चन्द्र-प्रभा--(अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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चन्द्र-प्रभा--(अन्तिम भाग)

किन्तु नागरानी का अम्बिका बनकर स्वर्णमहल में जाने पर नागदेवता ने अपनी आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि____
क्षमा करें, महाराज अपार! एक बार नागरानी के प्राण संकट में पड़ चुके हैं और मैं भी उन्हें खोजने गया था तब अम्बालिका ने मुझे भी बंधक बनकाकर पिटारे मे बंदी बना दिया था,उस समय हम बड़ी कठिनाईयों के साथ स्वर्णमहल से बाहर आ पाए थे और यदि इस बार भी कुछ ऐसा हुआ तो।।
तभी नागरानी ने नागदेवता को समझाते हुए कहा कि____
ऐसा आवश्यक नहीं है नागदेवता कि इस बार भी हमारे प्राण संकट में पड़ जाएं और हमने राजकुमार भालचन्द्र को वचन दिया है कि किसी भी स्थिति में हम उनकी सहायता करेंगें और जब हम इस युद्ध के अंतिम पड़ाव पर आ चुके हैं तो आप अपने पैर पीछे ले रहे हैं, मुझे ज्ञात है कि आपको मेरी चिंता है, परन्तु मैने और आप ने जो इन सबको वचन दिया है उसका क्या होगा? इतने स्वार्थी ना बनें नागदेवता!इन सबका विश्वास ना तोड़े,हमारा सहयोग ही इन सबको विजेता बना सकता है और ये मत भूलिए कि आपके लिए एक बार महाराज अपार भी अपने प्राणों को संकट में डाल चुकें हैं।।
हाँ,नागरानी! कदाचित मेरे सोचने समझने की क्षमता चली गई थी,इसलिए मैं ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें कर रहाक था,मुझे क्षमा कर दो नागरानी! और आप सब भी मुझे क्षमा करें, मुझसे बड़ी भूल हुई जो ऐसे स्वार्थी शब्द मेरे मस्तिष्क एवं मेरी जिह्वा तक आएं,नागदेवता ने सबसे क्षमा माँगते हुए कहा।।
तो अब बिलम्ब किस बात का चलने की तैयारी करें,सहस्त्रबाहु बोला।।
हाँ...हाँ...क्यों नहीं, परन्तु अब योजना क्या होगी? इस पर भी तो तनिक विचार कर लें,वैद्यनाथ जी बोले।।
और सभी मुख्य सदस्यों ने एकांत में जाकर कुछ योजनाएं बनाई और उसी योजनाओं के अनुसार कार्य को करने का निर्णय किया गया।।
नागरानी बोली,मैं स्वर्णमहल के पिछले द्वार से प्रवेश करूँगीं और द्वार यूँ ही खुला छोड़ दूँगी, जिससे आप सब स्वर्णमहल में सरलता से प्रवेश कर सकें, इसके उपरांत मैं अम्बालिका के निकट अम्बिका का रूप धरकर जाऊँगी और ये कहूँगी कि अब तुम प्रसन्न हो जाओं,शीशमहल में सबकुछ भष्म हो गया है, महाराज और उनका परिवार भी और इसी का प्रतिशोध लेने सहस्त्रबाहु सेना की अगवानी करते हुए आया है, तुम्हें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है अम्बालिका ! क्योकिं राजकुमार भालचन्द्र को तुमने बंधक बना रखा है और महाराज तो जा ही चुके हैं, अकेला सहस्त्रबाहु हम दोनों को भला क्या हानि पहुँचा पाएगा।।
इस तरह से अम्बालिका निश्चिन्त हो जाएंगी और मैं जैसे ही पिछले द्वार से प्रवेश करूँगीं तब आप सब भी पिछले द्वार से शीघ्रता से प्रवेश करके प्राँगण की ओर पहुँच जाना,वहीं से आप सबको उस स्थान का मार्ग भी ज्ञात हो जाएगा, जिस स्थान पर अम्बालिका ने अपनी एक ही प्रकार की मूर्तियाँ बना रखीं हैं, आप सबको याद हैं वो सभी मूर्तियाँ एक ही जैसीं है, उन्हें देखकर कोई भी भ्रमित हो जाएगा कि वास्तविक मूर्ति कौन सी है जिसे तोड़ना है, छत्रसाल ने बताया था कि जिस मूर्ति की दृष्टि आकाश की ओर हो वही वास्तविक मूर्ति है, उसी में अम्बालिका की आत्मा बंधक है और सभी तो कृत्रिम हैं जिनकी दृष्टि धरती की ओर है।।
परन्तु ,उस मूर्ति को तोड़ने के लिए हमें ऐसे पारखी व्यक्ति की आवश्यकता है जो उसे ठीक तरह से मूर्ति को पहचान पाएं,क्योंकि यदि वो कृत्रिम मूर्ति तोड़ेगा तो उसी क्षण उसकी मृत्यु हो जाएगी,नागदेवता बोले।।
आप इस बात की बिल्कुल भी चिंता ना करें,ये कार्य मैं करूँगा, सहस्त्रबाहु बोला।।
तो अब चिंता के लिए कुछ भी शेष नहीं रह जाता ,सेना को आगें बढ़ने का आदेश दें और जितने भी इच्छाधारी सर्प सैनिक बने हुए हैं उनसे कहिए कि वे स्वर्णमहल पहुँच कर सर्प रूपधारण करके अपना कार्य करें,देखते ही देखते अम्बालिका की सेना का शीघ्रता से नाश हो जाएगा,विभूतिनाथ जी बोले।।
और मैं अपने संग सूर्यप्रभा को भी ले जाती हूँ, अपने वस्त्रों में छुपाकर,वहाँ ये राजकुमार से भी मिल लेगी,दोनों एकदूसरे की मनोदशा समझकर संतोष कर लेंगें,नागरानी बोलीं।।
परन्तु ,इसमे तो संकट है, कहीं राजकुमारी को कुछ हो गया तो क्योंकि आप तो अम्बालिका को ये सूचना देने वालीं है कि सब नष्ट हो चुका है, महाराज का परिवार भी,वैद्यनाथ जी बोले।
परन्तु तभी मैना बनी सूर्यप्रभा शीघ्रता से नागरानी के कंधे पर बैठ गई और सांकेतिक भाषा में बोली की मुझे राजकुमार के पास जाने दीजिए, सभी ने राजकुमारी की मनोदशा को समझा और मैना बनी सूर्यप्रभा को नागरानी के संग जाने की अनुमति मिल गई।।
तो ठीक है, अब मैं और प्रभा चलते हैं, बिलम्ब करने का कोई तात्पर्य, नागरानी बोली।।
अब क्या था ?नागरानी ने सर्प रूपधारण किया और प्रभा ने उड़ते हुए स्वर्णमहल की ओर प्रस्थान किया,कुछ ही समय में दोनों ही स्वर्णमहल के पिछले द्वार पर थे,दोनों ने कुछ समय तक सभी की प्रतीक्षा की,और सभी लोग भी कुछ ही समय में स्वर्णमहल के पिछले द्वार पर पहुँच गए, सभी के पहुँचने के उपरांत नागरानी ने अम्बिका का रूप धारण किया और मैना से कहा कि तुम आँखे बंद करके सो जाने का अभिनय करो और नागरानी ने प्रभा को अपनी ओढ़नी छुपाकर कमर में लपेट लिया।।
और सबसे कहा कि आप सभी अपना कार्य कीजिए और मैं अपना और उधर मुख्य द्वार से सहस्त्रबाहु और सोनमयी भी सेना के संग आ पहुँचे,अब अम्बिका बनी नागरानी अम्बालिका के निकट पहुँची_____
अम्बिका को देखकर अम्बालिका को कुछ ढ़ाढ़स बँधा और उसने शीघ्र ही पूछा कि क्या समाचार लाई हो,कुछ ज्ञात करने में सफल हो सकी या नहीं।।
हाँ,महाराज और उनका परिवार नहीं रहा इसलिए सहस्त्रबाहु सेना को लेकर के स्वर्णमहल मुख्य द्वार आ पहुँचा है, अम्बिका बनी नागरानी बोली।।
तो अब मैं उधर सैनिकों को आदेश देने जा रही हूँ कि वो सभी अब सावधान हो जाएं क्योंकि सहस्त्र कभी भी आक्रमण कर सकता है, अम्बालिका बोली।।
किन्तु,मैं तो ये कह रही थीं कि चलो ये समाचार भालचन्द्र को दे दें कि सहस्त्रबाहु आ पहुँचा, सेना लेकर,अम्बिका बनी नागरानी ने अम्बालिका से कहा।।
तो तुम चली जाओं ना! तुम्हें भी कारावास का मार्ग ज्ञात है, अम्बालिका बोली।।
हाँ,वो तो ज्ञात है मार्ग किन्तु यदि तुम भी संग चलती तो अच्छा रहता,वो क्या है ना अम्बालिका! चूँकि मैं उसकी बड़ी माँ हूँ तो तनिक संकोच सा होता है, उसके संग अकेले में बात करके,अम्बिका बनी नागरानी ने बात को सम्भालने का प्रयास करते हुए कहा,चूँकि उन्हें तो कारावास का मार्ग ज्ञात ही नहीं था।।
अच्छा चलो,मैं भी संग चलती हूँ, अब तो वो वैसे भी असहाय हो चुका है, अम्बालिका बोली।।
क्या तात्पर्य है? तुम्हारा! असहाय! भला किस प्रकार? अम्बिका बनी नागरानी ने पूछा।।
हाँ,भालचन्द्र का धड़ पाषाण का जो बना दिया है मैने,अम्बालिका बोली।।
ये सुनकर अम्बिका भनी नागरानी का हृदय कुछ विचलित सा हो गया और नागरानी ने साहस बटोरते हुए अम्बालिका से पूछा कि यदि राजकुमार को उसकी पूर्व स्थिति मे लाना हो तो इसका क्या उपाय हो सकता है?
कुछ नहीं वो तो अत्यधिक सरल है,वो जो मेरे कक्ष में संदूक के विशेष प्रकार की भष्म रखी है जो कि मैने उसे सौ व्यक्तियों की त्वचा को जलाकर बनाया था,उसे भालचन्द्र के धड़ पर डालने से भालचन्द्र अपनी पूर्व स्थिति मे आ जाएगा, अम्बालिका बोली।।
अच्छा! तो ये है इसका उपाय,अम्बिका बनी नागरानी ने कहा।।
अरे,ये तो तुम्हें ज्ञात था तो क्यों पूछ रही हो,अम्बालिका ने पूछा।।
मैं भूल गई थी,बहुत समय पहले बताया था ना तुमने!अम्बिका बनी नागरानी बोली।।
और ऐसे ही वार्तालाप करते करते दोनों कारावास जा पहुँची, तब अम्बालिका बोली,तुम भालचन्द्र के निकट रहो,मैं सेना को आदेश देती हूँ और इसे भी समाचार देकर तुम शीघ्र ही मेरे पास आ जाना,मै अकेले सभी का सामना नहीं कर सकती।।
ठीक है अम्बालिका! तुम चलो,मै शीघ्र ही आती हूँ, अम्बिका बनी नागरानी बोली।।
अम्बिका को देखते ही भालचन्द्र बोला____
आप पुनः आ गईं,बड़ी माँ! ऐसा प्रतीत होता है कि आपको मुझ पर दया आ गई इसलिए कदाचित आप मुझे देखने चलीं आईं।।
हाँ,पुत्र!अत्यधिक दया आ रही है, ये लो तुम्हारा उपहार और नागरानी ने प्रभा को अपनी ओढ़नी से निकाला और राजकुमार की ओर भेज दिया,राजकुमार प्रभा को देखकर अति प्रसन्न हुआ और प्रभा भी प्रसन्न होकर राकुमार के काँधे पर जा बैठी।।
राजकुमार भालचन्द्र को ये समझने मे बिलम्ब ना हुआ कि अम्बिका नहीं नागरानी हैं जो अपने प्राण संकट में डालकर उससे मिलने आईं हैं और उसने सूर्यप्रभा से कहा कि तुम मेरे काँधे पर नहीं मेरी हथेली पर बैठों और सूर्यप्रभा,भालचन्द्र की हथेली पर बैठ गई।।
तभी नागरानी बोली कि हमारे पास समय नहीं है, मैं अम्बालिका के कक्ष मे जाकर संदूक से भष्म लेकर आती हूँ ताकि राजकुमार अपने पूर्व रूप में आ सकें और मैन अभी अम्बिका के वेष में ही रहूँगी कि कोई भी मुझे पहचान सकें और नागरानी जा पहुँची अम्बालिका के कक्ष में और भष्म लाने मे सफल भी हो गईं,उन्होंने जैसे ही वो भष्म भालचन्द्र पर फूँक मारकर उड़ाई तो चमत्कार हो गया क्योंकि उस भष्म से सूर्यप्रभा भी अपने पूर्व रूप में आ चुकी थीं।।
तीनों की प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा,जो वो चाहते थे,ये उससे भी अधिक था,तभी नागरानी ने योजना बनाई कि तुम दोनों बाहर आकर बेड़ियाँ डाल लो और मै अम्बिका हूँ तो किसी को कोई संदेह नहीं होगा और कोई पूछेगा तो कह दूँगी कि अम्बालिका ने कहा इन्हें उसके पास ले जाने को,इस प्रकार हम प्राँगण तक पहुँच सकते हैं और योजना अनुसार तीनों प्राँगण की ओर चल पड़े,जैसे ही प्राँगण पहुँचे तो नागरानी ने दोनों की बेड़ियाँ खोलते हुए कहा कि अब तुम दोनों स्वतन्त्र हो।।
और जैसे सूर्यप्रभा को सबने उसके पूर्व रूप में देखा तो सब प्रसन्न हो उठे,अपार और जलकुम्भी ने अपनी पुत्री को हृदय से लगा लिया,तीनों एकदूसरे से मिलकर अपने अपने अश्रुओं को रोक नहीं पाएं और सबकी आँखों से अश्रुधारा बह चली।।
अम्बालिका ने देखा कि सभी इच्छाधारी सर्पो ने उसके सैनिकों को क्षण भर में खत्म कर दिया तो वो भयभीत होकर स्वर्णमहल के प्राँगण की ओर आई।।
तभी अम्बालिका ने भी प्राँगण में प्रवेश किया , उसने सूर्यप्रभा और भालचन्द्र को उसके पूर्व रूप में देखा तो क्रोधित हो कर अम्बिका से पूछा___
ये सबने तुमने किया अम्बिका! इतना बड़ा विश्वासघात,इसका तात्पर्य है कि तुम अब तक अपनी बड़ी माँ होने का कर्तव्य निभा रही हो।।
अम्बिका! कौन अम्बिका? मैं तो नागरानी हूँ, नागरानी ने अपने पूर्व रूप में आकर कहा।।
तो मेरी बहन अम्बिका कहाँ है? अम्बालिका ने पूछा।।
उसे तो अपने कर्मों का दण्ड मिल चुका है अम्बालिका! अब तुम्हारी दुर्गति होने का समय है, जलकुम्भी बोली।।
क्या तात्पर्य है तुम्हारा? अम्बालिका ने पूछा।।
तात्पर्य ये है कि तुम्हारी बहन का अंतिम संस्कार हो चुका है और मैने ही उसे दण्डित किया है,अपारशक्ति बोले।।
तुम सब को ऐसा प्रतीत होता है कि तुम मुझे सरलता से हानि पहुँचा सकते हो,अम्बालिका बोली।।
ऐसा प्रतीत नहीं होता है, ऐसा ही हैं, मैं आज रात्रि ही तेरा सर्वनाश कर दूँगा, तूने महाराज और उनके परिवार को बहुत दुःख दिए हैं, भालचन्द्र बोला।।
पहला प्रहार आप कीजिए महारानी लीजिए तलवार,अपारशक्ति बोले।।
और रानी जलकुम्भी ने अम्बालिका पर प्रहार किया किन्तु अम्बालिका को कोई हानि ना हुई तभी अम्बालिका हँसते हुए बोली___
हा...हा...हा...हा...तुम इतनी सरलता से मुझे हानि नहीं पहुँचा सकते,उसके लिए रहस्यों का ज्ञात होना आवश्यक है।।
और तभी राजकुमार भालचन्द्र बोला___
वो रहस्य मुझे ज्ञात है, अभी तू देखना कि मैं क्या करता हूँ?
और इतना कहकर भालचन्द्र उन वृत्ताकार मूर्तियों की ओर भागा,परन्तु अंधकार होने के कारण वास्तविक मूर्ति की दृष्टि को ज्ञात करना कठिन था इसलिए भालचन्द्र वहीं रूक कर विचार करने लगा,तब तक नागदेवता सभी के संग उस स्थान पर जा पहुँचे और उन्हें एक उपाय सूझा।।
उन्होंने अपनी नागमणि निकाली,जिसके प्रकाश से सारा वातावरण प्रकाशमय हो चुका था और भालचन्द्र से नागदेवता बोले___
भालचन्द्र उठाओ अपनी तलवार और उस वास्तविक मूर्ति पर प्रहार करो।।
और जैसे ही भालचन्द्र अपनी तलवार से प्रहार करने को हुआ तो उसी समय अम्बालिका ने नागमणि को काले वस्त्र से ढ़क दिया जिससें भालचन्द्र की तलवार का प्रहार वास्तविक मूर्ति पर ना पड़ कर कृत्रिम मूर्ति पर पड़ गया और वो उसी क्षण मृत्यु को प्राप्त ह़ो गया।।
सूर्यप्रभा राजकुमार को मृत देखकर बिलख बिलख रो पड़ी और पुत्री का दुख देखकर अपार और जलकुम्भी भी ब्यथित हो गए, सारा वातावरण क्षण भर में दुख में परिवर्तित हो गया।।
और अम्बालिका की हँसी से वातावरण गूँज उठा....
हा...हा...हा...हा...मैने कहा था कि सरल नहीं हैं मुझे नष्ट करना,परन्तु तुम मूर्खो को समझ मे ही नहीं आया,अब इसका परिणाम देख लो,राजकुमार की बलि चढ़ा दी तुम लोगों ने,अब बेचारी सूर्यप्रभा का क्या होगा?
तभी उसी क्षण दामिनी की भाँति,वायु के वेग से सहस्त्रबाहु और सोनमयी ने प्राँगण में प्रवेश किया और सहस्त्रबाहु बोला____
सोनमयी!बिलम्ब मत करो।।
और सोनमयी ने बिना बिलम्ब किए वो गिद्ध की अस्थियों की भष्म अम्बालिका पर उड़ेल दी,कुछ ही क्षण में अम्बालिका की देह अग्नि की लपटों में परिवर्तित होकर उसकी देह को भष्म का रूप दे दिया,अम्बालिका के संग संग उसके सारे पाप भी नष्ट हो गए।।
अम्बालिका के जाते ही सारी बाधाएँ दूर हो गई, अब ना वो रही और ना उसका जादू,सब वैसा हो गया जैसा पहले था ,राजकुमार भालचन्द्र भी जीवित हो उठे।।
सब मारे प्रसन्नता के एक दूसरे से मिले और सोनमयी को इस साहसिक कार्य के लिए बधाई दी।।
उस रात्रि राजा अपार ने शीशमहल में विस्फोटक करने से पूर्व पाषाण बने अपने सेनापति जो कि सहस्त्रबाहु के पिता है और अपने पाषाण बने सैनिकों को शीशमहल से निकालकर एक सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया था,अम्बालिका के नष्ट होते ही व़ो सब भी अपने पूर्व रूप में आ गए और उधर भालचन्द्र के माता पिता भी अपने पूर्व में आ चुके थे।।
महाराज अपारशक्ति ने पुनः स्वर्णमहल का कार्यभार सम्भाल लिया,वैद्यनाथ और सुभागी पुनः दोनों राजा रानी की सेवा मे लग गए, विभूतिनाथ जी को पुनः मंदिर का पुरोहित बना दिया गया और सहस्त्रबाहु के पिता पुनः अपारशक्ति के सेनापति बन गए।।
कुछ दिन सोनमयी और सूर्यप्रभा स्वर्णमहल मे दोनों बहनों की तरह रहीं और इसके उपरांत सूर्यप्रभा का विवाह भालचन्द्र से हो गया और सोनमयी का सहस्त्रबाहु से,सहस्त्रबाहु को भालचन्द्र ने अपना सेनापति बना लिया और चारों भालचन्द्र के राज्य में प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे।।

समाप्त___
आप सब पाठकों का धन्यवाद🙏🙏😊😊