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नया सवेरा

भास्कर और चांदनी के बीच रोज - रोज की बहसबाजी से दोनों की एकमात्र संतान किरण जो की अभी चौथी क्लास में थी , परेशान होती रहती। उसके समझ में नहीं आता था कि कौन ग़लत है और कौन सही। हालांकि किरण दोनों की लाड़ली थी। अब तो भास्कर और चांदनी के बीच तलाक तक की नौबत आ पहुंची थी।
दो दिन से भास्कर को हल्की बुखार सी महसूस हुई। अस्पताल में टेस्ट कराने पर पता चला कि वह कोरोना पॉजिटिव है। घर पर ही अपने को आइसोलेट कर लिया। अब भास्कर चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था। नज़ाकत को समझते हुए उसने भी खामोशी ओढ़ ली। बर्तन , टॉयलेट - बाथरूम सब अलग। नफ़रत से ही सही लेकिन चांदनी समय - समय पर खाना , गरम पानी , फल - फूल का बराबर ध्यान रखती। भास्कर की तरफ से बिल्कुल शांति होने से चांदनी को काफी राहत थी। धीरे - धीरे चांदनी के मन में भास्कर के प्रति भरी कड़वाहट दूर होने लगी। उधर भास्कर को चांदनी के ऊपर आश्रित न होकर अपना सारा काम खुद ही करना पड़ रहा था। भास्कर को अपना सारा काम करते हुए चांदनी की चिड़चिड़ाहट समझ में आने लगी। कुछ दिनों में भास्कर पूर्ण स्वस्थ हो गया तथा उसकी दूसरी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई।
इधर बचते बचाते चांदनी भी कोरोना पॉजिटिव हो गई। चांदनी के आइसोलेट होते ही घर का सारा काम ठप होते - होते बच गया , क्योंकि अब सारा काम भास्कर अपने हांथ में ले लिया। अपने आइसोलेशन के दौरान किए काम का अनुभव काम आया। भास्कर चांदनी का पूरा खयाल रखता। कभी अंदाजे में रोटी कम बन जाती तो चांदनी व किरण को खाना खिलाने के बाद बिना चांदनी को पता चले ही एक रोटी से काम चला लेता। इस दरम्यान उसे एक गृहणी के त्याग का पूरा भान हो गया तथा सोचने लगा चांदनी से भी तो कभी रोटी , सब्जी , दाल या चावल भी तो अंदाजे से कम बन जाता होगा। लेकिन उसने कभी मालूम नहीं होने दिया। मैं ही नाहक कभी कम नमक की कभी खराब खाने की उलाहना देता रहता था। फिर भी वह चुप रह जाती थी। उसके इस त्याग पर अब भास्कर को और प्यार आने लगा।
उधर भास्कर की बिना शिकायत की गई सेवा से चांदनी का मन कृतग्यता के भाव से भर जाता है। मन ही मन भास्कर के प्रति अपनत्व का भाव उमड़ पड़ता है। लेकिन दोनों अपनी - अपनी भावनाओं को व्यक्त करने से हिचकिचा रहे थे तथा ऐसे दिखावा कर रहे थे जैसे किसी को कोई फर्क ही ना पड़ा हो। बहरहाल चांदनी कुछ दिनों बाद पूर्ण स्वस्थ हो गई तथा उसकी कोरोना रिपोर्ट भी निगेटिव आई।
अरे तुमने किरण को देखा क्या ? यही तो मैं तुमसे पूंछने वाली थी। किरण को कहीं नहीं देखकर दोनों किरण को ढूंढते हुए पूजा कक्ष में गए। वहां मंदिर के सामने किरण आंख बन्द कर प्रार्थना कर रही थी... हे भगवन अब मेरे घर में ऐसे ही शांति रखना तथा मेरे मम्मी - पापा अब कभी नहीं लड़ाई करें , ऐसे ही मिलकर रहें और मुझे दोनों खूब प्यार करें। भले कोरोना इतना गन्दा है लेकिन इसके कारण ही मम्मी - पापा एक हुए हैं तो कोरोना तुमको भी थैंक्यू।
पीछे खड़े भास्कर ने कातर दृष्टि से चांदनी को देखा जैसे कह रहा हो... चांदनी मैंने तुम्हारी भावनाओं को समझे बिना तुम पर ज्यादती की है , मुझे हो सके तो माफ़ कर देना। चांदनी भी कृतज्ञ नजरों से भास्कर को देखती है जैसे कह रही हो... मैंने भी तुम्हारे डांट में छुपे हुए प्यार भरे अपनत्व को महसूस न कर सकी। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना। किरण पीछे मुड़ कर अपने मम्मी - पापा को साथ देखकर बहुत खुश होती है तथा दोनों से लिपट जाती है। इस समय कोई किसी से बात नहीं कर रहा होता है सिर्फ आंसू बोलते हुए नज़र आते हैं।
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