मौत का खेल - भाग-11 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग-11

कौन था वह


सलीम ने आज जम कर मेहनत की थी। उसे यकीन था कि उस की जानकारी सोहराब को खुश कर देगी। जब वह कोठी पर पहुंचा तो दोपहर ढल चुकी थी। पूरी कोठी में तलाशने के बाद आखिरकार सोहराब उसे लाइब्रेरी में मिल गया। वह चांद के बारे में कोई किताब पढ़ रहा था। सोहराब अभी भी किताबों पर ही भरोसा करता था। उस का मानना था कि नेट पर दी गई ज्यादातर जानकारी अधकचरी है। किताब अब भी रिसर्च के बाद और उस विषय के जानकार ही लिखते हैं।

सोहराब ने सार्जेंट सलीम के खिले-खिले चेहरे को देख कर पूछा, “लगता है आज कमाल करके ही लौटे हो!”

“यह तो आप बताइएगा कि कमाल किया है या वक्त खराब किया है।” सलीम ने कहा।

“आओ बाहर बैठते हैं।” कुमार सोहराब ने कहा।

दोनों उठ कर लॉन में आ कर बैठ गए। सर्दियों में जाती शाम की धूप बड़ी भली लगती है। उस वक्त दिन हाथ से फिसलते हुए बखूबी महसूस होता है। सोहराब को यह काफी पसंद है।

“चलिए सब कुछ विस्तार से बता डालिए।” सोहराब ने कहा।

जवाब में सलीम ने आज दिन भर की सारी रूदाद बयान कर दी। सोहराब उस की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था। वह बीच-बीच में कुछ सवाल भी करता जा रहा था। सारी बातें सुनने के बाद उस ने कहा, “बैंक डिटेल चेक की?”

“नहीं उस का मौका नहीं मिला।” सलीम ने कहा और बैंक के प्रिंट मेज पर फैला दिए।

सोहराब बड़े ध्यान से बैंक की डिटेल चेक कर रहा था। वह कई नामों के आगे निशान भी लगाता जा रहा था। जैसे-जैसे वह पेज पलटता जा रहा था, सोहराब की आंखें फैलती जा रही थीं। वह आश्चर्य से भरा हुआ था। दस पेजों में फैली डिटेल देखने के बाद सोहराब गंभीर चिंता में डूब गया।

“ऐसा क्या नतीजा निकला इन पेजों से कि आप इस कदर गंभीर हो गए?” सलीम ने पूछा।

“शहजादे सलीम! आप ने यकीनन कमाल कर दिया है। आप को बेहतरीन दावत मिलेगी।”

“मैं खिचड़ी नहीं खाऊंगा।” सलीम ने मुंह बनाते हुए कहा।

उस की इस बात पर सोहराब को हंसी आ गई। उस ने हंसते हुए कहा, “आज डिनर के लिए होटल सिनेरियो चलते हैं।”

“मुझे जो हुक्म मिला वह मैंने कर दिया। अब आप दावत खिलाइए या स्विटजरलैंड घुमाइए। इस वक्त मेरी दिलचस्पी यह जानने में है कि आखिर मामला क्या है?” सलीम ने कहा।

उस की बात सुन कर सोहराब फिर से सोच में गुम हो गया। उस ने सिगार केस से एक सिगार निकाली और उसे सुलगा लिया। कुछ देर की खामोशी के बाद उस ने कहा, “काफी गंभीर मामला है। एक कत्ल का मामला। इत्तेफाकन मैं भी वहां मौजूद था।”

“किसका कत्ल? और वह कत्ल आप के सामने हुआ?” सलीम ने ताज्जुब से पूछा।

“डॉ. वरुण वीरानी का।” सोहराब ने कहा। कुछ देर की खामोशी के बाद उस ने दोबारा कहा, “तुम्हें कुछ भी नहीं पता इस बारे में। तुम्हें क्या फार्म हाउस से बाहर की दुनिया के सामने यह सब एक राज ही रह जाता, अगर मैं वहां मौजूद नहीं रहता।”

“आप बताते कब हैं पूरी बात!” सलीम ने उलाहना देते हुए कहा।

“डॉ. वरुण वीरानी को रहस्यमयी हालात में कत्ल कर दिया गया है।” सोहराब ने उस की शिकायत को नजरअंदाज करते हुए कहा, “इत्तेफाकन मैं भी वहां मौजूद था, लेकिन यह बात मैं रिकॉर्ड में नहीं ला सकता हूं, क्योंकि जिन हालात में डॉ. वीरानी का कत्ल हुआ, उसे कोई भी नहीं रोक सकता था। ऐसा लगता है, जैसे पहले से तयशुदा तरीके से घटना को अंजाम दिया गया है। जिस पार्टी के दौरान उन्हें कत्ल किया गया, उस पार्टी में मौजूद हर शख्स शक के दायरे में है।”

“मैं समझ नहीं पाया आप की बात।” सलीम ने उकताए हुए अंदाज में कहा।

सलीम के टोकने पर सोहराब जैसे चौंक पड़ा हो। उसने बात को शुरू से बताना शुरू किया, “सलीम साहब, राजेश शरबतिया मुल्क के बड़े कारोबारी हैं। उनकी गिनती देश के टॉप टेन अमीरों में होती है। उनके शरबतिया हाउस में होने वाली पार्टी में हर कोई शामिल होने को बेकरार रहता है। राजेश ने कई बार मुझे भी दावतनामा भिजवाया, लेकिन मैं हमेशा टालता रहा। इस बार थर्टी फर्स्ट नाइट की पार्टी के लिए वह खुद ही दावतनाम लेकर पहुंच गए। इस वजह से मैं इनकार नहीं कर सका, लेकिन मैंने एक शर्त रखी कि वह वहां मेरा किसी से परिचय नहीं कराएंगे। वह इस के लिए तैयार हो गए।”

“तो क्या आप वहीं थे थर्टी फर्स्ट को?” सलीम ने पूछा।

“मैं इस तरह की पार्टियों से हमेशा गुरेज करता हूं। सिर्फ राजेश का मन रखने के लिए पार्टी में गया था, लेकिन उस रात पड़ रहे जबरदस्त कोहरे की वजह से मुझे वहां रुकना पड़ा। कुछ देर बाद वहां ‘मौत का खेल’ खेलने का एलान हुआ।”

“मौत का खेल! यह कैसा खेल है! मैंने ऐसे किसी खेल के बारे में पहले कभी नहीं सुना।” सलीम ने चौंकते हुए कहा।

सोहराब ने बात को टालते हुए कहा, “यह चोर-सिपाही जैसा एक खेल होता है। तो मैं यह बता रहा था कि तमाम लोग इस खेल में शामिल हो गए। मुझे ऐसे किसी खेल से दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए मैं तबयत खराब होने का बहाना बना कर एक कमरे में आ कर बैठ गया।” इतना कहने के बाद सोहराब बुझ गई सिगार जलाने लगा।

कुछ कश लेने के बाद उस ने बताया, “उस खेल के दौरान ही डॉ. वरुण वीरानी का कत्ल हो गया। कत्ल होने का मुझे पता न चल सके, इसलिए किसी ने मेरे दरवाजे की सिटकिनी बाहर से बंद कर दी। सिटकिनी बंद होने का पता चलते ही मैं समझ गया था कि कहीं कुछ गड़बड़ है। मैं खिड़की से बाहर आ गया। लॉन में भारी भीड़ थी। वहां मैंने सारा नजारा अपनी आंखों से देखा। उस के बाद मैं दोबारा अपने कमरे में आ कर बैठ गया। बाद में मेरे कमरे की सिटकिनी खोल दी गई।”

“इतना सब होने के बावजूद आप ने कोई हस्तक्षेप क्यों नहीं किया?” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“बचकाना सवाल!” सोहराब ने कहा, “बरखुर्दार! यह मजदूरों की बस्ती में होने वाला कत्ल नहीं है, कि सभी को लाइन में खड़ा किया और बेतों से धुनाई शुरू कर दी। कातिल ने जुर्म कुबूल कर लिया। केस साल्व। पुलिस और खुफिया विभाग के काम में फर्क होता है। शरबतिया हाउस की उस पार्टी में मुल्क के खरबपति और मशहूर हस्तियां शामिल थीं। तकरीबन सत्तर लोग थे। उन में से ही कोई एक कातिल है। आप ने बिना सुबूत के किसी को टच किया तो वह वकीलों की पूरी फौज उतार देंगे। इसलिए सबसे पहले सबूत चाहिए होगा।”

“और डॉ. वीरानी की लाश का क्या हुआ?”

“उन्हें वहीं शरबतिया के फार्म हाउस में दफ्न कर दिया गया।”

“रायना डॉ. वीरानी की ही बीवी है न।” सलीम ने बात बदलते हुए पूछा।

“हां, दोनों ने लव मैरेज की थी।” सोहराब ने कहा।

“बैंक के इन कागजों से क्या नतीजा निकाला आप ने?” सलीम ने पूछा।

“रायना न सिर्फ अपने पति डॉ. वरुण वीरानी से जेब खर्च के लिए मोटी रकम पाती थी, बल्कि करोड़ों रुपये राजेश शरबतिया ने भी उसे दिए हैं। इस के अलावा अबीर ने भी उसे गाहे-बगाहे काफी पैसे ट्रांसफर किए हैं।” सोहराब ने बताया।

“इतना पैसे करती क्या है वह?” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“पैसे वाले लोगों की दुनिया में सिर्फ पैसे की कीमत होती है। प्यार बिकता है यहां लख्ते जिगर बिकते हैं।” सोहराब का लहजा तल्ख था।

“कत्ल तो अबीर भी कर सकता है और राजेश शरबतिया भी? क्योंकि दोनों की दिलचस्पी रायना में है।” सलीम ने कहा।

“पार्टी का हर आदमी संदिग्ध है।” सोहराब ने कहा।

हंगामा


कब्र से लाश न निकलने पर रायना पर जैसे जुनून तारी हो गया। वह वहां से सीधे कोठी पर पहुंची और जोर-जोर से चिल्लाने लगी। उस की चीखें सुनकर कई सारे नौकर जमा हो गए। कुछ देर में राजेश शरबतिया और उस की पत्नी भी पहुंच गई। दोनों ने नौकरों को वापस भेज दिया। उन्होंने बड़ी मुश्किल से रायना को शांत कराया।

“क्यों इस कदर शोर मचा रही हो?” शरबतिया ने पूछा।

“कब्र से फिर लाश गायब है।” रायना ने चीखते हुए कहा।

“ऐसा कैसे हो सकता है?” राजेश शरबतिया के मुंह से अनायास निकला।

“यह तुम अपने आप से पूछो।” रायना ने कहा।

“तुम मुझ पर बेजा शक कर रही हो। मैं लाश का करूंगा क्या? और मैं तो खुद लाश को बाहर ले जाने की मुखालफत कर रहा हूं।” शरबतिया ने उसे समझाते हुए कहा।

“इसीलिए तो तुमने लाश गायब करा दी।” रायना की आवाज अब भी तेज थी।

“तुम मेरी बात समझने की कोशिश करो....।” शरबतिया ने उसे समझाने की कोशिश की।

रायना ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, “मुझे कुछ भी समझना बाकी नहीं है। मैं पुलिस के पास जा रही हूं। मैं सीधे कहूंगी कि तुमने मेरे पति का कत्ल करके लाश गायब कर दी है।”

“झूठ तो मत बोलो।” शरबतिया ने घबराई हुई आवाज में कहा, “मैंने कोई कत्ल नहीं किया है। यह तुम बेजा इल्जाम लगा रही हो।”

“यह तुमने ठीक नहीं किया शरबतिया!” रायना ने कहा और पैर पटखती हुई बाहर निकल गई।

राजेश शरबतिया भी तेजी से बाहर निकला लेकिन रायना नहीं रुकी। वह कार में बैठी और बाहर की तरफ चली गई। शरबतिया लौट आया और सर पकड़ कर बैठ गया। वह कुछ देर बाद उठा और इंस्पेक्टर कुमार सोहराब का फोन मिला दिया।

*** * ***


क्या रायना ने पुलिस से शिकायत की?
क्या पुलिस डॉ. वीरानी की लाश तलाश सकी?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...