तबादलोत्सव Anand M Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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तबादलोत्सव

उत्सव का नाम बहुत सुना था। देखा था। भाग लिया था। रंगोत्सव, फागोत्सव, दीपोत्सव, नववर्ष उत्सव। बीच-बीच में महोत्सव भी देखता-सुनता था। लेकिन यहाँ चर्चा “तबादलोत्सव” की कर रहे हैं। यह एक बिलकुल ही नया प्रकार का उत्सव है। इसकी शुरुआत ऐसे तो ब्रिटिश काल से ही चली आ रही है। लेकिन जब से मोबाइल क्रांति हुई तब से इसमें काफी जोर पकड लिया है। यह अलग-अलग संस्थाओं में अलग-अलग समय पर मनाया जाता है।

जी हां, चर्चा एक ऐसे ही शैक्षिक संगठन की कर रहे हैं। चाँद पर एक पहाड़ी इलाके के एक राज्य में एक राष्ट्रभूमि संस्था का विद्यालय का जाल बिछा हुआ था। उस राष्ट्र्भूमि संस्था के मानव संसाधन प्रबंधक को तबादले की जानकारी गुप्त रखने में एक विशेष प्रकार का आनंद आता था। पूरे सत्र के दौरान उन्हें कर्मचारियों के विकास से सम्बंधित कोई अन्य कार्यक्रम नहीं मिलता था। तो मानव संसाधन प्रबंधक इसी “तबादलोत्सव” से अपनी दबी हुई इच्छाओं की पूर्ति करते थे। जिससे संस्था में उनका वर्चस्व बना रहे।

खैर, जिस “तबादलोत्सव” की चर्चा हम कर रहे हैं उसका मौसम राष्ट्रभूमि संस्था में मार्च से प्रारंभ होता है तथा यह कार्यक्रम करीब 10-15 दिनों तक चलता है। इसकी पूर्व तैयारी तो जनवरी के अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाती है। जिन अध्यापकों को कोई कार्य नहीं होता है वे सुबह-शाम, उठते-बैठते, सोते-जागते, हँसते-रोते, नाचते-गाते इसी की तैयारी करते हैं। जो अध्यापक पढ़ाने के तरीके या उसकी थ्योरी समझे बिना पढ़ाने लगते हैं, या जिनकी अवस्था ऐसे नाविक की तरह होती है, जिसे मालूम नहीं होता कि जाना किस दिशा में है। वैसे अध्यापक इस उत्सव में अधिक रूचि लेते हैं। दिन के 24 घंटे भी यदि इस उत्सव को मनाने में लगाते हैं तो भी उनके दिमाग को थकान नहीं महसूस होती है। एक अच्छी तरह से मनाया गया उत्सव सुखद नींद लेकर आता है। एक अच्छा और समझदार शिक्षक इस उत्सव से अपने को दूर रखता है।

इस उत्सव को मनाने के कुछ कारण भी हैं। इसमें अध्यापकों द्वारा प्राचार्य को प्रसन्न नहीं कर पाना, किसी अन्य विद्यालय में शिक्षकों की कमी होना, किसी का कार्य से त्यागपत्र का चले जाना, किसी के द्वारा समुचित भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाना आदि हैं।

कुछ अध्यापक तो अपने मोबाइल का रिचार्ज भी अग्रिम करवा लेते हैं। मोबाइल का इसमें प्रमुख योगदान रहता है सो अधिकाँश पॉवर बैंक भी खरीद कर रख लेते हैं ताकि निर्बाध गति से उत्सव मनाया जा सके। कुछ अध्यापक इसी बहाने भूले-बिसरे अध्यापकों को फोन कर अपने संबंधों का नवीनीकरण भी कर लेते हैं।

विद्यालय पहाड़ी क्षेत्र में हैं तो गुरूजी सब प्रकृति और शांत वातावरण के प्रेमी हो जाते हैं, सो, सोचते हैं कि जीवन में कम से कम 4-5 साल तो शहरी भागमभाग, धुएं, घुटन से दूर सुख-चैन से बीतेंगे। चूँकि जीवन अध्यापक वाला है तो आर्थिक अवस्था के कारण अपने खर्चे पर 1-2 हफ्ते की छुट्टी ले कर परिवार सहित घूमने के लिए किसी न किसी हिल स्टेशन पर जाना संभव नहीं हो सकता है। अतः पहाड़ों को देखकर ही मन ही मन खुश भी हो लेते हैं। तबादालोत्सव पूरे वर्ष अध्यापकों की ताजगी बनाये रखने में विटामिन का कार्य करता है।

जिस अध्यापको को पदोन्नति दे कर किसी हिल स्टेशन पर भेजा जाता है, वहां पर भेजने के पहले “साहब” उन्हें अच्छी तरह से प्रशिक्षण देते हैं। आदेश देते हुए कहते हैं कि अब तो 3-4 वर्षों तक आराम ही आराम है। काफी सुंदर जगह है। बहुत मन लगेगा। टीम भी बहुत अच्छी है। गाँव वालों से अच्छा सम्बन्ध रखेंगे। हर साल छुट्टियां और रुपए बरबाद करने की जरूरत भी नहीं रहेगी। कभी-कभी हमलोग भी आयेंगे तो अच्छे से भोजन तो आप अवश्य करा देंगे।

“साहब” सब को पहाड़ों की सुंदरता इतनी पसंद होती है कि हर साल 2-3 बारे अवश्य ही जाते हैं। यदि तबादला 4-5 वर्षों के लिए है तो फिर ताजगी की जीवनभर ही मन में बसे रहने की उम्मीद रहती है।

इस उत्सव को मनाने की विधि एकदम सरल है। सब कार्य पहले छोड़ देना है। 4-5 शिक्षकों की मंडली बनाकर बैठे रहना है तथा किस अध्यापक का कहाँ तबादला हो रहा है – इसका गणित बैठाते रहना है। किसी-किसी का गणित एकदम सही बैठ जाता है तो वह अपनी मंडली में ‘नायक’ के रूप में उभरता है। वैसे मानव संसाधन वाले प्रबंधक अपनी तरफ से इस उत्सव को मनाने के लिए गोपनीयता को बरतने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन वे भी नहीं रोक पाते हैं तथा मंद-मंद मुस्कुराते रहते हैं तथा गदगद होते हैं।

जिनका तबादला हो जाता है उन्हें विदा कराते वक्त अन्य अध्यापक वही घिसापिटा वाक्य कहते हैं - ‘‘वहां जा कर हम लोगों को भूलेंगे नहीं। फोन करते रहेंगे।” यह अलग बात है कि लोग भूल जाते हैं तथा फिर उत्सव के समय ही जानकारी लेने के लिए फोन करते हैं।

कुछ अध्यापक तो मनोबल बढाने के लिए इस अंदाज में बधाई देते हैं - ‘‘ऐसा सुअवसर तो विरलों को ही मिलता है। लोग तो ऐसी जगह पर एक घंटा बिताने के लिए तरसते हैं, हजारों रुपए खर्च कर डालते हैं। आपको तो यह सुअवसर एक तरह से विद्यालय के खर्चे पर मिल रहा है। वह भी पूरे 4 वर्षों के लिए।’’ अब आप वहां जा रहे हैं तो आपकी कृपा से 1-2 दिनों के लिए उस हिल स्टेशन का आनंद हम भी लूट लेंगे।’’

जिनका तबादला हुआ रहता है वे भी दांत दिखाते हुए कहते हैं - ‘‘जरूर- जरूर! भला यह भी कोई कहने की बात है!‘जी हां, आप की जब इच्छा हो, तब चले आइएगा’’

जिनकी पदोन्नति होती है उन्हें सहयोगी शिक्षक व्हाट्सएप्प ग्रुप में बधाई देते हैं। यह अलग बात है कि पदोन्नति वाले शिक्षक चुपचाप रहते हैं। वे अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन और अच्छे से करने लगते हैं। शिक्षक-कक्ष का वातावरण एकदम खुशनुमा हो जाता है।

तबादले की खबर से बच्चे दुखी हो जाते हैं। उनके संगी-साथी छूट जाते हैं। बच्चों को यह कह कर खुश कराते हैं - ‘‘बड़ा मजा आएगा। हम ने बर्फ गिरते हुए कभी भी नहीं देखी। पहले तो केवल घूमने गरमी में गए थे। अब जाड़ों में हमलोग वहां की सुन्दरता देखेंगे’’ एक अन्य वाक्य ‘‘जब फिल्मों में बर्फीले पहाड़ दिखाते हैं तो कितना मजा आता है। अब हम वह सब सचमुच में देख सकेंगे,’’ कहकर बच्चों को सांत्वना दिया जाता है।

गृहस्वामिनी को भी परेशानी होने लगती है। उन्हें अपने घोंसले को फिर से सजाना पड़ता है। पति तो कुछ करने से रहे। वही पति केवल कार्य करते हैं जिनकी सहधर्मिणी विद्यालय में अध्यापिका का कार्य करती हैं। उन पतियों की हालत तो “बेचारे” जैसी हो जाती है। यह अलग बात है कि आर्थिक रूप से वे मजबूत रहते हैं।

पत्नी शंका से गुमसुम होकर कहती है - ‘‘तबादला ही करना था तो आसपास के किसी शहर में कर देते। सुबह जा कर शाम को आराम से घर लौट आते, जैसे दूसरे कई लोग करते हैं। अब पूरा सामान समेट कर दोबारा से वहां गृहस्थी जमानी पड़ेगी। पता नहीं, वहां का वातावरण हमें रास आएगा भी या नहीं,’’

पत्नी को समझाने के लिए दूसरे प्रकार का अर्थशास्त्र सहारा लेना पड़ता है।

पति समझाते हैं - “सब ठीक हो जाएगा। मकान तो सरकारी मिलेगा, इसलिए कोई दिक्कत नहीं होगी। और फिर, उस जगह और भी तो लोग रहते हैं। जैसे वे सब रहते हैं वैसे ही हम भी रह लेंगे।’’

लेकिन लक्ष्मी जी को प्रसन्न करना या उनकी शंकाओं का समाधान नहीं होता है -

श्रीमती जी का कहना होता है “ लेकिन सुना है, उस जगह में बहुत सारी परेशानियां होती हैं - स्कूल की, अस्पताल की, यातायात की और बाजारों में शहरों की तरह हर चीज नहीं मिल पाती,’’

तब पति हँसते हुए कहते हैं - ‘‘किस युग की बातें कर रही हो। आज के पहाड़ी शहर मैदानी शहरों से किसी भी तरह से कम नहीं हैं। दूरदराज के इलाकों में वह बात हो सकती है, लेकिन मेरा तबादला एक अच्छे जगह में हुआ है। वहां स्कूल, अस्पताल जैसी सारी सुविधाएं हैं। आजकल तो बड़ेबड़े करोड़पति लाखों रुपए खर्च कर के अपनी संतानों को मसूरी और शिमला के स्कूलों में पढ़ाते हैं। कारण, वहां का वातावरण बड़ा ही शांत है। हमें तो यह मौका एक तरह से मुफ्त ही मिल रहा है।’’

इस तबादलोत्सव में विद्यालय के चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी भी पूरे मनोयोग से सम्मिलित होते हैं। सामान बांधते – उठाते समय हर्षोल्लास से तथा अपनी तकलीफों को बयान करने के लिए टीवी जैसे जरुरी सामानों को नीचे गिरा देना लाजिमी समझते है।

इस प्रकार यह तबादलोत्सव सम्पन्न होता है। शुरुआत के दो-तीन महीने मान-मनुहार में बीत जाता है तथा बाद में व्यस्तताओं में फंस जाते हैं। लोग भूलने लगते हैं तथा अगले सत्र के उत्सव का इन्तजार करने लगते हैं।