PRAJATANTRA KAA ITIHAAS books and stories free download online pdf in Hindi

प्रजातंत्र का इतिहास

कुछ जानकार लोग कहते हैं - प्रजातंत्र की उत्पत्ति ग्रीक शब्द 'डेमोस' से हुई है। डेमोस का अर्थ है 'जन साधारण' और क्रेसी का अर्थ है 'शासन'। लेकिन यह तथ्य वास्तविकता से कोसों दूर है। ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करें तो भारत में लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली का आरंभ पूर्व वैदिक काल से ही हो गया था। अब आजकल के विद्वान इसके लिए प्रमाण की मांग करते हैं। प्रमाण के रूप में हम कह सकते हैं कि पूर्व वैदिक काल में भगवान विष्णु के अपने सहयोगियों शिव तथा ब्रह्मा के साथ गुप्त बैठक या मंत्रणा हुई थी। उसी में भूलोक के लिए ‘प्रजातंत्र’ की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया गया था। इस कथा का वर्णन किसी पुराण में नहीं आया है।

वास्तव में एक बार भगवान विष्णु क्षीरसागर में बैठे चिंतामग्न थे। माता लक्ष्मी उनके पैर दबा रही थी। उनका ध्यान माता लक्ष्मी की तरफ नहीं था। वे भूलोक में होने वाले परिवर्तन के बारे में सोच रहे थे। उन्हें कुछ नवाचार भूमंडल पर कर दिखाना था। उन्हें राह नहीं सूझ रहा था। इतने में भगवान के जनसंपर्क पदाधिकारी देवर्षि नारद वीणा बजाते तथा नारायण, नारायण उच्चारते बैकुंठ में पधारे।

भगवान विष्णु ने उन्हें उनके आसन पर विराजमान होने का संकेत दिया। भगवान लेटे ही रहे। उन्होंने उठकर बैठने की कोशिश की मगर उनको चिंतामग्न देखकर देवर्षि नारद ने लेटे रहने के लिए ही कहा। वैसे बैकुंठ में भगवान विष्णु के शयनकक्ष में सिवा उनके और किसी का प्रवेश निषिद्ध था। उन्हें कहीं भी जाने के लिए भगवान ने विशेष अनुमति-पत्र जारी कर दिया था।

भगवान से कुशलक्षेम पूछने के बाद नारद ने उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा।

भगवान बोले, “देवर्षि नारद! पृथ्वी पर आलसियों की फ़ौज हो गयी है। “

नारद : “ इससे आप क्यों परेशान हैं? सब आपकी ही माया है। आपने ही फैलाया है।”

भगवान: “उसी का तो रोना है। अब कुछ समझ में नहीं आता है। इन निकम्मों को क्या काम दूँ?”

नारद : बस! इतनी-सी बात! इसके लिए आप परेशान हैं!

भगवान – क्या। इन निकम्मों को कुछ कार्य देने का हल आपके पास है?

नारद – हल की क्या बात करते हैं प्रभु? हल-बैल सभी कुछ है। इस समस्या के लिए आप परेशान है? नारायण! नारायण! देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु को तेल लगाने के अंदाज में कहा।

भगवान – तो कृपया जल्दी से हल बताएं देवर्षि नारद।

नारद – इतनी जल्दी क्यों है प्रभु? अभी तो मैं भूलोक का भ्रमण कर आया हूँ। थका-मांदा हूँ। बाद में बता देंगे। अभी तो मैं अतिथिशाला में जाकर थोडा विश्राम कर लेता हूँ। भोजन के बाद बताएँगे कि क्या हल है?

भगवान समझ गए कि नारद जी इतनी आसानी से बताने वाले नहीं है। यदि उनकी आवभगत ठीक से नहीं की गयी तो आलसियों को काम देने वाला सूत्र उनके हाथ से निकल जाएगा। अतः उन्होंने माता अन्नपूर्णा को स्वादिष्ट व्यंजन तैयार करने के लिए कहा। माता अन्नपूर्णा के हाथों में उच्च कोटि की गुणवत्ता थी। जो भी सामान वे लेती थीं उनमे स्वाद भर देती थी। उस दिन माता अन्नपूर्णा ने विशेष रूप से नारद जी के लिए स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए।

रात्रि में भोजन के समय दोनों बैठे। परस्पर बात चली। मगर नारदजी फिर इधर-उधर की बातें करने लगे। भगवान समझ गए कि नारद जी भी चालाकी दिखा रहे हैं। इसके बाद भगवान ने नारदजी के ऊपर साम-दाम-दंड-भेद की नीति चली। इस बार नारदजी बताने के लिए तैयार हो गए।

नारद जी ने कहा कि प्रभु धरती पर आलसियों को यदि कार्य देना है तो वहां पर राजतंत्र की जगह प्रजातंत्र लागू कर दिया जाए। इस व्यवस्था से आलसी लोग काम करने लगेंगे।

अब भगवान चकित थे। उन्होंने प्रजातंत्र से आलसी सब कार्य कैसे करेंगे?

नारदजी ने कहा कि इस शासन प्रणाली में आलसियों का ही काम है। जो एकदम से कुछ नहीं करता तथा बैठे रहता है। दिमाग जिसका बहुत तेज चलता है। वह एक अपना राजनीतिक दल बना लेगा। उसमे कुछ लोगों को शामिल कर लेगा। सभी आलसी बैठे-बिठाए आलिशान जीवन बिताने के लिए राजनीतिक दल में शामिल हो जायेंगे। काम करने के लिए जिसकी नियुक्ति होगी वह भी आलसी ही होगा। उसे कुछ काम करना है नहीं। केवल तंत्र को ‘भ्रमित’ करने का काम है। कार्य करने की जगह इतने प्रकार के अडचनों को डाल देना है कि कार्य करनेवाला भी आलसी होकर कार्य करने लगेगा। इन लोगों के रहने और बैठने के लिए राजकीय आवास तथा कार्यालय की स्थापना कर दी जाएगी। सभी अपने-अपने आवास में आराम फरमाते रहेंगे। सुस्त तथा निकम्मों की फ़ौज को काम मिल जाएगा।

काम करने के लिए निविदा प्रक्रिया अपनाई जायेगी। ‘चुगली-संस्कृति’ को बढ़ावा मिलेगा। कुछ चुगलखोर इस कार्य में भी लग जायेंगे। प्रभो, इस व्यवस्था में सारे कार्य व्यवस्थित होंगे। किसी को कोई तकलीफ या शिकायत नहीं होगी।

भगवान ध्यान से सुन रहे थे। उन्होंने नारद जी से अपनी चिंता व्यक्त की। इस तरह पृथ्वी पर फिर कोई कुछ नहीं करेगा। धरती फिर रोते हुए आएगी तथा उन्हें कष्टों को दूर करने के लिए पुनः अवतार लेने के लिए कहेगी। सारी परेशानी उन्हें ही उठानी होगी। त्रेता तथा द्वापर में उन्होंने प्रभूत – कष्टों को सहन कर लिया है।

उन्हें इस व्यवस्था में संत व्यक्ति के पीड़ित होने की शंका हुई। पीड़ित और पीड़ित होंगे। संतों की व्यवस्था तो करनी होगी। किसी का दोष किसी पर डाल दिया जाएगा। एक विचित्र माहौल बनेगा। हर कोई अपनी हर कमज़ोरी को किसी दूसरे के सिर पर डाल देगा। नहीं हमारी व्यवस्था बिगड़ जाएगी। पहले से आलसी लोग नेता बनेंगे, वे चोरी, कालाबाजारी, भेदभाव वाली संस्कृति को बढ़ावा देंगे। इत्यादि बातों का भय भगवान ने नारद जी के साथ साझा की। जम्बूद्वीप वाले हमेशा रोते ही रहेंगे।

नारद जी एकदम संयमित होकर बोले, “ भगवन! उसके लिए पृथ्वी पर एक ‘आत्मनिर्भर’ सेना का निर्माण कर दिया जाएगा। जनता समझदार हो चली है। जिन्हें कुछ कार्य करना है वे ‘आत्मनिर्भर’ मन्त्र से प्रेरित होकर कार्य करेंगे।

इस प्रकार प्रजातंत्र के केवल गुणों को बताकर इसे धरती पर लागू करने की योजना बताकर देवर्षि नारद अगले गंतव्य की तरफ प्रस्थान कर गए।

अब इस प्रस्ताव को पारित करवाना भी एक टेढ़ी खीर था। स्वर्ग में इंद्र आदि देवता इसमें अड़चन पैदा कर सकते थे। इन सब तकलीफों से बचने के लिए भगवान ने अपने मार्गदर्शक मण्डली शिव तथा ब्रह्माजी के साथ मंत्रणा की। मंत्रणा में पृथ्वी पर ‘प्रजातंत्र’ को लागू करने का प्रस्ताव पारित हो गया।

इस प्रकार भूलोक में आर्यावर्त में सर्वप्रथम प्रजातंत्र की उत्पत्ति हुई। आलसियों को काम देने के लिए सरकारी अमला बना। इसमें विशाल संख्या में नियुक्ति हुई। भगवान नारदजी के विचारों से अभिभूत थे।

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