छुट-पुट अफसाने - 46 Veena Vij द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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छुट-पुट अफसाने - 46

एपिसोड---46 ‌‌

‌‌ ‌मैंने पिछली बार कहा था कि अगली बार आपको Houston लेकर चलती हूं। अब तो बहुत बार जा चुकी हूं, लेकिन पहली बार की बात ही कुछ और है। 1993 में हम America explore कर रहे थे।

‌‌मेरी सखी मंजु और हरी शंकर जी ने बहुत गर्मजोशी से Houston में हमारा स्वागत किया। जैसे मनचाही मुराद मिल गई हो। उसने पूरे 10 दिन की छुट्टी ले ली थी ऑफिस से। सहेलियों का प्यार एक आत्मिक संबंध होता है। उसने 10 दिन का पूरा schedule बना कर रखा था।

पहले दिन हमको मॉल दिखाने ले गई। वहां आश्चर्य में भरकर हमने बहुत ही बड़े आकार की और रंगों से चमकती पतंगे देखीं। Ice skating करते छोटे-छोटे बच्चे भी दिखे। इस तरह की रंग बिरंगी दुनिया देखते हुए मैं आत्म विभोर हो रही थी। तब भारत में Mall concept ने जन्म नहीं लिया था। भीतर तरह-तरह के पौधे खूब हेल्थी थे। हम तो एक गमला भीतर रखते थे, तो परेशान होते थे कि सूख ना जाए। यहां यह कैसा जादू है? तब मैं हैरान थी...

दूसरे दिन मंजू हमें Budweiser बीयर बनाने की फैक्टरी लेकर गई। लगा, यह तो जौ का पानी है इसे पीने में क्या हर्ज है? वहां के मालिकों का सारा ऐतिहासिक सफर पूरी पिक्चर गैलरी में दिखाया गया था। रोचक सफर था।

अगली शाम--- जैसे हमारे यहां काला जादू शो होता है कोलकाता का, उसी प्रकार से वहां मैजिक शो की टिकटें उसने बुक करा कर रखी थीं। बचपन याद आ रहा था। अब तो एक मुद्दत बाद ऐसा शो देख रहे थे। खाना बाहर ही खाते थे फिर रात को।

इसी तरह हम Houston का सबसे बड़ा Air conditioned Indoor stadium " Astrodome "देखने गए। उन दिनों यह दुनिया का सबसे बड़ा Dome Stadium था। जो multipurpose sports के लिए था। इसके भीतर भी हमने ढेरों फोटोस लीं। अपने बच्चों को दिखाने के लिए । बच्चों का साथ ना होना बहुत अखरता है। विशेषकर जब आप कुछ नया देखते हैं । लेकिन प्रभु का धन्यवाद भी करते जाते थे कि उसने हमें यह मौका दिया । सकारात्मक विचारधारा हर नकारात्मकता को उसी पल समाप्त कर देती है ।

"ओशो" ने मुझे कहा भी था" जिस पल में जी रहे हो उसे हंसकर जीना ! क्योंकि वह पल चला गया तो दोबारा फिर कभी नहीं आएगा "और इसी ने मुझेे हंसकर जीना सिखाया। जिंदगी में कितनी भी विपरीत परिस्थितियां आईं मैं सदा मुस्कुराती ही रही। चाहे मुखौटे पहनती रही। यही तो जीवन है।

एक man made artificial fall जिसका पानी नीचे आने की अपेक्षा ऊपर की ओर जा रहा था उसे देख कर हम आश्चर्यचकित रह गए। हम तो अमेरिका की अजब गजब दुनिया ही तो देखने आए थे---सब मजे से देख रहे थे। फिर भी सबसे अधिक उत्सुकता थी NASA जाने की।

NASA and GALVESTON ISLAND

दुनिया का असली तीर्थ तो NASA ही है। आज तक उसके बारे में इतना कुछ पढ़ा और सुना था कि उसे देखने की प्रबल इच्छा थी। वहां उसका नाम JOHNSON SPACE CENTRE NATIONAL HISTORIC LANDMARK लिखा था। वहां पर स्पेस में जाने वालों की ट्रेनिंग का सेंटर देखा और दांतो तले उंगली दबा ली आश्चर्य से!!!

Spaceman or women को बहुत मुश्किल ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। हफ्तों तक पानी के बड़े टैंक में बिना पैरों का आधार लिए उसमें रहना पड़ता है।

वहां समझाने के लिए रॉकेट के सैंपल हैं, जिन्हें दिखाकर गाईड समझाते हैं। Rockets ke launching pad इत्यादि काफी कुछ ज्ञानवर्धक था देखने और समझने के लिए।

Neil Armstrong की space uniform के साथ भी हमने फोटो खिंचवाईं। वहां सारे टूरिस्ट यही सब कुछ कर रहे थे। एक जगह artificial moon landing की झांकी बनाई गई थी। जिस पर तीन spacemen यूनिफॉर्म पहने दिखाए गए थे। मेरी आंखों के समक्ष आज भी वह सारे दृश्य सजीव हो उठे हैं।

अब हम Houston से थोड़ी दूर बाहर की ओर Galveston Island जा रहे थे। वहां पर देखने योग्य एक बहुत सुंदर पार्क था, जिसका नाम Magic Carpet Golf था। वह मानो पुराने जमाने का कोई FairyLand लगता था। उसमें तरह-तरह के characters बने हुए थे।

उससे आगे घूमने गए तो झांकियां सजी हुई थीं। मंजू ने बताया कि ये Mardi gras की झांकियां हैं। फरवरी के आखिरी हफ्ते में French emperors का festival मनाया जाता है। बहुत ज्ञान बटोर रहे थे हम अमेरिका का, वहां की संस्कृति का, त्योहारों का। साल भर में एक बार French emperors अपनी प्रजा को प्रसन्न करने के लिए अपने महल से बाहर आते थे और उनमें जवाहरात बांटते थे। जिसकी अब नकली मोतियों की मालाओं से पूर्ति की जाती है। और प्लास्टिक के नए नकली गहने फेंके जाते हैं पब्लिक के ऊपर। झूठ मुठ के राजे बैठाये जाते हैं झांकियों में। यह राजा लोग प्लास्टिक के सुंदर - सुंदर बर्तन भी फेंकते हैं और झांकी देखने सड़क के किनारे आए लोग सब कुछ उठा कर घर ले जाते हैं यही रिवाज है।

वैसे मार्डी ग्रा का त्योहार Louisiana state से संबंधित है लेकिन साथ ही साथ Texas के दक्षिण में भी carnival निकाले जाते है लोग तरह-तरह के खूबसूरत मुखोटे मुंह के ऊपर लगाकर घूमते हैं। एक बार मैं कैलिफोर्निया से लुइज़िआना आ रही थी Mardigras के दिनों में, तो यह देख कर आल्हादित हो उठी थी कि हवाई जहाज में सभी लोग मार्डी ग्रा के गीत गा रहे हैं। यह उनके लोकगीत होते हैं जिसे वे तालियां बजा -बजा कर गाते हैं। जैसे लोहड़ी के दिनों में पंजाब में दुल्ला भट्टी के गीत गाए जाते हैं।

अगले दिन मंजू और हरिशंकर जी Houston se north West कि ओर हमें सैन एंटोनियो घुमाने ले कर गए। उस शहर की खास बात यह थी कि शहर के बीचों-बीच एक नदी बह रही थी जिसके दोनों तरफ बिल्डिंग्स ही बिल्डिंग्स थीं। इमारतों की नींव पानी में डूबी लगती थीं। यहां बहुत ठंड थी। यहां तक कि जब हम नाव में सैर करने के लिए बैठे तो अत्याधिक ठंड से हमारे दांत किट किटा रहे थे और हम कांप रहे थे।

उसके बाद 90 मिनिट की ड्राइव के बाद हम Austin (टैक्सेस की राजधानी ) की दिशा में चलते हुए San Marcos के Longhorn caverns पहुंच गए थे। इन गुफाओं में नीचे उतरते हुए रेलिंग का सहारा लेना पड़ता है। भीतर बिजली का पूरा इंतजाम है। जिसमें आप देख सकते हैं कि जमीन के भीतर सैंकड़ों वर्षों से मिट्टी जम- जम कर इतने सुंदर- सुंदर रूप बना सकती है कि कहीं बॉयल्ड एग लगते हैं बने हुए, तो कहीं पर कोई मूर्तियां बनी लगती हैं। यह सब sand dunes हैं। इनकी फोटोस हैं ।

आश्चर्यचकित और अचंभित होते हुए हमने देखा कि नीचे गहराई में एक‌ निर्मल नदी बह रही है जबकि जमीन के ऊपर सिर्फ एक ऊंची सी पहाड़ी थी, जो अपने गर्भ में, एक मां के गर्भ जैसे इतना कुछ समेटे हुई थी ।

इंसान कभी सोच ही नहीं सकता। सिर्फ अपनी आंखों पर ही विश्वास करता है । गाईड ने हमें बताया कि इन caves को भी कुछ खेलते हुए बच्चों ने अचानक ढूंढ लिया था। अब हम ऑस्टिन के काफी करीब आ गए थे और बहन को भी मिलना था। इसलिए उसकी बेटी बबली के घर पहुंच गए और उन सबको मिले। और बताया कि हम सीधे पोर्टलैंड पहुंचेंगे, शादी में सम्मिलित होने के लिए।

सारा दिन बिता कर शाम को हम वापिस सन एंटोनियो आए। वहां एक ऊंची मीनार पर Revolving restaurant था। हम लोग वहां डिनर करने गए। अर्थात खाना खाते- खाते मीनार पर स्थित वह गुंबद रेस्टोरेंट इतना धीरे-धीरे घूमता है कि आप सारे शहर का मुआयना कर लेते हो। यह भी एकदम नवीन अनुभव था।

हम तो हर दिन एक से बढ़कर एक नवीन अनुभूतियों से सराबोर हो रहे थे। और काफी रात गए हम Houston वापस आ गए थे। जब से आए थे मंजू के पास घूम ही तो रहे थे। अभी उसका ऑफिस देखना बाकी था सो वह भी अगले दिन देखा। वह मुख्यतया चांदी और मोतियों की ज्वेलरी का बिजनेस करते हैं। अमेरिका के बड़े-बड़े स्टोर्स में उनकी बनी हुए ज्वेलरी बिकती है जिसे वे मेक्सिको, भारत, लंका, जापान, बालीद्वीप आदि जगह से मंगवाते थे।

एक बात का उल्लेख करना आवश्यक है। मेरी सहेली ने अपनी बेटी रितु के लिए एक मकान लेकर रखा था उसे शादी में देने के लिए। जिसे उसने लेने से मना कर दिया था क्योंकि उसका मानना था कि वह अपनी इच्छा अनुसार अपना घर बनाएगी। मां के दिए घर में नहीं रहेगी। यहां संस्कारों का कितना फर्क है भारत के बच्चों का और अमेरिकन बच्चों का। और उसने अपनी और अपने पति की कमाई से अपना घर बनाया था।

मेरे shoulder cut hair में मंजू ने rollers लगाकर तो कभी rolling stick से मेरे बाल curl भी किए। मुझ पर अपना स्नेह उड़ेल रही थी मेरी प्रिय सखी।

शनै:-शनै: 10 वां दिन आ पहुंचा था। हमने अपना सामान साथ रख लिया था और मंजू हमें ड्राइव करके पोर्टलैंड लेकर जा रही थी। शादी के बाद हमने सीधे एयरपोर्ट जाकर न्यू ऑरलियंस की फ्लाइट लेनी थी ।

Speedy driving के लिए रास्ते में मंजू को सौ डॉलर की टिकट मिल गई थी। झाड़ियों के पीछे से अचानक ब्लू लाइट वाली पुलिस की गाड़ी अचानक सामने आ जाती है और चालान काट देती है। तब यह भी बातें हमारे लिए नई थीं। भारत में ऐसा कुछ नहीं होता था।

करीब ढाई घंटे की ड्राइव के बाद हम लोग Portland के एक चर्च में पहुंचे जहां उषा के बेटे बॉबी की शादी एक स्पेनिश लड़की Viviyan से हो रही थी।

कहते हैं जोड़ियां भगवान के घर बनती हैं शायद तभी Bobby अमेरिका आ गया था । उसे विवियन मिलनी थी। श्वेत शादी के परिधान में विवियन स्वर्ग की अप्सरा लग रही थी। विदाई के वक्त उन्होंने हमारे हाथ में प्लास्टिक के सफेद गुलाब दिए जिनमें चावल भरे हुए थे और जब विदाई होने लगी तो उसे दूल्हा-दुल्हन के ऊपर छिड़कने को बोला गया।

हमारी भारतीय संस्कृति के अनुरूप स्पेनिश लोगों में भी चावल छिड़काव शुभ माना जाता है । मां और बहन रो भी रही थीं। जैसे हमारे यहां रोते हैं विदाई के समय। आचार्य चतुरसेन ने अपने उपन्यास "वयम् रक्षाम:" में कुछ ऐसा ही जिक्र किया था। मुझे वही याद आ रहा था कि मैक्सिको में राजस्थान की रानियां आकर बस गईं थीं अपने सेवकों के साथ क्योंकि राजाओं को यवनों ने मार डाला था। तभी इनका खानपान हम से मिलता जुलता है।

हमने भी सब से विदा ली और सीधे एयरपोर्ट चले गए थे। मंजु और मैं, हम दोनों सहेलियां अनिश्चित समय के लिए फिर अलग हो गई थीं।

आज वहां Mardigras flight जा रही थी। अर्थात जहाज के भीतर सब मार्डीग्रा के गीत गा रहे थे। आधे घंटे में हम New Orleans पहुंच गए थे।

Mardigras Parade

कुकू हमें सीधे घर ना ले जाकर मार्डीग्रा का आखिरी दिन था और उसकी फाइनल परेड थी-- वह दिखाने ले गया। मजा ही आ गया इतनी रौनक देखकर। सजी हुई झांकियों के ऊपर तरह तरह का संगीत बज रहा था और नृत्य हो रहे थे सड़कों पर भी और झांकियों पर भी। खूबसूरत परिधान पहनकर बालिकाएं और युवतियां मस्ती में झूम रही थीं और पीछे से राजा बने हुए लोग मालाएं सड़क के दोनों तरफ फेंक रहे थे। जहां जनता की भीड़ उन्हें पकड़ने के लिए हाथों को ऊपर किए हुए थी।

थोड़ी देर यह तमाशा देखकर मस्ती में झूमते हुए हम लोग घर पहुंचे। वहां पहुंचकर पता चला कि हम लोग अभी अगले सफर के लिए निकल रहे हैं। सारा सामान बड़ी गाड़ी में रखा गया था और कपड़े बदल कर हम लोग भी गाड़ी में बैठ गए अपने अगले पड़ाव के लिए जो था Disney World.

सारी रात कुकू और मंजू ने बारी बारी गाड़ी चलाई । पीछे सोने के लिए बिस्तर लगा दिए थे। कुकू के दोस्त मुकेश और शानी भी अपने दोनों बेटों के साथ दूसरी गाड़ी में साथ साथ चल रहे थे Florida state .के लिए।

रास्ते में एक मोड़ दिखा नहीं जिससे हम लोग साथ वाली जॉर्जिया स्टेट पहुंच गए। वहां पर दलदल बहुत ज्यादा है इसलिए वहां पेड़ों के तने दूध जैसे सफेद थे। हमारे लिए यह भी एक अजूबा था। वहां ढेरों डेरी फॉर्म थे । वहां से कुकू ने U turn लिया, जिससे हम दुबारा फ्लोरिडा की तरफ आ गए थे। मैंने वैसे पेड़ के तने जिंदगी में दोबारा नहीं देखे। और जॉर्जिया स्टेट में फिर कभी जाना भी नहीं हुआ।

Disney World

सुबह वहां पहुंचकर हम लोग अपने ठहरने के स्थान पर गए। कुकू ने और मुकेश ने दो अपार्टमेंट बुक किए हुए थे। जहां अलमारी में बर्तन भी थे और गैस भी थी और घर से सारा सामान लाया गया था पकाने के लिए । इसके अलावा मंजू ने मठियां, शक्करपारे, लड्डू आदि साथ में बना कर रख लिए थे। क्योंकि यहां सभी शाकाहारी लोग थे और बाहर के खाने का परहेज करते थे।

एक हफ्ता वहां पर कैसे बीत गया हमें पता ही नहीं चला। हर नई सुबह नए स्थान को देखना होता था। मानो कभी हम बौनों के देश में, तो कभी परियों के देश में या समुद्री डाकुओं के घेराव में होते थे । कहीं जानवर बतियाते थे, तो कहीं हम पानी की गहराई माप रहे होते थे । ढेरों राइड्स थीं। मुकेश का बड़ा बेटा तरुण जो 15- 16 साल का था वह हर राइड में हम दोनों के साथ होता था। बाकी लोग आराम करते थे। हम तीनों ने वहां पर कोई राइड नहीं छोड़ी।

वहां हर राइड में लंबी लंबी कतार लगी होती थी लोगों की। लोगों में धैर्य भी बहुत देखा। मिकी माउस, मिनी माउस और कॉमिक्स के ढेरों किरदारों को हमने वहां वास्तविक रूप में देखा और उनके बारे में जाना। अंतिम दिन पानी के ऊपर लाइट शो था । बहुत ही शानदार !!अच्छाई और बुराई की लड़ाई पानी पर दिखाई गई थी। राक्षसी प्रवृत्ति वालों को bad guys और अच्छे लोगों को good guys बोलकर बच्चे आनंदित हो रहे थे।

English movie" King Kong" की असलियत हमें वहां जाकर दिखी। फिल्मों में शूटिंग के वक्त इमारतें गिराना, रेलगाड़ियां उठाकर गिराना यह सब तकनीकी कमाल था। डिजनी वर्ल्ड के बारे में लिखने लगूं तो एक उपन्यास लिखा जा सकता है लेकिन यहां कुछ यादें भर हैं।

‌‌ वहां जाने और समक्ष देखने से मुझे बच्चों के गेम्स और साहित्य का पूर्णरूपेण ज्ञान मिला। उस युग में हिंदुस्तान में टीवी का एक ही चैनल था दूरदर्शन । तो कुछ नहीं पता था हमें पाश्चात्य बाल साहित्य व खेल के विषय में।

‌अंग्रेजी तो वही है लेकिन कुछ" स्लैंग्स" यानी कि विशेष शब्द होते हैं। उनका ज्ञान होने से उनकी बातें झट समझ आ जाती हैं। वैसे भी ब्रिटिश इंग्लिश और अमेरिकन इंग्लिश में कुछ बेसिक अंतर भी है । क्योंकि हम ब्रिटिश के अधीन थे हमें उनकी भाषा ठीक समझ आती है। क्योंकि हमने स्कूलों में वही अंग्रेजी सीखी है और हम उसी का इस्तेमाल करते हैं बोलचाल में। खैर, मेरे ज्ञानकोष का भंडार काफी बढ़ गया था वहां जाने से।

‌एक हफ्ते बाद हम लोग वापस आ गए थे और उससे अगले दिन हमारी टिकट सैन फ्रांसिस्को की थी। इसलिए अब और आगे जाने की तैयारी थी फ्लाइट भी सवेरे 7:00 बजे की थी।

अगला संस्मरण कैलिफोर्निया स्टेटऔर नायग्रा फाल्स का है! मिलते हैं सोनफ्रांसिस्को में अगली बार...

वीणा विज'उदित'

3/9/2020