के ऑफ़िस में पहुँच गईं थीं | दोनों मन से थककर चूर थीं ।उनके मुँह से एसएचबीडी नहीं निकल रहे थे, भीतर कुछ कुलबुला सा रहा था | कमरे में बैठे क्लर्कनुमा आदमी ने उन्हें देखा और उठाकर पानी दिया फिए आकार अपने स्थान पर बैठ गया | 

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