हेतम सिपाही की हत्या राजनारायण बोहरे द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हेतम सिपाही की हत्या

हेतम

हेतम जो आरंभ से एंटी डकैती मूवमेंट टीम नम्बर सोलह का मैम्बर रहा और जिसने अब तक खूब बहादुरी और साहस दिखाया , अब हमारी पुलिस टुकड़ी में नही था ।
मुझे बहुत याद आती उसकी। आम पुलिसियों की तमाम बुरी आदतों के बाद भी दिल का अच्छा आदमी था हेड कानिस्टिबल हेतमसिंह ।
एम0ए0 पास करने के बाद पच्चीस साल की उमर तक जब कोई नौकरी न मिली तो वह कानिस्टिबल के पद पर भरती हो गया था। फिर एक बार मौका मिला तो उसने एक डाकू दल को मार गिराने में बहादुरी का परिचय दिया सो पुलिस विभाग के "समयपूर्व पदोन्नति "के नियम के मुताबिक उसे हेड कानिस्टिबल बना दिया गया, यानी कि तीस साल का होते-होते हेतम दीवान बन गया । यह देख दूसरे सिपाही उससे जलते थे, क्योंकि पूरी संभावना थी कि अगर डाकू कृपाराम से भिड़न्त हुई और खुदा-न-खास्ता किसी तरह डकैत कृपाराम गिरोह मारा गया तो हेतम का समय पूर्व दारोगा बनना तय था। इसी अन्देसे से बड़ा दारोगा रघुवंशी और छोटा दरोगा शर्मा तक चिढ़ते थे उससे।
हेतम प्रायः खिसियाया हुआ रहता और मौका पाकर मुझसे अपने मन की पीड़ा कहता । पुलिस समेत हमारे देश के सारे सशस्त्र बलों में छोटे कर्मचारियों का कितना शोषण है, यह तथ्य मुझे उसी ने बताया । सेना में जहा नये रंगरूट बड़े अफसरों के घर पर दूब खोदने से लेकर मेम साहब के पेटीकोट धोने तक का काम करत हैं वही मोर्चे पर तैनात चिकने-चुपड़े जवानों को अपने अफसरों की समलैंगिक विकृतियों का भी सामना करना पड़ता है। सामना क्या भुगतना पड़ता है, जो लम्बे अरसे से स्त्रीसुख से वंचित हैं वे अप्राकृतिक तरीके से ऐसे बच्चों को तकलीफ देकर बलात्कार करते हैं।इस कारण तमाम शारीरिक और मानसिक रोग लगा बैठे हैं ऐसे बेचारे युवा और चिकने चुपड़े सैनिक।
हेतम को पिछले एक साल से छुट्टी नही मिली। उसके ब्याह को सिर्फ दो साल हुए थे जिसमें से पिछला एक साल वह मिट्टी मिटटी के ऊंचे नीचे ढूहों, झाड़ियों और अंजान अजनबी जगहों पर सर्च करते बिताया था। एडी में तैनात कर्मचारी को अति आवश्यक सेवा नियम के पालन मे किसी भी तरह की छुट्टी नही मिलती, यह नियम एसी तलवार थी जिसका उपयोग उसका हर वह अफसर करता था जिससे भी हैतम छुट्टीयां देने की प्रार्थना करता, वह अस्वीकार कर देता।
हमारी टीम के सिपाहियों में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा होने के बावजूद उसे कोई तवज्जो नहीं देता था। रघुवंशी इंचार्ज तो प्रायः उसे ऐसे काम करने को कहता जो उसकी गरिमा के अनुकूल नही होते थे, सो दुखी रहता था हेतम।
प्रायः चिढ़चिढाता रहता वह। गालियां भी देता था वो बड़े अफसरों को। कई बार असी कारण हुक्मउदूली भी कर चुका था इसके लिए रघुवंशी का कोपभाजन बना वह। एक बार की बात है रघुवंशी ने उसकी डयूटी संतरी के लिए लगाई तो उसने निवेदन किया कि वह कल रात कर लेगा , आज दिन भर उसने ब्रत किया है सो बदन में ग्लुकोज की कमी है, हो सकता है कि चक्कर आ जाये । तो रघुवंशी ने बजाय उससे कुछ कहने के सीधे अपने कंटोल रूम मे बैठे डीएसपी को नमकमिर्च लगा कर यह प्रकरण कह सुनाया । वायरलेस पर ही डीएसपी ने हेतम को बहुत डांटा और एक तरफा सजा मुकर्रर कर दी उसके लिए-तुम्हारा एक इन्क्रीमेंट बंद किया जाता है।
उस रात बेहद उत्तेजित रहा हेतम।
यूं तो हर रात उसे गहरी नींद नही आती थी।
घर पर नवब्याहता पत्नी छोड़कर आया था, सो उसका मन सदा घर पर रखा रहता, थोड़ी बहुत तन्द्रा आती तो उसमें वह घर के सपने देखा करता । अन्यथा मैं जब भी रात को जगता मुझे हेम जागते हुए मिलता । मैंने कई बार समझाया कि लगाार जागते रहने से दिमाग पर गर्मी चढ़ जाती है, सो कुछ घण्टे सो लिया करो भाई, लेकिन उसके कान पर जूं तक न रेंगी कभी। वह रतजगा करता रहता अनवरत, हर रात ।
सचमुच उसकी भूख कम होने लगी थी। उसका गोरा उल्लसित रहने वाला चेहरा यकायक पीला पड़ने लगा था। आंखों के अर्द गिर्द कालापन छा गया था और गड्ढे मे धसी सेी दिखती थीं उसकी आंखें। कोई देखता तो समझता कि किसी अंन्दंरुनी से बीमारी से जूझ रहा है वह, लकिन मदद कोई न करता। बेहद तनाव में रहता और अकेले में बुदबुदाता रहता।

ऐसे में एक दिन सुबह उठते ही उसे यकायक भारी ठण्ड लगी। रास्ता चल रहे थे सब लोग। उसने मुझसे कहा। मैंने रघुवंशी से । आग्नेय नेत्रों से ताका उसे रघुवंशी ने । वह बेचारा नीचे देखने लगा । सारा बदन तप रहा था उसका और बुरी तरह कांप रहा वह। रघुवंशी ने डांटा उसे कि नाटक न करे चुपचाप चलता रहे । जबकि मुझे लग रहा था कि उसे मलेरिया हो बैठा है,नालों-नदियों किनारे डाकुओ की तलाश मे गश्त करते हुए हम चाहे जहां लेट-बैठ जाते थे और ऐसे में ही किसी मलेरिया वाहक मच्छर ने डंस लिया होगा उसे। लेकिन रघुवंशी की डांट कौन खाये ।
मैंने दयाद्र होकर हेतम का देखा तो डर सा गया । उसकी आंखें लाल अंगार हो रही थीं । फिर भी एक अनुशासित सिपाही का धरम निभाता पीठ पर पिट्टू लादे वह हमारे साथ चलता रहा था। अपने होठों पर बार-बार जीभ फिराते वह मुंह को तर करन का यत्न कर हा था, उसकी बोलत का पानी खत्म हो चुका था, और मेरा भी। ऐक अजीब सी बैचेनी से रघुवंशी को घूर रहा था वह । मैं डर गया।

हम लोग मुश्किल से सौ एक कदम चले होगे कि हेतम लड़खड़ाया और जमीन पर जा गिरा । मैं लपक कर उस पर झुका और उसे हिलाने लगा, लेकिन वह अचेत था और उसने आपनी आंखे नटेर दी थीं। कोत मास्टर के सुझाव पर सब रूके और हेतम का पुट्ठू उतार कर उसे समतल जमीन पर लिटा दिया गया । फिर समीप बह रही नदी से एक बाल्टी पानी उसके तपते बदन पर डालदिया गया। कपडों समेत हैतम बुरी तरह भीग गया। और पहले से ज्यादाकांप ने लगा तो मेंने सुझाव दिया कि उसके कपड़े ड़ बदल दिय जायें और उसे बुखार की टेवलेट दी जावे। र्क्वाटर मास्टर ने ऐसा ही किया । तीन कम्बल उड़ा दिये गएउसे और उसके हाल पर छोड़ कर बाकी लोग गप्प मारने लगे।
दस मिनट में हेतम को आराम मिला तो उसने आंख मिचमिचाई, सबने राहत की सांस ली । र्क्वाटर मास्टर ने उसे आराम से लेटे रहने को कहा तो रघवंशी भढ़क उठा ‘ एक आदमी की वजह से पूरी टीम नही रूकेगी ।’
‘हम दो लोग रूक जाते हैं सर, आप लोग आगे बढ़िये । हम पंचमसिंह के पुरा मे आकर मिलते है आपसे ।’ र्क्वाटर मास्टर ने रघुवंशी को साधा।
सुरक्षा के लिहाज से यह सुझााव उपयुक्त न था सो टीम ने आधा घण्टा बिश्राम किया और बुखार बहुत कम हो गया तो रघुवंशी ने हुकुम सुना डाला कि हेतम को जिला हेड क्वार्टर भेज दिया जाय।
एस ए एफ के असिस्टेंट कमांडेंट सिन्हा का कहना था कि यह काम भी हम आज की मंजिल वाले गांव पंचमसिंह का पुरा पहुंच कर ही करेंगे, मन मारके रघुवंशी ने यह सुझाव मान लिया ।
पंचमसिंह का पुरा पहुंचने में हेतम को जान पर बन आई ।
वायरलेस पर खबर की गई तो कंट्रोल रूप से हुकम मिला कि गांव के कोटवार के हवाले हेतमसिंह को करके आप लोग अगले दिन आगे बढ़ लें ।
कोट वार खुद डरा हुआ था, फिर भी हुकम सो हुकम। उसने गांव वालों से विनती कर एक बैल गाड़ी मांगी और हेतम सिंह की बीमार देह अल्लसुबह लाद कर जिला हेड र्क्वाटर के लिए रवानगी डाल दी।
हम लोग आगे बढ़ गये।
सात दिन बीत गये । हेतम की कोई खबर न थी । रघुवंशी जब भी वायरलेस पर बात करता मेरे कान उसी पर लगे रहेते ।
न रहा गया तो एक दिन मैन
ने रघुवंशी से हेतम की तबियत जानने का अनुरोध किया तो वह गुस्से से फट पड़, ‘ बुखार-सुखार कोई चिन्ता की बात है क्या? एक दो दिन आराम करेगा तो अपने आप ठीक हो जायेगा, लकिन मैंने तय कर लिया है कि उस मक्कार का अपनी टीम मे नही रखूंगा ।
मैं मन ही मन खुश था कि इस बहाने हेतम का घर जाने का मौका मिल जायगा।
आठवें दिन हमारी टीम मे खुसुर पुसुर थी। पता चला कि हेतम को घरवापसी के बजाय एडी टीम नम्बर दस के साथ तैनात कर चौबीस घंटे में आमद दर्ज कराने का हुकम हुआ है ।
सांझ तक जो खबर मिली उसे सुनकर मेरा जी ही धक रह गया । अपनी स्थिति बताने के लिये हेतम जब डीएसपी से मिला तो उन्होने उसकी एक न सुनी और उसे ही नयी जगह रवानगी डाल देने का निर्दश दिता और हेतम आपा खो बैठा उसने अपनी थ्री नॉट थ्री लोड की और दन्न से एक फायर सीधा डीएसपी का लक्ष्य बना कर कर डाला था । डीएसपी ता किसी तरह बच गया पर रिजर्व लाइन में बड़ा हल्ला मच गया था । हेतम को घेरने के लिऐ तमाम जवान इक्टठे होने लगे थे कि ईसी हताश, तनावपूर्ण और भयपूर्ण मनस्थिति में हेतम ने अपनी राायफल की नली अपनी ठोडी से लगा कर ट्रिगर दबा दियाथा ।
हेतम का भेजे समेत सारा चेहरा तरबूजा सा फट कर जमीन पर जा गिरा था और एक हंसता खेलता नवयुवक असमय और अकाल मौत का शिकार हा गया था ।
मैं सुना तो स्तब्ध रह गया ।
मुझे लग रहा था कि हाथ पांव से जान ही निकल ही गई है। इन्ही रास्तों पगडंडियों पर हमारे कदम से कदम मिलाकर चलता एक युवक आज लाश मे बदल गया था, वो अपने हाथों कितनी अविश्वनीय और अमानवीय बात थी यह-निजाम के लिए। मुझे लगा कि अब कुछ न कुछ हो कर रहेगा कुछ लोगों के खिलाफ।

मैं डर गया मन ही मन। रघुवंशी और दूसरें अफसरो क खिलाफ काय्रवाही को लेकर । हेतम की सद्यविवाहिता के भविष्य को लकर । दूसरे सिपाहियों पर अस घटनाके असर को लेकर ।
लेकिन रघुवंशी पर कोई असर न था, वह पहले की तरह पूरे उत्साह से दिन भर हुकम झाड़ता रहा। मैं हैरान था, ये व्यक्ति आदमी है या शैतान? कल तक हमारे साथ हंसता खेलता एक जांबाज युवक समाप्त हो चुका था और इस पर कोई असर न था । हां सिन्हा जरूर थोड़ा चिंतित था और इसी काण उसने पूरी टीम इकट्ठाकी और हेतम की इस काय्रवाही को गलत, गैर कानुनीऔर अनावश्यक बताया, उनके मतानुसार उसे बड़े अफसरो तक अपनी बात रखना थी, इस तरह अपनी कीमती जान नही देना थी।
वह मरा नही शहीद हुआ है और उसकी शहादत बेकार नही जान देंगे हम, उन हरामी डाकुओ को जल्द ही मार गिरायेगे अब।
हेतम की बहादुरी की तारीफ करते सिन्हा ने रघुवंशी से भी हेतम को श्रद्धांजलि दिलाई और उस िदन गश्त स्थगित रखी।
खाने को बैठे तो रघुवंशी ने खुद सबको खाना परोसा। लेकिन भूख किसे थी। हरेक ने कौर दो कौर निगला और उठ गया ।
बाद मे संतरी के रूप् मे रघुवंशी ने खुद को तैनात किया और जागने लगा दो सिपाहियो के साथ ।
......