क्या भुत प्रेत सच में होतें है - पार्ट 1 HDR Creations द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्या भुत प्रेत सच में होतें है - पार्ट 1

दोस्तो आपनें बचपन से ही कुछ ऐसी कहानियाँ जरुर सुनी हाेगी | जिसमें भुत प्रेत के बारे में बताया जाता है | मै भी अपनें नाना नानी से भी ईसी तरह के बहुत सी कहानियाँ सुनी है | मुझे डरावनी कहानियाँ सुन्ने का बहुत शौक है |

क्युँकि भुत प्रेत कि कहानियों में अलग ही राेमाँच है | और हमारे देश के हर हिस्से से आपको ऐसी ही बहुत सी कहानियाँ सुन्ने को मिल जाएगी

अकसर आपनें सुनी होगी की पीपल के पेंड़ में भुत प्रेत का साया होता है यानी के पीपल के पेंड़ में भुत प्रेत का वाश होता है और ज्यादा तर कहानियों में ईन दो ही पेंड़ो का नाम आता है

1) पीपल
2) बर्गद

ईन दो पेड़ो की कहानी आप को ईन्टरनेट में आसानी से मिल जाएगी

Example:- पीपल वाला भुत, बर्गद के पेंड़ का भुत

तो आज मै ईन्हीं में से एक कहानी सुनाने जा रहा हुँ |

मेरा नाम समीर है और ये कहानी मेरे एक दोस्त
की है जो आपनी आप बीती मेरे द्वारा आप सभी के सामने प्रस्तुत करना चाहता है मुझे उम्मीद है के आप को मेरे दोस्त कि ये कहानी जरुर पसंद आएगी

मै घाँटशीला का रहने वाला हुँ | और मेरे घर के सामनें एक तालाब है जहाँ हमलोग नहाना धाेना करतें है | नल का पानी लाने के लिए हमें फाटक जाना पड़ता है | घर के सामने रेलवेलाईन होने के कारण यहाँ ट्रेंने बहुत चलती है |

और ट़्रेन से बहुत से हादसे हुए है बहुत से लोग ट़्रेन के नीचे मरें है |

और पुल के उस पार एक बहुत ही विशाल बर्गद का पेंड़ है
दिन के समय कुछ मुसाफिर ईसके नीचे आराम करतें है | मुसाफिरों को क्या पता होगा के ये पेंड़ कैसा है वाे तो बस ईसके छाए में आराम करकें चलें जातें है |

एक दिन मेरे साथ जो घटना हुई उसके बाद से मै कभी भी
उस पेंड़ के आस पास से रात को नहीं गुजरता था | दिन को कभी मजबुरी में जाना पड़े उस रास्ते से तो भी मै उस पेंड़ के बहुत दुर से गुजरता था मुझे दिन में भी हिम्मद नही होती थी के उस पेंड़ के सामनें सें गुजरुँ

तो चलिए मै आपको मेरी ये घटना से रुबरु करवा देंता हुँ | हुआ युँ के शाम के करीब 7:30 बजें मुझे फोन आया मेरे पापा का के उन्हें

दुकान की कुछ जरुरी चीजें लानीे है ईसिलिए वह हमें दुकान बुला रहें थे

मै पैदल ही निकल गया दुकान कि तरफ गाँव ईलाका होने के कारण रात जल्दी हो जाता आपको यहाँ शाम के 7 बजे ऐसा लगेगा की कितनी रात हो गयी हो


मै पैदल चलतें चलतें कुछ ही दुर पहुँचा था के मेरे मन में डर हावी होने लगा था

मै बार बार पीछे मुड़े जा रहा था ऐसा लग रहा था के मेरे पीछे पीछे कोई चल रा हो मै ईन सब बातों को छोड़ कर जल्द ही दुकान पहुँच गया

पापा मुझे दुकान की देखभल करने को बोल कर समान लाने चलें गए

मै अपनें मोबाईल में गेम खेल रहा था क्युँकी दुकान में कोई नही आ रहा था

गेम खेलते खेलते टाईम कब पार हो गया पता ही नही चला पापा सामान ले आने के बाद मुझे कुछ सामान सजाने को दे दिए मै सामान सरिया के वहाँ से निकल गया

फिर से वही रास्ता पडा़ फिर से वैसा ही लगना शुरु हो गया मानो कोई पीछे पीछे चल रहा हो पर मुड़ के देखने से कोई नही दिखता था

तभी मंजर ओर भी डरावना हो गया मुझे पीछे से मेरे पापा की आवाज आई मै रूक गया

मै सोचने लगा के पापा तो दुकान में होंगें मुझे विश्वाश नही हुआ के पापा पीछे से चिल्लाए

ईस लिए मैं डर के दौड़े दौड़े भागने लगा और भागते भागते पापा को फोन लगाया पापा से पुछा के आप कहाँ हो तो वो बोले क्युँ मैने सारी बातें उन्हें फोन में ही बतादी

वह बोले तुम जल्दी घर जाओ और पहुँच कर फोन करना

मै घर आ गया और सो गया थके हेने के कारण कम मै सो गया मुझे पता ही नही चला


सुबह मेरे और मेरे पापा के बीच में वही बातें शुरु हो गयी पापा ने मुझे बताया के ईस पेंड़ पर भुत प्रेतों का बसेरा है दिन में सब कुछ ठिक रहता है पर शाम होने के बाद ईस पेंड़ के आस पास कोई नही जाता ट्रेनों के नीचे आके जो लोग मरें है वह भुत प्रेत बन जातें है और यहाँ से गुजरने वाले लेगो को परेशान करतें है | और मरे हुए लोग भुत प्रेत बनके ईस पेंड़ में वाश कर रहें है | ये बात मुझे मेरे पापा से पता चली जिसके बाद मै आज तक उस पेंड़ के आस पास भी नही भटकता हुँ


अगर आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है तो आप मुझे जरूर शेयर करियेगा


Part 2 Coming Soon