अच्छी बेटी नवीन एकाकी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अच्छी बेटी

बड़े ही मन से उसकी सहेलियों ने उसे दुल्हन के लाल जोड़े में सजाया था। बला की खूबसूरत नजर आ रही थी आज वो। अगर चाँद भी देख लेता तो शरम के मारे बादलो में अपना मुंह छुपा लेता। उसके गोरे गोरे हांथो में लगी मेहंदी रचने वाली थी। उस मेहंदी में छुपे उसके पिया का नाम मेहंदी के रंग को और गाढ़ा कर रहा था। उसकी सभी सहेलियां उसे उसके पिय का नाम लेकर बार बार चिढ़ा रही थीं। पर जैसे वो बुत सी बनी बैठी रही।उसे कुछ भी फर्क न पड़ रहा था। बस जो हो रहा होने दे रही थी वो।

वह अपनी सहेलियों द्वारा की जा रही चुहलबाजी को जैसे महसूस ही ना कर रही थी, उसके अंदर तो पता नहीं कुछ और ही चल रहा था। सच तो यह था कि वो अंदर अंदर रो रही थी।

यह शादी नहीं कोई समझौता कर रही थी वो। वह तो किसी और से प्यार करती थी पर अपने मां-बाप की इज्जत मान मर्यादा के आगे उसे अपने प्यार का गला घोटना पड़ा। आज उसने अपने मां-बाप की इज्जत बचाई थी, आज उसने अपनी बेटी होने का हर फर्ज निभाया था। उसे समाज मे अपने माँ बाप की अच्छी बेटी बन कर दिखाया था।

बहुत मजबूर हो गई थी अपने दिल के हाथों फिर भी अपने दिल पर पत्थर रखकर उसने उन खतों को जलाया था जिस पर उसकी जिंदगी ने उसे अपनी जिंदगी लिखा था। उसकी यादों को वो मिटाने की बार बार कोशिश कर रही थी वो पर यादें थी कि आज न जाने की कसम खा कर आ घेरा था उसके जेहन को।

उसे अब भी आईने में अपनी जगह वही नजर आ रहा था। आंसू पलकों के कोनो पर अपनी दस्तक़ दे रहे थे। रह रह कर उसे उसका ख्याल आ रहा था। वो अंदर ही अंदर तड़प रही थी।

रिमोट चलित यंत्र की तरह बस इधर से उधर डोल रही थी वो।बस जो हो रहा था उसे होने दे रही थी। जो जैसा कमांड दे रहा था वैसा ही करती जा रही थी वो।

कुछ ही देर में उसे फेरों के लिए बुलाया गया, रोबोट की तरह वो भी बस आदेशों का पालन करती हुई पहुंच गई मंडप में, जँहा उसके माँ बाप की पसंद वाला उसका होने वाला मालिक उसका इंतजार कर रहा था। उसक़ा जिस्म कांप उठा जब उसके हाथों को किसी गैर के हाथों में दिया गया। वह बहुत मजबूर थी आज, अपने को बहुत बेबस और लाचार समझ रही थी वो। इंसान से यंत्र बन चुकी थी वो। अच्छी बेटी थी वो।

उसकी मोहब्बत का दम घुट रहा था मां बाप के फर्ज के आगे। और वो कुछ नही कर पा रही थी। शायद अच्छी बेटी बनने के दबाव ने उसे गूंगा बहरा और अपाहिज बना दिया था।

आज समाज के बनाये उसूलो के सामने मोहब्बत हार चुकी थी, वो किसी अजनबी के पल्ले बांध दी गयी थी जो आज से उसका मालिक था। न जाने कैसा होगा वो ये तो भविष्य ही जानता था फिर भी उस अजनबी के हांथो अपने जीवन की बागडोर देनी पड़ी उसे।

बाप की उंगली पकड़ के चलते चलते वो न जाने कब बड़ी हो गयी थी वो और आज उसकी उंगली किसी ऐसे को थमा दी गयी जो पता नही कौन था, कैसा था। इतना ही पता था कि वो समाज और माँ बाप की पसंद था। उसकी पसंद कोई मायने नही रखती थी उस पसन्द के आगे..

रो रो के उसका बुरा हाल था। उस विदाई के समय जब उसके मां-बाप ने उसको बड़े प्यार से डोली बिठाया था उसकी आत्मा चीख़ पड़ी थी दिल भी चिल्ला रहा था। फिर भी वह खुश दिखना था भले ही दिखावे के लिए...सच तो ये था कि डोली में नही अपने टूटे खाबों और लुटे अरमानों के फूलों से सजी अर्थी में विदा हो रही थी वो उसकी लुटी पिटी यादों के साथ।

समाज मे उसकी और उसके माँ बाप की तारीफ़ हो रही थी, आख़िर क्यों नही......अपने मां बाप की अच्छी बेटी जो साबित हुई थी वो।

#एकाकी

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