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दोहरी खुशी

रतन और राखी का नवविवाहित जोड़ा आज बहुत खुश था। दोनों की शादी का पहला दिन था। रतन भावी जीवन के लिए कितने अरमान सजा रखा था, यही सोचते हुए पुरानी सुखद यादों में खो गया..."कैसे उसने राखी से शादी की मनुहार की थी, और राखी ने साफ मना कर दिया था। लेकिन रतन के एनडीए में चुने जाने के बाद राखी का मन बदला। लेकिन एक शर्त पर कि पहले नौकरी ज्वाइन करोगे उसके बाद शादी। रतन ने शर्त सहर्ष स्वीकार कर ली थी।"
रतन पहली सुहाग रात को यादगार बनाने के लिए भिन्न - भिन्न योजनाएं बना रहा था। उसी समय उसके मोबाइल की घंटी बजी। देखा की उसके हेडक्वार्टर से मेल आया है। चीन के साथ स्थिति असामान्य होने के कारण उसे शीघ्रातिशीघ्र रिपोर्ट करने का आदेश था।
रतन मेल पढ़कर अति सक्रिय हो गया तथा नौकरी पर जाने की तैयारी करने लगा। रतन को सक्रिय देखकर उसकी भाभी मंद - मंद मुस्कुरा रही थी..."क्यूं देवर जी आज तो मन में लड्डू फूट रहे होंगे?"
"नहीं भाभी वो बात नहीं है"
" फिर क्या बात है देवर जी?"
वहीं पर खड़ी रतन की माँ , देवर - भाभी का वार्तालाप सुनकर हल्के से मुस्कुरा दी।
"भाभी दरअसल अभी हेडक्वार्टर से मेल आया है, मुझे तुरंत रिपोर्ट करना है"
रतन की माँ चौंक कर बोल पड़ी
"क्या?..."
"पर आज तो तेरी..."
रतन की मां अधूरा वाक्य बोलकर , राखी के कमरे की ओर सहानुभूति जताते हुए देखकर अपने बहते आंसुओं को रोकने का भरपूर असफल प्रयास किया।
रतन खुद से ही बात करने लगा...आज मेरे जीवन का अनमोल पल है, लेकिन देश की मिट्टी से भला अनमोल क्या होता है। इसी अवसर के लिए तो मैंने आर्मी ज्वाइन की है। लेकिन राखी को क्या जवाब दूंगा , उसे कैसे समझाऊंगा। उसने कितने अरमानों से, कितनी बेसब्री से आज के दिन का इंतज़ार किया था। उससे क्या कहूं कि मैं तुम्हे छोड़कर जा रहा हूं। उसका तो दिल ही टूट जायेगा। हे भगवान ... अब इस उलझन से तू ही निकाल। रतन राखी के प्रति अपराध बोध से भरा हुआ, नज़रें झुकाकर राखी के कमरे में प्रवेश करता है। कमरे का दृश्य देखकर रतन चौंक जाता है। राखी आरती का दिया जलाकर , चेहरे पर गर्वित मुस्कान के साथ जैसे रतन की ही प्रतीक्षा में थी।
ये क्या? ...तुम्हे मालूम है... मैं...
"मां जी ने मुझे सब बता दिया है"
"रतन...शायद अभी तक तुमने मुझे समझा नहीं।
इतने बड़े यज्ञ में जा रहे हो और मैं दुखी होकर विदा करूंगी?"
" आज मैं बहुत खुश हूं, एक सैनिक की अर्धांगिनी बनकर। आखिर इस पुण्य काम में तुम्हारे कारण मैं भी शामिल हूं , इसका मुझे गर्व है और मैं अपने आप को सौभाग्यशाली समझती हूं"
" तुम कहीं दूर थोड़े ही जा रहे हो। इस मां के घर से भारत मां की सेवा में ही तो जा रहे हो, जो हम सब की मां है। फिर कैसी चिंता।"
"इस मां की सेवा का सौभाग्य मुझे मिला है और भारत मां की सेवा का सौभाग्य तुम्हे"
"रतन...सच में हम कितने सौभाग्यशाली हैं"
रतन की आंखों से गर्व की गंगा - जमुना बह निकली। उसकी छाती और चौड़ी हो गई। वह देश पर मर - मिटने के लिए दुगुने उत्साह से भर गया। वह कृतज्ञता से भरकर राखी के पांव में झुकने ही जा रहा था कि राखी ने रतन के हाथों को थामकर उसके गले लग गई। रतन की मां यह दृश्य देखकर , रतन की "मां" और राखी की "सासू मां" होने पर गौरवान्वित महसूस कर खुशी से फूली नहीं समा रही थी।

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