Marks - Season-1 - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

मार्क्स - Season-1 - भाग - 2



घर में कदम रखते ही नादिर की नजरें एक जगह ठिठक गईं और मन डर से भर गया । वह सहमे हुए कदमों से घर के अंदर आया और सोफे के सामने उसे उसके पिता, बड़े - बड़े कदमों से गुस्से से भरे हुए चहल कदमी करते दिखे । उसकी मां , नादिर के पिता को समझा रही थीं, कि शांत रहें और समझदारी से काम लें । शायद अब तक नादिर के टेस्ट का रिजल्ट घर तक भी पहुंच गया था । आते हुए नादिर की नजरें सिर्फ अपने मां बाप पर थी । तभी उसके पिता की नज़र नादिर पर गई और वे गुस्से से उसकी तरफ बढ़े । अपनी तरफ अपने पिता को आता देख , नादिर के पैर वहीं जम गए और नजरें जमीन पर गड़ गई । हिम्मत ही नहीं हुई नादिर की , आगे कदम बढ़ाने की और अपने पिता से नजरें मिलाने की । नादिर के पिता , संदीप श्रीवास्तव नादिर के सामने आकर रुके और गुस्से से घूरते हुए उससे बोले ।

संदीप - आ गए साहब जादे....। इस दिन के लिए पैसे बर्बाद किए थे मैंने , कि तुम एक छोटे से टेस्ट में पास तक न हो पाओ । इस लिए तुमपर इतने पैसे खर्चता हूं , कि तुम नाक कटाओ मेरी , पूरे स्कूल और मेरे कलिग्स के सामने । देखो सारे बच्चों को , कितने अच्छे - अच्छे नंबर लेकर आते हैं । टेस्ट में 20 आउट ऑफ 20 । एग्जाम्स में , 100 आउट ऑफ 97,98,99 और तो और 100 भी लाते हैं। और एक तुम हो , जो पास भी नहीं हो पाते । क्यों करते हो तुम ऐसा...??? कोई कमी रखी है हमने , तुम्हारे खर्चों में या फिर तुम्हारी फरमाइशों में...??? इकलौती संतान हो तुम हमारी...., कितने अरमान हैं तुम्हें लेकर हमारे , लेकिन तुम....., तुमने तो सारे अरमान ही डुबो दिए हमारे । सोचा था , अच्छे इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन करवाऊंगा अपने बच्चे का , तो वह मुझसे भी बड़ा आदमी बनेगा और हमारी सारी इच्छाएं पूरी करेगा । लेकिन यहां हमारा बेटा तो टेस्ट तक में ढंग के नंबर नहीं ला पा रहा है । ऐसी संतान होने से अच्छा है, कि हम निःसंतान ही रहते । इतना अफसोस तो न होता हमें , अपने बेटे की हरकतों पर, अपनी परवरिश पर ।

संदीप जी की बात सुनकर नादिर के आसूं भर आए । वहीं ऐसी बातें सुनकर , सुप्रिया ( नादिर की मां ) दोनों बाप बेटे के पास आई और संदीप से बोली ।

सुप्रिया - ये कैसी बातें कर रहे हैं आप..???? ऐसे अशुभ शब्द तो अपने मुंह से मत निकालिए संदीप जी ।

संदीप ( सुप्रिया की तरफ देखकर ) - तुमने ही बिगाड़ रखा है इसे । जब - जब कुछ बोलता हूं , तो हमेशा कहती हो कि सुधर जायेगा । लेकिन हुआ क्या आज तक ऐसा..??? अभी कोचिंग क्लास का टाइम हो रहा है , साहबजादे निकल जायेंगे , कोचिंग क्लास । ( नादिर की तरफ मुड़कर ) इतना पैसा बर्बाद होता है स्कूल की फीस , कोचिंग क्लास और इसके अलावा अगल से भी.... कहीं ये चाहिए , कहीं वो चाहिए के खर्चों में.... , कि मैं तंग आ गया हूं । हमने भी पढ़ाई की थी , पर तुम लोगों से कम खर्चे किए और अच्छी पढ़ाई की , तभी आज तुम लोगों को इतने अच्छे स्कूल में पढ़ा पा रहे हैं । अभी देख लो....., स्कूल टाइम से पूरा आधा घंटे लेट आया है ये । पूछो न इससे कहां था ये...??? ( नादिर चुप - चाप वैसे ही खड़ा रहा , कुछ नहीं कहा उसने ) जब कुछ पूछो , तो जवाब नहीं रहता इसके पास । दिनभर यहां से वहां घूमना.....। घर आए तो रूम में पड़े रहना । अरे जब नहीं करनी पढ़ाई तो बता दो न । घर में ही बैठा दें तुम्हें । क्यों इतने खर्चे उठाकर पैसे और समय बर्बाद करें...??? मन तो कर रहा है कि या तो खुद जहर खा लूं , या फिर इस ओलाद को दे दूं । नाक कटा कर रख दी मेरी , सबके सामने । फोन पर फोन आ रहे हैं स्कूल से , कि आपका लड़का इस बार भी फेल हो गया । ( गुस्से से इधर - उधर देखते हुए ) आज....., मैं इसे छोडूंगा नहीं । इसे आज मैं सुधारकर ही रहूंगा , फिर चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े ।

यही कहते हुए संदीप ने, पास पड़ी एक पतली सी छड़ी उठाई और जैसे ही नादिर को मारने को हुए, कि सुप्रिया ने रोक लिया और तुरंत कहा ।

सुप्रिया - क्या कर रहे हैं आप..???? जवानी की दहलीज पर आ चुके बेटे को मारने का इल्जाम आप अपने सिरे क्यों ले रहे हैं ...??? हमने उसे पढ़ाने के लिए खर्च उठाया, पाला - पोसा बड़ा किया .... । अब अगर हमारा बेटा हमारे अहसान नहीं समझ रहा , हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा , तो हमारी क्या गलती...??? क्यों हम बेवजह टेंशन लें...??? क्यों अपने हाथों इसे मारने का पाप करें..??? मत मारिये इसे....., अब तक नहीं सुधरे हैं तो अब मार खाने से क्या ही सुधरेंगे..???? जाने दीजिए....., जो लिखा होगा इसकी किस्मत में वही होगा । आप चलिए...., जब से आए हैं दो घूंट चैन से पानी तक नहीं पिया है । चलिए...., चेंज कीजिए , मैं आपके लिए चाय के साथ कुछ हल्का फुल्का लाती हूं ।

सुप्रिया के कहने पर संदीप ने छड़ी नीचे कर ली और नादिर को घूरते हुए अपने कमरे में चले गए । जबकि नादिर अपनी मां को हैरानी से देखते हुए, अभी कहे गए उनके शब्दों के बारे में सोच रहा था । संदीप के जाते ही सुप्रिया नादिर की तरफ मुड़ी और नादिर को खुद को देखते हुए पाया , तो बोली ।

सुप्रिया - मुझे ऐसे क्या देख रहा है..??? कितने सालों से समझा रहे हैं हम लोग तुम्हें , अच्छे नंबर लाओ...., ढंग से पढ़ाई करो । लेकिन नहीं.....। तुम्हें तो अपने मन की ही करनी है ।

नादिर ( अविश्वास से ) - मॉम....., आप भी...!!!

सुप्रिया ( गुस्से से ) - क्या आप भी...???? इतने सालों से देखती आ रही हूं तुम्हें , ढीठ हो गए हो । समझ ही नहीं आती तुम्हें अपने मां बाप की बात, कि मां बाप जो कहते हैं, भले के लिए ही कहते हैं । लेकिन नहीं... , हमारी बात तो सुनना ही नहीं है । कब तक चुप रहूं आखिर मैं , कभी न कभी तो गुस्सा मुझे भी आयेगा न । चल जा अब......, फटाफट रेडी हो और निकल कोचिंग क्लास के लिए , इससे पहले कि तुम्हारे डैड तुम्हें घर में देखें । बचा लेती हूं हर बार...., आज भी बचा लिया । लेकिन अब आगे से नहीं बचाऊंगी । अगर तुम चाहते हो , कि घर में शांति बनी रहे , तो ढंग के मार्क्स लाओ और नाम रोशन करो अपने डैड का । नहीं तो झेलो अपने डैड की डांट....। चलो, जाओ जल्दी.....।

इतना कहते हुए सुप्रिया किचेन में चली गई और नादिर कुछ पल तक उसे बस देखता ही रहा । जो मां अब तक उसे समझती थी , उसे सपोर्ट करती थी , पिता की डांट से बचाती थी , वही अब खुद उसपर गुस्सा कर रही है । यही सब सोचते हुए नादिर अपने रूम में आ गया । बैग साइड में रखा , रेडी हुआ , नोटबुक्स अपने कोचिंग बैग में रखे और जैसे ही रूम से बाहर जाने को हुआ , कदम अपने आप ही रुक गए । उसने अपने रूम का दरवाजा अंदर से लॉक किया और अपने बिस्तर पर बैठकर रोने लगा । आंखों से आंसू लगातार बहने लगे और मुंह से आवाज़ न निकले सोचकर उसने अपने मुंह पर हाथ रख लिया ।

बहुत बुरा लगा उसे आज । स्कूल से आने के बाद उसे सुप्रिया हमेशा पानी को पूछती, खाने को कहती , नहीं आता तो जबरदस्ती ले जाती । खुद उसकी सारी तैयारी करती और प्यार से उससे बात करती और उसका सामान रेडी कर उसे स्कूल या कोचिंग क्लास , जहां भी जाना होता, भेजती । लेकिन आज...., आज न उसने पानी पूछा और न खाना । यहां तक कि उससे ये तक नहीं पूछा , कि " बेटा , आज देर कैसे हो गई आने में , कहां था , सब ठीक तो है न..??? " मतलब नादिर को आज लग रहा था , कि " उसके पढ़ाई के खराब मार्क्स, सालों के मां बेटे के प्यार पर हावी हो गए " । बहुत बुरा लग रहा था नादिर को , इतना कि इस उम्र में , जहां बच्चे घर की जिम्मेदारियां लेना सीखते हैं , उस उम्र में वह फूट - फूटकर रोने पर मजबूत हो चुका था । क्या बीत रही थी इस वक्त उस पर , ये वही जानता था । नादिर ने फटाफट से आसूं पोंछे और बिना किसी से कुछ कहे कोचिंग क्लास के लिए निकल गया ।

संदीप एक इंजीनियर थे और सुप्रिया हाउस वाइफ । अच्छा घर खानदान था और पैसे भी बहुत थे । कोई कमी नहीं थी घर में , किसी भी चीज की । इकलौती संतान थी उनकी नादिर....., जो कि शादी के पांच सालों बाद बड़े पूजा पाठ और जतन के बाद हुई थी । अब नादिर इकलौता था , तो उससे उनकी उम्मीद भी कुछ ज्यादा ही थी । संदीप चाहते थे, कि उनका लड़का उनसे भी ज्यादा अच्छी पढ़ाई करे और उसका नाम रोशन करे । सुप्रिया भी अपने पति की बातों से सहमत थी , लेकिन कभी उसने नादिर पर इस बात के लिए दबाव नहीं बनाया था । लेकिन आज भी जब उसने नादिर के इतने कम नंबर देखे , तो उसे भी गुस्सा आ गया और उसने भी संदीप की तरह अपना धैर्य खो दिया और सुना दिया नादिर को चार बात , जो कि उसे नहीं कहनी चाहिए थी नादिर से , बल्कि समझानी चाहिए थी । उसकी इस नासमझी का असर नादिर पर क्या हुआ, ये तो दिख ही रहा था नादिर के स्वभाव से , कि उसे कितना बुरा लगा था । लेकिन अगर संदीप या सुप्रिया में से कोई एक ही समझदारी दिखा देता, तो शायद नादिर को इतना बुरा न लगता , जितना कि उसे आज लगा।

अगले दिन नादिर उदास था , वह अपने मां बाप के रवैए को अभी तक एक्सेप्ट नहीं कर पाया था । जिससे वह मन ही मन टूट सा रहा था । लंच के वक्त सुहाना और नादिर साथ लंच कर रहे थे । नादिर खाने को खा तो रहा था , लेकिन इस तरह जैसे उसे जबरदस्ती खाने को कहा जा रहा हो । एक दम धीरे - धीरे खोए हुए वह एक - एक बाइट मुंह में डाल रहा था , वह भी पराठे के साथ सब्जी और चटनी होने के बाद भी उसे सुखा खाए जा रहा था । सुहाना बहुत देर से उसे नोटिस कर रही थी । अंत में उसने अपना और नादिर का टिफिन साइड में रखा और नादिर का चेहरा अपनी तरफ घुमाया । जिससे नादिर वर्तमान में लौट आया । सुहाना ने उससे कहा ।

सुहाना - क्या हो गया है तुझे नादिर..??? हमेशा बड़े चाव से लंच करने वाला लड़का, आज खाने को ऐसे खा रहा है, जैसे वह इसे खाना ही न चाहता हो । क्यों नादिर..??? क्यों..??? क्या हुआ है...??? बता न...!!!

नादिर ( नजरें चुराकर ) - कुछ नहीं ....। तू लंच कर ....।

सुहाना - मुझे भी नहीं बताएगा...????

नादिर ने कुछ नहीं कहा । सुहाना के बहुत ज्यादा जिद करने पर उसने कल शाम की सारी बात बता दी और निराशा से कहा ।

नादिर - मैं अपने मॉम डैड के सपनो को पूरा नहीं कर पा रहा हूं सुहाना । मुझे समझ नहीं आ रहा , कि मैं क्या करूं..??

सुहाना ( सोचते हुए ) - नादिर...., तुझे नहीं लगता , कि तेरे मॉम डैड तुझसे कुछ ज्यादा ही एक्सपेक्टेशन रख रहे हैं । मतलब यार कोई ऐसा कैसे कर सकता है , कि इतने बड़े बेटे को मारने के लिए स्टिक उठाए और वो भी सिर्फ इस लिए, क्योंकि तेरे कम मार्क्स आए हैं । मुझे न ये कुछ ज्यादा ही लग रहा है ।

नादिर - नहीं सुहाना , कुछ ज्यादा नहीं है । मॉम डैड हैं वो मेरे, हक है उनका मुझपर । वो ऐसा कर सकते हैं । गलती मेरी है , कि मैं उनकी एक्सपेक्टेशंस पूरी नहीं कर पा रहा हूं । ( आत्मविश्वास से भरकर ) बट बस सुहाना ....., बस.....। अब से मैं खूब मेहनत करूंगा और अच्छे मार्क्स लेकर आऊंगा, जिससे उन्हें मुझपर प्राउड फील हो । मिस्टेक्स मुझसे हुई हैं , तो ठीक करना भी मेरी रिस्पॉन्सिबिलिटी है। मैं इस बार अच्छे मार्क्स लाऊंगा...., जरूर लाऊंगा ।

सुहाना ( मुस्कुराकर ) - और इसमें तेरा साथ मैं दूंगी । मैं हेल्प करूंगी तेरी स्टडीज में ।

नादिर ( मुस्कुराकर ) - थैंक्यू सो मच सुहाना । बिकॉज...., इतनी अच्छी फ्रेंड हर किसी के नसीब में नहीं होती । पर मेरे है....। तू हर वक्त , हर सिचुएशन में, हमेशा मेरे साथ खड़ी रहती है । थैंक्यू वेरी मच सुहाना , फॉर योर सपोर्ट ।

सुहाना ( मुंह बनाकर ) - शूज उतारूं या फिर स्केल निकालूं..????

नादिर ( नासमझ सा ) - मतलब..???

सुहाना - मतलब ये नादिर जी , कि आप फ्रेंडशिप के रूल्स भूल गए हैं । अब याद तो दिलाना ही होगा न , तो मेरा तरीका तो तू जानता ही है । इस लिए बता, किससे मार खाना पसंद करेगा...???

नादिर ( हंस कर ) - बस ...., बस देवी जी । गलती हो गई , माफ कीजिए । अगली बार से ऐसा नहीं होगा । ( फिर अपनी बाहें फैलाकर ) लेकिन तू आजा, गले लग जा मेरे । वकाई में तुझ जैसी फ्रेंड पाकर मैं धन्य हो गया । आ जा....।

सुहाना मुस्कुराते हुए उसके गले लग गई । दोनों ने लंच फिनिश किया और क्लास की ओर चल दिए.....।

क्रमशः


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