प्यार के वो पल डॉ मीरारामनिवास वर्मा द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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प्यार के वो पल

"मानसिकता"
दीनदयाल का कद रातों रात बढ़ गया । बेटी जानकी सिविल सेवा में पास हो गई । दीनदयाल की बेटी पुलिस अफसर बन गई। खबर पूरे जिले में फैल गई। "कमाल कर दिया बिटिया ने हमारे गाँव का नाम रौशन कर दिया । जानकी की सफलता पर महिलाओं में खास उमंग थी
सरपंच ने ऐलान किया बिटिया का पंचायत की ओर से सम्मान किया जायेगा ।
जानकी कक्षा में सदा अव्वल रहती थी। टीचर कहा करती थी "दीनदयाल जी आप की जानकी पढ़ाई में होशियार है।इसकी शिक्षा आगे भी जारी रखना।"
कालेज में अध्यापन कार्य करते हुए संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास करली। सफर इतना आसान नहीं था। उसकी मेहनत लगन के चलते कुदरत खुद रास्ता बनाती चली गई।
गांव दुल्हन की तरह सजा था। जानकी अंजान थी। वह हर के जैसे इस बार भी आई थी ।बस से उतरी गांव में प्रवेश किया।पंचायत भवन को सजाझजा देखा।लोग जमा थे।उसने सोचा शायद कोई शादी समारोह होगा ।
जैसे ही जानकी ने गांव में प्रवेश किया सरपंच ने अगुवाई की।जानकी ने अभिवादन किया "नमस्कार सरपंच चाचा! कैसे हो सब ठीक है"। बिटिया !सब ठीक है।" बधाई हों बिटिया तुमने पंचायत का नाम रौशन कर दिया।"
आप सब को खबर हो गई। हां बिटिया कल के पेपर में मोटे मोटे अक्षरों में तुम्हारी इस सफलता के बारे में लिखा था । पूरे गांव ने पढ़ा । तुम्हारे सम्मान में गाँव वालों ने एक छोटा सा कार्यक्रम रखा है ।ठीक है चाचा आती हूँ ।
हर बार की तरह माँ पिता भाई बहन जानकी को देख कर दौड़ पड़े ।दीदी आप पुलिस बन गई।आप वर्दी पहनोगी छोटा भाई चहका। हां आकाश मैं खाकी वर्दी पहनूंगी।मैं आपके आफिस आऊँगा। हां हां क्यों नहीं।
माँ ने पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा"हम सब बहुत खुश हैं बिटिया।" जानकी ने माँ बाबा के पैर छुए। दोनों ने आशीर्वाद दिया। आंखो में खुशी के आंसू थे।
"चलो बिटिया पंचायत भवन चलते हैं।
कार्यक्रम में जानकी का फूलमाला पहना कर स्वागत हुआ। बड़े बुजुर्गो ने आशीर्वचन कहे।पिताजी के बाद माँ को भी बोलने के लिए बुलाया गया । मां ने भाव विभोर होकर कहा" मेरे लिए तो ये औरत का दूसरा जन्म है ।घर के चौका चूल्हे से उठ कर दफ्तर की कुर्सी पर बैठेगी बिटिया।"
जानकी के बोलने की बारी आई। जानकी ने सबके प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा शिक्षा के बिना ये संभव नहीं था। इसलिए मैं चाहती हूँ गाँव के हर बालक, बालिका को शिक्षित किया जाए ।कन्याओं के साथ भेदभाव न किया जाए उन्हें भी पढ़ने का अवसर दिया जाए ।
कार्यक्रम समाप्त हुआ। जाते हुए कुछ लोग कह रहे थे ।काश! जानकी दीनदयाल जी का बेटा होती तो कितना अच्छा होता। ये मकाम उनके बेटे को मिला होता तो कुछ और ही बात होती ।
जानकी के कानों में पड़े शब्दों से मन कसैला हो गया । आखिर लड़के को ही क्यों उन्नत देखना चाहता है हमारा समाज। लड़कियों की उन्नति को क्यों कम समझा जाता है।पराये घर जाकर भी बेटी तो बाप की रहती है ना।
डॉ मीरा रामनिवास