नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 21 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 21

21

“समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करो अंताक्षरी लेकर प्रभु का नाम | ”

गाड़ी में अंताक्षरी शुरू हो गई | नई-पुरानी फिल्मों के गीत !सुरीली, बेसुरी आवाज़ें !तालियों की थाप, गाड़ी के साइड पर तबला बजाते, खिलखिल करते शाम के साढ़े पाँच बजे सब झाबुआ पहुँचे | अब तक यह काफ़िला एक परिवार में तब्दील हो चुका था | बंसी ने झाबुआ के ‘बाइपास’ पर गाड़ी रोक दी थी और झौंपड़ीनुमा छोटी सी दुकान पर चाय-पकौड़ों का ऑर्डर दे दिया गया था | 

गाड़ी से उतरकर सब अपने हाथ-पैर सीधे करने में लगे थे, दामले साहब के लिए मित्रों से बतियाना ज़रूरी था | बहुत सोशल थे वो, मित्रों से बतियाए बिना उनका खाना हज़म नहीं हो सकता था | पता नहीं, कहाँ से उनके चाहने वाले भी इक्ट्ठे हो चुके थे और गर्मागर्म चाय व पकौड़ों के साथ ठहाकों की आवाजों से माहौल गरमाने लगा था | 

संभवत: दामले साहब का दिन 6/7 घंटे बोलते हुए गुज़रता होगा पर उनका मुख थकता ही नहीं था | वैसे कहा तो यह जाता है कि स्त्रियाँ किसी भी स्थान को ‘मच्छी-बाज़ार’बनाने में चतुर होती हैं | यहाँ तो उल्टा ही हिसाब, किताब दिखाई देता था | समिधा ने अपने मन की बात पुण्या को बताई और दोनों ‘खी-खी’करके हँस पड़ीं | दामले ने पीछे मुड़कर दोनों महिलाओं को देखा भी पर बिना परवाह किए वे फिर से अपनी गप्पों में मशगूल हो गए | 

“साब!अभी अलीराजपुर तक पहुँचना है, तीन घंटे से ऊपर लग जाएँगे --| ”बंसी ने कई बार दामले को टोका पर उनका इतना मस्त स्वभाव था कि जब वे अपनी मित्र-मण्डली के साथ खो जाते, उन्हें वहाँ से घसीटना कठिन हो जाता | 

“अरे यार बंसी चिंता क्यों करते हो –देखो, अपनी दूसरी गाड़ी भी आ गई –अब यार !उन लोगों को भी कुछ चाय-पानी करने दोगे या नहीं ---क्यों मैडम ?”

दाँत निपोरते हुए दामले ने समिधा की ओर मुड़कर अपनी बात पर मुहर लगवानी चाही | 

“मैं नहीं जानती—हम दोनों आपकी ज़िम्मेदारी हैं | आपको यहाँ के माहौल के बारे में मालूम ही है | मैं क्या कहूँ ?” समिधा बोली | 

दोनों स्त्रियाँ मुँह घुमाकर दूर-दूर पसरे रेगिस्तान पर व्यर्थ ही अपनी दृष्टि घुमाने लगीं | वहाँ देखने योग्य कुछ था ही नहीं –दूर-दूर तक पसरा रेगिस्तानी इलाक़ा !जिसमें धूल-मिट्टी ऐसे उड़ रही थी जैसे दूर कहीं आँधी चल रही हो और वहाँ से उसके अवशेषों के रूप में मिट्टी उड़कर आ रही हो | 

“कई बार अपना जीवन रेगिस्तान नहीं लगता ?”समिधा उड़ती हुई धूल देखकर शून्य में खोने लगी | 

“जीवन का रेगिस्तान किसे कहते हैं, जीवन से ही बहुत अच्छी तरह सीख चुकी हूँ | ”शून्य में रेत के कणों को अपनी साँसों में उतारते हुए पुण्या ने एक निरीह सी साँस ली, वह जैसे उस समय वहाँ उपस्थित ही नहीं थी | उसकी दृष्टि सुदूर कहीं भटकने लगी थी | 

“पुण्या—क्या बात है ?”

“कुछ ख़ास नहीं दीदी, बस—यूँ ही कुछ गुज़रा हुआ याद आ गया | ”जैसे कुछ याद न करना चाहकर भी वह याद करने के लिए विवश थी | उसकी विवशता नमी बनकर उसकी आँखों में तैरने लगी | 

“दीदी ! रेगिस्तान तो अब ज़िंदगी का अंग बन गया है और सहारा भी !”

समिधा को बुरा लगा, शायद उसके ही कारण एक खूबसूरत युवा लड़की की आँखें निर्जीव रेगिस्तान में धँसने लगी थीं | चारों ओर सहरा था और भयानक साँय-साँय ! यह साँय-साँय कभी मनुष्य के मन में इतनी गहरी उतर जाती है कि उबरना कठिन हो जाता है | यह दशा कुछ ऐसी होती है मानो हम किसी गहरे कूएँ में उतर गए हों और अंत तक चेष्टा के बावजूद भी केवल गोल-गोल घूमते रह जाते हों | 

पुण्या इस प्रकार अपने बहकने से कुछ झेंप सी गई थी | समिधा उससे कुछ पूछती, इससे पूर्व उसने विषय ही बदल दिया मानो वह अपने मन की पीड़ा छिपा सकेगी | परंतु ऐसा होता नहीं है, एक बार आप किसी संवेदनशील व्यक्ति के समक्ष कुछ कह जाएँ तो वह बात न आप भूल पते हैं, न ही वह व्यक्ति!

“मैंने कई शूट किए हैं यहाँ पर, बहुत गड़बड़ जगह है | मि. दामले को जल्दी चलना चाहिए, कुछ भी हो सकता है | ”पुण्या की आवाज़ में खासी बेचैनी की झलक थी | 

“साब ! पुलिस स्टेशन पर भी टाइम लगेगा ---, अब चल निकलिए --“बंसी ने भी दामले को फेवीकोल से छुड़ाने की कोशिश ज़ारी रखी | 

“हाँ, भाई बंसी, क्यों चिंता करते हो –हम सब साथ हैं न --?”दामले की लापरवाही की बात सुनकर सामिधा खीज उठी | 

“ठीक है, फिर हम बंसी को लेकर जाते हैं | जब आपका भरत-मिलाप पूरा हो जाए तब दूसरी गाड़ी में आ जाइएगा –“ कहकर समिधा ने पुण्या का हाथ पकड़ा और गाड़ी की ओर चल दी | 

बहुत सफ़ल रहा उसका यह नाटक ! दामले लगभग भागने की मुद्रा में अपने दोस्तों को ‘बाय-बाय’कर बंसी को घूरते हुए गाड़ी में समा गए | प्रसून पहले ही बैठ गया था | दामले की हड़बड़ाहट देखकर दोनों महिलाएँ ठठाकर हँस पड़ीं | 

“आप इसी तरह पकड़ में आ सकते हैं मि. दामले ---“समिधा बोले बिना न रह सकी | 

“आपने इनकी नब्ज़ पकड़ ली है दीदी ---“पुण्या ने हँसते हुए कहा | 

“अरे ! मैडम, मरवाएंगी क्या ? आपको छोड़कर मैं जा सकता हूँ क्या ?”

-“हम तो जा सकते हैं | ” समिधा की हाज़िरजवाबी से गाड़ी में हँसी की तरंग पसर गई |