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अधूरा पहला प्यार (चौथी किश्त)

अंधेरी रात मे छत पर एक बिस्तर बिछा हुआ था।छत पर पहुंचते ही मीरा ने मनोहर को बाहों मे भर लिया।मनोहर ने भी उसे आगोश में लेकर उसके हाथों को चूम लिया था।दोनो ही वयस्क नही थे।अभी उनकी उम्र कच्ची थी।और यौवन का ज्ञान भी आधा अधूरा था।ऐसे में सिर्फ जोश और उन्माद मे उतेजना वश दो तन मिले तो तृप्ति नही मिली।उल्टे पीड़ा दर्द और अविकसित अंगों की हानि ही हुई।वासना और आवेश में स्त्री पुरुष के मिलन से जो सुख मिलना चाहिए।उसका पूर्ण अभाव था।
फिर भी प्यार तो प्यार ही है।प्यार के वशीभूत होकर समर्पण में सुख भले ही न मिले।शिकवे और शिकायत भी नही होती।
उस रात के बाद मीरा और मनोहर मिलने लगे।मीरा की दादी बूढ़ी और लाचार थी।इसलिए उन्हें पूरी आजादी थी।मीरा,मनोहर को सिर्फ मिठाई ही नही खिलाती थी।उसे खर्चे के लिए जबरदस्ती पैसे भी देने लगी थी।जब भी वे दोनों रात में चोरी छिपे मिलते तब शारीरिक सुख का आनंद लेना भी नही भूकते थे।पहले वे संभोग के बारे में अनाड़ी थे।लेकिन अब धीरे धीरे पारंगत होने लगे थे।
गर्मियों में जमुना सूख जाती थी।अंधेरा होते ही मनोहर और मीरा सुखी नदी को पार करके रिक्शे से मथुरा पहुंच जाते।रात की पिक्चर देखते और रात में ही अपने गांव लोहवन लौट आते।
गांव के स्कूल में पढ़ाई पूरी करने के बाद मनोहर ने मथुरा में इंटर में एड्मिसन ले लिया और वहीं रहने लगा था।अब वह छुट्टियों में ही गांव आता और रात मीरा के आगोश में गुज़ारता।कच्ची उम्र में वासना का खेल जारी था।दिन गुज़रने लगे।मीरा और मनोहर को मिलते हुए किसी ने भी नही देखा था।पर लोग शक करने लगे थे।
मनोहर जब दसवीं में था।तब एक दिन मीरा उससे बोली,"तू मेरा एक काम करेगा?"
"क्या काम?बता?"
"इसे बेच आइयो"।मीरा ने चांदी की कंधोनी उसे दी थी।
"इसे मैं कहाँ बेचूंगो?"मनोहर आश्चर्य से बोला था।
"सुनार की दुकान पर।और कहां?मैं कई बार मथुरा में बेचकर आयी हूं"।
"तुझे पेसो की ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गई?"
"जरूरत है।"
"कहीं तू चीजे बेचकर ही तो मुझे खर्चे के लिए पैसे नही देती,"मनोहर को मीरा पर शक तो पहले से था।लेकिन आज जब उसने कंधोनी बेचने के लिए दी तो उसका शक विश्वास में बदल गया था,"क्या करेगी इसे बेचकर।"
"मुझे हलवाई के पैसे चुकाने है।"मीरा बोली थी।
"कितने?"मनोहर ने पूछा था।
"अगर मैने उसे जल्दी पैसे नही दिए,तो वह पिताजी से कह देगा।फिर हो सकता है हमारी पोल खुल जाए।"
"इसका मतलब तू चीजे बेचकर ही यह सब कर रही थी।अगर तेरी दादी कु जया बात को पतो चल गयो तो?"
"दादी कू तो जया भी याद न होगो की वा पे कितनी चीजे है।"
मनोहर ने कंधोनी ले ली थी।इस बात का जिक्र वह कर नहीं सकता था।वह जब मथुरा आया तो वह कंधोनी भी अपने साथ ले आया था।मथुरा में उसने कमरा ले रखा था।उसने मीरा ने जो कंधोनी दी थी उसे अपने बक्से में रख दिया।
एक दिन एक लड़के की घड़ी किसी ने ले ली।जब क्लास में किसी के पास नही मिली तो लड़को के कमरों की तलासी लेने का निर्णय उस लड़के के कहने पर प्रिंसिपल ने लिया।मनोहर के कमरे की तलासी के लिए भी उस लड़के को भेजा गया।

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