सपने (भाग 2) Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सपने (भाग 2)

बेटे की बात सुनकर नागेश के पिता बोले,"बेटा तू खुद समझदार है।"
"पिताजी वहां काम करने से हमारे परिवार की गरीबी दूर हो जायेगी।राजन को खूब पढ़ा सकेंगे।रुक्मा, देवी और पार्वती भी पढ़ लेंगी और उनकी शादी भी अच्छी जगह धूम धाम से हो जाएगी।"
"बेटा अगर ऐसा है तो तू जरूर चला जा।हमारे देश मे मेहनत के बदले मिलता ही क्या है?अगर वहां ज्यादा पैसा मिलेगा तो तू जरूर चला जा।"
पिता की स्वीकृति मिलने के बाद उसने पता किया कि दुबई या खाड़ी के देश मे कैसे जा सकते हैं?वहां जाने के लिए सबसे पहले पासपोर्ट व वीजा की जरूरत थी।इन दस्तावेजों को बनवाने और वहाँ जाने के लिए कम से कम पचास हज़ार रुपये चाहिये थे।
इतने रुपये कहाँ से आएंगे?घर मे जमा पूंजी थी नही।नागेश जो रोज कमाकर लाता था।उससे घर का खर्च जैसे तैसे चलता था।नागेश को अपने विचार को बदलना पड़ा।उसने मजदूरी के लिए अपने देश से बाहर किसी खाड़ी देश मे जाने का इरादा त्याग दिया।लेकिन एक दिन नागेश के पिता बोले,"तू तो रोजगार के लिए विदेश जा रहा था।क्या हुआ तेरे इरादे का।"
"पापा मेरे लिए विदेश जाना संभव नही है।"पिता की बात का नागेश ने जवाब दिया था।
"क्यों?"
"पापा विदेश जाने के लिए कम से कम पचाश हज़ार रुपये चाहिए।"नागेश अपने पिता को सारी बात बताते हुए बोला,"इतने रुपये हो,तभी मैं विदेश जा सकता हूँ।"
नागेश के पिता भी अपने परिवार को खुशहाल देखना चाहते थे।वह भी चाहते थे।परिवार की दरिद्रता दूर हो।इसलिए उन्होंने अपने मकान को गिरवी रखकर साहूकार से पचाश हज़ार रुपये उधार ले लिए।
पैसे की व्यस्था होने पर नागेश ने भागदौड़ शुरू कर दी।उसने रात दिन एक करके पासपोर्ट और वीजा बनवा लिया।दोनो दस्तावेज मिल जाने के बाद उसने टिकट बुक करा ली।एक दिन वह दुबई के लिए रवाना हो गया।पिता ने चलते समय कहा था,"अपना ख्याल रखना।पत्र डालते रहना।गांव में कई लोगो पर फोन है।फोन भी करते रहना।"
और नागेश दुबई पहुंच ही गया।
कानो से सुनी और आंखों से देखी में बहुत अंतर होता है।नागेश को जैसा उसके दोस्त ने बताया हकीकत उससे बिल्कुल उलट थी।दुबई पहुंचकर उसे जाते ही काम नही मिल गया।बल्कि जगह जगह भटकना पड़ा।जगह जगह भटकने और मिन्नते करने के बाद उसे एक भवन निर्माण करने वाली कंपनी में उसे काम मिल गया।उस कंपनी में भारत,पाकिस्तान, श्रीलंका और बंगला देश के लोग पहले से ही काम कर रहे थे।उन लोगो से दोस्ती होने के बाद नागेश उन्ही के साथ रहने लगा।
उस बड़े से कमरे में गयारह लोग पहले से ही रह रहे थे।इन गयारह में चार भारतीय,तीन पाकिस्तानी,दो बंगला देशी और दो श्रीलंका के थे।बारवां नागेश हो गया था।अलग अलग देश,धर्म,जाति और भाषा के होने के बावजूद उनमे किसी तरह का झगड़ा,विवाद नही था।वे सभी मिलजुलकर प्रेम और सोहार्द के साथ रहते थे।मिल जुलकर काम करते।एक दूसरे के सुख दुख में वे एक साथ खड़े रहते।
नागेश को सिर्फ छः महीने का वीजा मिला था।छः महीने का समय गुज़रने में क्या समय लगता।वीजा की अवधि समाप्त होने से पहले उसने अवधि बढ़वाने का भरसक प्रयास किया।लेकिन व्यर्थ।काफी प्रयास करने पर भी वह सफल नही हुआ।
(शेष कहानी का भाग तीसरे और अ अंतिम भाग में)