अधूरा पहला प्यार (दूसरी क़िस्त) Kishanlal Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अधूरा पहला प्यार (दूसरी क़िस्त)

"तू यहां अंधेरे मे कहा कर रही है?"
"तेरो इन्तजार।"
"इन्तजार।काहे?"
"तू मोकू वो गानों लिख देगो।"
"कौन सो?"
"वो ही जो तेने रासलीला मे गायो हतो।"
"तू कहा करेगी वा गीत को?"
"मोकू अच्छो लगो।याद कर लुंगी।"
"लिख दूंगो।"
"कल लिख लायेगो।"
"कहां?"
"यहीं पे ही ले आइयो।"
"यहां?पहली बात तो ये है कि तू यहां आयेगी ही नही।"
"क्यूं?"
"तू अपनी सहेलियों को लेकर यहाँ आएगी तो मैं शास्त्रीजी से नही पढूंगो।"
"मैं तुझे इतनी बुरी लगती हूँ?"
"मुझे पढ़ते समय उधम पसंद नही है।"मनोहर गुस्से में बोला।
"तू एक बात बता।"
"क्या?'
"मैं तोकू पसंद नहीं।तू मोये न चाहे।"
"को कह रहे हो?"
"मैं।"
"तू मोये अच्छी लागे है।"मनोहर को अल्हड़ मीरा बहुत पसंद थी।वह उसे चाहता था।उससे प्यार करता था।
"झूंठे।तोये अच्छी लगूं तो तू आवे से क्यूं मना कर रहयो है?"
"चावे को मतलब जया नाही कि ढिंढोरों पीटो जाए।सब काम समय पर ही अच्छो लागे है।पढ़ते समय उधम अच्छो नाये लगे मीरा।"
"अच्छो।मैं नाय आउंगी।फिर तो तू गानों लिख देगो।"
"लिख दुंगो।"मनोहर उसकी पीठ पर हाथ रखते हुए बोला,"अब नीचे उतर।"
"ऐसी भी जल्दी क्या है?"
"इतो भी नाये समझे।नीचे लड़के लड़कियां हमारे इन्तजार.मे खड़े होंगे।हम नीचे ना पहुंचे तो वा में से कोई हमे देखवे उप्पेर भी आ सके।अगर किसी ने हमे अंधेरे मे जीने में देख लिया तो क्या सोचेगा?"
मीरा की माँ का कुछ साल पहले स्वर्गवास हो चुका था।मीरा के पिता व्रन्दावन में पुजारी थे।वह मन्दिर में ही रहते थे।गांव में मीरा की पुशतैनी हवेली थी।इसमे मीरा अपनी दादी के साथ रहती थी।
मनोहर को गाने का शौक था।उसकी आवाज अच्छी थी।वह रासलीला और स्टेज प्रोग्रामो में गाने लगा था।मनोहर के गाने सुनकर ही मीरा आकर्षित हुई और उसे चाहने लगी थी।मनोहर को भी गांव की सभी लड़कियों में से मीरा ही अच्छी लगती थी।गोरे रंग और तीखे नेंन नक्श की मीरा की हंसी मस्त थी।वह हंसती तो ऐसा लगता मानो फूल झड़ रहे हो।
अक्टूबर के महीना शुरू हो चुका था लेकिन अभी ठंड का कहीं भी अता पता नही था।मौसम कोई से भी हो मनोहर रात को दस बजे से पहले कभी भी घर पर नही पहुंचता था।उस दिन भी वह घर लौट रहा था।गांव में लोग जल्दी ही सो जाते है।उन दिनों में टीवी या मोबाइल जो नही थे।वह गोपाल मंदिर वाली गली में घुसा ही था कि अंधेरे में एक कुल्हड़ उसके पैरों के पास आकर गिरा था।अंधेरे में उस रात इस तरह के अप्रत्याशित हमले से वह डर गया।उसने आंखे फाड़कर अंधेरे में चारो तरफ देखा था।अंधेरे मे सुनसान गली में उसे कोई नज़र नही आया था।तब वह आगे बढ़ा था।अंधेरे में उसने दो चार ही कदम आगे बढ़ाए थे कि फिर एक कुल्हड़ उसके पैरों के पास आकर गिरा।कुल्हड़ फूटने के साथ ही उसे सी सी की आवाजें सुनाई पड़ी थी।
उन आवाजो को सुनकर मनोहर सचमुच डर गया था।उसने अभी तक भूत प्रेतों और ऊपरी बलाओ के बारे में लोगो के मुंह से सिर्फ सुना ही था।लेकिन आज उसे लगा कि शायद सचमुच किसी बला ने आकर उसे घेर लिया है।वह खड़ा रह गया।कुछ सोच पाता उससे पहले दबी दबी सी आवाज सुनाई पड़ी,"मनोहर। मनोहर--
आवाज की दिशा में उसने सिर उठाकर देखा टी वह चोंक पड़ा।अंधेरे में छत पर बिखरेबालो वाली औरत की धुंधली सी आकृति उसे दिखाई पड़ी
(क्रमश शेष आगे