मौत का खेल - भाग -12 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग -12

तफ्तीश


इंस्पेक्टर कुमार सोहराब और सार्जेंट सलीम के बीच अभी बातें हो ही रही थीं कि तभी सोहराब के फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ से राजेश शरबतिया की घबराई हुई आवाज आई, “सोहराब साहब... मैं एक मुसीबत में फंस गया हूं। आप जितनी जल्दी हो सके शरबतिया हाउस आ जाइए।”

“क्या हुआ... सब खैरियत तो है न?” सोहराब ने पूछा।

“बस आप जल्दी पहुंच जाइए।” यह कहते हुए शरबतिया ने फोन काट दिया।

सोहराब ने फोन रखते हुए सलीम से कहा, “घोस्ट ले आइए... शरबतिया हाउस चलना है अभी तुरंत।”

“कोई खास बात?” सलीम ने पूछा।

“रास्ते में बात होगी।” सोहराब ने कहा।

सलीम पार्किंग की तरफ चला गया। कुछ देर बाद वह घोस्ट ड्राइव करता हुआ लॉन के पास आ कर रुक गया। सोहराब उसकी बगल में आकर बैठ गया और घोस्ट तेजी से आगे बढ़ गई। गुलमोहर विला से तकरीबन एक किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद घोस्ट मेन रोड पर पहुंच गई। सोहराब ने सलीम को शरबतिया हाउस का पता बता दिया और घोस्ट ने स्पीड पकड़ ली। घोस्ट सोहराब की पसंदीदा कार थी। वह तीन सेकेंड में ही सौ किलोमीटर की स्पीड पकड़ लेती थी। उस का सस्पेंशन भी गजब का था। ऐसा लगता था कि कार हवा में तैर रही है।

रास्ते में सलीम ने पूछा, “क्या मामला है।”

“राजेश शरबतिया का फोन था। वह किसी परेशानी में फंस गया है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने बताया।

“कैसी परेशानी?” सलीम ने फिर पूछा।

“यह तो वहां चलने के बाद ही मालूम होगा।” सोहराब ने कहा। इसके बाद खामोशी छा गई। सोहराब ने सिगार केस से एक सिगार निकाली और उसे जला कर कश लेने लगा। सलीम की निगाहें विंड स्क्रीन पर जमी हुई थीं। कार तेजी से भागी चली जा रही थी।

कुछ देर बाद कार शरबतिया हाउस के गेट से इंटर हो रही थी। शरबतिया ने गेट पर गार्ड्स को पहले ही इस बारे में इनफार्म कर दिया था। यहां जो मेहमान लगातार आते-जाते रहते थे, उनकी गाड़ियों के नंबर गार्ड के पास मौजूद थे। बाकी लोगों के लिए इजाजत लेनी होती थी।

पार्किंग लॉट में गाड़ी खड़ी करने के बाद जब सोहराब और सलीम कोठी पर पहुंचे तो शरबतिया उन्हें बाहर बेचैनी से टहलता हुआ मिल गया। सोहराब को देखते ही वह तेजी से उस के पास पहुंचा। उसने सोहराब का हाथ पकड़ते हुए कहा, “बहुत अच्छा किया आ गए। आओ मेरे साथ।”

इसके बाद वह उन्हें ले कर अंदर आ गया। सोहराब और सलीम के बैठते ही शरबतिया ने उन्हें ‘मौत का खेल’ और डॉ. वरुण वीरानी के मारे जाने के बारे में पूरी रूदाद सुना डाली। सोहराब को सारी बातें पहले से मालूम थीं, लेकिन उसने शरबतिया को कहीं भी नहीं टोका। इसके विपरीत वह पूरी तवज्जो से उसकी बात सुनता रहा।

वह यह भी चेक करना चाहता था कि शरबतिया कहां झूठ बोलता है और कहां पर बातों को बढ़ाचढ़ा कर बता रहा है। शरबतिया ने अभी तक सारी बातें ही बड़ी ईमानदारी से बयान की थीं। आखिर में उसने सोहराब को लाश के गायब होने के बारे में भी बता दिया।

“इंस्पेक्टर सोहराब! इस पूरे मामले में मेरा कोई रोल नहीं है। मैंने अपनी स्थिति साफ करने के लिए ही आप को यहां बुला कर तकलीफ दी है। बस मैं यह चाहता हूं कि मेरा नाम न खराब हो। नाहक मुझे इस मामले में घसीटा जाए।” शरबतिया ने घबराई हुई आवाज में कहा, “रायना धमकी दे कर गई है कि वह पुलिस में मेरे खिलाफ कंप्लेन करेगी कि मैंने डॉ. वरुण वीरानी को कत्ल कर दिया है।”

“अगर आप बेगुनाह हैं तो आप को घबरान की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने उसे दिलासा देते हुए कहा।

“शुक्रिया।” शरबतिया ने कहा। हालांकि उसकी आवाज में अब भी घबराहट थी।

“मैं वह जगह देखना चाहता हूं, जहां डॉ. वीरानी को दफ्नाया गया था।” इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने उठते हुए कहा।

“आइए” शरबतिया ने कहा।

इसके बाद तीनों कोठी से बाहर निकल आए। सोहराब ने जेब से रबर के दस्ताने निकाल कर पहन लिए। कुछ देर बाद शरबतिया उन्हें लेकर डॉ. वीरानी की कब्र के पास पहुंच गया। वहां एक गड्ढा खुदा हुआ था। शरबतिया ने गड्ढे को दिखाते हुए कहा, “यहीं पर डॉ. वरुण वीरानी को दफनाया गया था। पहले एक बार लाश गायब हुई थी, लेकिन तब वह वापस आ गई थी। अब आज सुबह जब रायना ने गड्ढा खुदवाया तो यहां लाश नहीं है!”

सोहराब झुक कर गड्ढे को देखने लगा। वहां उसे कोई खास बात नजर नहीं आई। उसके बाद वह उठ कर खड़ा हो गया। वह आसपास की जमीन को बड़े ध्यान से देख रहा था। उसे नम जमीन पर कुछ कदमों के निशान नजर आए। वह निशान इस तरफ आने के नहीं थे, लेकिन जाते वक्त के वह निशान साफ नजर आ रहे थे। वह कदमों का पीछा करते हुए दीवार तक चला गया। दीवार को भी वह बड़े ध्यान से देखता रहा।

सोहराब ने शरबतिया की तरफ पलटते हुए कहा, “क्या सीढ़ी मिल सकेगी।”

“जी अभी मंगाता हूं।” शरबतिया ने कहा और किसी को फोन मिलाने लगा।

कुछ देर बाद दो नौकर सीढ़ी लेकर चले आ रहे थे। सोहराब के निर्देश पर उन्होंने सीढ़ी को दीवार से टिका कर खड़ा कर दिया और फिर शरबतिया के इशारे पर वापस चले गए।

नौकरों के जाने के बाद सोहराब सीढ़ी पर चढ़ गया। उसने जेब से मैग्नीफाइंग ग्लास निकाला और दीवार की ऊपरी सतह को ध्यान से देखने लगा। उसने मैग्नीफाइंग ग्लास को जेब में रख लिया और सीढ़ी को ऊपर खींच लिया। और उसे दूसरी तरफ उतार दिया। इसके बाद वह नीचे उतर गया। वहां भी उसे जमीन में जाते हुए कदमों के निशान नजर आ रहे थे। कुछ आगे जाने के बाद उसे किसी गाड़ी के पहियों के निशान नजर आए। वह निशान मिट्टी में दूर तक नजर आ रहे थे। इसके बाद सोहराब लौट आया।

सीढ़ी से वह फिर से दीवार पर चढ़ गया और उसके बाद सीढ़ी को दूसरी तरफ लगाने के बाद वह अंदर उतर आया। उसके नीचे उतरते ही शरबतिया ने पूछा, “क्या नतीजा निकाला आपने?”

“इतनी जल्दी नतीजे नहीं निकलते मिस्टर शरबतिया।” सोहराब ने गंभीरता से जवाब दिया।

सोहराब जंगल में आसपास का जायजा लेने लगा। कुछ दूर जाने के बाद उसे भी खून के धब्बे नजर आ गए। वह ताज्जुब से खून के धब्बे देखने लगा। सोहराब जमीन पर बैठ गया और मैग्नीफाइंग ग्लास निकाल लिया। वह बड़े ध्यान से खून के धब्बों को देख रहा था। तभी वहां शरबतिया भी पहुंच गया। उसने सोहराब के बगल में बैठते हुए कहा, “यह जाने किस का खून है। मैंने भी इसे कल देखा था और तब से परेशान हूं।”

“यह किसी जानवर का खून है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा। उसके बाद उसने पूछा, “क्या आपके फार्म हाउस पर जानवरों का शिकार भी किया जाता है?”

“नहीं बिल्कुल नहीं।” शरबतिया ने जल्दी से जवाब दिया।

सोहराब ने एक पत्ली सी डंडी उठाई और खून को खुरचने लगा। खून पाउडर की तरह भुरभुरा नजर आने लगा। सोहराब ने कहा, “यह उस वक्त का खून है जबकि जानवर मर चुका था।”

उस की इस बात पर शरबतिया बड़े ध्यान से उसे देखने लगा। सोहराब ने सलीम से कहा, “सलीम साहब! खून का नमूना जमा कर लीजिए और इसे जांच के लिए लैब भेज दीजिए। वैसे मुझे पुख्ता यकीन है कि यह जानवर का ही खून है।”

सलीम ने जेब से प्लास्टिक का पाउच निकाला और एक चिमटी से उस में खून के नमूने भरने लगा। इस काम से फारिग होने के बाद वह उठ कर खड़ा हो गया।

सोहराब ने कुछ देर आसपास का जायजा लिया और फिर वह तीनों वापस कोठी की तरफ चल पड़े। रास्ते में फिर कोई बात नहीं हुई।

कोठी पर पहुंचने के बाद सोहराब ने शरबतिया से पूछा, “आपको क्या लगता है कि डॉ. वरुण वीरानी की मौत महज एक हादसा है?”

“यकीनन। ऐसा ही है।” शरबतिया ने बहुत पुख्ता लहजे में जवाब दिया।

“आपके इतने यकीन की कोई वजह?” सोहराब ने शरबतिया को गहरी नजरों से टटोलते हुए पूछा।

“वह इसलिए इंस्पेक्टर... क्योंकि डॉ. वीरानी बहुत खुशमिजाज आदमी थे। उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। दूसरे हमारे यहां आने वाला हर मेहमान उनकी बहुत इज्जत करता था।”

“वजह उनकी खूबसूरत बीवी भी तो हो सकती है!” सलीम ने कहा। वह अब तक खामोश ही रहा था।

उसकी इस बात पर शरबतिया बुरी तरह से चौंक पड़ा। उसने खुद को संभालते हुए कहा, “मैं आपका मतलब नहीं समझा!”

“मेरे कहने का मतलब यह है कि उनकी बीवी को हासिल करने के लिए भी तो कोई उन्हें कत्ल कर सकता है?”

“होने को तो कुछ भी हो सकता है!” शरबतिया ने खुश्क लहजे में कहा। ऐसा लगता था कि उसे सलीम की बात पसंद नहीं आई थी।

“वह इतनी खूबसूरत हैं कि किसी का भी दिल उन पर आ सकता है!” सलीम ने बात को जारी रखते हुए कहा।

शरबतिया ने खुद को संभाल लिया था। उसने इस बार सलीम की बात पर कोई रियेक्शन नहीं दिया। उसने बात को टालते हुए कहा, “आप लोग कॉफी लेंगे या ड्रिंक?”

“हम लोग अब चलना चाहेंगे।” सोहराब ने उठते हुए कहा।

“इंस्पेक्टर सोहराब! मेरा नाम बेवजह न उछले। मैं आपसे यह दरख्वास्त करूंगा।” शरबतिया ने कहा।

“आप बेफिक्र रहें। आप बेकुसूर होंगे तो आपका बाल भी बांका नहीं होगा।” सोहराब ने शरबतिया से गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए कहा।

सोहराब और सलीम कोठी से निकल कर पार्किंग लाट की तरफ बढ़ गए। सोहराब किसी चिंता में डूबा हुआ था।

दोनों घोस्ट में बैठ गए और कार एक झटके से आगे बढ़ गई। रास्ते में सलीम ने पूछा, “आप इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं कि वह किसी जानवर का ही खून था?”

“बर्खुर्दार गोली लगने के बाद जानवर के गिरने से वहां की जमीन का उतना हिस्सा थोड़ा सा दब गया है। वह निशान इस बात की गवाही दे रहा है कि वह किसी जानवर का ही है। दूसरे जो खून जमीन पर गिरा हुआ है उसमें भी खून में सने जानवर की खाल के बाल मिले हैं। डीएनए रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हो जाएगा।”

“आपने यह कैसे जान लिया कि यह मरे जानवर का खून है?” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“हमारे शरीर से जब भी खून बहने लगता है तो कुछ देर बाद वहां खून का थक्का बनने लगता है। इसकी वजह से खून बहना बंद हो जाता है। यह थक्का प्रोथोम्बिन नाम के प्रोटीन बनता है। जब कोई मर जाता है तो यह प्रोटीन भी खून के साथ बहना बंद हो जाता है। इसकी वजह से थक्का नहीं जमता और खून में पपड़ी नहीं बनती है। वह चूरा बन जाता है।” सोहराब ने समझाते हुए बताया।

“और डॉ. वीरानी की लाश कहां चली गई?” सलीम ने पूछा।

इस बारे में तुंरत जवाब देने के बजाए सोहराब सिगार सुलगाने लगा।


*** * ***


शरबतिया हाउस से सोहराब को कौन से राज पता चले थे?
आखिर लाश कहां चली गई थी?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...