एक बार फिर शिकागो
समय से हम एयरपोर्ट पहुंच गए । शटल ट्रेन से हमने एयरपोर्ट में प्रवेश किया । बोर्डिंग पास लेकर , सिक्योरिटी चेक कराकर हम उस गेट नंबर पर जाकर बैठकर हम बोर्डिंग का इंतजार करने लगे । समय पर बोर्डिंग प्रारंभ हो गई । इस बार मुझे विंडो सीट मिल गई थी ।नदी ,नाले, घर पीछे छूटे जा रहे थे । समानांतर सड़कों का जाल बिछा हुआ था जो ऊपर से देखने में मोटी रस्सी जैसी नजर आ रही थीं । आकाश में बादल छाए हुए थे । बादलों के बीच से निकलकर प्लेन ऊपर उठ गया । थोड़ी देर पहले जो बादल हमारे आस पास होने का एहसास करा रहे थे अब नीचे एक मोटी चादर के रूप में नजर आने लगे । बहुत ही मनमोहक दृश्य था । अभी इसे आंखों में समेट कर कविता लिखना चाह ही रही थी कि बादल एकाएक गायब हो गए नीचे हरियाली का जाल फैला नजर आया । कहीं खेत, कहीं सड़कें तो कहीं नदी, एक पतली रेखा के रूप में अपने होने का एहसास करा रही थीं । एकाएक हमें पानी दिखने लगा । हम किसी समुंदर के ऊपर से गुजर रहे थे । इसे पार करने में हमें लगभग 6 मिनट लग गए । बाद में पता चला कि वह समुंदर नहीं, मिशीगन लेक है । इस लेक के एक तरफ मिशीगन स्टेट है तथा दूसरी ओर इलिनॉइस । शिकागो शहर इस लेक के किनारे बसा हुआ है । अंततः हम अपने गंतव्य स्थल पर पहुंच गए ।
ओ हेरे एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही प्रभा मिल गई । वह हमें लेने अपनी वैन लेकर आई थी । हम घर पहुंचे तो उसकी मेड( नौकरानी) मार्था घर की साफ सफाई में लगी हुई थी । वह हमें देख कर बहुत खुश हुई । उसने हमसे पूछा...हम कहां-कहां घूमे तथा हमें अमेरिका कैसा लगा ? हमसे बातें करते हैं वह काम में लग गई । प्रभा भी उस दिन व्यस्त थी । उस दिन पंकज जी का बर्थडे था । हमको अपने मित्रों से मिलवाने के लिए उसने एक छोटी सी पार्टी का आयोजन कर रखा था । काफी तैयारी तो उसने हमारे आने से पूर्व कर ली थी । जो थोड़ी बहुत बाकी थी, उसे पूरा करने में हम दोनों लग गए । सब्जियां घर में ही बना ली थीं तथा केक और परांठों का उसने ऑर्डर दे दिया था । इन दोनों चीजों को शाम को मार्केट से लेकर आना था ।
सबसे पहले अपने पति के साथ इंदु आंटी आईं । प्रभा ने बताया वह उसे अपनी बेटी मानती हैं । वह लखनऊ से हैं । लखनऊ में वह हमारे मम्मी पापा के घर के पास ही रहते थे पर कुछ वर्ष पूर्व वह अपनी पुत्री के पास अमेरिका शिफ्ट हो गई हैं तथा उनके पति ने भी यहीं जॉब ढूंढ लिया है । दूसरे आने वालों में प्रभा की मौसी साधना और श्वसुर जी थे । इसी तरह कुछ और लोग भी आये, इनमें कुछ उसके पड़ोसी थे तो कुछ प्रियंका और पार्थ के मित्रों के मम्मी पापा थे जो समय के साथ उनके भी मित्र बन गए हैं । सब इंडियन थे । उनमें कोई महाराष्ट्रीयन था तो कोई गुजराती, कोई बिहारी तो कोई पंजाबी... लग रहा था एक मिनी इंडिया घर में समा गया है ।
मैं रांची से आई हूं जानकार, रांची की रहने वाली एक महिला अपना अतीत शेयर करने लगी । वह और उसके पति डॉक्टर हैं । वह मुझसे बात कर ही रही थी कि उसे किसी ने आवाज दी...एक्सक्यूज मी...कहते हुए वह चली गई । उसके जाते ही उसकी छोटी बहन जो उससे मिलने अमेरिका आई थी, मेरे पास आई तथा बात चीत के इरादे से बोली,
' इस देश को चाहे यहां रहने वाले कितना भी अच्छा कहें पर मुझे तो अपना देश ही अच्छा लगता है । यहां पैसा है पर तन- मन को आराम नहीं है । पैसा... पैसा... पैसा ...आखिर इंसान की भूख क्यों नहीं मरती । अपने देश में तो छोटे से छोटा कर्मचारी भी घर के काम के लिए नौकर रख लेता है पर यहां पति पत्नी दोनों के काम करने के बावजूद मेड रखना संभव नहीं हो पाता है तथा सारा काम स्वयं ही करना पड़ता है ।'
'मशीनों से तो मिनटों में काम हो जाता है तथा किसी पर निर्भरता भी नहीं रहती है ।'मैंने कहा ।
' यह सच है कि मशीनों से काम मिनटों में हो जाता है पर उसके लिए भी तो स्वयं को ही लगना पड़ता है ... यह तो नहीं कि स्वयं आराम फरमाते रहो तथा सारा काम हो जाए । 'उसने उत्तर दिया ।
अभी बात हो ही रही थी कि आवाज आई...केक कटने जा रहा है...आप सब आइए । मुझे भी लगा चलो मुक्ति मिली वरना 1, 2 निगाहें बराबर हमें देख रही थीं । अच्छाई बुराई तो हर जगह है, यह तो व्यक्ति पर निर्भर है कि वह उसे किस तरह से देखे । प्रयत्न तो यह होना चाहिए कि इंसान हर जगह की अच्छाइयों को ग्रहण करें और बुराइयों को भूल जाए । यह सच है अपने देश, अपने घर से अच्छा कहीं कुछ भी नहीं है । शायद यही कारण है मजबूरी या स्वेच्छा से अपना वतन छोड़कर आये भारतीय इस जमीन पर अपनी सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं जबकि हम भारतीय अपने ही देश में व्यस्तता का आवरण ओढ़ते हुए बहुत कुछ छोड़ते जा रहे हैं ।
केक कटते तथा मोमबत्ती बुझाते ही ' हैप्पी बर्थ डे ' गीत से घर गुंजायमान हो गया । बिल्कुल एक भारतीय पार्टी लग रही थी सिवाय इस बात के एक दो लोगों को छोड़कर सब अंग्रेजी में ही बातें कर रहे थे ।
केक के पश्चात स्नेकस का इंतजाम था । सर्वप्रथम फ्रूट पंच सर्व किया गया फिर गोलगप्पे तथा समोसे जो इंदु आंटी बनाकर लाई थीं । समोसे वास्तव में ही बहुत ही स्वादिष्ट बने थे । यही कारण था कि सभी उनकी प्रशंसा करते हुए नहीं थक रहे थे । बच्चे अपनी अपनी प्लेट लेकर बेसमेंट ( घर के नीचे का हिस्सा ) में चले गए तथा आदमी तथा औरतों ने अपनी अपनी टोली बना लीं तथा सब बातों में मगन हो गए ।
नाश्ते का दौर समाप्त होते ही हम खाना लगाने उठ गए । सब्जियां हमने वार्मर में रख दी थीं जो काफी बड़ा था तथा जो प्रभा के किचन की एक कैबिनेट में फिक्स था । बाहर से देखने में वह वार्मर नहीं वरन ड्रॉअर प्रतीत हो रहा था । वैसे ही 3 ड्रॉअर फ्रिज के थे इनके अलावा दो बड़े फ्रिज और थे । इनमें एक बेसमेंट में तथा एक डाइनिंग रूम में रखा हुआ था ।
खाना तो लगभग तैयार ही था अभी नाश्ते के बाद अभी किसी का खाने का मन नहीं था अतः हम लोग भी सबके बीच आकर बैठ गए । गपशप का दौर चल निकला लगभग 1 घंटे पश्चात खाना लगाया ।
उस दिन हमें सोते-सोते रात्रि के लगभग 12:00 बजे दूसरे दिन हमारा शिकागो की सबसे ऊंची इमारत सीयर्स टावर देखने का प्रोग्राम था।
सुधा आदेश
क्रमशः