मौत का खेल - भाग-14 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग-14

दलाल


रायना ने मेजर विश्वजीत को निराश नहीं किया। वह पलट कर शरबतिया के पास गई और वाइन की बोतल को गले से सटा कर शराब गिराने लगी। शराब उसके बदन से गुजरते हुए नीचे गिर रही थी।

राजेश शरबतिया बहुत ध्यान से रायना को देखे जा रहा था। रायना मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। शराब धीरे-धीरे उसके बदन से गुजरते हुए बहती जा रही थी। मेजर विश्वजीत भी यह मंजर देख कर मुस्कुरा रहा था। आखिरकार उसने आगे बढ़कर जाम रायना की नाभि के पास लगा दिया और वह धीरे-धीरे भर गया। उसके बाद उसने जाम को राजेश शरबतिया के होंठों से सटा दिया।

शरबतिया ने जाम को बाएं हाथ से थाम लिया और फिर उसने दाहिना हाथ रायना की तरफ बढ़ा दिया। इस बार रायना ने भी उसे नाउम्मीद नहीं किया। उसने भी बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया था।

“अच्छे दोस्त ऐसे ही होते हैं।” मेजर विश्वजीत ने मुस्कुराते हुए कहा।

“अफकोर्स!” राजेश शरबतिया ने मेजर विश्वजीत से जाम टकराते हुए कहा।

तभी एक लड़की मेजर विश्वजीत का हाथ खींच कर ले कर चली गई। कुछ दूर ले जाने के बाद लड़की ने शिकायती लहजे में कहा, “क्या मैं रायना से कम खूबसूरत हूं?”

“नो बेबी... ऐसा क्यों लगा?”

“तुम ने मेरे हाथ से एक बार भी वाइन नहीं पी।” लड़की ने इठलाते हुए कहा।

“बिल्कुल पीयूंगा... लेकिन रुको!” यह कहते हुए विश्वजीत ने कोट की जेब में हाथ डाला और जब उसका हाथ बाहर आया तो उसमें बहुत खूबसूरत टप्स थे। यह टप्स प्लेटिनम के बने हुए थे। इसमें खूबसूरत नीलम जड़े थे। उसने अपने हाथों से लड़की के कानों से झाले निकाल कर उसके हाथों में थमा दिया। इसके बाद अपने टप्स उसके कानों में डाल दिए।

टप्स पहना कर मेजर विश्वजीत ने अपना जाम उसकी नाभि से टिका दिया और लड़की बोतल को थोड़ी के पास ले जाकर वाइन उंडलने लगी। लड़की की उम्र महज 17 साल थी, लेकिन ऐसा लगता था कि वह वक्त से पहले जवान हो गई थी। वह एक बड़े हीरा व्यापारी की इकलौती बेटी थी। बाप कमाता था और बेटी ऐश परस्ती में पैसे लुटा रही थी।

मेजर विश्वजीत की पार्टियां ऐसी ही हुआ करती थीं। वह अपनी हर पार्टी में करोड़ों रुपये के गिफ्ट यूं ही लड़कियों पर लुटा देता था। यही वजह थी कि उसकी पार्टी में लड़कियों की तादाद बहुत ज्यादा हुआ करती थी। शायद ही कोई ऐसी लड़की बचती थी, जो उसके यहां से खाली हाथ जाती थी।

उसके पास पैसे की कमी नहीं थी। मेजर विश्वजीत को खुद नहीं मालूम था कि उसके पास कितनी दौलत है। उसे काफी प्रॉपर्टी पुश्तैनी तौर पर मिली थी। इनमें राजधानी के पाश इलाके में कई सारी काठियां और बंगले भी शामिल थे। उसके पास दो-दो फार्म हाउस थे। इसके अलावा कुछ मालवाहक पानी के जहाज भी उसके पास थे। वह खुद हथियारों का इंटरनेशनल दलाल था।

दिलचस्प बात यह भी थी कि वह खुद को दलाल ही कहता था। उसने कभी खुद के लिए ब्रोकर, एजेंट या लाइजनर जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया था। कुल मिला कर दिलदार और यारबाश आदमी था। रायना उसकी जान थी। यही वजह थी कि अबीर को वह फूटी आंख नहीं भाता था। यह बात मेजर विश्वजीत को भी पता थी। नतीजे में उसकी किसी भी पार्टी में अबीर नहीं बुलाया जाता था। आज की पार्टी में भी अबीर नहीं बुलाया गया था। रायना को भी इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि अबीर पार्टी में क्यों नहीं बुलाया गया है।

रात के दो बजने वाले थे और पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी। हर तरफ से बस वाइन की मदहोश कर देने वाली महक आ रही थी। लड़कियां शराब से तर बतर हो रही थीं। मेजर विश्वजीत की पार्टी की यही खूबी थी। यहां एक से बढ़ कर एक महंगी शराब परोसी जाती थी। शराब इस कदर इफरात होती थी कि जैसे नदी बह रही हो।

अचानक आर्केस्ट्रा चिंघाड़ उठा और फिर तमाम लोग डांस फ्लोर की तरफ बढ़ गए। राजेश शरबतिया और रायना साथ ही थे। डांस फ्लोर पर कदमों की लड़खड़ाहट के साथ कई जोड़े डांस कर रहे थे। जिन लड़कियों को साथी नहीं मिले थे, वह कुर्सियों पर बैठी इंतजार कर रही थीं। मेजर विश्वजीत बारी-बारी से सभी लड़कियों के साथ डांस कर रहा था। उसमें इस उम्र में भी गजब की फुर्ती थी।

तभी डांस फ्लोर पर एक पुतला आ कर गिरा। इस से लड़कियां घबरा उठीं और डांस रुक गया। म्यूजिक भी बंद हो गया था। मेजर विश्वजीत तेज आवाज में गरजा, “किस ने यह बेहूदगी की है?”

उसकी आवाज सुन कर हर तरफ सन्नाटा छा गया। लड़कियां डरी-सहमी सी डांस फ्लोर पर पड़े पुतले को देख रहीं थीं। उसकी दहाड़ सुनते ही दो नौकर तेजी से आए और पुतले को उठा कर चले गए। मेजर विश्वजीत बहुत गुस्से में नजर आ रहा था। पार्टी का मजा किरकिरा हो गया था।


लाश की तलाश


गुलमोहर विला पहुंच कर सोहराब ने कॉफी के लिए कहा और ड्राइंग रूम में बैठ गया। उसने कोतवाली इंचार्ज मनीष को फोन मिलाया और दूसरी तरफ से फोन पिक होते ही उसने कहा, “पुलिस की कुछ टीमें बना कर अभी तुरंत शरबतिया हाउस के आस-पास के सभी फार्म हाउस पर एक साथ रेड मारिए।”

दूसरी तरफ की बात सुनने के बाद उसने कहा, “मुझे फोन पर ही इत्तेला दे दीजिएगा।”

इसके बाद इंस्पेक्टर सोहराब ने फोन काट दिया।

सार्जेंट सलीम ने जेब से पाइप और वान गॉग तंबाकू का पाउच निकाला और पाइप में तंबाकू भरने लगा। फिर उसने पाइप सुलगाया और बड़ी अदा से धुंए के गोले छोड़ने लगा। सोहराब उसे देख कर मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। कुछ देर बाद कॉफी आ गई। सोहराब ने कॉफी बना कर सलीम को पकड़ा दी। सोहराब ने अपने लिए कॉफी बनाई और कुछ सिप लेने के बाद कहा, “कॉफी जल्दी खत्म करो अभी बहुत काम है।”

“मर गए....!” सलीम के मुंह से दर्द भरी कराह निकली।

“बेटे दम बचाकर रखो.. अभी बहुत काम करना है।” सोहराब ने हंसते हुए कहा।

“आधी जान तो आप यह एस्प्रे सो कॉफी पिला कर ही ले लेते है। मुझे न तो कलूटी लड़कियां पसंद हैं और न आप की यह कलूटी कॉफी।” सलीम न बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।

एस्प्रेससो ब्लै क कॉफी को कहते हैं। यह काफी हार्ड होती है। इसे बनाने के लिए गर्म पानी में एस्प्रे सो पाउडर घोलते हैं और उसमें चीनी मिला लेते हैं। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा यही कॉफी पसंद की जाती है।

“तुम्हें ब्लैक ब्यूटी के बारे में क्या पता! इसलिए ऐसी बेहूदा बात बक रहे हो!” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“हां आप तो बहुत ज्ञानी हैं लड़कियों के मामले में। आज तक कभी इश्क किया है किसी लड़की से!” सार्जेंट सलीम ने चिढ़ाने वाले अंदाज में पूछा।

“इश्क नाजुक मिजाज है बेहद.. अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता।” सोहराब ने जवाब दिया।

“ठीक है हम कमअक्ल ही सही... लेकिन मुझे इश्क से इश्क है।” सार्जेंट सलीम ने सीना फुलाते हुए जवाब दिया।

“कॉफी खत्म करो और निकलो तुरंत।” सोहराब ने गंभीरता से कहा।

“अब कहां जाना है?” सलीम ने आजिजी से पूछा।

“तुम श्मशान घाट जाओगे और मै लाश घर।” सोहराब ने गंभीर आवाज में कहा।

“मतलब?” सलीम ने पूछा।

“राजधानी के सभी श्मशान घाट में आज सुबह से अब तक जितनी भी लाशों का अंतिम संस्कार हुआ है, उनकी रिपोर्ट चाहिए। यह भी पता करना है कि वह लाशें कहां से आई थीं।”

“अब लाशें ही तलाशना बचा है!” सार्जेंट सलीम धीरे से बड़बड़ाया। उसके बाद उसने तेज आवाज में कहा, “यह कोई हंसी खेल नहीं है। राजधानी में सात श्मशान घाट हैं।”

“कोशिश तो करो प्यारे।” सोहराब ने उसे प्यार से थपथपाते हुए कहा।

सलीम मुर्दा सी सूरत ले कर उठ गया और फिर पलटते हुए कहा, “मैं घोस्ट से जाऊंगा।”

“जैसी आप की मर्जी।” इंस्पेक्टर सोहराब ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।

सलीम के रवाना होने के बाद सोहराब फैंटम लेकर लाश घरों की तलाशी लेने निकल पड़ा। सबसे पहले वह सदर अस्पताल पहुंचा। वहां उसने रजिस्टर चेक किया तो पता चला कि आज की तारीख में यहां 11 लाशें लाई गई थीं। इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने जेब से डायरी निकाली और उनकी ड्रार के नंबर नोट करने लगा। उसके बाद वह लाश घर की तरफ चल दिया।

इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने लाश घर के दरवाजे को हलका सा धक्का दिया। वजनी दरवाजा चूं की आवाज के साथ खुल गया। दरवाजे की इस आवाज में भी बड़ी वहशत थी। सोहराब लाश घर के भीतर प्रवेश कर गया। उसके जूतों की आवाज सन्नाटे में बहुत भयानक लग रही थी।

लाश घर के भीतर बहुत ज्यादा ठंडक थी। मौत जैसी ठंडक। कमरे के चारों तरफ दीवारों से सटी अलमारियां रखी हुई थीं। सोहराब डायरी से नंबर देख कर ड्रार खोल-खोल कर आज लाई गई लाशो को चेक करने लगा।

इंस्पेक्टर सोहराब ने सभी 11 लाशों को चेक कर डाला, लेकिन उसकी तलाश पूरी नहीं हुई। वह नाउम्मीद हो कर बाहर की तरफ चल दिया। वह दरवाजे के बाहर निकल ही रहा था कि उसे अंदर किसी के चलने की आवाज सुनाई दी। वह पलट पड़ा। वहां उसने जो देखा उसे अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था।


*** * ***


पार्टी में पुतला किसने फेंका था?
सोहराब क्या देख कर चौंक उठा था?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...