भयानक रात वो एक घण्टा Manjeet Singh Gauhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भयानक रात वो एक घण्टा

कुछ वर्ष पहले की बात है। जबकि, जब मैं अपनी बुआ के यहॉं रहता था। दरअसल, मेरी बुआ का जो लड़का था, जिसका नाम सुमित था। वो मेरी ही उम्र का था। और हम दोनो एक दूसरे के बहुत घनिष्ठ मित्र थे। हमेशा साथ खेलते थे। साथ ही खाते थे। मतलब ये कि सारा का सारा काम एक साथ ही करते थे। हमारा एक दूसरे के बगैर मन भी नही लगता था। तो इसलिए जब मैं छोटा था क़रीब दो या फिर ढाई वर्ष का तो बुआ मुझे अपने साथ ले गयीं, और मुझे अपने पास ही रखा। मेरा पूरा बचपन मेरी बुआ के यहॉं पर सुमित और वहॉं के बच्चों के साथ ही गुज़रा। मैने अपनी बुआ के यहॉं से आठवीं तक पढाई की। मैं और सुमित सुबह स्कूल जाते थे। और दोपहर को घर आकर कुछ देर तक स्कूल का होमवर्क करते थे, और फिर तुरन्त ही खेलने के लिए निकल जाते थे। मेरी बुआ के यहॉं सभी लोग मुझे बहुत प्यार करते थे। लेकिन उस पूरे गॉंव में एक ही ऐसा व्यक्ति था। जो मुझे और सुमित को देखकर हमेशा ही अपना चेहरा सिकोड़ लेता था। यानी कि वो हम दोनो से चिढ़ता था। पहले तो मुझे ये लगता था कि शायद उस व्यक्ति का स्वभाव ही ऐसा है। परन्तु जैसे-जैसे समय निकलता गया। तो हमें उसकी असलियत समझ में आने लगी। दरअसल, वो मुझसे और सुमित से इसलिए चिढ़ता था। कि एक तो उसका घर बिल्कुल हमारे घर के सामने था। और दूसरा हम जब भी अपने घर की छत पर खेलते थे, तो वो हमेशा मेरी और सुमित की शिकायत बुआ से करता था। कहता था कि " अपने बच्चों को ज़रा डांट कर रखा करो। ये दोपहर को हमेशा शोर मचाते हैं। ना किसी को सोने देते हैं और ना किसी को कुछ काम करने देते हैं।" उसने बुआ से एक बार बहुत कठोर शब्दों में कहा कि " या तो तुम इन बच्चों को समझा दो, या फिर किसी दिन मैं इनको बहुत अच्छे से समझा दूँगा "। ये बात कहते हुए उस व्यक्ति के चेहरे से गुस्सा साफ़ नज़र आ रहा था। उसकी ऑंखे जो ख़ून से भी ज़्यादा लाल प्रतीत हो रही थी, नाक के नथुने इतने फूल रहे थे, जैसे आई.सी.यू में पडे मरीज़ के फ़ेफडे फूले होते हैं। और उसके मुँह में आपस में लड़ाई कर रहे उसके दॉंत, और बहुत तेज़ी से चलती हुई उसकी साँस से हमें सीधा-सीधा ये पता चल गया था कि वो व्यक्ति कितने गुस्से से कह रहा था। मेरी जो बुआ हैं वो बहुत ही शान्त स्वाभाव की हैं। उन्होंने उस व्यक्ति को ये कहकर वहॉं से भेज दिया, कि मैं इन्हें समझा दूँगी, आप चिन्ता न करें, आगे से ये आपको परेशान नही करेंगे। उसके बाद बुआ ने मुझे और सुमित बहुत समझाया कि ' बेटा, तुम दोनो दोपहर के समय मत खेला करो। इससे महौल्ले व पडोस के लोगो को परेशानी होती है '। लेकिन भईया हम तो रहे शरारती बच्चे, हम सीधी तरह से कहॉं मानने वाले थे। बुआ के सामने तो कह दिया कि ' ठीक है अब आगे से ऐसा नही करेंगे '। लेकिन कुछ ही घण्टों बाद बुआ की समझायी हुई बात को भूलकर फिर से हम दोनो खेलने चले गये। लेकिन आज हम उस व्यक्ति के घर के सामने नहीं खेले, बल्कि मोहल्ले के दो और बच्चों को साथ लेकर गांव से कुछ ही दूर बने हुए एक खंडहर के पास एक बड़े से पार्क में जाकर खेलने लगे। हर रोज तो हम शाम होने से पहले ही अपने घरों को वापस चले जाया करते थे। लेकिन आज बहुत ही ज्यादा समय हो गया था क्योंकि उस नई जगह पर हम सभी को खेलने में बहुत ही मज़ा आ रहा था। जिसके कारण हमें ये पता ही नहीं चला कि कब अंधेरा हो गया। फिर हम सभी अपने घर को आने को जैसे ही वहां से चले तो अचानक आसमान में बिजली चमकने शुरू हो गई अचानक से सारे आसमान को काले बादलों ने अपने गिरफ्त में ले लिया जिसके कारण इतना ज्यादा अंधेरा हो चुका था कि हमें ज्यादा कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था। और कुछ ही देर बाद वहां जोरों की बारिश होने लगी। हम बारिश से बचने के लिए उस खंडहर की तरफ दौड़ पड़े और वहां जाकर एक छज्जे के नीचे खड़े हो गए। मौसम खराब होने के कारण बारिश के साथ साथ हवाएं भी बड़ी तेज़ी से चल रही थीं। जिसके कारण हम सभी को ठंड भी महसूस होने लगी। हम सभी ठंड से कांप रहे थे, कि अचानक सुमित की नज़र पीछे खंडहर में बने एक कमरे की तरफ गई जहां थोड़ी सी लाइट जल रही थी। ध्यान से देखा तो उसी कमरे के एक कोने में आग भी जली हुई थी। हम सभी ठंड से बचने के लिए उस कमरे में चले गए। वहां जाकर हम सभी उस आग के पास जाकर बैठ गए। जिससे कि अब हमें ठंड लगना बंद हो गई थी। हम सब वही आग के पास बैठे हुए गप्पे लड़ाने में लगे हुए थे, कि अचानक सुमित के पास बैठा हुआ लड़का जिसका नाम रोहन था उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने उसका कॉलर पकड़ कर उसे पीछे खींचने की कोशिश की हो। पहले तो उसे लगा कि शायद हम हैं उससे मस्करी कर रहे हैं, लेकिन जब उसने देखा कि हम सभी तो उसके पास ही वही आग पर हाथ से एक रहे हैं, तो वो एकदम से डर गया। अब रोहन ने अपने पास बैठे सुमित का हाथ पकड़ कर धीरे से उसके कान में कहा कि इस कमरे में हमारे सिवाय कोई और भी है जो हमें दिखाई नहीं दे रहा है। सुमित ने उसकी इस बात को हंसते हुए नजरअंदाज कर दिया। लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद अब वही घटना जो कुछ देर पहले रोहन के साथ घटी थी सुमित ने भी वही चीज़ महसूस की। मतलब सुमित का कॉलर भी किसी ने पीछे से पकड़कर खींचा। अब सुमित को रोहन की बताई उस बात पर भरोसा हो गया। वह दोनों अब बहुत डर गए थे और दोनों के चेहरे का रंग अचानक से फीका हो गया। वो दोनों समझ गए थे कि इस खंडहर में जरूर आत्माओं का साया घूम रहा है। लेकिन मैं और मेरे पास बैठा हुआ मनीष अभी इस बात से बिल्कुल अनजान थे। सुमित ने डरते हुए मुझे और मनीष को पास आने का इशारा किया। मैं और मनीष सुमित के पास गए सुमित ने बहुत ही डरे हुए लहजे में हमें बताया कि यहां कोई और भी है जो बहुत ही खतरनाक है जो अदृश्य है। अब मैं और मनीष भी सुमित की इन बातों को सुनकर हंसते हुए कहने लगे कि "बेवकूफ समझा है क्या हमें, यहां हम चारों के सिवाय कोई नहीं है, तुम हमें डराने की कोशिश कर रहे हो। लेकिन तू अच्छी तरह से जानता है सुमित कि मैं किसी से डरता नहीं हूं।" मैं और मनीष सुमित की इन बातों को सुनकर हंसते हुए उस कमरे में ही टहलने लगे। और सुमित का मज़ाक उड़ाने लगे। कि कुछ ही देर बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने पीछे से मेरे कंधे पर अपना हाथ रख दिया है। मैंने फट से पीछे मुड़कर देखा तो सुमित और रोहन बिल्कुल उसी जगह बैठे हुए थे जहां हमने उन्हें बैठे हुए छोड़ा था और मनीष मेरे सामने था। मैं ये सोचने लगा कि अगर मनीष मेरे सामने हैं, और सुमित और रोहन वहीं बैठे हुए हैं तो ये पीछे मेरे कंधे पर हाथ किसने रखा था। पर मैंने ज्यादा सोचा नहीं और मैं फिर से मनीष से बात करने का। मनीष मुझसे कह रहा था कि "यार समय बहुत हो गया बहुत अंधेरा हो चुका है अब घर कैसे रहेंगे घर वाले बहुत चिंता कर रहे हो मैं हमारी आज तो पक्का डांट पड़ेगी है यार मुझे तो टेंशन हो रही है घर वाले कहीं पिटाई ना कर दें आज घर पर।" मनीष मुझसे बात कर ही रहा था कि अचानक उस कमरे में जल रही वह थोड़ी सी लाइट अचानक से बहुत तेज़ी के साथ हिलने लगी। कुछ ही देर बाद वह अचानक से बंद हो गई। जिसके कारण कमरे में काफी हद तक अंधेरा हो चुका था। बस थोड़ी सी जो रोशनी थी वो वहां चल रही आग की वजह से थी। सुमित और रोहन तो पहले से ही बहुत डरे हुए थे लेकिन कमरे में अंधेरा हो जाने से अब मुझे और मनीष को भी डर लगने लगा। बाहर से कुछ जानवरों के रोने की आवाज नहीं आ रही थी। एक तो बहुत ही अंधियारी रात, ऊपर से बारिश, बादलों की गड़गड़ाहट, बंद कमरे का अंधेरा, और बाहर से आ रही जानवरों के रोने की आवाज से वो वक्त बहुत ही खतरनाक लग रहा था। आप बस हम वहां से निकलना चाह रहे थे। हम चारों डरते डरते हैं उस कमरे से बाहर आए बाहर आकर देखा तो मौसम पहले से कुछ हद तक साफ़ था। हम चारों वहां से घर की तरफ चल दिए। हम उस खंडहर से निकले ही थे कि हमें वहां वही अंकल आते हुए दिखे, जो हमारे पड़ोसी थे। मतलब कि जो मुझसे और सुमित से चिढ़ते थे जिन्होंने हमारी शिकायतें बहुत बार बुआ से की थी। हम सभी को उन्हें वहां देख कर बहुत ही खुशी महसूस हुई अब हम अपने आपको थोड़ा सुरक्षित महसूस करने लगे। वो अंकल हमारे पास आए और बोले "अरे तुम्हें तुम्हारे घर कि लोग कब से ढूंढ रहे हैं कितना परेशान हो रहे हैं पता है तुम्हें। चलो एक काम करो अभी मौसम थोड़ा खराब है, वहां उस खंडहर के पास चलकर खड़े होते हैं, तब तक घर के लोग भी यहां आ जाएंगे।" आखिर हम करते भी क्या इतनी अंधेरी रात में हम बच्चों के सिर्फ़ वही एक सहारा था हम उनके कहे अनुसार फिर से उस खंडहर की तरफ़ जाने लगे। वो अंकल फिर से हमें उसी कमरे में ले गए। उन्होंने कहा "तुम थोड़ी देर रुको, मैं अभी कुछ लकड़ियां लेकर आता हूं ताकि यहां आग जलाकर कुछ देर बैठ सकें तब तक तुम्हारे घर वाले भी यहां आ जाएंगे।" इतना कहकर वो वहां से चले गए। हम चारों तो पहले ही काफ़ी डरे हुए थे। क्योंकि उस कमरे में कुछ ही देर पहले हमारे साथ कुछ डरावनी घटनाएं घट चुकी थी। हम चारों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर वहीं एक कोने में बैठे रहे। कुछ ही देर बाद वो अंकल वहां आए तो उन्हें देखकर हम चारों की होश उड़ गए। वो अंकल जिन्हें हमने हमेशा पेंट और शर्ट में देखा था अब वह हमारे सामने एक तांत्रिक की वेशभूषा में खड़े थे। उन्होंने अपने तन पर निवास के नाम पर सिर्फ एक काले रंग की लूंगी पहनी हुई थी, और गले में कुछ हड्डियों की माला लटकी हुई थी, माथे पर एक काले रंग का बहुत बड़ा टीका और उसके ऊपर तीन उंगलियों से किसी इंसान ख़ून लगाया हुआ था। हाथ में एक कंकाल की खोपड़ी शरीर पर लिपटा हुआ थोड़ा थोड़ा इंसानी खून। हम चारों ने जब अंकल को उस हालत में देखा तो तो हमारे पैरों तले जमीन निकल गई थी। अब वो हमारे पास आए और ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे। उनकी आवाज़ से साफ लग रहा था कि यह किसी आम इंसान की आवाज़ नहीं है। उन्होंने बहुत ही भर्रेआऐ हुए स्वर में कहा " कैसा लगा मेरा नया रूप। अब तुम्हें समझ आ गया होगा कि मैं कौन हूं। तुमने मुझे बहुत परेशान किया अब देखना मैं क्या करता हूं।" उसने वो खोपड़ी अपने माथे के पास ले जाकर अपने मुंह से कुछ मंतर गुनगुनाने लगा और बहुत ही झटके से खोपड़ी को ज़मीन की तरफ़ किया। उसके ऐसा करते ही वहां बहुत सारी आवाज़ें आने लगी। जिनमें औरत बच्चे बूढ़े जवान सब की आवाज आ रही थीं। कोई ठहाके मारकर हंस रहा था तो कोई मुंह करके रो रहा था बहुत ही बुरी बुरी तरीक़े की आवाज़ें आ रही थी लेकिन दिख कोई भी नहीं रहा था। अब हम चारों बहुत ही बुरी तरीक़े से डर गए थे। उसने हमसे कहा "ये आवाज़ें सुन रहे हो, ये उन सब की आवाजें हैं जिनको मैंने मौत के घाट उतार दिया है। और अब कुछ ही देर बाद इन्हीं आवाज़ों में तुम चारों की आवाज़ में मिल जाएगी। मतलब तुम्हारा भी मरना तय है, तो क्यों बच्चों तैयार हो ना मरने के लिए।" हम सभी रोने लगे, उसके सामने गिड़गिड़ाने लगे, उससे माफ़ी मांगने लगे कि "अंकल जी माफ कर दीजिए हमें, हमें नहीं पता था कि आपको इतना बुरा लगेगा, अंकल जी आगे से हम आपको कभी भी परेशान नहीं करेंगे।" लेकिन वो कहां मानने वाला था वह इंसान होता तो हमारी बातें समझता वो था तो एक वहशी दरिंदा, जो ना जाने कितनों की जाने ले चुका था। उसने हम चारों में से सबसे पहले सुमित को पकड़ा उससे कहा कि "तू ही है इन सब का मास्टर तू ही आजा, आज सबसे पहले नंबर तेरा ही लेता हूं। आज तुझे ही पहले जिंदगी से निपटाता हूं।" उसने ये कहते हुए सुमित के सिर पर हाथ में लिए हुए उस कंकाल की खोपड़ी से वार करने ही वाला था, कि अचानक वहां बुआ और रोहन और मनीष के घर के लोग आ गए। तांत्रिक ने उन्हें वहां देख कर बहुत गुस्से से कहा "तुम सब यहां कैसे पहुंच गए, तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहां हूं तुम्हारे बच्चों को मारने वाला हूं।" वो इतना कहकर सुमित को छोड़ उनकी तरफ़ मारने पर झपटा कि इतने ही पीछे से आकर कुछ पुलिसकर्मियों ने उसे पकड़ लिया। वो बहुत गुस्से से हम सबको देखे जा रहा था। बुआ ने कहा "पापी, तुझ पर तो मुझे पहले से ही शक था कि तू कोई अच्छा इंसान तो है नहीं इसी वजह से मैं हमेशा तेरा पीछा क्या करती थी। मैं इसीलिए यहां पुलिस को लेकर आई हूं। और आज अगर हम समय से यहां नहीं पहुंचते तो तू हमारे बच्चों को मार देता। पर वो किसी ने सही कहा है कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।" सभी लोग बहुत गुस्से में थे, और उसे मारने के लिए चढ़ गए थे लेकिन पुलिस वालों ने उन्हें रोक लिया। अब हम सब बहुत खुश थे कि हमारे घर वाले हमारे साथ थे।

"मंजीत सिंह गौहर"