सुबह के नौ बज रहे थे। हररोज की तरह आज भी सुमित तैयार होकर काम पर चला गया। ट्रांसपोर्ट बिजनेस था उसका, भाई के साथ। तीन भाई थे जिनमें सुमित सबसे बड़ा था और उसकी एक छोटी बहन भी थी तृषा। उसके पिता नहीं थे। दोपहर हो गई थी। सुमित और मांजी के जाने के बाद आन्या नहाने चली गई। फिर तैयार होकर खाना बनाने लगी। आन्या के लिए साड़ी पहनना शुरूआत में मुश्किल हुआ करता था, काम भी चुपचाप करती रहती। न किसी से हंसना होता, न बोलना। उसे एनर्जी वैसी मिलती नहीं जिससे काम जल्दी हो सके। झाड़ू, पोंछा, बर्तन, कपड़े सब करते हुए साथ में साड़ी और पूरी तैयारी, फिर नाश्ता करते हुए रोज सुबह के ग्यारह बज जाते । अब दोपहर के खाने की तैयारी होती। खाना बनने के बाद डोर बेल बजी तो आन्या दरवाजे की तरफ दौड़ी। मांजी थीं। सब काम हो गया, अंदर घुसते ही उन्होंने आन्या से पूछा। खाना बन गया। आन्या ने हां में उत्तर दिया। तभी अमित (आन्या का बड़ा देवर) आया। वो भी आन्या से बात नहीं करता। मांजी ने पहले ही सबको उसके खिलाफ कर रखा था। उसने सिर्फ खाना लगा दिया और वो खाकर चला गया। ऐसे ही एक-एक कर सबने खाना खाया फिर आन्या ने खाकर बर्तन और किचन साफ किये। ऐसे ही रोज चलता। मांजी थोड़ा आराम कर फिर काम पर चली जाती और शाम खत्म होने पर आती थीं। तब तक आन्या भी थोड़ा रिलैक्स हो लेती थी। शाम को मांजी के आने के बाद आन्या डिनर की तैयारी में लग जाती थी। रात सबको डिनर कराकर सुमित का इंतजार करती। एक वही था जिससे वो थोड़ा खुलकर बोल पाती थी मगर सिर्फ तबतक जबतक उसे ये अहसास न हुआ कि वो लगभग सारी बातें मां को बताता है।
रोज दोपहर को जब घर पर कोई नहीं होता तब काम करते हुए आन्या बस, यही सोचा करती कि कैसे शादी के बाद एक लड़की की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है। लगभग हररोज सासु मां के तानें सुनने की तो जैसे हर लडकी को आदत सी पड़ जाती है। लेकिन आन्या को लगता था कि उसकी मम्मीजी औरों से बहुत अलग और डिफीकल्ट सासुमां है। जो भी हो, अब वो चुप नहीं रहेगी, उसने तय किया। मम्मीजी के बेवजह की तानाशाही वो अब नहीं सहेगी। अगले दिन फिर सासु मां की हरकतों से परेशान होकर आन्या ने सिर्फ इतना कहा, "अब चुप भी हो जाइए।" बस, फिर क्या सासु मां की तो जैसे तीसरी आंख खुल गई हो, गंदी गालियों के साथ घर से निकाल देने की धमकी तक देती रहीं। "तुम्हारे बाप का घर नहीं है, निकल जाओ मेरे घर से।" अब आन्या भी बहुत ज्यादा जिल्लत महसूस करने लगी और आए दिन झुंझला पड़ती। मगर, सासु मां और ड्रामे करती। आन्या के शब्द दो होते और उनके दो सौ। फिर भी कोई उसे नहीं समझता। सुमित भी उसके खिलाफ खड़ा रहता। सासु मां खाना पीना छोड़ बस बिस्तर पर पड़ी रहतीं। फिर सुमित आन्या को मजबूर करता माफी मांगने के लिए लेकिन मम्मीजी का नाटक तब तक जारी रहता जब तक कग कोई बाहर वाला आकर फैसला नहीं कर जाता। फिर आन्या ही हालात को संभालती और कौम्प्रोमाइज करती। इन सब के बाद भी सासु मां का रंग वैसा ही रहता। वो खुद ही प्रॉब्लम क्रियेट करतीं और इल्जाम आन्या पर मढ़ देती थीं। सभी उनका यकिन भी कर लेते।
ऐसे ही चलता रहा फिर शादी के दो साल बाद आन्या प्रैग्नेंट हुई। नौ महीने तक इस अवस्था में भी उसने मांजी के कई चेहरे देखे। प्रेगनेंसी के वक्त हर लड़की को सही देखभाल की जरूरत होती है, ये कौन नहीं जानता। हार्मोनल चेंजिंग की वजह से कमजोरी और चिड़चिड़पन होता है। लेकिन मांजी की सिर्फ एक ही मंशा थी कि इस लड़की को नौकरानी से ज्यादा अहमियत नहीं देनी। वो ऐसी अवस्था में भी आन्या के खानपान और आराम की परवाह न कर घर के काम पर फोकस करने को कहती। सुमित को कुछ फर्क नहीं पड़ता। उसे अपनी मां पर पूरा भरोसा था। हां, आन्या के कहने पर थोड़े फल ले आया करता था जिसे देख मांजी को बुरा लगता। ऐसे में कभी-कभी आन्या खीझ जाती थी। उसपर मां जी कहतीं, सुमित के लिए ये और अमित के लिए वो बना देना। वो करती पर कभी झुंझला जाती, "मैं नहीं कर पाउंगी अभी ये, मेरा जी बहुत मिचला रहा है।" अब तो मांजी का अहंकार जाग जाता और खरी-खोटी सुनाने लग जातीं। क्यों नहीं करोगी, हम भी तो कभी ऐसे थे। हम ऐसे, हम वैसे, हम ये, हम वो। जाने कितना कुछ सुना जातीं। वो चुप रहती। मन ही मन खूब चिढ़ती। पर वो जानती थी कि उस मांजी से बहस करना मतलब पत्थर पर सर पटकना। वो चुप रहकर सब कर देती मगर हद तो तब हो जाती जब अमित और सुमित के घर आने पर मांजी वो सब कहती जो वो खुद आन्या को सुनाती। वो आन्या की और अपनी दोनों बातें अपने बेटों को ऐसे बताती जैसे पूरी गलती आन्या की ही हो वो उसे पूरी छूट दे रखी हो। बेटे भी अपनी मां पर आंखें मूंदकर बिश्वास करते और आन्या को गलत समझते। ऐसे में अमित उसे बेकार समझता और सुमित नाराज रहता। आन्या बहुत अकेली पड़ गई। वो करती भी क्या, उस वक्त तो उसके पास एक फोन तक नहीं था कि किसी से कुछ भी शेयर कर पाती। खैर, नौ महीने ऐसे ही बीत गए। रात एक बजे से ही डिलीवरी वाला दर्द शुरू हुआ, उस रात भी सुमित नाराज ही था और मांजी भी। वो रात भर सो नहीं पाई, दर्द के कारण। फिर सुबह के चार बजे, शनिवार के दिन जब मां जी पूजा की तैयारी कर रही थीं(मम्मीजी पुजारन थी) तब हिमम्त कर उसने उनसे कहा," मम्मीजी, एक बजे से ही मुझे दर्द हो रहा है।" मम्मीजी नाराज थी इसलिए उन्होंने उस वक्त कुछ नहीं कहा और आन्या जितना हो पाया कुछ काम करने लगी। करीब सात बजे मांजी सुमित को बताकर एक नर्स लेकर आईं। फिर, हॉस्पिटल में करीब दस बजे आन्या ने एक लड़की को जन्म दिया। डिलीवरी के वक्त आन्या को बड़ी मुश्किल हुई थी क्योंकि, जितनी ताकत चाहिए थी उतनी थी नहीं, उसका एक पैर भी सूजा हुआ था।