गौरीशंकर के मस्तिष्क में अब केवल एक ही विचार चल रहा था कि उसे राजा अपारशक्ति को किसी भी प्रकार अपने मार्ग से हटाना हैं और इसके लिए उसे कुछ भी करना स्वीकार था,उसके विचार इतने घृणित और दूषित हो चुके थे कि वो कुछ भी सकारात्मक सोचना ही नहीं चाहता था।।
गौरीशंकर ने अपनी योजना को सफल बनाने के लिए महल में जाना प्रारम्भ कर दिया,उसने महल मे सबके साथ अच्छा व्यवहार बना लिया एवं राजा अपारशक्ति से भी कुछ दिनों मे ही निकटता बढ़ा ली,अब अपारशक्ति और महल के और भी सदस्यों का गौरीशंकर विश्वासपात्र बन गया,राजा अपारशक्ति और विभूतिनाथ भी नहीं समझ पाए कि गौरीशंकर के मस्तिष्क में क्या षणयन्त्र चल रहा है।।
कुछ दिन ऐसे ही बीत गए किन्तु अभी तक राज्य के नागरिकों की बलि हत्या बंद ना हुई,विभूतिनाथ बस अमावस्या की रात्रि की प्रतीक्षा कर रहे थें, उन्होंने राजा के साथ कुछ गुप्त परामर्श किए और ये गुप्त बातें गौरीशंकर ने भी सुन ली,विभूतिनाथ जी की योजना थी कि परसों अमावस्या की रात्रि है, उसी दिन हम उस जादूगरनी को उस शीशमहल मे मारने की योजना बनाते हैं।।
हम शाम के समय जब वो जादूगरनी निष्क्रिय रहती हैं तो श्रापित शीशमहल के प्रागंण मे पूजा की तैयारी शुरु कर देते हैं और जैसे ही अमावस की काली रात्रि होगी,हम उसकी तंत्र मंत्र द्वारा हत्या कर देगें और ये सब सुनकर गौरीशंकर ने रात्रि में ही जाकर उस जादूगरनी को बता दिया,ये सुनकर जादूगरनी प्रकाश मे आकर बोली मैं जादूगरनी अम्बालिका!
गौरीशंकर अब अम्बालिका से भलीभाँति परिचित हो चुका था।।
इसके उपरांत जादूगरनी अम्बालिका बोली___
गौरीशंकर!अब हमें उनकी योजना को असफल करने के लिए स्वयं की कोई ऐसी योजना बनानी होगी कि अपारशक्ति जीवित ना रह सकें और उसकी रानी भी तुम्हारी हो जाए ।।
परन्तु ये कैसे सम्भव होगा,गौरीशंकर ने पूछा।।
हम उन्हें ये ज्ञात नहीं होने देगें कि हमें उनकी योजना का अनुभव हो चुका है, तुम तब तक उनके साथ अच्छा रहने का अभिनय करते रहो, किन्तु अमावस्या वाली साँझ जब तुम्हारे पिता विभूतिनाथ और राजा अपारशक्ति पूजा की तैयारियाँ पूरी कर लें,तब तुम रानी जलकुम्भी के पास जाकर ये कहना कि जादूगरनी ने श्रापित शीशमहल में राजा अपारशक्ति को बंदी बना लिया है और वो चाहती है कि रानी जलकुम्भी उस श्रापित शीशमहल में आकर जादूगरनी से क्षमा मांग ले तो जादूगरनी राजा अपारशक्ति को मुक्त कर देगी।
और जब रानी जलकुम्भी,राजकुमारी के साथ यहाँ आएगी तो हम उसे बंदी बना लेगें, उसके उपरांत राजा को वही करना होगा जैसा हम चाहते हैं, मैं राजा की हत्या दूँगी और जलकुम्भी तुम्हारी हो जाएगी,जादूगरनी अम्बालिका बोली।।
गौरीशंकर को जादूगरनी अम्बालिका की योजना बहुत ही भा गई और वो बोला___
क्या योजना बनाई है? मान गया तुम्हें अम्बालिका!
अमावस्या वाला दिन भी आ पहुँचा और तैयारियाँ करते करते साँझ भी आ पहुँची,राजा अपारशक्ति, विभूतिनाथ और उनका सबसे विश्वास पात्र दास वैद्यनाथ, पूजा की सामग्री लेकर श्रापित शीशमहल की ओर बढ़ चले,वहाँ पहुँचकर विभूतिनाथ के कहे अनुसार विधिवत पूजा की तैयारियाँ कर ली गई, अब बस रात्रि होने की प्रतीक्षा थी।।
और रात्रि होने से पहले गौरीशंकर रानी के पास जा पहुँचा और उसने उसी प्रकार सारी बात बता दी जिस प्रकार जादूगरनी ने उससे कहने के लिए कहा था,अब रानी बहुत ही चिंता में आ गई और उसने तय किया कि वो श्रापित शीशमहल जाएगी,उसने बच्चीं को सुभागी की गोद में सौंपा, अपनी तलवार और एक छोटी कटार उठाई और सुभागी से बोली,तुम भी चलोगी या यहीं रहोगी।।
तभी गौरीशंकर बोला, सुभागी वहाँ जाकर क्या करेगी।।
सुभागी बोली,नहीं मैं भी चलूँगी, मुझे धनुष बहुत अच्छे से चलाना आता है, मेरा बचपन तो जंगलों मे बीता है और सुभागी ना मानी वो भी धनुष लेकर चलने को तैयार हो गई।।
तभी जलकुम्भी बोली,तनिक ठहरिए,मैं सेनापति को सूचित करती हूँ कि ऐसी ऐसी बात है।।
अब तो गौरीशंकर तनिक भयभीत हुआ और बोला___
रानी अगर जादूगरनी को इस बात की भनक भी पड़ गई तो ऐसा ना हो कि कुछ अनर्थ हो जाए।।
तभी सुभागी और जलकुम्भी में ये तय हुआ कि जलकुम्भी श्रापित शीशमहल जाएंगी और सुभागी सेनापति और सैनिकों के साथ कुछ समय के पश्चात् वहाँ पहुँचेगी।।
अब तो गौरीशंकर को अपनी योजना विफल होती हुई प्रतीत हो रही थीं,यद्यपि तब भी उसने रानी के साथ शीशमहल की ओर प्रस्थान किया।।
जैसे रानी शीशमहल के प्रांगण पहुँची तो देखा कि वहाँ तो अनुष्ठान की तैयारियाँ चल रहीं हैं और उसने राजा से पूछा___
महाराज! ये सब क्या है?
तब राजा ने उत्तर दिया कि राज्य में अनावश्यक हत्याएं हो रही थीं,कारण ज्ञात किया तो ये सब इस श्रापित महल मे रह रही जादूगरनी कर रहीं है, परन्तु रानी आप यहाँ एकाएक कैसे आ पहुँची,आपको तो कुछ भी ज्ञात नहीं है।।
तब रानी ने गौरीशंकर की कही बात राजा को बता दी।।
तभी विभूतिनाथ बोले___
परन्तु महाराज! ये बात तो हम तीनों के ही मध्य थी,एक आप,दूसरा मैं और तीसरा वैद्यनाथ,ये बात गौरी को कैसे पता चली।।
ये सुनकर गौरीशंकर बहुत ही भयभीत हो गया और वहाँ से भागने लगा,तभी वैद्यनाथ ने उसे पकड़ लिया और पूछा कि सच्चाई क्या है?
तब गौरीशंकर बोला___
मैं ने आप दोनों के मध्य हो रहीं बातें छुपकर सुन लीं थीं और जादूगरी को आकर सब बता दिया और इसके बदले में वो मुझे यहां का राजा बना देंगी।।
विभूतिनाथ ये सुनकर अत्यधिक क्रोधित होकर बोले__
पापी,विश्वासघाती, जिनकी छत्रछाया मे पला उनको ही ठग लिया तूने! मेरे कुल पर इतना बड़ा कलंक,तू मर क्यों नहीं गया,अब मैं तेरी मां को क्या मुँह दिखाऊँगा।।
तभी रानी भी बोल पड़ी___
महाराज! इसने मंदिर में मेरे ऊपर कुदृष्टि डाली थीं, परन्तु उस दिन मैने इसे क्षमा कर दिया एवं मुझे लगता है कि ये सब इसके प्रतिशोध का परिणाम है कि इसने जादूगरनी से मित्रता कर ली।।
ये सुनकर विभूतिनाथ लज्जा से गड़ गए और रानी के निकट जाकर बोले___
पुत्री! मैं क्षमा चाहता हूँ, इसकी ओर से,कितना अभागी हूँ जो मेरी इतनी निर्लज्ज संतान है, इतने बुरे संस्कार तो नहीं दिए थे मैनें इसे,हे ईश्वर!क्षमा करना।।
पुरोहित जी! आप क्षमा क्यों माँग रहे हैं, जलकुम्भी बोली।।
तो क्या करूँ, मै! इसने तो इस संसार मे मुझे मुँह दिखाने योग्य ही नहीं छोड़ा,पुरोहित जी बोले।।
तब तक सुभागी भी सेनापति के साथ वहाँ आ पहुंँची और कुछ सैनिकों की टुकड़ी भी साथ में थीं।।
तभी वहाँ एकाएक,बवंडर सा उठा और अचानक अग्नि ने उस महल को चहुँ ओर से घेर लिया।।
और प्रकट हुई जादूगरनी अम्बालिका अपना बीभत्स सा रूप लेकर और राजा से बोली____
अब तो सभी उपस्थित हैं यहाँ पर,मेरा कार्य और भी सरल हो गया।।
गौरीशंकर बोला___
हांँ,अम्बालिका अब सबको नष्ट कर के अपनी और मेरी योजना को सफल बनाओ।।
तभी अम्बालिका बोली___
अवश्य! और उसने सर्वप्रथम गौरीशंकर को वायु के वेग से उछाला, धरती पर गिरते ही गौरीशंकर के प्राणपखेरू उड़ गए, जादूगरनी ने देखते ही देखते सेनापति और सैनिकों को पत्थर का बना दिया, उसने राजा को भी एक बड़े से पिजरें में काठ का पुतला बनाकर बंदी बना दिया और रानी को भी एक बड़े से पिजरें में बंद कर दिया।।
तभी विभूतिनाथ जी ने अपनी तंत्र विद्या का उपयोग करना प्रारम्भ कर जादूगरनी को रोकने का प्रयास किया और वैद्यनाथ, सुभागी से कहा कि मै इसे सम्भालता हूँ तुम दोनों पति पत्नी राजकुमारी को लेकर भागों।।
और हम दोनों पति पत्नी राजकुमारी को लेकर देवनागरी नदी के तट पर आएं,हमें एक नाव दिखी,हम रात भर उस नाव को बारी बारी से खेते रहें और यहाँ फूलझर वन पहुँच गए, यहाँ के लोगों को सारी कहानी सुनाई और इन्होंने हमें आसरा दिया तब से हम यहीं रह रहें हैं और हमे ये भी नहीं ज्ञात कि हमारे वहाँ से आने के उपरांत ,वहाँ क्या हुआ?ये कहते कहते सुभागी की आंखें भर आईं।।
अच्छा! तो ये कहानी थीं उस शीशमहल की,राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
हाँ,राजकुमार! अब आप स्वयं निर्णय ले कि आप सूर्यप्रभा से विवाह करेंगें या नहीं,वैद्यनाथ ने पूछा।।
जी,ये विवाह अवश्य होगा,बाबा! राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
आपने हम पति-पत्नी की दुविधा का समाधान कर दिया, हमें भी इस विवाह से कोई आपत्ति नहीं हैं, वैद्यनाथ बोले।।
किन्तु, बाबा! ये विवाह आप तय कर दीजिए, मेरी और सूर्यप्रभा की सगाई होने के उपरांत मै पुलस्थ राज्य जाऊँगा और सूर्यप्रभा के माता-पिता को उस जादूगरनी से मुक्त कराने के उपरांत ही ये विवाह करूँगा, राजकुमारी सूर्यप्रभा का विवाह उसके माता- पिता के आशीर्वाद के बिना नहीं होगा,राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
राजकुमार, ये तो आपने बहुत कड़ा निर्णय ले लिया, परन्तु ये कैसे सम्भव होगा, सुभागी बोली।।
अब मैं उन्हें अवश्य ही मुक्त कराकर ही रहूँगा, मैं आज ही अपने राज्य जाकर सारी घटना अपने पिता को बताता हूँ और पुनः अपने माता पिता के साथ फूलझर वन वापस लौटूँगा, विवाह तय होने के उपरांत मै पुलस्थ राज्य के लिए प्रस्थान करूँगा।।
और राजकुमार भालचन्द्र ने ऐसा ही किया,वो कुछ दिनों पश्चात् अपनी दोनों माताओं और पिता के साथ निर्झर वन लौटे,तभी सूर्यप्रभा को ज्ञात हुआ कि भालचन्द्र की बड़ी मां के कोई भी सन्तान हुई,तब विवश होकर उनके पिता ने उनकी मां से दूसरा विवाह किया।।
बड़ी मां किसी से अधिक बात नहीं करतीं और ना ही किसी से शीघ्रता घुलतीं मिलतीं, वो अधिकतर अपने कक्ष में रहना ही पसंद करतीं हैं।।
उनका ऐसा आचरण,सूर्यप्रभा को कुछ अचंम्भित सा कर गया,परन्तु सूर्यप्रभा ने सोचा, किसी किसी का स्वभाव ऐसा ही होता है।।
बड़ी धूमधाम से सूर्यप्रभा और भालचन्द्र की सगाई हो गई, परन्तु सूर्यप्रभा के भाग्य मे तो कुछ और ही लिखा था,जैसा सबको प्रतीत हो रहा था,वैसा कुछ भी नहीं था।।
वास्तविकता तो कुछ और थी,सगाई के उपरान्त रात्रि के समय गीत-संगीत का कार्यक्रम हो रहा था,राजा और दोनों रानियाँ भी उपस्थित थे,तभी एक एकाएक वातावरण बहुत ही भयावह हो गया,वायु के वेग से एक काली सी परछाईं आई और उसने सूर्यप्रभा को चारों ओर से घेर लिया और उसे एक मैना में परिवर्तित कर एक पिंजरे मे बंद के वो परछाईं बोली___
मैं इसे लेकर पुलस्थ राज्य लेकर जा रही हूँ, जिसमें भी साहस हो तो इसे मुक्त कराकर ले जाए और वो परछाईं जिस वेग से आई थी,उसी वेग से वायु के साथ उड़कर चली गई।।
अब राजकुमार भालचन्द्र गहरी सोच मे डूब गए____
क्रमशः___
सरोज वर्मा...