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ग्रहों की उच्च एवं नीच राशियां

*ग्रहों की उच्च एवं नीच राशियां*

ग्रहों की उच्च एवं नीच राशियां जानने से पहले आइए जानते हैं कि हमारे ऋषि मुनियों द्वारा ग्रहों को कौन कौन से पदभार दिए गए हैं।

१) सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है
२) चंद्र को ग्रहों की रानी माना गया है
३) मंगल को सेनापति
४) गुरु को शिक्षा और ज्ञान का पदभार दिया गया है आप गुरु को एक मार्ग दर्शक या एक पथ प्रदर्शक या ज्ञानी महात्मा या गुरु भी कह सकते हैं
५) शुक्र को सांसारिक सुख एवं भोग
६) शनि को नौकर माना गया है
७) तो वहीं बुध को राजकुमार का दर्जा दिया गया है।

अब चलते हैं उच्च और नीच राशि की तरफ और जानते हैं प्रत्येक ग्रह की उच्च और नीच राशियां। तो ये तो हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक ग्रह जिस राशि में उच्च का होता है उससे ७वीं राशि में ही वो नीच का होता है। पर आखिर क्यों??? ऐसा ही क्यों है??? आइए जानते हैं:-

आपने एक बात सुनी होगी *यत पिंडे तत ब्रह्मांडे* अर्थात *जैसे हम या हमारा ये शरीर है ठीक वैसा ही ये ब्रह्मांड भी है*। तो बस यही नियम लगाते जाइए और आगे बढ़ते जाइए।

शुरुआत करते हैं *सूर्य देव* से अब ज़रा सोचिए कि यदि आप राजा होते तो अपने आप को सबसे ज़्यादा शक्तिशाली कहां पर महसूस करते। सीधी सी बात है सेनापति के घर पर। अब यहां पर सेनापति *मंगल* है और *मंगल* का घर यानी *मंगल की राशि* यानी *मेष*। तो *मेष* में सूर्यदेव *उच्चस्थ* हुए। वहीं मेष से ७वीं राशि यानि *तुला* में सूर्यदेव *नीचस्थ* होंगे क्योंकि एक राजा तब सबसे ज्यादा *लज्जित* होगा जब वो स्वयं इतना अधिक *भोग* में पड़ जाए कि और कुछ देख ही न पाए। और *तुला* तो स्वयं *भोगी शुक्र* की राशि है।

अब बात करते हैं *चंद्र* और *मंगल* की।

अब जैसा कि आप जानते ही हैं कि *चंद्र* मन है और रानी है। दोनों ही सांसारिक सुखों को भोगना चाहते हैं अतः *चंद्र* जब भी *शुक्र* के घर यानी *वृष* राशि में जाएगा तो *उच्चस्थ* कहलाएगा क्योंकि वहां बैठकर *चंद्र* समस्त भोगों को भोगेगा। वहीं मेष से ७वीं राशि यानि *वृश्चिक* में चंद्र *नीचस्थ* होगा क्योंकि सेनापति *मंगल* रानी या मन के भोग पर अंकुश लगाने का काम करेंगे और एक रानी इस पर *लज्जित* महसूस करेगी और *मन* को भी कोई *अंकुश* बर्दाश्त नहीं होता।

अब *मंगल* जो कि *सेनापति* है वो *उच्चस्थ* होते हैं *शनि* कि राशि *मकर* में। अब देखिए एक सेनापति हमेशा एक नौकर के घर पर शक्तिशाली महसूस करेगा क्योंकि एक नौकर के ऊपर वो अपना अधिकार जमा सकता है। वहीं अगर *मंगल* की *नीचस्थ* अवस्था देखें तो *मकर* से ७वीं राशि यानि *कर्क* राशि में *नीचस्थ* होते हैं क्योंकि एक रानी के घर पर जाकर सेनापति की समस्त शक्तियां क्षीण हो जाएंगी।
अब बात करते हैं दोनों गुरुओं की। यानी *गुरु* और *शुक्र* की।

अब जैसा कि आप जानते ही हैं कि *गुरु* ज्ञान और शिक्षा है। तो सीधी सी बात है जहां ज्ञान होगा वहीं गुरु *उच्चस्थ* होगा। और ज्ञान वहीं होगा जहां उस ज्ञान को ग्रहण करने वाला होगा। अब ज्ञान को ग्रहण *मन* से ही कर सकते हैं। वो मन ही है जो हमें अच्छे बुरे का भेद देता है जो हमें तर्क वितर्क करने की क्षमता देता है। और तर्क वितर्क ही हमे ज्ञान प्रदान करता है। अतः *मन* के बिना *ज्ञान* नहीं। मन के रथ पर ही ज्ञान सवार हो सकता है। अतः *गुरु* जब भी *चंद्र* के घर यानी *मन* के घर *कर्क* राशि में जाएगा तो *उच्चस्थ* कहलाएगा क्योंकि वहां बैठकर *गुरु* प्रफुल्लित होगा। वहीं कर्क से ७वीं राशि यानि *मकर* में गुरु *नीचस्थ* होगा क्योंकि दासत्व *शनि* के घर पर ज्ञान का क्या महत्त्व। दास तो दास है उसे ज्ञान से क्या लेना।

अब *शुक्र* जो कि *विलासिता* है वो *उच्चस्थ* होते हैं *गुरु* कि राशि *मीन* में। क्योंकि विलासिता जब ज्ञान के घर जाति है तब और निखर जाती है और प्रखर बन जाती है। वहीं अगर *शुक्र* की *नीचस्थ* अवस्था देखें तो *मीन* से ७वीं राशि यानि *कन्या* राशि में *नीचस्थ* होते हैं जो की राजकुमार *बुध* की राशि है। बुध तो कुमार है, नपुंसक है, एक बच्चा है। अब एक बच्चे को, नपुंसक को, विलासिता से क्या लेना।

अब बात करते हैं अंतिम दो ग्रहों *बुध* और *शनि* की।

अब जैसा कि आप जानते ही हैं कि *बुध* राजकुमार है यानी बालक है। अब ज़रा सोचिए एक बालक कहां पर अपने आप को शक्तिशाली महसूस कर सकता है, सुरक्षित महसूस कर सकता है और जो मन में आए वो कार्य कर सकता है। उस पर कोई टोका टाकी कोई अंकुश नहीं। *उसके स्वयं के घर पर।* तो सीधी सी बात है *बुध* अपने स्वयं के घर *कन्या* राशि में *उच्चस्थ* होगा। वहीं कन्या से ७वीं राशि यानि *मीन* राशि में बुध *नीचस्थ* होगा क्योंकि *मीन* राशि *गुरु* की है तो *गुरु* के घर पर जाकर उसकी सभी बदमाशियों पर, मनमानियों पर अंकुश लग जाएगा। *गुरु* के घर पर जाकर *बुध* को अनुशासन में रहना होगा और *ज्ञान* को ग्रहण करना होगा और ज्ञान (पढ़ाई) से एक बालक हमेशा भागता फिरता है। अतः वो दयनीय अवस्था में आ जाएगा और *नीचस्थ* हो जाएगा।

अब *शनि* जो कि *दास* है वो *उच्चस्थ* होते हैं *शुक्र* कि राशि *तुला* में। क्योंकि दास शनि को जब विलासिता मिलेगी, धन मिलेगा, सुख मिलेगा तो शनि आनंदित होगा और मिलने वाले सुखों को पूर्ण रूपेण भोगेगा। वहीं अगर *शनि* की *नीचस्थ* अवस्था देखें तो *तुला* से ७वीं राशि यानि *मेष* राशि में *नीचस्थ* होते हैं जो की सेनापति *मंगल* की राशि है। मंगल है सेनापति, मंगल है पराक्रम। अब एक दास जब सेनापति के घर जाएगा, पराक्रम के घर जाएगा तो उसे अपने सब सुख और भोग छोड़कर के पराक्रम करना पड़ेगा, मेहनत करनी पड़ेगी। तो दास दयनीय अवस्था को महसूस करेगा और *नीचस्थ* हो जाएगा।

*ज्योतिषाचार्य डॉ दीपक सिक्का*
*8178337165*
*www.absolutezone.in*

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