घर कब आओगे नवीन एकाकी द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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घर कब आओगे

सांसे टूट रही थी, धड़कन भी धीरे धीरे रुकने लगी थी। पूरे शरीर लहूलुहान था। दुश्मन की गोलियों ने उसके शरीर को छलनी कर दिया था। वो ज़मीन में गिरा पड़ा था।उसके अगल बगल उसके साथियों की लाशें लहू से लथपथ पड़ी थी। उसने अपनी जाती हुई चेतना को रोकने की पूरी कोशिश करते हुए कांपते हुए हांथो से अपने पैंट के ज़ेब से उसका ख़त निकाल कर अपने होंठों से लगा लिया। कल ही तो मिला था उसका ये ख़त जो शायद अब उसके लिए आखिरी ख़त बनने वाला था।

उसकी आंखें अब मुंदने लगी थी। चेतना भी ज़वाब देने लगी थी। उसका रुकते दिल और दिमाग मे उसको उसका मासूम चेहरा और उसकी आँखों मे उसका इंतजार चलचित्र की तरह दिख रहा था।

टूटती सांसो की डोर को समेटने की कोशिश करते हुए उसने उसके उस ख़त को उसने कस कर अपने सीने से लगा लिया। ऐसा लगा जैसे वो उसे अपने सीने से लगा महसूस कर रहा था। उसे उसके उस ख़त में लिखे अल्फ़ाज़ याद आ रहे थे।

उसकी लिखे उस ख़त के हर अल्फ़ाज़ से उसका प्यार छलक रहा था। उसके आने की राह ताक रही थी वो। अभी तो उसके हांथो की मेहंदी भी न छूटी थी। शादी के चंद रोज़ बाद ही उसे वापस आना पड़ा था। अचानक सभी छुटियाँ कैंसल कर दी गयी थी और सभी जवानों को वापस अपने बेस पर पहुंचने का आदेश दिया गया था। वो भी उसे लौट कर जल्द ही आने का वादा कर वापस अपने बेस आ गया। आते ही उसकी टुकड़ी को फ्रंट पर भेज दिया गया। फ्रंट पर आए दिन दुश्मनों द्वारा गोलीबारी होती रहती। उसकी टुकड़ी को हमेशा चौकस रहना पड़ता। वो जँहा था वँहा से बात करने की भी सुविधा नही थी बस इसीतरह चिट्ठी पाती का ही भरोसा था वो भी काफी देर से मिलती। उसे भी उसकी चिट्ठी कल ही मिली। उसके लिखे शब्दों में उसकी विरह की पीड़ा साफ साफ झलक रही थी। यूँ लग रहा था मानो हर लफ्ज़ उसके अश्कों से भीगा हुआ था। उसने पूंछा था उससे...."घर कब आओगे"

पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। अचानक दुश्मनों ने उसकी चौकी पर हमला बोल दिया। पीछे से वार किया उन बुज़दिलों ने। उनको भी मुँहतोड़ ज़वाब दिया गया। एक क़दम भी उनको अपनी सरजमीं पर रखने नही दिया गया। उसने भी दुश्मनों को धूल चटाने में कोई कसर नहीं रखी थी। लगातार गोलाबारी हो रही थी। चारो तरफ गोलियों की तड़तड़ाहट और बमों के धमाके गूंज रहे थे। हरतरफ धुंआ ही धुंआ छाया था, घायल होते मरते दुश्मनों और जवानों की चीखें मानो उन गोलियों के शोर को भी दबा रही थी कि अचानक दुश्मन की कई गोलियां उसके शरीर को भेद गयीं और वो गिर पड़ा।

वो मर रहा था एक योद्धा की मौत, सच तो ये है कि वो शहीद होकर अमर होने वाला था। उसकी सांसे उसका साथ छोड़ने की तैयारी में थी। धड़कने भी लगातार धीमी होती जा रही थी। दिल डूबा जा रहा था।नब्ज़ थमने लगी थी। उसका ख़त अभी भी उसके दिल से लगा हुआ था। आंखे बंद हो चुकी थी। खून से लथपथ शरीर से आत्मा निकलने को बेताब थी। गोलियों का शोर अब भी जारी था। अगलबगल से गोलियां तेज़ी से निकल रही थी कि अचानक एक गोली न जाने कँहा से आई और उसके सीने में धंस गयी। शरीर झटके से ऊपर उछला और एक हिचकी...बस!

उसका शरीर शान्त हो गया था। आत्मा ने उसके शरीर को छोड़ दिया था। वो चली गयी किसी और शरीर की तलाश में। वो शहीद हो गया।

ख़त अब भी उसके ख़ामोश हो चुके दिल से लगा हुआ था।उसकी बन्द आँखो के पलको के कोरों से आंसू की बूंद बहकर उसके ही खून से सनी जमीन में कंही खो गयी।

अफ़सोस! वो ज़वाब भी न भेज पाया उसे। उसकी सूनी नज़रें अब भी राह ताकती होगी उसका और करती होगी उसके ज़वाब का इंतज़ार....जो अब कभी ख़त्म न होगा।

#एकाकी