स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem (the socialization) - 20 Nirav Vanshavalya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem (the socialization) - 20

अदैन्य ने अपनी चमचमाती वॉक्सवैगन को छोड़ा और एयरपोर्ट की ओर प्रयाण किया.

यहां भारतीय हवाई अड्डे पर प्लेन उतरता है और उसमें से ब्राउन गोगल्स पहना हुवा अदैन्य बाहर निकल रहा हैं.


अदैन्य की सर्वथा और सदैव यही इच्छा थी कि प्रफुग जर्मनी से ही शुरू हो. मगर ऐसा हो ना सका.


ओवरकोट और ब्राउन गोगल्स में अदैन्य हॉलीवुड के किसी सेशन स्टार से कम नहीं दिखता था.

मगर फिर भी अदैन्य अपने आप में बहुत बड़ा है मगर, उसका बर्ताव कभी-कभी लघु लाक्षणिको जैसा हो जाता है. और शायद इसी वजह से संसार में कुछ लोग उसे "महात्मा" से संबोधित करते हैं.


अपनी विलक्षण चाल से अदैन्य बाहर आता है और सामने गौतम को पाता है.


गौतम ने हाथों में गुलदस्ता दिया और कहां भारतवर्ष में आपका स्वागत है.


अदैन्य गाड़ी में बैठा और थोड़ा मुस्कुरा कर गौतम से पूछा गौतम जी यह भारत देश तो समझ में आता है, मगर यह भारतवर्ष क्या है!!


गौतम ने हंसकर कहा सर, सदियों पहले भारत में विभिन्न रजवाड़े हुआ करते थे. और इनके वर्ष भी भिन्न-भिन्न. कुछ लौकिक घटनाओं के चलते भारत में एक ही कैलेंडर स्थापित हो गया. उसी कैलेंडर को भारत वर्ष कहते हैं.


अदैन्य ने कहा ओहो दिलचस्प.

गौतम ने कहा, रजवाड़े भिन्न ही रहे मगर वर्ष एक ही हो गया. भारतवर्ष, विक्रम संवत.


अदैन्य ने कहा बहुत खूब, शायद लोकतंत्र या अखंड भारत की विचारधारा यहीं से शुरू हुई होगी.


गौतम ने कहा जी, यह तो मैं नहीं कह सकता मगर हां, इतना जरूर कहूंगा कि अखंड भारत की कल्पना चाणक्य के काल से ही शुरू हो गई थी. आतताई सिकंदर ने चाणक्य को अखंड भारत की कल्पना करने पर विवश कर दिया था.


और लोकतंत्र? अदैन्य ने पूछा.


गौतम ने बताया यह सच है मध्ययुग का कुछ काल भारत के शासन काल के लिए कलंक रूप सिद्ध हुआ हो, मगर उस मध्ययुग से उस पार भारत में लोकतंत्र ही लोकतंत्र था. यानी कि राजाओं के शासन में भी सर्व स्वातंत्र्य.


जर्मनी के नागरिक अदैन्य मैं थोड़ा सोचा और फिर कहां एनी वे, मे बी पॉसिबल.


अदैन्य ने पूछा, तो गौतम जी गांधीजी का क्या रोल प्ले था!

गौतम ने कहा फुल्ली फिजिकल एंड सॉलि़ड.


अदैन्य समझ गया और बोला जी बिल्कुल लोकतंत्र के लिए बाकी सभी का कुछ प्रतिशत मगर गांधी जी का 100% योगदान रहा. राइट?


गौतम थोड़ा मुस्कुराया और बोला मेय बी.


इधर राष्ट्रपति भवन में प्रांजल शाह और उनके कुछ सिपहसालार आतुरता से अदैन्य की प्रतीक्षा कर रहे है, कि इतने में ही प्रांजल शाह के फोन की घंटी बजी.


दासगुप्ता ने फोन उठाया और सुना, बस 10 मिनट में हम पहुंच रहे हैं.

दासगुप्ता ने तुरंत फोन रखा और प्रांजल शाह से कहा बस 10 मिनट.


एक पल के लिए प्रांजल ने अपनी आंखों में पारिजातक की खुशबू महसूस की मगर तुरंत प्रांजल ने अपनी आंखें बंद कर ली.

दूसरे ही पल प्रांजल ने यह तय कर लिया की अपने कुछ वीटो पावर का इस्तेमाल करके यह मामला प्रधानमंत्री से कुछ कौस दूर रख के मैं स्वयं ही निपटा दूंगी.


प्रधान मंत्री चंद्रकांत माणिक अपने दफ्तर में बैठे हैं और कुछ नवीन समाचार की प्रतीक्षा कर रहे हैं.