(12)
“सामान की क्या खबर है ? ”
“ओह, तो आप लोग आ गये ।” दूसरी ओर से आवाज आई “सामान भेजा जा रहा है ।”
“कुछ खच्चरों की भी जरुरत पड़ेगी ।” राजेश ने कहा ।
“उसका भी प्रबंध हो जायेगा ।” आवाज आई ।
राजेश ने संबंध काट दिया और पैदल ही उस ओर चल पड़ा जहां स्टेशन वैगन खड़ी थी ।
जब वह स्टेशन वैगन के निकट पहुंचा तो सामान उतारे जा रहे थे और कुछ खच्चर भी वहां मौजूद थे ।
जोली और मदन हंस हंस कर मेकफ से बातें कर रहे थे । एक ओर मन्टे भी खड़ा था ।
“यह मेरे विरूद्ध कौन सा षड्यंत्र रचा जा रहा है मिस मोलिया – ओह क्षमा करना – मैं भूल गया था । पता नहीं इस भूलने वाले रोग से कब छुटकारा मिलेगा ।”
“जिस दिन किसी औरत के सैंडिल तुम्हारे सर पर पड़ेंगे उसी दिन यह रोग दूर हो जायेगा ।” जोली ने चिनचिना कर कहा ।
“क्यों मिस्टर मदन !” राजेश ने मदन को सम्बोधित किया “क्या यह मिस साहिब ठीक कह रही हैं ?”
आप जानिये ।” मदन ने कहा “मुझे बिच में मत घसीटिये ।”
“क्या मिस साहिबा से तुम्हें कुछ रिश्वत मिल गई है ?” राजेश ने जोली की ओर देखते हुए मदन से पूछा ।
“मैं तुम्हारा मुंह नोच लुंगी । समझे !” जोली ने झल्ला कर कहा ।
राजेश कुछ कहने ही जा रहा था कि मदन ने हाथ उठाकर कहा ।
“प्लीज मिस्टर राजेश ! हम यहां तफरीह करने या आपस में झगड़ा करने नहीं आये हैं ।”
“फिर किसलिए आये हैं ?” राजेश ने मूर्खों के समान कहा ।
“क्या आपको नहीं मालूम ?” मदन ने मुस्कुराकर पूछा ।
“मैं क्या जानू ।”
“फिर आप यहां क्यों दिखाई दे रहे हैं ?” मदन हंस पड़ा ।
“तुम्हारे चूहे ने मुझसे कहा था कि मैं तुम लोगों के साथ रहूँ । जब मैंने पूछा था कि इस साथ रहने का मतलब क्या हुआ तो कहने लगा कि मैं यहां पहुंचकर तुम लोगों से मिलूं । आगे की बात जोली बताएगी और यहां जोली मुझे काटने दौड़ रही है ।” राजेश ने कहा फिर मदन ही से पूछा “यहां यह खच्चर क्यों दिखाई दे रहे हैं ?”
“हमें कुसुमित घाटी तक यात्रा करनी है ।” मदन ने कहा “और अब यहां से गाड़ी आगे न जा सकेगी इसलिये...।”
“समझ गया ।” राजेश ने बात काटकर कहा फिर पूछा “तो इन मिस साहिबा ने अपने लिये कौन सा खच्चर पसंद किया है ?”
“अभी बताती हूं ।” जोली ने कहा और पत्थर का एक टुकड़ा उठाने के लिये झुकी ।
“अरे बाप रे ।” राजेश ने कहा और उछल कर भागा ।
यहां तक का इलाका राजेश का देखा भाला था । पहाड़ियों के उस पार आज तक जाना न हो सका था । वह शीघ्र ही एक गुफा में पहुंच गया और ट्रांसमीटर निकाल कर जोली से संबंध स्थापित करने लगा ।
थोड़ी ही देर बाद जोली की आबाज सुनाई दी ।
“राजेश तुम लोगों के पास पहुंच गया ?” राजेश ने पवन के स्वर से पूछा ।
“जी हां । मगर उससे हम लोग परेशान हैं श्रीमान जी ।” जोली की आवाज आई ।
“क्यों ? क्या हुआ ?” राजेश ने मुस्कुराकर पूछा ।
“गंभीर रहना तो वह जानता ही नहीं सर । हम लोग उससे परेशान रहते हैं श्रीमान ।”
“मैं ख़ुद भी उससे परेशान रहता हूं । मगर काम का आदमी है इसलिये उसे सहन करना पड़ता है । वैसे मैं उसे समझा देता हूं । मगर तुम लोग उसे अपने से दूर ही रखना ।”
“उसके साथ एक विदेशी भी है ?”
“हां, और वह विदेशी तुम लोगों का पथ प्रदर्शन करेगा । जो सामान आया है वह बनजारों के रहन सहन से संबंध रखता है, देख लेना । खाने पीने के सामान भी हैं ।”
“श्रीमान जी । हम तीन आदमी अर्थात मैं मेकफ और मोन्टे बनजारों का वस्त्र पहनने के बाद भी अपने व्यक्तित्व न छिपा सकेंगे ।”
सबको मेक अप करना होगा । बिना मेक अप के काम चल ही नहीं सकता और यह काम राजेश ही कर सकता है । अब तुम्हारी समझ में आ गया होगा कि मैं राजेश को क्यों सहन कर सकता हूं ।”
“मगर श्रीमान जी पता नहीं वह...।
“सुनों ! तुम सब के साथ सारे सामान लेकर किसी छोटी पहाड़ी के अंचल में पहुंच जाओ । वहीँ कपड़े बदलना और राजेश को मिलाकर उससे मेक अप करा लेना ।”
“मैं अपना मेक अप ख़ुद कर लुंगी श्रीमान जी ।”
“नहीं ।” राजेश कठोर स्वर में बोला “तुम्हें वही करना होगा जो मैं कह रहा हूं । ओवर एन्ड आल ।”
ट्रांसमीटर का स्विच आफ़ करके गुफा के बाहर निकल आया और फिर धीरे धीरे उसी ओर बढ़ने लगा जिधर टीम वाले थे ।
जोली का मुंह फूला हुआ था । राजेश ने भी उसे नहीं छेड़ा । जोली ने अपने साथियों को अपने चीफ पवन का आदेश सुनाया और फिर सब लोग पहाड़ियों की ओर चल पड़े ।
पहाड़ी के दामन में पहुंच कर सबने सामानों में से कपड़े निकल कर पहने । राजेश खामोशी से एक ओर सबसे अलग थलग बैठा हुआ था । ऐसा लग रहा जा जैसे उसे उन लोगों से कोई मतलब ही न हो ।
कपड़ों से तो वह बनजारे लगने लगे थे मगर उनकी सूरतें चुगली खा रही थी । अब समस्या थी चेहरों के मेकअप की । जोली राजेश से कुछ कहना नहीं चाहती थी इसलिये उसने मदन को संकेत किया ।
मदन धीरे धीरे चलता हुआ राजेश के पास पहुंचा और बोला ।
“आखिर इस नाराजगी का कारण क्या है ? ”
“इतनी देर बाद तुम्हें मेरी नाराजगी का ख्याल आया है ।” राजेश ने झन झना कर कहा ।
“जो चाहे कह लीजिये, मैं तो आप से नाराज होने का साहस कर ही नहीं सकता ।” मदन ने हंस कर कहा ।
“मुझसे नाराज़ होकर जाओगे कहा ।” राजेश ने कहा “वैसे मालूम होता है गाड़ी रुक गई है ।”
“आपका विचार सच है ।” मदन ने कहा ।
“मामला बताओ ? ”
“मामला केवल इतना है कि हमारे शरीरों पर तो बनजारों जैसे वस्त्र अवश्य है मगर हमारी सूरतें बनजारों जैसे नहीं ।”
“तो फिर ? ”
“यह काम आपको करना है ।”
“मुझे क्यों ? ” राजेश ने आंखें निकाल कर कहा “क्या तुम लोग मेकअप करना नहीं जानते ? ”
“हम शायद किसी बड़े अभियान पर भेजे गये है, अगर हम पहचान लिये गये तो फिर हमारा अभियान असफल हो सकता है ।”
“बात मेकअप की हो रही है ।” राजेश ने कहा ।
“मैं भी वही कह रहा था ।” मदन ने हंस कर कहा “हम ख़ुद मेकअप करेंगे तो प्रकट है कि उसमें कमी रह जायेगी और आप इस काला में प्रवीण है इसलिये आप ही हमारा मेक अप करें तो अच्छा रहेगा ।”
बड़ी कठिनाई के बाद राजेश तैयार हुआ । जब सबका मेकअप कर चुका तो अपना मेकअप करने लगा, फिर उसने भी बनजारो वाले कपड़े बदले और फिर यह पूरी टोली कुसुमित घाटी के लिये चल पड़ी ।
सूरज धीरे धीरे अस्त होता जा रहा था ।
“तुम्हारे पास टार्च है ? ” मोंटे ने पूछा ।
“क़बायली टार्च नहीं जलाते ।” राजेश ने कहा “समय पड़ने पर हम मशालें जला लेंगे ।”
मोंटे कुछ नहीं बोला ।
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चन्द्रमा की मंद और उदास रोशनी में सफ़ेद पत्थरों वाली वह इमारत बड़ी रहस्य पूर्ण मालूम हो रही थी । चारों ओर गहरा सन्नाटा फैला हुआ था ।
राजेश की टीम पहाड़ी पार करके इस पार आ गई थी और टीम वाले बनजारों जैसे छोलदारियां गाड़ने में लगे हुये थे । इस समय रात के दो बजे थे ।
राजेश और मोंटे सबसे अलग थलग खड़े आपस में बातें कर रहे थे । मोंटे कह रहा था ।
“मैंने अपना वादा पूरा कर दिया है ।”
“हा दोस्त ।” राजेश ने कहा फिर पूछा “वह नाला किधर है ? ”
“उधर ! ” मोंटे ने एक ओर हाथ उठा कर कहा “यहां से लगभग एक मील की दूरी पर ।”
“मुझे तुम सफ़ेद इमारत तक पहुंचा सकोगे ? ” राजेश ने पूछा ।
“अब मेरे पहुँचाने का सवाल ही नहीं पैदा होता । तुम ख़ुद जा सकते हो । यहां कोई रोक टोक तो है नहीं, जहां चाहो आ जा सकते हो । कबायली तो बने ही हुये हो । सवेरे तुम्हें यहां के कबायली अपने अपने जानवरों के साथ दिखाई देंगे ।यहां की आबादी मुश्किल से एक हजार की होगी ।”
“उनके मकान नहीं दिखाई दे रहे है ।” राजेश ने कहा ।
“उन लोगों के मकान वह चट्टानें है जिनके निकल वृक्ष हों ।” मोंटे ने कहा “तुम्हारी ओर गरीबों के जैसे मकान होते है वैसे तुम्हें यहां नहीं दिखाई देंगे ।”
“जो औरत यहां शासन करती है उसका नाम क्या है ? ” राजेश ने पूछा ।
“वह मोबरानी कहलाती है और यहां का सरदार या राजा मोबरान कहलाता है ।” मोंटे ने कहा “मोबरान ग़ायब है और मोबरानी को यह विश्वास दिलाया जा रहा है कि मोबरान मरा नहीं है वरन जीवित है, तुम्हारे यहां का एक आदमी मोबरान से बिलकुल मिलता जुलता है, उसे इसीलिये यहां लाया गया है कि उसे मोबरान बना कर मोबरानी के सामने प्रस्तुत किया जायेगा ।”
“मोबरानी का हुलिया बता सकते हो ? ” राजेश ने पूछा ।
“छः फिट लम्बी है और इसी हिसाब से उसका शरीर भी है, एक बार क्रोध में आकर उसने हमारे एक आदमी को घूसा मार दिया था और वह आदमी उसी समय मर गया था, बस इसी से उसकी शक्ति का भी अनुमान लगा सकते हो ।”
“अच्छा । अब तुम मेरे साथियों के साथ आराम करो ।” राजेश ने कहा ।
“अगर मैं पहचान लिया गया तो उस समय मुझे क्या करना होगा ? ” मोंटे ने पूछा ।
“तुम बेधड़क कह देना कि तुम इस प्रकार हम लोगों को फांस कर यहां लाये हो ।”
“यह तो तुम्हारे साथ गद्दारी होगी मिस्टर राजेश ।”
“हां, मगर ऐसी गद्दारी होगी जिस पर वफादारियां बलिदान की जा सकती है ।” राजेश ने कहा “तुम इसकी चिंता न करो, और अब जोली तथा तुम दोनों ही गूंगे का रोल अदा करोगे क्योंकि तुम दोनों ही इधर की पहाड़ी भाषा नहीं जानते ।”
“और वह हब्शी ? ”
“वह किसी भी भाषा में बोलता रहेगा । मैं उसके लिये परेशान नहीं हूँ, अच्छा अब तुम मेरे साथियों के पास जाओ मैं अभी आता हूँ ।” राजेश ने कहा और उसी ओर चल पड़ा जिधर नाला था । वह टहलता हुआ जा रहा था ।
अचानक चलते चलते चलते वह रुक गया । ट्रांसमीटर निकाला और जोली से संबंध स्थापित करने लगा । कुछ ही क्षण बाद जोली की आवाज सुनाई पड़ी ।
“इट इज पवन ।” राजेश ने भर्राई हुई आवाज में कहा फिर पूछा “क्या हो रहा है ? ”
“जी, भोजन करने की तैयारी हो रही है ।”
“भोजन करने के बाद और सब लोग तो आराम करेंगे मगर तुम और मदन काम करोगे, मदन से कहना कि वह सफ़ेद इमारत की ओर जाये और उसे अच्छी तरह देखे मगर इस प्रकार कि ख़ुद उसे कोई न देख सके । एक घंटे के अंदर उसे वापस आ जाना है, और तुम मोंटे पर नजर रखोगी, यद्यपि उसने राजेश का साथ देने का वादा किया है मगर फिर भी उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता – ओवर ऐंड आल ।”
ट्रांसमीटर बंद करके वह फिर आगे बढ़ा ।
नाले के निकट पहुंचने पर उसे सचमुच दो प्रकार के मौसम का आभास मिला । नाले के उस पार जंगल था ।
ध्येय तो कुछ था नहीं इसलिये वह इधर उधर टहल रहा था कि शायद कोई ढंग की बात सूझ जाये या कोई काम की वस्तु दिखाई पड़ जाये या हाथ आ जाये ।
नाले के दोनों किनारे देखने के बाद वह वापस जाने की सोच ही रहा था कि अचनाक घुटी घुटी सी नारी चीख सुनाई पड़ी ।
राजेश जल्दी से ज़मीन पर लेट गया और पेट के बल रेंगता हुआ आवाज की ओर बढ़ने लगा ।
चीखों की आवाज़ें बराबर आ रही थीं और कुछ दूरी पर बने पदों के पीछे से आ रही थी ।
राजेश एक बड़े पेड़ के पास पहुंच कर रुक गया और फिर तने की आड़ लेकर खड़ा हो गया और एक ओर से जरा सर निकाल कर आवाज की ओर देखा ।
ज़मीन पर दो वस्तुयें लेटी नजर आ रही थीं और उन्हीं के पास दो आदमी दिखाई पड़े – मगर दुसरे ही क्षण उसने पहचान लिया कि उन दोनों में से एक औरत है और वही चीख रही है, ध्यान दिया तो पता चला कि औरत चीखों के साथ गालियाँ भी देती जा रही है, और वह आदमी उससे अपने साथ चलने को कह रहा है ।