मौत का खेल - भाग-10 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग-10

इश्क की दास्तान


अबीर कुछ देर पहले एक लड़की के साथ था और अब यह दूसरी लड़की। अबीर आखिर किसे धोखा दे रहा है? यह सलीम की समझ में नहीं आया। सलीम कुछ देर खड़ा अपनी गुद्दी सहलाता रहा। वह सीढ़ियों से नीचे उतर आया। वह होटल मैनजेर के ऑफिस की तरफ चल दिया। सार्जेंट सलीम बिना रोकटोक अंदर धड़धड़ाता हुआ घुस गया। अंदर पहुंचते ही अफरातफरी मच गई। होटल की रिसेप्शनिस्ट तेजी से बाहर निकल गई। मैनेजर विशेश्वर कातिल भी हड़बड़ा कर खड़ा हो गया। उसने खिसयानी हंसी हंसते हुए कहा, “हुजूर बुरा न मानें तो एक बात अर्ज करूं!”

“फरमाइए।” सलीम ने मुंह बनाते हुए कहा।

“अगर हुजूर नॉक करके अंदर आते तो बंदे की खैर रह जाती।” मैनेजर ने कहा।

“अबे यह होटल है या...” सलीम ने आंखे निकालते हुए कहा, लेकिन मैनेजर ने बीच में ही बात लपक ली।

“तशरीफ रखिए हुजूर... नाराज मत होइए।” मैनेजर ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “मैं तो बस जरा आदाबो-एहतराम के तकाजे की बात कर रहा था।”

“कोई तकाजा-वकाजा नहीं। तुम लड़कियों की मजबूरी का फायदा उठाते हो। किसी दिन हत्थे चढ़े तो बंद कर दूंगा” सलीम ने आवाज में गुस्सा लाते हुए कहा। सार्जेंट सलीम को मालूम था कि अगर उसने चूड़ियां नहीं कसीं तो जिस मालूमात के लिए वह यहां आया है। उस उसे आसानी से नहीं मिलेगी।

“छोड़िए... क्या पिएंगे आप?” मैनेजर ने चापलूसी करते हुए कहा।

“मुझे हराम का खाना हजम नहीं होता।” सलीम ने गंभीर आवाज में कहा।

“मेहमानों से पैसे लिए जाते हैं क्या?”

“ठीक है हत्यारे साहब पानी मंगा लीजिए।”

होटल सिनेरियो के मैनेजर का नाम विशेश्वर था। कातिल उसका तखल्लुस था। उसे उर्दू बोलने का जुनून था। कभी-कभी शायरी भी सुनाया करता था। सार्जेंट सलीम की उससे गाढ़ी छनती थी। बस मनमाफिक सूचनाएं देने में आनाकानी बहुत करता था।

“मैं एक काम से तुम्हारे पास आया हूं।” सलीम ने सीधे मुद्दे पर आते हुए कहा।

“हुकुम कीजिए।” कातिल ने कहा।

“तुम्हारी कस्टमर कोई बॉर्बी डॉल भी है?” सलीम ने पूछा।

“बॉर्बी डॉल! मै मतलब नहीं समझा?” कातिल ने कहा।

“अरे यार वह लड़की जो बॉर्बी डॉल जैसी दिखती है।” सलीम ने खीझते हुए कहा।

“अच्छा वह...” कातिल ने मुस्कुराते हुए कहा, “हुजूर वह लड़की नहीं किसी की बेगम हैं। यह तो बे-गम हैं और इनका शौहर गमजदा है। क्या जनाब को पसंद आ गई है?”

“शादीशुदा है!” सलीम ने उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए पूछा।

“जी... उसने एक बुजुर्ग साइंसदां से शादी की है, लेकिन लंगड़ फंसा रखा है अबीर के साथ” कातिल ने आंख मारते हुए कहा।

“क्या वह तुम्हारी परमानेंट कस्टमर है।” सलीम ने पूछा।

“जी हुजूर.... अबीर के लिए एक वीआईपी सुइट परमानेंट बुक रहता है। हालांकि वह रोज नहीं आता।”

“होटल में नाम क्या लिखा रखा है अबीर ने?” सलीम ने पूछा।

“अपनी असली शख्सियत के तौर पर ही ठहरता है।” कातिल ने बताया।

“और यह मैडम?” सलीम ने पूछा।

“इनका नाम रायना है। यह उसी सुइट में ठहरती हैं। इनके नाम अलग से कोई कमरा नहीं है।” कातिल ने जवाब दिया।

“नाम क्या है इनके पति का?” सलीम ने पूछा।

“कोई वीराना... हां... वीरानी करके नाम हैं। साइंसदां हैं तो काफी मसरूफ भी रहते ही होंगे औ बेगम यहां-वहां चरती फिरती रहती हैं।” कातिल ने मुंह बनाते हुए कहा।

“और यह अबीर किस खेत की मूली है?” सलीम ने पूछा।

“कभी यह आवारागर्दी किया करता था। इस फाइव स्टार होटल कौन कहे... थ्री स्टार में भी घुसने की औकात नहीं थी।” विशेश्वर कातिल ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, “सुनते हैं बिट क्वाइन में पैसे लगाए थे शुरुआती दौर में... करोड़ों का मुनाफा हो गया है। अब तो यह शुरफा में शुमार होते हैं।”

“यह शुरफा क्या होता बेटे?” सलीम ने पूछा।

“शरीफों में गिनती होती है।“ कातिल ने सीधे अनुवाद कर दिया।

“आखिरी सवाल… इस बॉर्बी डॉल से इनका याराना कब से चल रहा है?” सलीम ने पूछा।

“यह तो बता पाना मुश्किल है। मेरे होटल में कमरा तकरीबन एक साल से बुक है।” कातिल ने कहा।

“यार हत्यारे... तुम बड़ी कमीनी चीज हो।” सलीम ने हंसते हुए कहा और उठ खड़ा हुआ।

“कमीना कहने में कोई दिक्कत नहीं है... लेकिन बराय मेहरबानी हत्यारा नहीं कातिल कहें... मेरा तखल्लुस कातिल है।”

“जाते-जाते एक बात तो बताओ?” सलीम ने कहा, “अपने कस्टमर के बारे में इतनी जानकारी रखते कैसे हो?”

“कारोबार है साहब अपना। अगर हर सारिफ का प्रोफाइल नहीं रखेंगे तो उन्हें उनके मिजाज के हिसाब से सर्विस कैसे दे पाएंगे।” कातिल ने कहा, “लेकिन यह जुबान सिर्फ आपके सामने ही खुलती है। किसी और को यहां के कस्टमर के बारे में नहीं बता सकता।”

“सारिफ क्या होता है?”

“कस्टमर।”

“अबे तो सीधे कस्टमर कहो न।” सलीम ने कहा और वहां से निकल पड़ा। फिर दरवाजे के पास रुकते हुए कहा, “पानी खुद ही पी लेना।”

वहां से सलीम सीधे लिफ्ट की तरफ पहुंच गया। लिफ्ट सबसे आखिरी फ्लोर पर रुकी थी। सलीम लिफ्ट से बाहर निकल कर सीधे वेटर्स के कमरों की तरफ पहुंच गया। एक कमरे के बाहर पहुंच कर उसने हलके से नॉक किया। कुछ देर बाद दरवाजा खुल गया। एक युवक ने नींद भरी आंखों के साथ दरवाजा खोला था। ऐसा लगता था शायद वह सो रहा है।

“सलाम साहब!” सलीम को देख कर युवक ने कहा।

“रात की शिफ्ट चल रही है क्या।” सलीम ने पूछा।

“जी।” वेटर ने कहा और पीछे हट गया।

सलीम उसके कमरे में दाखिल हो गया। अंदर पहुंच कर उसने वेटर से कहा, “तुम्हारी ड्रेस चाहिए दस मिनट के लिए।”

वेटर ने अलमारी से एक धुली हुई साफ ड्रेस सलीम को दे दी। उसके बाद वह बाहर निकल आया। कुछ देर बाद सलीम वेटर के लिबास में उसके कमरे से निकल रहा था। उसके हाथ में एक ट्रे थी। उस पर एक सफेद तौलिया और रूम फ्रेशनर रखा हुआ था। सलीम लिफ्ट से सीधे अबीर और रायना के कमरे वाले फ्लोर पर रुका। दरवाजे पर पहुंच कर उसने हल्के से नॉक किया और धीमी आवाज में कहा, “सर! रूम सर्विस।”

कुछ देर बाद दरवाजा खुल गया। वेटर बना सलीम सीधे अंदर पहुंच गया। सलीम ने पहले ड्राइंग रूम वाले हिस्से में रूम फ्रेशनर स्प्रे किया उसके बाद वह बेडरूम वाले हिस्से में आ गया। वहां अबीर बैठा फोन पर किसी से बात कर रहा था। सलीम को रायना कहीं नजर नहीं आई। सलीम ने जैसे ही रूम फ्रेशनर को स्प्रे किया, अबीर ने उसे रोकते हुए कहा, “रुको मैं दूसरी तरफ चला जाता हूं।”

सलीम ने घूम-घूम कर चार-छह बार स्प्रे किया। उसके बाद वह चादर और तकिया सही करने लगा। उसे तकिए के नीचे एटीम कार्ड रखा हुआ नजर आया। सलीम ने बड़ी तेजी से नाम, बैंक का नाम और कोड पढ़ कर उस पर तकिया रख दी। यह रायना का एटीएम था। उसके बाद उसने एक-दो बार और स्प्रे किया और वापस जाने के लिए मुड़ गया। उसे वाशरूम से निकलते हुए रायना नजर आ गई। उसने गुलाबी कलर का नाइट सूट पहन रखा था। वह बला की खूबसूरत नजर आ रही थी। सलीम ने एक नजर उसे देखा और तेजी से बाहर आ गया।

वह लिफ्ट से ऊपर पहुंचा। वेटर रूम में जाकर कपड़े चेंज किए। लौटते वक्त उसने वेटर के हाथ में पांच सौ रुपये का नोट देते हुए कहा, “सो जाओ आराम से।”

सलीम होटल से बाहर आ गया। उसने घोस्ट स्टार्ट की और पार्किंग से निकलकर सड़क पर आ गया। उसकी कार का रुख बैंक की तरफ था। बैंक पहुंच कर वह सीधे लीड बैंक अधिकारी के ऑफिस की तरफ चला गया। लीड बैंक अधिकारी उसका जानने वाला था। सलीम को देखते ही वह खुशदिली से बोला, “कहां बिजी हो प्यारे इतने दिनों से। कभी आ जाओ गरीबखाने पर भी। बढ़िया चिकन टिक्का बनाते हैं। साल भर हो गए तुम्हारे साथ महफिल जमाए हुए।”

सलीम ने उसके सामने कुर्सी पर बैठते हुए कहा, “बहुत जल्द महफिल सजेगी। इस बार एक नई डिश बनाते हैं, लेकिन उससे पहले आपको मेरी एक मदद करनी है।”

“तुम्हारे लिए जान हाजिर है डियर। काम बताओ।”

सलीम ने उसे रायना का नाम, बैंक का नाम और कोड नोट कराते हुए कहा, “मुझे इसके अकाउंट की पिछले तीन साल के दस लाख से ऊपर के डेबिट और क्रेडिट की डिटेल चाहिए। यह भी कि किस व्यक्ति ने रुपये भेजे और कहां गए।”

“बस दस मिनट।” लीड बैंक अधिकारी ने कहा। उसके बाद उसने किसी को फोन मिला कर उसे डिटेल नोट करा दी।

कुछ देर बाद उसने अपनी मेल पर आई डिटेल का प्रिंट निकाल कर सलीम के हाथ पर रख दिया।

सलीम जब बाहर निकला तो दोपह ढल चुकी थी। उसे जोरों की भूख लग आई थी। उसने सीधे घोस्ट को किंगफिशर कैफे की तरफ मोड़ दिया। किंगफिशर कैफे मछली के व्यंजनों के लिए मशहूर था। यहां दुनिया भर की फिश की 70 डिशेज मिलती थीं। यहां तक कि यहां मिलने वाला सैंडविच, समोसा और तो और डोसे तक में मछली का इस्तेमाल होता था। शाम को तो यहां तिल रखने की भी जगह नहीं होती थी।

इस वक्त कैफे में ज्यादा लोग नहीं थे। सलीम के टेबल पर पहुंचने के कुछ देर बाद ही वेटर आ गया। सलीम ने उसे सैंडविच और कॉफी का आर्डर दिया और पाइप सुलगा कर कश लेने लगा। आज उसने खासी मेहनत कर डाली थी।


एक और अनहोनी


अगले दिन रायना सुबह सात बजे ही शरबतिया हाउस पहुंच गई थी। वह अपने साथ चार नौकरों को लाई थी। जब वह पहुंची तो राजेश शरबतिया सो रहा था। रायना के इतनी जल्दी आने पर उसे जरा ताज्जुब हुआ। चूंकि वह रायना को पसंद करता था, इसलिए इतने सुबह आने पर वह नाराज नहीं हुआ। वह नाइट गाउन में ही नीचे ड्राइंग रूम में आ गया।

“इतनी सुबह-सुबह... सब खैरियत तो है?” राजेश शरबतिया ने मुस्कुराते हुए पूछा। राजेश शरबतिया ने नौकरों को नहीं देखा था। वह बाहर बेंच पर ही बैठे थे।

“मैं डॉ. वीरानी का शव लेने आई हूं।” रायना ने सपाट लहजे में कहा।

“तुम क्यों जिद पर अड़ी हुई हो।” शरबतिया ने उसे समझाते हुए कहा, “तुम्हारी यह जिद हम सबको मुसीबत में डाल देगी।”

“तुम्हें क्यों मुसीबत में डालेगी? क्या तुमने उन्हें कत्ल किया है?” रायना ने तीखे लहजे में पूछा।

उसकी यह बात सुन कर शरबतिया घबराकर खड़ा हो गया। उसने हकलाते हुए कहा, “मैं... मैं... भला... ऐसा... क्यों करूंगा...।”

“मुझे पाने के लिए।” रायना की आवाज में अब भी तीखापन मौजूद था।

“यह सच है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं... लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैं डॉ. वरुण वीरानी को कत्ल कर दूंगा।” शरबतिया ने सफाई पेश की।

“जो भी हो मुझे शव चाहिए।” रायना ने मजबूत लहजे में कहा।

“तुम मेरी बात...।”

शरबतिया की बात काटते हुए रायना ने कहा, “अबे गधेड़े! एक साधारण सी बात तेरी समझ में नहीं आती… मैं अगर लोगों के सामने ओपेनली डॉ. वीरानी का अंतिम संस्कार नहीं करूंगी तो मैं दुनिया को क्या जवाब देती फिरूंगी कि वह कहां चले गए। इस तरह से तो मैं फंस जाऊंगी।”

रायना ने पूरी बात एक सांस में कह दी। उसकी आवाज भी तेज थी। अपने लिए इस तरह के अपमानजनक शब्द सुनकर शरबतिया का चेहरा उतर गया। उससे आज तक इस तरह से किसी ने भी बात नहीं की थी। वह देश का जाना-माना इंडस्ट्रिलिस्ट था। उसकी गिनती देश के टॉप टेन अमीरों में होती थी।

कुछ देर की खामोशी के बाद रायना ने कहा, “दरअसल मैं ही मूर्ख हूं। मुझे मौत वाले दिन ही इस बात पर अड़ जाना चाहिए था, लेकिन तब मैं नशे में थी और ज्यादा ख्याल नहीं कर सकी थी।”

यह कहने के साथ ही वह उठ कर तेजी से बाहर निकल गई। पीछे-पीछे शरबतिया भी बाहर आया। वहां उसने चार नौकरों को देखा तो उसके कदम ठिठक गए। रायना चारों नौकरों के साथ कब्र की तरफ जा रही थी। शरबतिया खामोशी से उन्हें जाते हुए देखता रहा।

वहां पहुंच कर रायना ने नौकरों को कब्र खोदने में लगा दिया। कुछ देर में ही मिट्टी हटा दी गई। रायना ने कब्र की तरफ देखा तो उसकी चीख निकल गई। कब्र से लाश गायब थी।


*** * ***


सार्जेंट सलीम ने बैंक से कौन से राज हासिल किए थे?
लाश फिर किस तरह से गायब हो गई थी?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...