कोरोना से सामना (अंतिम भाग) Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना से सामना (अंतिम भाग)

और अंत मे मैं अस्पताल जाने को राजी हो गया"कैसे आना है
"आपको लेने एम्बुलेंस जाएगी।आपको ठीक होते ही घर भेज दिया जाएगा।आपको छोड़ने भी एम्बुलेंस जाएगी।।आप बताये कब भेज दू एम्बुलेंस?
"2 बजे,"मैं बोला,"और क्या लाना है मुझे?"
"कुछ ज्यादा नही।बेग में एक जोड़ी कपड़े रख ले।कुछ ड्राई फ्रूट्स।खाना हमारे यहां मिलेगा।आप चाहे तो घर से भी मंगा सकते है।"
और हमने तैयारी शुरू कर दी।बेग में कपड़े।ड्राई फ्रूट्स।बिस्किट पानी की बोतल ।बेटी का फोन आया।मम्मी दो चद्दर जरूर रख देना।पत्नी दो दे रही थी।लेकिन मेने एक ही चद्दर बेग में रखी।
दो बजे गए लेकिन एम्बुलेंस नही आई। और फिर तीन बजे एक फोन आया।वह एम्बुलेंस वाले का था।और इस तरह पांच बजे तक अलग अलग नंबर से फोन आते रहे।अभी आ रहे है।
एम्बुलेंस तो अभी तक नही आई थी।जांच टीम आ गई।उसने आस पास के घरों में रहने वालों के कोरोना के सैंपल लिए और सबको टेबलेट दी थी।हमारे घर पर होम कोरंटीने का पेपर चिपका दिया था।तभी एम्बुलेंस वाले का फोन आया,"आप बाहर सड़क पर आ जाइये।"
मैंने साफ मना कर दिया।बोल दिया।अंदर घर पर कॉलोनी में आओगे,तो चलूंगा।वरना नही
और काफी देर की झिक झिक के बाद एम्बुलेंस अंदर आ गई।मैं बाहर गया तो वह बोला,"आप दूर खड़े रहिये
और मुझे दूर खड़े रखकर दरवाजा खोलने के बाद बोला,"अपना आधार दीजिये
और आधार के साथ मेरा फोटो खेंचा था।और आखिर मैं एम्बुलेंस में सवार हो गया।एम्बुलैंस चल दी।मीणा बाजार,पचकुंया, नाई की मंडी होते हुए आखिर हम जिला अस्पताल पहुंच ही गए।एम्बुलेंस का दरवाजा खोलते हुए ड्राइवर बोला,"आप को नही उतरना है।हवा के लिए खोल रहा हूँ।"
और मैं अकेला रह गया।कुछ देर बाद एक आदमी आया,जी बाद में पता चला डॉक्टर था।वह बोला,"क्या परेशानी है आपको?"
"कुछ नही"
"सांस लेने में दिक्जत।"
"नही"और मेरी बातें सुनकर बोला,"आप आ क्यो गए?"
"आपके सी एम ओ साहब ने कहा था।पॉजिटिव हो अस्पताल आना पड़ेगा
और वह चला गया।कुछ देर बाद मुझे एम्बुलेंस से उतरने के लिए कहा।मुहहै एक तरफ जाने के लिए कहा।नया बना एम आर आई रूम ठसके सामने एक ऑफिस था।मुझे बाहर लगी बेंच पर बैठा दिया गया।कुछ देर बाद एक कर्मचारी मेडिकल स्टाफ आकर बोला,"आप को क्या परेशानी है?"
"कुछ नही।"
"फिर आप घर मे ही कोरेन्टीन हो जाते।"
"आपके सी एम ओ साहब ने कहा था।अस्पताल आना पड़ेगा।"
"मैं डॉक्टर साहब से बात करता हूँ।आपको दवा देते है।आप लिख देना।मैं घर मे कोरेन्टीन रहूंगा और चले जाना।"
मैं तो इसके लिए तैयार हूँ।"
उसने डॉक्टर से बात की।डॉक्टर बोला।एक तो उम्र ज्यादा है।।दूसरे एम्बुलेंस लेने गई थी।भर्ती करना पड़ेगा।"
और वह आया।फिर मुझे गोलियां देते हुए बोला,"ये दो गोली।सुबह शाम पांच दिन तक लेनी है।ये तीन गोली में से रोज एक एक लेनी है।और पेरासिटामोल दिन में तीन बार लेनी है।"वह दवा देने के बाद बोला,"बजट अलॉट नही हुआ है।इसलिए खाने की व्यवस्था नही है।दूसरे मरीजो का खाना आता है।आप चाहे तो उसके लिए बोल दु।चाहे तो आप घर से मंगा सकते है।"
"खाना मैं घर से मंगा लूंगा।"
"आप रूम में चले जाएं।"
एम आर आई बिल्डिंग में जो रूम थे।उन्हें कोरोना मरीज के लिए प्रयोग में लाया जा रहा था।दो रूमों में दो दो पलँग थे।इन मे एक एक मरीज पहले से ही था।मुझे वेटिंग रूम में भेजा गया।यह बड़ा हॉल था।इसमें चार पलँग थे।गद्दे पडे थे।लेकिन गद्दों पर चद्दर और तकिये नही थे।यह तो बढ़िया था मैं एक चद्दर लाया था।जिसे गन्दे से गद्दे पर बिछाकर सोने लायक बना लिया था।बेग को तकिए की जगह काम मे लिया।
वहाँ पानी के लिए कैम्पर था।लेकिन खाली ।मुझे उसमे से पानी नही लेना था।फिर भी मेने स्टाफ को बोला था।लेकुन तीसरे दिन बोतल उसमे लगाई गई थी।अगर बाहर से मरीज पानी न मंगाए,तो प्यासा ही मर जाये। प ।वो तो मेरे पास पानी था।वरना प्यासा ही मर जाता।दूसरे मरीजो ने बताया।पानी घर से मंगाते है।बाहर चेनल था।जिसे ताला लगाकर हमे बन्द कर दिया गया।रूम से अटेच टॉयलेट था।
रात को डॉक्टर और कम्पाउण्डर आये।आवाज देकर उन्होंने हमे चेनल के पास बुला लिया।मरीज इधर, डॉक्टर ऑक्सीजन लेवल नापा टेम्पटुरे देखा और पूछा और फिर पूरी रात के लिए गायब।
सुबह चाय पीने की आदत हैलेकिन चाय कहां?
सुबह नहा धोकर कपड़े बदल लिए।8 बजे सफाई वाला आया जो सफाई करके चला गया।नौ बजे डॉक्टर और कम्पाउण्डर आये थे।मैं चैनल के अंदर वे बाहर ऑक्सिजन और टेम्परेचर चेक किया।फिर डॉ जो सरदार थे,बोले,"और कोई परेशानी?"
और वे चले गए।घर से चाय और खाना आ गया।मुझे सुबह जल्दी चाय पीने की आदत थी।लेकिन
करीब दस बजे आवाज लगी थी,"खाना ले लो।"
दो लोग और थे।घर से खाना आता फिर भी वे लेते थे।दिन में अकेले पलँग पर मोबाइल देखकर समय काटा था।दिन बिना काम।अकेले में बहुत लंबा लगा था।शाम को पांच बजे फिर खाने की आवाज लगी थी।खाना लेने के लिए बर्तन होना ज़रूरी था।
मेरा घर से खाना आ गया था।शाम ढले मेरे रूम में एक मरीज और आ गया।वह कुछ नही लाया था।बेग में कपड़े थे।लेकिन चद्दर नही।वह उसी गन्दे से बेड पर लेट गया।उसने बताया।वह दीवानी में है।जज साहिब पॉजिटिव निकले थे।टेस्ट होने पर वो भी।
"तुम्हारी उम्र कम है।तुम तो घर पर ही कोरेन्टीन हो जाते"
" मैने कहा था।लेकिन यहां से फोन गया।बताया था।सब सुविधा है,लेकिन
उसकी बीबी गांव थी।वह यहाँ अकेला रहता था।उसको अस्पताल के खाने का ही सहारा था।बर्तन उस पर थे, नही।पानी के लिए जो dispsal रखे थे।उनमें सब्जी और अखबार में रोटी लेता था।
12 अप्रेल को वह मोबाइल देख रहा था।अचानक बोला,"नेट पर समाचार आ रहा है।कोरोना की आड़ में लोगो की किडनी अस्पताल में निकाली जा रही है।"
मैं बोला,"यह सरकारी अस्पताल है।किसी निजी अस्पताल में हो सकता है।"
"फिर भी हमे जागरूक होना चाहिए।"और वह सामने वाले कमरों में मोबाइल लेकर चला गया।,
कोने वाले कमरे में उसकी ही उम्र का आदमी था।पता नही चला।कब उसे छुट्टी मिल गई और उसमें एक औरत आ गई थी
इस बात का मुझे रात को पता चला।जब डॉक्टर जांच के लिए आया ।उस औरत ने डॉक्टर से शिकायत की थी।डॉक्टर ने उसे डाटा और औरत कहीं और शिफ्ट कर दिया।चौथे दिन सुबह डॉक्टर जांच के समय आये तब मुझसे बोले,"आज आपका RTPCR करा रहे देते है।आप घर जाए।"
डॉ ने कहा दिया लेकिन सैंपल लेने कोई नही आया था।शाम को एक दूसरी औरत सामनेवाले कमरे में आ गसी।हमारे रूम में एक आदमी और आ गया उसकी तबियत ज्यादा खराब नज़र आ रही थी।रात को डॉक्टर चेक के लिए आये।नार्मल रूटीन चेक।नए आये आदमी ने बताया था।उसकी तबियत ठीक है।लेकिन ऐसा नही था।रात को अचानक सैंपल लेने आ गए।मेरा और एक नंबर रम के मरीज का सैंपल लिया था।हमारे रूम में आये मरीज की तबियत बिगड़ रही थी।और फिर रात में उसे कही और शिफ्ट कर दिया गया।
सुबह मेरी आँख खुली तो देखा।मेरे बगल में पलँग पर रात में कोई मरीज आ गया था। वह उठा तो बिना मास्क के घूम रहा था।मैं उससे बोला,"मास्क लगाओ।"
वह मास्क लगाते हुए बोला,"मेरा दम घुट रहा है।"
"डॉक्टर से बोलो।"
और कुछ देर बाद उसे शिफ्ट कर दिया गया।
मेरी रोज की दिनचर्या थी।कमरे से अटेच बाथरूम था।मैं सुबह सेविंग व अन्य कार्य करके नहाकर कपड़े बदल लेता था।घर से खाना,चाय ,कपड़े आदि सामान के साथ अखबार भी आ जाता था।मैं अखबार पढ़ता या मोबाइल चलाता रहता।
एक बात सब से ज्यादा खटक रही थी।मेडिकल स्टाफ देखने आता तब बहुत दूरी बनाए रखता।सेनेटाइजर का उपयोग करता।लेकिन मरीजो के साथ घोर लापरवाई थी।बार बार दूसरा मरीज आता लेकिन न तो बेड को सेनेटाइज किया जाता।न रूम को ही सेनेटाइज किया जा रहा था।
पांचवे दिन शाम को दो लोग आए और बोले,"आपकी रिपोर्ट आ गयी।"
लेकिन रिपोर्ट आई नही थी।पांचवे दिन मेरे सामने वाले पलंग पर एक और मरीज आ गया था।वह घर से सामान लाया था।
छठे दिन सुबह डॉक्टर जांच के लिए आये तो बोले,"किशनजी रिपोर्ट देखते रहे।आते ही डिस्चार्ज हो जाये।"
और मैं हर पांच मिनट बाद मोबाइल पर अपनी रिपोर्ट देखने लगा।सामने वाले कमरे में एक औरत आ गई थी।उसकी तबियत ज्यादा खराब थी। बार बार उसे उल्टी हो रही थी।उसे देखकर मुझे भी बेचैनी हो रही थी।कोरोना के बढ़ते आंकड़े डरा रहे थे।लोगो की मौत सहमा रही थी।दिन जैसे तैसे निकला।और शाम को छ बजें मेरी रिपोर्ट नेगेटिव आ गयी।मेने सामने के आफिस में बोला।वह बोला कब जाना चाहोगे
"अभी।"
"ठीक है आप सामान पैक करो।मैं डिस्चार्ज सर्टिफिकेट बनाता हूँ।"
और कुछ देर बाद मुझे डिस्चार्ज कर दिया।
मैं भाग वहाँ से।बाहर सड़क पर आते ही ऑटो मिल गया।और बिना मोल भाव किये मैं उसमे बेठ गया।
घर आते समय मैं कितना खुश था
मैं ही जानता हूँ