छुट-पुट अफसाने - 43 Veena Vij द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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छुट-पुट अफसाने - 43

एपिसोड---43

‌‌ मेरी यादों के झरोखे अपने देश से निकल कर अब विदेशों की ओर झांकने लगे हैं। कई लोगों के फोन आए कि अब बाहर के बारे में भी अपना अनुभव सुनाएं। जब बच्चे छोटे थे तो एक ज्योतिषी ने कहा था कि आप सबके पैरों में विदेश की यात्रा लिखी है। उस समय विदेश जाने के आसार कहीं नजर नहीं आते थे तो हैरानगी हुई थी। तब क्या मालूम था कि technology इतनी विकसित हो जाएगी कि सब दूरियां मिट जाएंगी।

अब तक मेरी पांच बहने और देवर देवरानी सब अमेरिका में सेटल हो चुके थे। फिर भी यह सोच ही रोमांचित करने वाली थी कि हम भी अमेरिका जाएंगे। देश-विदेश की सरहदों और समुद्रों को लांघते हुए दुनिया के सबसे अमीर, शक्तिशाली और अनुशासित माने जाने वाले देश में पहुंचेंगे। तब तक पाश्चात्य देशों से अभी तक भारत की आम जनता का परिचय नहीं हुआ था।

रवि जी के दिमाग में आ गया कि चलो अमेरिका चलते हैं क्योंकि कश्मीर तो बंद है। घूम आते हैं। चूंकि, रोहित चंडीगढ़ में था, तो स्वाति को भी GCG यानि government college for girls Chandigarh में एडमिशन करा दिया और हॉस्टल में डाल दिया क्योंकि रवि जी के चाचा जी का परिवार भी वहीं था और रवि जी की बहनें भी वहीं रहती थीं। सो चिंता की कोई बात नहीं थी।

‌ दिसंबर के पहले हफ्ते में चावला भाई साहब के बेटे विनीत और मोना ( विन्नी )की शादी थी । दुल्हन मेरी सहेली शोभा की सहेली मीना की बेटी थी।( मीना जो मशहूर गायक के. एल. सहगल की भतीजी हैं।)

हम 6 दिसंबर को उनकी शादी में पूरी तरह सम्मिलित हुए। विनी और मोना भी हनीमून के लिए इंग्लैंड होते हुए अमेरिका जा रहे थे मेरी बहनों के पास। हम दोनों भी एक हफ्ता England घूमते हुए आगे America जाने वाले थे।

9 दिसंबर को हमारी फ्लाइट Delhi से नौ घंटे में London Heathrow airport पहुंची। वहां हमें रवि जी के दोस्त और दर्शना दीदी के देवर रिसीव करने आए हुए थे। वो पप्पू के जेठ भी थे। हम दोनों की बहनें एक ही घर में ब्याही थीं

1992 में अभी दूरदर्शन ही चलता था। उसमें भी अशोक कुमार "छन्द पकइया - छन्द पकइया "बोलकर "हम लोग" सीरियल शुरू करते थे और लल्लू जी की बातें करते थे। जबकि विदेशों में TV के सैंकड़ों चैनल्स होते थे। और फिल्में भी विदेशों में नहीं बनती थीं। कभी कभार कोई अंग्रेजी मूवी देख लो, तो पाश्चात्य देशों के दर्शन हो जाते थे। या फिर अंग्रेजी मैगजींस में फोटो देख लो। वैसे मेरी बहन शोभा 1974 में ब्याह कर अमेरिका जा चुकी थी। पर सुनने और देखने में बहुत फर्क होता है सो अब हम अमेरिका देखने जा रहे थे। हमने एक हफ्ता लंदन में रहना था।

सो हमारे लिए लंदन "खुल जा सिम सिम " होने पर... दिखने वाला, अजूबों से भरा हुआ शहर था ! सच बताऊं मैं तो हैरान होकर एक के साथ एक सटी हुई इमारतें सैकड़ों साल पुरानी, लेकिन नए होने का भ्रम देती थीं जो उनको ही देखती रह गई थी।

ऐसे लगा हम किसी घर के भीतर जाने लगे हैं। लेकिन यह क्या? यह तो रेलवे स्टेशन था । धरती के तल से 5 मंजिल नीचे तक रेलगाड़ियों का जाल बिछा हुआ था, जो किसी अजूबे से कम नहीं था। Escalators‌ से नीचे उतरते जाओ। अपने टाइम से रेलगाड़ियां आ रही हैैं और अपने आप दरवाजे बंद हो रहे हैं। मैं तो यह सब कुछ विस्फारित नेत्रों से देख रही थी।

बड़े-बड़े name brands Macy, Dillards, Sears, TJ Max. etc हम पहली बार देख रहे थे। तब भारत में मॉल नहीं होते थे। भारत में ऐसा कंसेप्ट ही नहीं था। Multistoried Mall or stores वह भी Christmas time ki decoration के साथ देखकर लगता था हम fairy land में आ गए हैं।

Madam Tushad का wax museum --गांधीजी इंदिरा गांधी, अमेरिकन लीडर्स -सब की मूर्तियां बनी थीं वहां । London square और Big Ben, ढेरों कबूतर सभी कुछ मनभावन था। South hall में पहुंचकर लगा हम दिल्ली के करोल बाग में पहुंच गए हैं। वहां वैसा ही बाजार है। भारतीयों ने अपनी जरूरत की चीजें उस बाजार में रखी हुई हैं। जैसे---V shape rubber chappals, झाड़ू, मिठाइयां इत्यादि।

.... Surrey county हम दोस्त भूपीऔर मंजु को मिलने गए तो रास्ते में castles देखे पुराने पुराने किले और महल जो हम अंग्रेजी कहानियों में सुनते थे । और ponds में milky migratory-birds या दूध जैसे सफेद प्रवासी पक्षी और house boats भी देखीं। पूरे रास्ते भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य था! उन दिनों बर्फ भी गिर रही थी बीच-बीच में !

उनकी shop" The Sun"के ऊपर उनका प्यारा सा घर था। यह मंजू मेरी जालंधर की सहेली नीलम की छोटी बहन थी। नीलम का आग्रह था कि एक बार उसे देख तो आ, वो कैसी है! बेटियां विदेशों में ब्याह देने से धुक- धुकी तो लगी रहती है परिजनों को। विशेषकर जब वह सालों साल यदि इंडिया ना आएं तो---!

Birmingham palace और वहां के सिपहसालार भी देखे। आकर्षक वेशभूषा में। उनके घोड़े इतने बढ़िया थे कि लगता था इन्हें ही अरबी घोड़े कहते होंगे । Christmas आने वाली थी सो सब जगह सजावट ही सजावट थी। वहां बिना छत की बसों में शहर घूम कर ठंड में भी खूब आनंद आ रहा था। देव, जिनके पास हम गए थे। उनका घर बहुत सुंदर सजा था ।बाथरूम में भी झालरों वाले परदे व टब थे। तब यह सब कुछ नया था।

हमने तो इन सब जगह की केवल फोटोस देखी हुई थीं मैगजींस में। तरह-तरह की मशहूर कारों के शोरूम भी देखे। और बच्चों को खूब डिटेल में चिट्ठियां लिखीं।

ईश्वर से मना रही थी कि मेरे बच्चे भी यह सब कुछ देखें। ईश्वर ने सुन भी लिया। क्योंकि समय बदल रहा था । समय का चक्र तीव्र गति से घूम रहा था। सारे संसार में परिवर्तन आ रहा था। पूरे 8 दिन हम इंग्लैंड घूम कर अब अमेरिका जा रहे थे।

मुझे Tames river देखने का बहुत मन था।" Love story" novel पढ़ा था जवानी में उसी के कारण। सो, वहां जाकर मैं एक बेंच पर बैठी और रवि जी को भी साथ में बैठाया। मानो मैं उस उपन्यास में जी रही थी उन पलों में।

वहां एक अजीब घटना घटी--- मेरी जालंधर की पक्की सहेली और पड़ोसन शशी इंग्लैंड चली गई थी। एक बार उसका लंदन से कार्ड आया था बस। वह बैंक में काम करती थी मुझे नाम नहीं पता था बैंक का। मैंने यूं ही सरसरी तौर पर देव भाई साहब से कहा कि मेरी एक सहेली थी शशि दुबली- पतली सुंदर सी ! वो यहां किसी बैंक में काम करती है । लेकिन मुझे उसका एड्रेस नहीं पता है। इस पर वे बोले कि जिस बैंक में मेरा अकाउंट है वहां भी एक शशि है पतली दुबली सुंदर। कहीं वही तो नहीं...? वह इंडिया गई है दो दिन में आ जाएगी। फिर पूछ कर देख लूंगा।

अब इसे कुदरत का करिश्मा कहूं कि क्या कहूं कि दो दिन बाद वह आई और देव भाई साहब ने बैंक जाकर उससे बात की । कि क्या वो किसी वीना या रवि को जानती है..? तो वह खुशी से चहक कर बोली, " हां, कहां हैं वे?"इस पर देव भाई साहब ने उन्हें अगले दिन घर पर इनवाइट कर लिया कि आपको मिलाते हैं। क्योंकि उस दिन हम Surrey County गए हुए थे। अगले दिन हम आए तो हमें भी उन्होंने surprise दिया। वह अपने हस्बैंड के साथ आई थी।

हम दोनों एक दूसरे को देखकर हैरान रह गईं। दोनों ही खुशी के मारे रो रही थीं। कोई ऐसे भी मिल सकता है किसी को विदेश में जिसका पता ही ना हो ---! सब चकित थे। शायद हमारा दोनों का सच्चा प्यार था सहेलियों का, जिसमें दिल की सच्ची चाहत ने अपना रंग दिखाया था।

दुष्यंत कुमार ने कहा है ना, "हाथ उठाकर मांगो तो सही, अपने आप मिलेगा।"

इस तरह दामन में खुशियां भरते, हम अगले सफर के लिए चल पड़े थे। आगे फिर नौ-दस घंटे की फ्लाइट थी। अथाह सागर था बाहर Atlantic Ocean नीचे, जिस पर जहाज लगातार उड़ रहा था। टेक्नोलॉजी के नए करिश्मे देख कर गर्व होता है! अगली बार फिर अमेरिका पहुंचते हैं।

"स्वतंत्रता दिवस की सबको हार्दिक बधाई!"

 

वीणा विज'उदित'

14/8/2020