नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 9 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 9

9-

कभी-कभी वह बिना सही बात जाने ही निर्णय ले लेती है | रैम के दादा के धर्म परिवर्तन की बात सुनकर वह व्यर्थ ही वाचाल हो गई थी | इंसान की भूख बड़ी है अथवा उसकी जाति व धर्म ?हम क्यों अपने मंदिरों में भगवान को दूध पिला सकते हैं पर गरीब का पेट नहीं भर सकते !उसे तो नहीं लगता कि किसी भी देवता की मूर्ति ने अपने भक्तों से दूध पीने की इच्छा व्यक्त की हो |हम इंसान ही तो इंसान के मुँह से रोटी छीनते हैं और मूर्ति को जबरदासी दूध पिलाते हैं !भूख इंसान को उस द्वारा पर ले जाकर खड़ा कर देती है जहाँ उसका पेट भरता है, भूख यह नहीं सोचती कि किस जाति या धर्म से उसकी तृप्ति होगी |

मि. दामले ने यह भी बताया कि पूरे परिवार की भाषा बिलकुल देसी यानि आदिवासी बोलियों का मिश्रण था पर जब से ये लोग झाबुआ से बाहर काम करने जाने लगे तब से इनकी भाषा में बहुत बदलाव आ गया है |

“कभी-कभी आपको इनकी बोली में मूल बोली की झलक मिलती होगी ?”दामले समिधा से बात कर रहे थे कि रैम बोल उठा –

“मैडम! आपको हमारे घर ब्रेकफ़ास्ट पर आने का है |”

वह अब पौधों को पानी दे चुका था और पाइप उसके स्थान पर रखने के लिए लपेट रहा था |

“हाँ। मैडम, ऐनी मैडम ने हमको ब्रेकफ़ास्ट पर बुलाया है | हम लोग ब्रेकफ़ास्ट करनेगे तब तक बंसी टीम को होटल से लेकर आ जाएगा | हम वहीं से लोकेशन पर निकाल जाएँगे | आप अपनी तैयारी कर लीजिएगा | “

मि। दामले यह कहते हुए अंदर चले गए कि वे अभी दस मिनट में तैयार होकर आ रहे हैं | समिधा भी अपनी आवश्यकता का सामान सँभलने के लिए कमरे की ओर सीएचएल दी |

कुछ देर बाद ही समिधा और मि. दामले रैम के साथ उसके घर के नीचे खड़े थे | मुश्किल से सौ कदम की दूरी पर ही था जॉन्स परिवार का घर ! सड़क से निकालकर पिछली गली में ही !

ऐनी ने ऊपर से देखा और लगभग भागती हुई सीढ़ियाँ उतारकर आ गई और पिछली रात की तरह उसके पैरों की ओर झुकी, समिधा फिर से हड़बड़ा गई ---

“प्लीज़ ऐनी यह सब मत करो |”

“अरे ऐनी मैडम ! छोडना मत इनके पैर ---अब तो बस इनके हाथ में है, कसकर पकड़े रहे |”कहकर दामले अपने स्व्भावानुसार खी-खी करके हँस दिए |

समिधा हकबका गई थी, उसने चुप रहना ही बेहतर समझा | अब तक रैम के पिता जेनिब और भाई रॉबर्ट भी नीचे आ चुके थे | समिधा का स्वागत ऐसे जा रहा था मानो वह ऊपर से कोई देवी उतर आई हो |

“आइए मैडम !”कहती हुई ऐनी फिर से छलाँगें भर्ती ऊपर चली गई और वहाँ उपस्थित अन्य लोगों ने उसे ऊपर जाने के लिए ऐसे रास्ता दिया था जैसे वह कोई ‘वी.वी.आई.पी’ हो |

अच्छा ख़ासा दोमंज़िला मकान था, बरामदे में मरियम की आदमक़द मिट्टी की मूर्ति पर समिधा की नज़र पड़ी | वह वहीं ठिठक गई परंतु सब लोग उसके उसके ऊपर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे अत: वह मूर्ति पर पल भर दृष्टिपात करके ज़ीने की ओर बढ़ चली |

पता नहीं मि. दामले ने उसके बारे में क्या-क्या कह रखा था ? सोचते हुए वह ज़ीने में प्रवेश कर गई |ज़ीना दोनों ओर से दीवारों से बंद था | उसके चढ़ना शुरू करने के बाद ही मि. दामले, रैम और उसके पिता व भाई ने ज़ीने में प्रवेश किया |ऊपर तो और भी अक्ल्प्नीय दृश्य था |ऐनी एक बड़ा सा फूलों का हार लिए खड़ी थी | सकपकाकर उसने दमले की ओर देखा जो मुस्कुरा रहे थे |

“भई! ये सब क्या है ??उसके मुँह से निकला |

“मैडम ! हम आपका वैलकम करना चाहते हैं न !”इस बार रैम के पिता ने मुँह खोला |

“पर—इस सबकी ज़रूरत क्या है ?”

“अरे मैडम ! हमारे घर में कोई लेखिएका आएँ ---हम तो बिछ जाएँ –सर ने बताया आपका शहर में कितना नाम है !”

समिधा ने अपना सिर पकड़ लिया, यह सब दामले का किया धरा था ---उसने एक चुप्पी भरी दृष्टि दामले पर फेंकी जिनके चेहरे पर शरारत खेल रही थी और जिधर उसके मेजबान उसे ले गए, उधर की ओर चल दी |

नाश्ते में विभिन्न व्यंजन बनाए या लाए गए थे | उसे साफ़-सुथरे काँच के बर्तनों में नाश्ता ‘सर्व’किया गया, खूब आग्रह करके खिलाया जा रहा था | समिधा को अब परेशानी महसूस होने लगी |वास्तव में व्यंजन बहुत स्वादिष्ट थे पर पेट बेचारा एक ही तो था, कितना अन्याय करती उस पर !

सच ही कहते हैं हमारे हिंदुस्तान में लोग भूखे नहीं खाना ठूँस-ठूँसकर खाने से मरते हैं | रैम, उसका भाई, माँ-पापा सभी तो खातिरदारी में लगे हुए थे | समिधा ने अनुभव किया दामले उस परिवार के बहुत क़रीब थे परंतु उसे अपनी स्थिति कुछ अजीब सी लग रही थी |चारों ओर निगाह घूमकर देखा, घर में ज़रूरत की सभी वस्तुएँ मुहैया थीं बल्कि कुछ अधिक ही थीं |

ऊपर शाद तीन कमरे होंगे, उसने सोचा |दो तो वहीं से बिल्कुल साफ़ दिखाई दे रहे थे | टेलीफ़ोन, कूलर –सभी कुछ तो था | जिस सोफ़े पर उसे बैठाया गया था, वह भी अच्छा ही था| सोफ़े पर अधिक खाना खाकर ताने हुए पेट से बैठी समिधा उस गरीबी को तलाश कर रही थी जिसके लिए वह यहाँ तक आई थी | हाँ, अचानक ही उसकी स्मृति में कौंधा –इस परिवार की गरीबी तो डीएचआरएम-परिवर्तन के साथ ही समाप्त हो गई थी |

नाश्ता करते हुए उसकी निगाह ड्रम-सैट पर पड़ी थी

“अरे वाह ! ये ड्रम किसका है ?”फिर अपने  शब्दों को सँभालते हुए उसने कहा –

“मेरा मतलब है, इसे कौन बजाता है?”

“हमारा है मैडम !मैं, मम्मी और भाई गाते हैं न, कभी-कभी बाहर भी जाते हैं | हमारा अपना ऑरकेस्ट्रा है ---‘जॉन्स म्यूज़’”

रैम ने प्रसन्न होकर अपने ऑरकेस्ट्रा का नाम बताया |

“आपको बताया था न मैडम ! बहुत टेलेंटेड है यह फ़ैमिली !”

दामले की बाँछें खिली जा रही थीं और समिधा सोच रही थी ---

‘यह वही झाबुआ है जिसके लिए सरकार पिछड़ेपन के नाम पर इतना पैसा खर्च कर रही है !’

उसे वहाँ की वास्तविक झाँकी देखने में रुचि थी, झाबुआ को महसूस करना था तथा वहाँ की स्न्स्कृती को अपने भीतर आत्मसात करना था |इसीलिए तो वह इतनी दूर आई थी | पाशोपेश में थी समिधा, यहाँ उसे सब सुविधाएँ दिखाई दे रही थीं जबकि ‘शोध’ तो कुछ और ही कहानी कह रहे थे |

न जाने वहाँ क्या-क्या बातें होती रहीं पर समिधा अपने ख़यालों में ही डूबी रही जब तक मि. दामले ने उसे हिला नहीं दिया |

“मैडम ! यूनिट के लोग आ गए हैं |”

नीचे से गाड़ी की पीं –पीं सुनाई दे रही थी |